हादसा-16 (Haadsa-16)

पिछला भाग पढ़े:- हादसा-15

मेरी इस चुदाई कहानी के पिछले भाग में अपने पढ़ा कि कैसे हमने हमारी ताबड़तोड़ चुदाई गोली खा कर जारी रखी, और आखिर में मैं बेहोश हो गई। अगले दिन दिन बाथरूम में जा कर राजेश्वर जी ने मुझ पर पेशाब किया, और उस पूरे हफ्ते में हमने घर में हर कोने में चुदाई करी। फिर आया पूजा का दिन। अब आगे…

मैं पूजा वाले दिन सुबह जल्दी 5:30 बजे उठी, क्योंकि मुझे सारी तैयारी जो करनी थी। मैं सबसे पहले बाथरूम गई, और वहां अच्छे से नहा लिया। कल रात को हमने तगड़ी चुदाई की थी, क्योंकि हमें पता था कि आज तो हमें चुदाई का मौका नहीं मिलने वाला।

मैंने अपने मुंह और शरीर पर से राजेश्वर जी के वीर्य को साफ कर दिया, और बाकी शरीर भी रगड़ कर साफ किया। करीब आधे घंटे बाद में बाहर आ गई। मैंने एक अच्छी पारंपरिक तरीके से साड़ी पहन ली। माथे पर सिंदूर लगाया, और गले में दो मंगल सूत्र थे, एक राजेश्वर जी के नाम का, और एक मेरे असली पति के नाम का। वैसे भी दो मंगल सूत्र पहनने का आज-कल फैशन है।

फिर मैंने लीविंग रूम को अच्छे से फूलों से सजा लिया, और लीविंग रूम के बीच रंगोली बनाई जहां पर पूजा होनी थी। ये सब करने में मुझे 1 घंटा लगा। फिर मैंने किचन में जा कर आने वाले लोगों के लिए नाश्ता बनाया। आज बहुत लोग आने वाले थे। राजेश्वर जी का मित्र परिवार उनके दोस्तों के परिवार आने वाले थे।

मैंने नाश्ते में बड़े पतीले में गाजर का हलवा बनाया। मुझे इसमें एक और घंटा लग गया। फिर सब काम होने के बाद मैं चाय पीने सोफे पर बैठ गई। कुछ पल बाद राजेश्वर जी भी उठ गए, वो कमरे से बाहर आ गए और मैं उन्हें देख मुस्कुराई।

मैं: उठ गए मेरे प्यारे पति देव?

राजेश्वर जी: हां, कल रात पता है ना ज्यादा हो गया था।

ये कह कर हम दोनों हस पड़े। राजेश्वर जी ने मैंने किया हुआ इंतज़ाम देखा और बहुत खुश हो गए। उनको मेरे द्वारा की गई सजावट बहुत अच्छी लगी।

राजेश्वर जी: वाह दिव्या! तुमने तो घर को सजा कर रौनक ला दी। और तुम भी बहुत खूबसूरत लग रही हो।

मैं उनकी ये बात सुन कर शर्मा गई।

मैं (शरमाते हुए): क्या आप भी! जाइये तयारी कीजिये, लोग आते ही होंगे।

राजेश्वर जी हस्ते हुए नहाने के लिए बाथरूम चले गए, और मैं चाय पीने लगी। राजेश्वर जी के बाथरूम जाने के करीब 15 मिनट बाद दरवाजे की घंटी बजी। मैंने टाइम देखा तो लगभग 8:30 बज गए थे। मैंने दरवाजा खोला तो राजेश्वर जी के दोस्त विजय ठाकुर जी थे। मैंने उन्हें हल्की सी मुस्कान दी और अंदर बुलाया।

मैंने उन्हें सोफे पर बैठने के लिए कहा, और किचन से नाश्ता ला कर उन्हें दे दिया, और मैं भी फिर काउच पर बैठ गई। विजय जी अकेले ही आये थे। उनके साथ उनका परिवार नहीं था।

मैं: विजय जी, कैसा बना है हलवा?

विजय जी: बहुत बढ़िया बनाया है बेटा।

मैं: आप अकेले ही आये है, आपका परिवार नहीं आ रहा है?

विजय जी: हां, दरहसल मेरे बीवी की तबियत खराब रहती है, और मेरी बेटी अमेरिका में पढ़ने गई है, तो इसलिए मैं अकेला ही आ गया।

फिर उन्होंने राजेश्वर जी के बारे में पूछा तो मैंने उन्हें बताया कि वो अभी नहाने गए थे। फिर हमने इधर-उधर की बातें की, और थोड़ी देर बाद राजेश्वर जी भी नहा कर तैयारी करके बाहर आ गए।

राजेश्वर जीने सफेद कुर्ता और पजामा पहना था, और गले में सोने की चेन थी। राजेश्वर जी बहुत अच्छे लग रहे थे। मन कर रहा था उन्हें गले लगाऊं। राजेश्वर जी और विजय जी अब एक-दूसरे से बातें कर रहे थे, और मैं किचन में बाकी की तैयारियां कर रही थी। अब हर 5 से 10 मिनट में कोई ना कोई आ रहा था। मैं बस विजय जी और संजय जी को ही जानती थी। बाकियों से मैं पहली बार मिल रही थी।

जैसे-जैसे लोग बढ़ते गए, मेरा काम भी बढ़ता गया‌। मगर शुक्र है कि आये हुए परिवार की औरतें मुझे मदद कर रही थी। आखिर में पंडित जी आ गए, और पूजा शुरू हुई।

पूजा के लिए राजेश्वर जी और मैं बैठे हुए थे। पूजा खतम होने के बाद हमने सारे मेहमानों को प्रशाद दे दिया। ये सब कुछ होते-होते दोपहर हो गई। मैं सुबह जल्दी उठी थी, तो मेरा सर दर्द कर रहा था। वैसे भी अब मेहमान धीरे-धीरे जा रहे थे, तो मैंने राजेश्वर जी के पास जा कर कहा कि-

मैं: सुनिये, मैं उपर कमरे में सोने जा रही हूं। आप जरा संभाल लेना।

राजेश्वर जी ने मुझे हां कहां और मैं सबसे उपर वाले कमरे में जा कर सो गई। मेरे पीछे-पीछे पंडित जी भी उपर आ गए, और मेरे कमरे में आ गए।

मैं: क्या हुआ पंडित जी? आज भी उस दिन जैसा कुछ करना है क्या?

पंडित जी: नहीं बेटा आज पूजा है। आज मैं वैसा कुछ कर नहीं सकता।

दरहसल पंडित जी बस मुझसे मिलने के लिए आये थे। पंडित जी ने मुझसे यहां-वहां की बाते की, और फिर उन्होंने कुछ ऐसी मांग की कि मैं चौंक गई।

पंडित जी: बेटा मेरी एक इच्छा है, तुम पूरी करोगी?

मैं: कौन सी इच्छा?

पंडित जी: बेटा तुम अपने कपड़े उतारो ना, मुझे तुम्हें नंगा देखना है।

मैं इस बात पर हस पड़ी और बोली-

मैं: बस इतनी सी बात? रुको यही पर।

मैं उठ कर दरवाजे के पास गई, और उसे लॉक किया ताकि कोई अंदर ना आ जाए। फिर मैंने धीरे-धीरे अपनी साड़ी उतार दी, और उनके सामने ब्लाउस और पैंटी में खड़ी थी। फिर मैंने अपने बाकी के कपड़े धीरे-धीरे उतार दिये, और उनके सामने पूरी नंगी हो गई।

पंडित जी मुझे जी भर कर देख रहे थे। करीब 10 मिनट तक मेरे शरीर के हर अंग को करीब से देखने के बाद वो चले गए। मैंने भी दरवाजा उनके जाने के बाद अच्छे से लॉक कर दिया, और नंगे बदन ही बेड पर सो गई।

शाम को मेरी आँख खुल गई और मैं साड़ी पहन कर नीचे आ गई। सारे मेहमान चले गए थे। बस राजेश्वर जी और उनके 6 दोस्त सोफा पर बैठे हुए गप्पे मार रहे थे। मुझे नीचे आते देख राजेश्वर जी मेरी तरफ आए।

राजेश्वर जी: तो दोस्तों, आज के दिन का सारा श्रेय दिव्या को जाता है। इसी ने सारा इंतज़ाम किया था।

मुझे अपनी तारीफ सुन कर बहुत अच्छा लगा। फिर राजेश्वर जी ने अपने दोस्तों से मिलवाया। मैं विजय और संजय जी को जानती थी। उनके बाकी के चार दोस्तों का नाम था प्रवीण, जो रियल इस्टेट का बिजनेस चलाते थे। दूसरे थे माधव, जो शेयर मार्केट में काम करते थे। तीसरे थे कमल, जो मिल की फैक्टरी के मालिक है। और चौथे थे प्रताप सिंह, जो एक होटल के मालिक है।

दोस्तों आप तो समझ ही गए होंगे कि राजेश्वर जी के सारे दोस्त बहुत अमीर थे‌। लेकिन सारे एक-दम अच्छे थे। किसी को भी पैसे का घमंड नहीं था। सब जन लगभग एक उमर के ही थे, और हां, सब के सब हट्टे-कट्टे थे, 6 फीट ऊंचे और तंदुरुस्त। मैं तो उन सात जन के बीच में एक-दम छोटी लग रही थी।

मैंने उन सभी के पैर छू लिए और वो फिर आपस में बात करने लगे। ऐसा लग रहा था उन सब को कुछ कहना था, लेकिन बोलने के लिए झिझक रहे थे।

मैं (राजेश्वर जी को): क्या हुआ? कुछ परेशानी है क्या?

राजेश्वर जी: नहीं परेशानी नहीं है। तुमसे कुछ अनुमती लेनी थी।

मैं: किस बात की?

राजेश्वर जी: दरहसल हम सब दोस्त सोच रहे थे कि बहुत दिनों बाद मिले है, तो क्यों ना एक हफ्ता यहीं पर रह कर थोड़ा समय बिताए।

मैं थोड़ी सोच में पड़ गई कि सात दिन अगर ये लोग घर में रहेंगे, तो मुझे और राजेश्वर जी को टाइम नहीं मिलेगा।

मैं: लेकिन सात दिन आप करोगे क्या?

विजय जी: अरे हम बूढ़े क्या ही कर सकते है? भजन कीर्तन करेंगे और क्या।

मैंने थोड़ा और सोचा फिर राजेश्वर जी की खुशी के लिए मैंने हां कर दी। सातों जन खुश हो गए, और मुझे शुक्रिया कहने लगे। मैंने रात का खाना बनाया, और हम सब डिनर कर के अलग-अलग कमरे में सो गए। मैं सबसे उपर की मंजिल के कमरे में जा कर सो गई। बहुत दिनों बाद मैं और राजेश्वर जी अलग-अलग कमरे में सो रहे थे। मुझे तो चुदाई का मूड हो रहा था, मगर जैसे-तैसे करके मैंने अपने आप को शांत किया। क्योंकि घर में बहुत लोग थे। अगर हम पकड़े गए तो अनर्थ हो जाएगा।

अगला दिन कुछ खास नहीं था। मैं सुबह जल्दी उठी। सब के लिए नाश्ता बनाया, और राजेश्वर जी भी अपने दोस्तों के साथ बातें करते रहते थे। हमारी दिन में ज्यादा बात भी नहीं हुई थी। मुझे अब गुस्सा आने लगा था। एक तो मुझे चुदाई की इतनी आदत पड़ गई थी, कि मेरा अब लंड के बिना दिमाग खराब हो गया था।

दिन भर मेरी चूत में आग लगी हुई थी। मैं जैसे-तैसे खुद को कंट्रोल कर रही थी। फिर जब रात के 12:30 बज रहे थे, तब मैं अपने कमरे में चूत में उंगली करके उसे शांत करने की कोशिश कर रही थी। आधे घंटे उंगली करने के बाद भी मेरी चूत शांत नहीं हो रही थी। मेरी चूत को अब राजेश्वर जी के लंड की आदत पड़ गई थी।

मैं अपने कमरे से बाहर आ गई, और देखा कि कोई जगा हुआ था कि नहीं। सब अपने-अपने कमरे में सो गए थे। घर में पूरा अंधेरा था। मैंने राजेश्वर जी को फोन किया।

मैं: हैलो राजेश्वर जी। सो गए थे क्या?

राजेश्वर जी: नहीं दिव्या, तुम्हारी याद आ रही थी। नींद नहीं आ रही।

मैं: मेरा भी यही हाल है जान। एक काम करो, तुम उपर आ जाओ।

राजेश्वर जी: कोई देख लेगा दिव्या।

मैं: नहीं सब सो गए है। आप जल्दी आइये मेरे कमरे में मेरी चूत तरस रही है आपके लंड के लिए।

ये कह कर मैंने फोन रख दिया, और बेड पर जाके नंगे हो कर लेट गई राजेश्वर जी के इंतज़ार में। करीब पांच मिनट बाद मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई। मैं समझ गई कि राजेश्वर जी ही थे। मैंने जल्दी से दरवाजा खोला और उन्हें अंदर खींच लिया। उनके अंदर आते ही मैं उन पर टूट पड़ी। हम दोनों एक-दूसरे को ऐसे किस्स कर रहे थे कि हम मानों बरसो बाद मिल रहे है।

ऐसे ही कुछ देर एक-दूसरे के होंठ चूसने के बाद राजेश्वर जी ने मुझे पलंग पर फेंक दिया, और मेरी चूत चाटने लगे। मैं बहुत मजे से सिसकियां ले रही थी आह… आह्ह…

फिर राजेश्वर जी उठे, और मेरी चूत में अपना लंड डालने की तयारी में थे। उन्होंने जब मेरी चूत में लंड डाला, तब जाकर मुझे सुकून मिला। वरना मेरी चूत में तो दिन भर आग लगी हुई थी। राजेश्वर जी जोर-जोर से मुझे चोद रहे थे, और मैं उस आनंद में चिल्ला रही थी “आह्ह… आह्ह… और जोर से करो बहुत अच्छा लग रहा है आह…”

हम दोनों ही इस बात को भूल गए थे कि घर में हम अब अकेले नहीं थे। हम बेफिक्र हो कर चुदाई कर रहे थे। आधा घंटा मेरी चूत मारने के बाद राजेश्वर जी ने लंड मेरी चूत से निकाल कर मेरे मुंह में घुसेड़ दिया। मेरे सर को पकड़ कर वो दना दन मेरे मुंह को चोदे जा रहे थे, और कह रहे थे-

राजेश्वर जी: ले साली लंड की भूखी। बहनचोद, तेरा मुंह चोदने के लिए ही बना है। खा मेरा लंड!

हम दोनों अब गाली-गलौच करके ही चुदाई करने लगे थे। हम दोनों को ही इसमें मजा आता था। राजेश्वर जी मुझे रंडी समझ कर चोदते और मैं उनकी रांड जैसे लंड की सेवा करती थी।

राजेश्वर जी के मेरे मुंह को चोदने के वजह से मेरे मम्मे मेरी थूक से सने हुए थे। मेरी आँखों का काजल भी आंसू बहाने के कारण मेरे चेहरे पर फैल गया था। मेरा रूप एक-दम बाजारु औरत के जैसा हो गया था। पूरे आधे घंटे तक मेरा मुंह चोदने के बाद राजेश्वर जी मेरे मुंह पर झड़ गए। मेरा चेहरा उनके वीर्य से ढक गया जिसे मैंने अपनी उंगलियों से साफ करके चाट लिया।

राजेश्वर जी का बड़ा मोटा लंड मेरी थूक से चमक रहा था। मैंने उस लंड को हल्की सी किस्स दी और राजेश्वर जी की ओर देखा। हम दोनों एक-दूसरे को देख हसने लगे। लेकिन तभी हमें तालियों की आवाज़ आइ। हम दोनों हड़बड़ा गए, और दरवाजे की और देखा तो हम दोनों की गांड फट गई। दरवाजे पर विजय ठाकुर जी खड़े थे। उन्होंने हमारा सारा खेल देख लिया था।

इस मुसीबत से बचने के लिए दिव्या को क्या करना होगा, जानिए अगले भाग में।