Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 74
क्या खूब सुहाना सफर रहा क्या सुबह हुई क्या शाम ढली। धीरे धीरे किसी की औरत मैंने कैसे अपनी करली। जो फिरती थी मानिनी बन कर उसको मैंने पकड़ा कैसे? जाँ का भी दाँव लगा कर के बाँहों में उसे जकड़ा कैसे?
क्या खूब सुहाना सफर रहा क्या सुबह हुई क्या शाम ढली। धीरे धीरे किसी की औरत मैंने कैसे अपनी करली। जो फिरती थी मानिनी बन कर उसको मैंने पकड़ा कैसे? जाँ का भी दाँव लगा कर के बाँहों में उसे जकड़ा कैसे?
अच्छी अच्छी मानिनीयाँ भी चुदवाने को बेताब हुई? पहले तो पति से ही चुदती थी, गैरों पर क्यों मोहताज हुई?” दवा जो वफ़ा का करते थे जो ढोल वफ़ा का पीटते थे। क्यों वह झुक कर डॉगी बन लण्ड लेने को सरताज हुई?
क्या हाल हुआ क्या बात हुई? अच्छी अच्छी मानिनीयाँ भी चुदवाने को बेताब हुई? पहले तो पति से ही चुदती थी, गैरों पर क्यों मोहताज हुई?
सुनीता अपने पति सुनीलजी और अपने प्रियतम जस्सूजी के बिच में लेटी हुई थी। एक तरफ उसके पति का खड़ा लण्ड उसकी चूत में घुस रहा था, तो पीछे जस्सूजी का मोटा घण्टा सुनीता गाँड़ की दरार में फँसा था।
सुनीता के लिए खड़े हुए जस्सूजी से उनकी बाँहों को अपनी बगल में लेकर एक फूल की तरह अपने नंगे बदन को ऊपर उठाकर अपनी चुदाई करवाने का मज़ा कुछ और ही था।
सुनीता ने जस्सूजी की और देखा और अपना पेंडू से ऊपर धक्का मारकर जस्सूजी का लण्ड थोड़ा और अंदर घुसड़ने की कोशिश की। जिसका अंजाम क्या हुआ जानिए!
जस्सूजी ने पहले सुनीता के कपाल पर और फिर सुनीता के बालों पर, नाक पर, दोनों आँखों पर, सुनीता के गालों पर और फिर होँठों पर चुम्बन किया।
सुनीलजी ने सिर्फ एक धोती जो डॉ. खान की अलमारी में मिली थी वह पहन रक्खी थी। उसकी गाँठ भी बिस्तरे में पलटते हुए छूट गयी थी। वह बिस्तर में नंगे ही सोये हुए थे।
यह प्यार दीवाना पागल है। ना जाने क्या करवाता है। कभी प्यारी को खुद ही चोदे, तो कभी प्यारी को चुदवाता है। आगे आगे पढ़िए की कहानी में क्या क्या होता है।
कुछ ही देर में गद्दा और रजाई चटाई बगैरह लेकर डॉ. खान हाजिर हुए। डॉ. खान ने जस्सूजी से सुनीलजी की कहानी सुनी। कैसे आतंकवादियों से उनका पाला पड़ा था, बगैरा।
सुनीलजी ने आयेशा की गंवार भाषा में भी एक सच्चा प्यार देखा तो वह गदगद हो उठे। उन्होंने आयेशा को अपनी बाँहों में लिया और दोनों एक प्यार भरे गहरे चुम्बन में जुट गए।
सुनीता और जस्सूजी दोनों को एक दूसरे से पहली मुलाक़ात के महीनों के बाद पहली बार ऐसा मौक़ा मिला था जब उनकी महीनों की चाहत पूरी होने जा रही थी।
सुनीता को जस्सूजी का लण्ड अपनी चूत में लेकर जो भाव हो रहा था वह अवर्णीय था। एक तो जस्सूजी उसके गुरु और मार्ग दर्शक थे। उसके अलावा वह उसको बहुत चाहते थे।
जस्सूजी के बगल में ही लेट कर सुनीता ने अपनी बाजुओं को ऊंचा कर लम्बाया और जस्सूजी को अपनी बाँहों में आने का निमत्रण दिया। आगे क्या हुआ कहानी में जानिए!
बिस्तर में घुसने के बाद सुनीता दूसरी और करवट बदल कर लेट गयी। सुनीता की गाँड़ जस्सूजी की पीठ कीऔर थी। सुनीता काफी थकी हुई थी।
सुनीता ने जस्सूजी के पुरे बदन को अपने बदन से सटाने पर मजबूर किया। सुनीता के साथ ऐसे लेटने से जस्सूजी का इन मुश्किल परिस्थितियों में भी लण्ड खड़ा हो गया।
आधी रात बित चुकी थी। कुछ ही घंटों में सुबह होने वाली थी। सुनीलजी का मन खट्टा हो रहा था की एक वक्त आएगा जब उन्हें आयेशा को छोड़ कर जाना पड़ेगा।
राहों में मिले चलते चलते, हमराही हमारे आज हैं वह। जिनको ना कभी देखा भी था, देखो हम बिस्तर आज हैं वह।। पढ़िए और कहानी का लुफ्त उठाइए!
राहों में मिले चलते चलते हमराही हमारे आज हैं वह।
जिनको ना कभी देखा भी था देखो हम बिस्तर आज हैं वह।।
कालिया के हाथ में वही बंदूक थी और वह बन्दुक को सुनीलजी और जस्सूजी की और तान कर सुनीता से क्या बोला ये इस एपिसोड में जानिए!