हेलो दोस्तों, कैसे हैं? मेरा नाम किशन है। मेरी उम्र अभी 22 वर्ष है। यह मेरी पहली चुदाई की कहानी आज से 3 वर्ष पहले की है जब मैं 19 का था। आज मैं आप सब के सामने एक नई स्टोरी लेकर आया हूं। दोस्तों खुली चूत को निहारना और चूचियों का स्पर्श किसे नहीं पसंद? और यह दोनों चीज घर में मिल जाए, तो किसे नहीं लगता कि जीवन खुशियों से भर जाए।
दोस्तों आप सभी ने अपने-अपने घरों में कभी ना कभी अपनी बहन और मां का नग्न शरीर देखा होगा। यह देख कर आपके लंड ने सलामी भी दी होगी। शायद ही आप कभी उस क्षण को भूल पाए हो। मैं भी इसी माहौल में पला-बढ़ा। पेटिकोट में लिपटी मां की बड़ी-बड़ी गांड और सोती हुई बहन की बुर के दर्शन यह सब हर लड़के के जीवन में सुनहरे पल की तरह आते है। मैं भी इससे अलग ना था दोस्तों।
मेरे परिवार में कुल तीन लोग हैं, मेरी मां, मेरी बहन जो उम्र में मुझसे केवल एक साल बड़ी है, और मैं। जब मैं छोटा था, मेरे पिता की मृत्यु हो गई। पिता बैंक में थे तो उनकी नौकरी मेरी मां को मिल गई। जब मैं 19 साल का हुआ तो हारमोंस ने अपना काम करना शुरू किया। तो मेरा ध्यान अपनी मां की गांड और बहन की कच्छी में छिपे पाव रोटी जैसी बुर को ढूंढने लगा। मुझे जब भी मौका मिलता अपनी सोई बहन की कच्छी को उतार कर उसकी बुर को निहारता रहता। लेकिन एक दिन की घटना के बाद मेरे सेक्स जीवन की शुरुवात हो गई।
एक बार की बात है। रविवार का दिन था, और दोपहर का समय था। मेरी बहन शिल्पी अपनी सहेली के घर गई थी। मैं भी बाहर ही था। खेल कर आया तो देखा कामवाली बाई मां की मालिश कर रही थी। मेरी मां बिस्तर पर अधनंगी पड़ी हुई थी। उनके शरीर पर केवल पेटिकोट और ब्लाउज था। पेटिकोट उनकी जांघ तक चढ़ा हुआ था। मां उल्टी लेटी हुई थी। उनके पेटिकोट का नाड़ा भी शायद खुला था। कामवाली बड़ी तन्मयता से उनके शरीर की मालिश कर रही थी। वह अपने हाथों को उनके कमर से होते हुए पेटीकोट के अंदर उनके नितंबों तक लाती, फिर पीठ से होते हुए ब्लाउस के अंदर हाथ घुसा कर दोनों किनारों से उनके बूब्स को दबाती।
इससे मुझे बार-बार मां के नितम्बों का कटी प्रदेश दिखता। मैं काफी देर वहां खड़े हो कर यह नजारा देखता रहा, कि काश पेटीकोट पूरा उतर जाए और मुझे चूत दर्शन हो जाए। पर यह नहीं हुआ, उलटे कामवाली बाई ने मुझे देख लिया। मुझे जैसे ही इस बात का अहसास हुआ, मैं अपने कमरे में चला गया। मेरा छोटा नुनु वीर बहादुर बन कर तना हुआ था। अब मुझे अपने छोटे के लिए भी कुछ करना था।
मैं अपने बिस्तर पर बैठ कर अपने वीर बहादुर को बाहर निकाला। वह कभी भी इतना मोटा नहीं दिखा था। तन कर खड़ा था। उसकी टोपी चमक रही थी, और एक चिकना पदार्थ रिस रहा था। मैं आंखे बंद करके अपने लिंग को रगड़ने लगा। आंखें खुली तो सामने काम वाली बाई मेरे दोनों पैरो के बीच बैठी मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी।
उसने बड़ी अदा से मुझे धक्का दे कर पीठ के बल बिस्तर पर लिटा दिया। वह शायद मेरी जवानी भोगने के मूड में थी। उसने मेरे लंड को मुंह में भर लिया, और जोर-जोर से चूसने लगी। मैं आंखे बंद कर बस आनंद ले रहा था।
इतने में दरवाजा खुला। मैंने आंख खोली तो सामने मां पेटीकोट और ब्लाउज पहने खड़ी थी। मां को देख कर कामवाली ने मेरा लंड मुंह से निकाल कर अपने हाथों में थाम लिया और उसे मुठियाते हुआ मां से बोली, “भाभी मैं तो इसकी देखभाल कर रही थी, जैसे आपकी करती हूं”।
मां: छोड़ इसे, मैं इसकी देखभाल कर लूंगी।
मां का गुस्सा भांपते हुए उसने मुझे अधूरा छोड़ दिया। मैं झड़ने के बहुत करीब था मेरी आंखे बंद हो रही थी, पैर कांप रहे थे, और सांसे तेज चल रही थी। तभी दरवाजा पटकते हुए कामवाली चली गई। मेरा ऊपर उठता हुआ वीर्य वापस अंडकोष में चला गया। मुझे समझ नही आया मैं क्या बोलूं? मैं अपनी गर्दन झुकाए बेड पर बैठा रहा। शायद मां को भी उस वक्त बात करना सही नहीं लगा, तो वो अपने रूम में चली गई।
मैं बेड पर बैठा सोचता रहा मां को कैसे समझाऊं। कुछ दस मिनट बाद मैं दबे पांव मां के कमरे की ओर गया, तांकि सॉरी बोल सकूं। पर वहां नजारा कुछ और ही था।
मां आईने के सामने खड़े हो कर कपड़े बदल रही थी। उन्होंने अपना ब्लाउज खोल कर बेड पर रख दिया था, और पेटीकोट का नाड़ा खोल रही थी। मेरे पांव वहीं दरवाजे के बाहर थम गए। लंड फिर से खड़ा हो गया। आंखे चमक उठी। इतने में मां का पेटिकोट उनके पैरो में गिर गया। उनका नंगा जिस्म मुझे अपनी ओर बुलाने लगा। उनकी गांड की गोलाई और मोटी जांघों ने फिर से मेरे वीर्य को लंड के मुहाने पर ला खड़ा किया।
मेरी नंगी मां पेटीकोट उठाने के लिए झुकी, तो मेरे लिए जैसे वक्त वहीं रुक गया। मां की गदराई गांड मेरे सामने उभर के आ गई। अभी-अभी हुई उनकी मालिश से उनकी गांड चमक रही थी। भरी हुई गांड और छोटी-छोटी काली झांटे उनकी चूत वाली जगह से झांक रही थी। इतने में उन्हें टेबल के नीचे गिरा झुमका नज़र आया, जिसे उठाने को वह घुटनों को जमीन पर टिका कर टेबल के नीचे आगे की ओर झुकी।
दोस्तों मैं यह सिचुएशन आप पर छोड़ता हूं कल्पना करो। मां कैटवॉक करती हुई दो-तीन कदम आगे बढ़ी। बस दोस्तों यह मेरी चरम सीमा थी। मैं पैंट में ही झड़ने लगा। शरीर झटके खा रहा था, और खड़ा रहना भी मुश्किल हो गया। पैर कांप रहे थे। संभालने के लिए दरवाजा पकड़ा कि तभी मां उसी हालत में गर्दन घुमा कर मुझे देखने लगी। मेरा कांपता जिस्म उन्हें मेरी हालत बयां कर रहा था।
मां आई और धड़ाम की आवाज के साथ दरवाजा बंद हुआ। मैं आत्मग्लानि के साथ अपने रूम में वापस लौट आया। बिस्तर पर बैठ कर अपनी पेंट खोली और नीचे की ओर सरका दी। लंड सिकुड़ कर झूल रहा था। मेरा वीर्य मेरे लंड, आंड, और जांघो पर फैला पड़ा था। उसी हालत में लेट गया। आंखें बंद करते ही फिर से वहीं दृश्य सामने आ गया। लंड ने एक बार फिर सिर उठाया। इस बार बड़ी बेदर्दी से मैंने लंड को अपने पंजों में पकड़ा और मुठ मरने लगा।
वीर्य से सना गीला लंड आसानी से हाथों में फिसलने लगा। आवेग ऐसा था कि हाथ रुकते तो कमर से ऊपर की ओर धक्के मारने लगता। मैं दोनो हाथों से लंड को पकड़े झटके मार रहा था। पर इस बार आसान नहीं था झड़ना। मैंने तकिए को बगल में रखा, और उस पर लंड टिकाए लेट गया। मानों मां की गांड पर लेटा था। झटके मारते-मारते झड़ गया और गहरी नींद में चला गया।
कुछ घंटों के बाद कमरे में हलचल हुई तो नींद खुली। मां ने मुझे चादर ओढ़ा दी थी। जाते-जाते उन्होंने कहा, “रात हो गई है, बाहर आकर खाना खा लो”। मैं उठ कर कमरे में अटैच बाथरूम में गया तो पाया, मेरी वीर्य से सनी पेंट, और तकिए का कवर बाथरूम में पड़ा था। शायद मां ने रखा था।
मैं फ्रेश हुआ और कमरे से बाहर आकर खाने के टेबल पर बैठ गया। मां वहीं बैठी मेरा इंतजार कर रही थी।
मैने बड़ी ही मासूमियत से बोला: सॉरी मां, आपने मुझे इस तरह से देखा। वो कामवाली खुद ही वो सब कर रही थी। मैं सेल्फ सेटिस्फेक्शन के लिए कभी-कभी करता हूं। पर वो अचानक मेरे कमरे में आई, और वो सब करने लगी। मैंने उसे ऐसा करने को नहीं कहा था।
मां: ठीक है मैं तुमसे बाद में बात करूंगी इस बारे में अभी खाना खा लो।
मां शायद सेक्स के टॉपिक पर मुझसे कोई भी बात नहीं करना चाहती थी। खास कर मैंने जो उन्हें बिना कपड़ो के देख लिया था।
इसके आगे की कहानी अगले पार्ट में। Contact me at krishna85985162@gmail.com
अगला भाग पढ़े:- मां बेटे की बढ़ती नजदीकियां-2