This story is part of the Padosan bani dulhan series
जेठजी अपनी हवस की ज्वाला में उन्मत्त, जल्दी से माया के ब्लाउज के बटनों को खोल कर माया के ब्लाउज को निकाल दिया। उसके फ़ौरन बाद उन्होंने ब्रा के हुक भी खोल दिए और माया की उद्दंड चूँचियों को ब्रा के बंधन से आझाद कर दिया।
शायद जेठजी ने उससे पहले किताबों, फोटो और वीडियो को छोड़ किसी भी औरत की नंगी चूँचियाँ प्रत्यक्ष नहीं देखीं होंगी। माया के उद्दंड स्तनों को देख कर जेठजी की आँखें फ़टी की फ़टी रह गयीं। ब्लाउज को पहने हुए माया की छाती का जो आकर्षक उभार जेठजी ने पहले देखा था वही स्तनोँ को उस रात नंगे देख कर जेठजी अपनी आँखों पर विश्वास नहीं कर पाए।
माया के गोरे चिकने स्तन उसकी छाती के ऊपर गुरुत्वाकर्षण के नियम की खिल्ली उड़ाते हुए निचे सपाट होने के बजाये फुले हुए दो छोटे टीले जैसे श्यामल एरोला से घिरे हुए दो उद्दंड निप्पलों का शिखर बनाये हुए ऐसे कामुक लग रहे थे की जेठजी को अपने आप पर गर्व महसूस हुआ की माया अब उनकी प्रेमिका बन चुकी थी। अब वही उद्दंड स्तन उनकी अपनी माशूका के थे जिन्हें वह जब चाहें उन्हें सेहला सकते थे, मसल सकते थे।
माया के दोनों स्तनोँ को अपने हाथों में पकड़ते हुए उनकी निप्पलोँ को पिचकते हुए जेठजी ने माया को बड़े प्यार से कहा, “माया, आज के तुम्हारे इस प्यार भरे समर्पण से मैं इतना अभिभूत हो गया हूँ की मेरे पास तुम्हारे इस आत्मसमर्पण के लिए कहने के लिए कोई शब्द नहीं है। तुम मेरी रखैल नहीं मेरी अंतरआत्मा हो और रहोगी। तुम कोई नीच जाती की या कोई पतित नहीं हो।
तुम मेरे दिवंगत जिगरी दोस्त की पत्नी थी। चूँकि तुम्हारे दिवंगत पति के स्वर्गवास के बाद तुम्हारा कोई ऐसा रिश्तेदार या समबन्धी नहीं था जो तुम्हें सहारा दे सके, मैंने उनके देहांत के बाद मेरा यह कर्तव्य समझा की उनकी पत्नी को मैं अनाथ ना होने दूँ। तुमने जब हमारे घर में काम करना शुरू किया तो हम सब आपको कोई नौकरानी नहीं, हम अपने घर का सदस्य ही मान कर उसी तरह का व्यवहार करते रहे हैं।
तुम मेरी रखैल नहीं मेरी जीवन साथी बनोगी। तुमने मेरे जीवन का अधूरापन देखा और अपने आत्मसमर्पण से उसे पूर्ण करना चाहा। उसमें तुमने अपना कोई स्वार्थ भी नहीं खोजा। मैं भी उसी तरह तुम्हारे अधूरेपन को पूर्ण करना चाहता हूँ, पर तुम्हें रखैल बना कर नहीं, तुम्हें अपनी जीवन संगिनी बनाकर।
और यह बात मैं कोई आवेश में अथवा उत्तेजना में आ कर नहीं, मैं अपने पुरे होशोहवास में पूरी गंभीरता से कह रहा हूँ। मैं तुझसे एक और बात कहना चाहता हूँ की अब तू मुझसे और ज़रा भी शर्म ना करके मुझसे अपने मन की सारी बात खुले शब्दों में बोल दे। मेरा मतलब है अब मुझसे तू चुदाई, लण्ड, चूत गाँड़ आदि शब्दों को बोलने में परहेज ना कर।”
माया ने जेठजी का सर अपने स्तनोँ पर टिकाया और बोली, ” जी, आप मेरे स्वामी हो और सदा रहोगे। आप की इच्छा मेरे लिए आज्ञा है। मैं अब आपसे स्पष्ट शब्दों को बोलने में नहीं परहेज करुँगी। मुझे कोई भी दरज्जा नहीं भी देते तो भी आपने मुझे पहले ही इतना सारा कुछ दे दिया है की मुझे कुछ और की अपेक्षा नहीं। यह मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य होगा की आप मुझे इतना बड़ा दर्जा देना चाहते हैं।
मैं आपको इतना ही कहूँगी की मुझे आपसे मिलाने में अंजू भाभी का बड़ा ही जबरदस्त योगदान रहा है। मैं उनकी ही इच्छा से अभी यहां हूँ। मैं उनकी बड़ी ही कृतज्ञ हूँ। जी, मेरा यहां आपसे एक प्रश्न है। यदि आप इजाजत दें तो पूछूं?”
जेठजी ने कुछ आश्चर्य से माया की और देखते हुए अपना सर हिला कर उसे पूछने के लिए सहमति दी। माया ने अपनी नजरें निचीं कर जेठजी से पूछा, “जी, मेरे कहने का बुरा मत मानिये पर मैं जानती हूँ की आप मुझे कई महीनों से आप के कमरे में काम करते हुए ताड़ रहे थे।
मैं जब अपनी साड़ी का छोर जाँघों तक ला कर झाड़ू लगाती थी या पोछा करती थी तब आप मेरे बदन को चोरी चोरी ताड़ते हुए देख रहे होते थे। शायद उसी समय आपके मन में मुझे पाने की इच्छा थी। अगर वाकई आपके मन में उस समय मुझे पाने की या मुझे चोदने की इच्छा थी तो आपने क्यों मुझे एक बार भी कोई इशारा तक नहीं किया? आप के एक ही इशारे पर मैं आपके सामने सारे वस्त्र निकाल कर आपसे चुदवाने के लिए खड़ी हो जाती।”
माया का इस तरह का बिलकुल स्पष्ट और साफ़ साफ़ प्रश्न पूछने पर जेठजी कुछ समय के लिए बौखलाते हुए माया को देखते रहे। वह चाहते थे की माया उनसे स्पष्ट और खुली भाषा में बात करे। पर माया ने उनसे इतनी खुली भाषा में यह इतना स्पष्ट प्रश्न पूछा की जेठजी माया के प्रश्न से क्लीन बोल्ड हो गए।
फिर अपने आपको सम्हालते हुए बोले, “देखो माया, मैंने तुम्हारे पति के लिए और तुम्हारे लिए जो कुछ भी किया मैं अगर उस हाल में तुमसे ऐसी कोई ख्वाहिश जाहिर करता तो बेशक तुम मुझ पर अपना आत्मसमर्पण कर देती, अपना बदन सौंप देती। पर ऐसा करना एक व्यापार जैसा हो जाता।
मैंने जो कुछ भी किया मैंने वह मेरा कर्तव्य समझ कर किया। आज तुम मेरे पास अपने आप आत्मसमर्पण करने आयी इसमें तुमने अपना कर्तव्य निभाया और उसमें हमारी दोनों की मनोकामना की पूर्ति हो रही है तो इसमें मुझे कोई दोष नजर नहीं आया।”
माया जेठजी का हाथ पकड़ कर मुस्कुराती हुई बोली, “मतलब आप मुझे चोदना तो चाहते थे, पर ऐसी इच्छा मेरे सामने जाहिर करना आपके सिद्धांत के विरुद्ध था। सही है ना? तो अब तो मैं स्वयं आपके सामने नंगी हो रही हूँ और चुदवाना चाहती हूँ। अब आपको मुझे चोदने में कोई सैद्धांतिक आपत्ति नहीं होनी चाहिए। तो फिर मेरे स्वामी अब आईये और मुझे जी भर कर चोदिये।” मेरे जेठजी माया की बातें सुन कर हैरान रह गए।
माया पलंग पर लेटी हुई थी वहाँ से उठ बैठी और उसने अपनी साड़ी खिंच कर उतारना शुरू किया। जेठजी ने उसके साथ मिल कर माया की साड़ी उतार दी। उसके बाद माया ने स्वयं ही अपने घाघरे का नाडा खोल कर उसे भी अपनी जाँघों के निचे निकाल फेंका। औरतें जब तक शर्माती हैं तब तक शर्माती हैं। जब वह लाज शर्म का पर्दा उठा कर फेंक देती हैं तब वह चुदाई के बारे में इतनी प्रैक्टिकल हो जातीं हैं की मर्द भी उतना प्रैक्टिकल नहीं हो पाता।
जेठजी ने माया की पैंटी को खिसका कर निचे उतार दिया। उन्होंने जिंदगी में पहली बार किसी नग्न औरत के दर्शन किये थे। उन्होंने पहली बार किसी औरत की चूत को अपनी आँखों से देखा था। यह उनके जीवन का एक अद्भुत अवसर था। माया ने उन्हें यह मनुष्य जीवन का एक अद्भुत अवसर देकर कृतार्थ कर दिया था।
जेठजी ने बड़े प्यार से माया की जाँघों को चौड़ी फैलाकर उसके बिच में सर रख कर माया की गोरी, प्यारी, सालों की प्यासी कोमल चूत के ऊपर अपना मुंह टिका कर माया की चूत को चूसने लगे। माया की चूत में से जेठजी के सान्निध्य के कारण उसका स्त्री रस रिसने नहीं बहने लगा था।
माया जेठजी से इतनी ज्यादा प्रभावित और जेठजी के प्यार पाने के लिए इतनी पागल हो रही थी की जेठजी को इस हाल में देख कर बरबस ही माया की चूत से उसका स्त्री रस बहने लगा था। जेठजी बिना झिझक उस स्त्री रस को चाट चाट कर पिने लगे।
जेठजी को अपना स्त्री रस चाटते और पीते हुए देख कर माया का पूरा बदन रोमांच से और कामुक उत्तेजना से मचलने लगा। माया के रोम रोम में काम वासना की ज्वाला बड़ी ही तेजी से प्रज्वलित हो कर दहकने लगी।
पलंग पर माया अपने बदन को हिलने से रोक नहीं पा रही थी। जैसे जैसे जेठजी माया का स्त्री रस चाटते थे वैसे वैसे माया की सिकारियाँ और कराहटें बढ़ती ही जातीं थीं। जेठजी की जीभ के चूत को छूते ही माया के मुंह से बार बार, “आह….. रे माँ….. ओह…….. हाय….. उई माँ….. ओह….. ” की कराहटें और सिकारियाँ निकले जा रहीं थीं।
माया की चूत चाटते हुए जेठजी बिच बिच में अपना सर ऊपर कर पलंग पर लेटी नंगी माया के कामुक बदन के दर्शन करना नहीं चूकते थे। उनके हाथ हरदम माया के स्तनोँ को मसलने में लगे हुए होते थे। माया के स्तनों की सख्त फूली हुई निप्पलेँ अपनी उँगलियों के बिच में ले कर वह उसे पिचक कर स्तनोँ के अंदर तक घुसाते रहते थे और इस तरह वह अपनी काम वासना का एहसास माया को कराते रहते थे।
पलंग पर लेटी हुई माया की नग्न मूरत को देख जेठजी अपने आपको बड़ा ही भाग्यशाली समझ रहे थे। उनकी समझ में यह नहीं आया की पिछले बीते हुए सालों में क्यों उनको माया को अपनाने के बारे में कोई ख़याल नहीं आया। पलंग पर लेटी नंगी माया कोई अप्सरा से कम नहीं लग रही थी।
जिस माया को कपड़ों में देख कर वह उतने पागल से हो रहे थे आज वही माया सारे कपड़ों का त्याग कर उनकी सेवा में नंगी उनसे चुदाई की उम्मीद करती हुई उनके ही पलंग पर लेटी हुई थी।
माया के लम्बे घने काले केश जेठजी के पलंग पर इस तरह बिखरे हुए थे जैसे बारिश के मौसम में आसमान में घने बादल छाए हों। पलंग पर माया के नग्न कमसिन बदन के इर्दगिर्द चद्दर नहीं हर जगह माया के बिखरे हुए बाल ही नजर आ रहे थे। उन बालों में घिरी हुई माया की नंगी लम्बी मूरत कोई जलपरी अभी अभी समंदर से निकल कर आ कर लेटी हुई हो ऐसा लग रहा था।
माया का खूबसूरत चेहरा, कमल की डंडी जैसी लम्बी गर्दन, माया की छाती पर विराजमान दो भरे हुए गुम्बज समान उसके फुले हुए उद्दंड स्तन मंडल, उसकी पतली कमर पर बड़ी ही कामुक नाभि और उसके निचे गिटार की तरह घुमाव लेता हुआ माया की गाँड़ का आकार और चूत का ढलाव और उभार कीसी भी मर्द को पागल करने के लिए काफी था।
माया की नंगीं जांघें देख कर पहले से ही जेठजी पागल थे। अब माया की वह दो जाँघों का मिलन स्थान देख कर जेठजी चकरा रहेथे। जेठजी के कई दोस्तों की पत्नियां बड़ी ही खूबसूरत थीं और जेठजी ने उन पतियों को देखा था की जब दूसरे मर्द लोग उन पत्नियों को चोरीछिपि नजर से ताकते थे तो वह पति कितने गर्वान्वित महसूस कर रहे थे।
शायद जेठजी को भी माया से शादी कर ऐसा सौभाग्य प्राप्त हो।