मेरी बात सुन कर माया मुझसे लिपट गयी और बोली, “आपने मेरे सर पर बड़ी ही जिम्मेवारी दी है। मैं इसे दिलोजान से पूरी करने की कोशिश करुँगी। आपने पहले मुझे नौकरानी से जेठानी बनाया और अब जेठानी से आगे बढ़ कर सौतन बना दिया। सौतन शब्द बोलने में शायद बुरा लगता होगा, पर हम दोनों के परिपेक्ष में मुझे तो बड़ा मीठा लगता है। मुझे लगता है जैसे हम दोनों अलग नहीं एक ही हैं। आपने मुझे जब इतना ज्यादा सम्मान दिया तो आपका सम्मान रखना मेरा फर्ज बनता है।”
माया की बात सुन कर मैं उस माहौल में भी हंस पड़ी। कितनी प्यारी, सरल, परिपक्व और भोली थी मेरी माया! मैंने माया को बाँहों में भर लिया। कुछ देर तक उस संवदनशील माहौल में लिपट रहने के बाद, जब हम अलग हुए तो माया कुछ गंभीर सी हो गयी और उसने मुझे अपने पास बिठा कर उस शाम का प्रोग्राम समझाया।
उसके मुताबिक़, मुझे तैयार हो कर रात को माया के बैडरूम के बाहर रहना था और उसके बाद जब माया अपने सेल फ़ोन से मुझे मिस्ड कॉल करेगी तब मुझे उनके कमरे में दाखिल होना था। मुझे मेरे फ़ोन को वाइब्रेशन मोड़ पर रखना था जिससे घंटी ना बजे पर मुझे पता लग जाए की माया मुझे बुला रही थी।
बाहर किवाड़ के पीछे छिपी हुई मैं अंदर हो रहे सारे संवाद सुन पा रही थी। माया मेरे जेठजी को कह रही थी की वह जेठी की आँखों पर पट्टी बाँध कर कुछ बोले बिना ही चुदवायेगी। जैसे कोई बच्चा नए खेल के बारे में उत्सुकता से सुन रहा हो ऐसी जेठजी भी सुन कर बड़े खुश हुए और माया ने जेठजी की आँखों पर पट्टी बांध दी। पट्टी बाँध कर फ़ौरन माया जेठजी से लिपट गयी। अचानक मायाने जेठजी से एक सवाल पूछा, “सुनियेजी, आप हमारे साथ इस खेल में कोई बेईमानी तो नहीं करेंगे न?”
माया की बात सुन कर जेठजी ने कोई जवाब नहीं दिया। शायद वह माया को ही बात पूरा करने का इंतजार कर रहे थे। माया ने कहा, “देखिये जी, आज इस खेल को मैं बहुत गंभीरता से खेल रही हूँ। यह कोई खेल नहीं है। हम हमारे हर खेल को गंभीरता से खेलेंगे तभी तो हम उस खेल का पूरा लुत्फ़ उठा पाएंगे। आप अपनी काली पट्टी अपने आप नहीं हटाएंगे। मंजूर है?”
शायद उस समय मेरे जेठजी माया की तरफ़ बड़े ही आश्चर्य से देख रहे होंगे। वह बोले, “हाँ, बिलकुल, यह पट्टी नहीं खोलूंगा। पर तुम ऐसे क्यों पूछ रही हो? क्या बात है?”
माया ने जवाब में कहा, “आपके लिए यह खेल हो सकता है पर मेरे लिए यह जीवन मरण का और अपनी ममता और एक औरत की इज्जत का सवाल है। जिसे आप चोदेंगे वह मैं नहीं एक दूसरी औरत होगी, जिसको आप छाया नाम से बुलाएंगे। मैं नहीं चाहती की आप यह महसूस करें की आप के साथ मैं हूँ। मैं पूरी कोशिश करुँगी की आपको यह लगे की मैं कोई और हूँ। पर आप मुझे सच्चे मन से वचन दीजिये की आप पट्टी नहीं खोलेंगे। आप को मेरी कसम आपने अगर यह पट्टी खोली तो। मेरा मरा हुआ मुंह देखेंगे आप। खाइये मेरी कसम।”
उन दोनों की चर्चा सुन कर मेरी जान हथेली में आ गयी। उधर मेरे जेठजी कुछ समय के लिए एकदम चुप हो गए। शायद उनकी समझ में यह नहीं आ रहा था की माया इस बात को इतना तूल क्यों दे रही थी? वह उसे क्यों इतनी ज्यादा गंभीर बना रही थी? पर फिर भी मेरे जेठजी का जवाब सुन कर मुझे काफी तसल्ली हुई। जेठजी ने कहा, “माया जब तुम इस खेल को इतनी गंभीरता से ले रही हो तो मैं भी इस बात को हलके में नहीं लूंगा। मैं तुम्हारी कसम खा कर कहता हूँ की यह पट्टी मैं अपने आप नहीं खोलूंगा। जब तुम खोलेगी तभी मैं देखूंगा। बस? अब तो खुश?”
जेठजी का जवाब सुन कर मुझे लगा की माया भी खुश हुई थी। माया ने कहा, “मैं बहुत खुश हूँ। मैं इस खेल को बड़ी ही गंभीरता से ले रही हूँ। यह अनुभव हम सबके लिए ना सिर्फ एक अनूठा, उन्मादपूर्ण और आनंदमय होगा बल्कि वह हमारी जिंदगी का एक बड़ा ही महत्त्व पूर्ण अनुभव होगा। मेरी आपसे करबद्ध प्रार्थना है की आप मुझ पर विश्वास रखें और मेरा कहा मानें।”
माया की बात सुन कर मेरे जेठजी ने शायद माया को अपनी बाँहों में भर लिया और माया को चूमते हुए बोले, “मरी रानी मुझे जो कहेगी मैं उसे कैसे ठुकरा सकता हूँ?”
जेठजी से उसी पोज़िशन में चूमते हुए एक हाथ से अपना सेल फ़ोन निकाल कर माया ने मुझे मिस्ड कॉल किया। मैंने मेरा फ़ोन वाइब्रेशन मोड़ पर रखा था। फ़ोन के आते ही मैंने धीरे से किवाड़ खोला और अंदर झाँका। मुझे देख कर माया ने मुझे एक हाथ से अंदर आ जाने का इशारा किया।
मैं घबराती, झिझकती कुछ क्षोभित सी नयी नवेली दुल्हन सी सजी हुई कमरे में दाखिल हुई। जब मैं जेठजी और माया के बैडरूम में दाखिल हुई तब माया जेठजी की बाँहों में कस कर जकड़ी हुई थी और उनके होठोंसे अपने होंठ चिपका कर उनसे प्रगाढ़ चुम्बन कर रही थी।
उसने मुझे देखा तो होँठ पर उंगली कर मुझे एकदम चुप रहने के इशारा कर मुझे अपने पास बुलाया। मैं माया मेरे जेठजो को कैसे चुम्बन कर रही थी वह देखने लगी। जेठजी माया के होंठों को बड़ी ही बेसब्री से चूस रहे थे और माया की जीभ को अपने मुंह में ले कर उसका रसास्वादन कर रहे थे। माया के मुंह में से निकली हुई लार को वह बड़े प्यार से लपालप निगल रहे थे। जेठजी उस समय बनियान और धोती पहने हुए थे।
उन दोनों का प्यार भरा चुम्बन देख कर मेरे मन में अजीब से हिंडोले से तरंग उठ रहे थे। माया को चूमते हुए मेरे जेठजी एक हाथ से माया की गाँड़ सेहला रहे थे। माया पूरी तरह से सजी हुई भारी भरखम साडी में बहुत सुन्दर लग रही थी। माया मेरे आते ही धीरे से जेठजी से अलग हो कर बिना कोई आवाज किये उठ खड़ी हुई और एक तरफ हो गयी। माया जहां बैठी थी ठीक उसी जगह मेरे जेठजी से सट कर मैं बैठ गयी।
मेरे लिए मेरे जेठजी के इस तरह इतने करीब बैठना अपने आप में ही एक अनूठा अनुभव था। जब से मैं शादी कर इस घर में आयी थी तब से आजतक कई बार मेरा मन करने पर भी मैं जेठजी के इतना करीब नहीं बैठी। चूँकि मेरे जेठजी मेरे लिए एक आदर्श पुरुष थे और एक तरह से देखा जाय तो वह हम सब के, पुरे घर के वटवृक्ष सामान थे।
कई बार मेरा मन करता था की मैं जाऊं और उनकी गोद में बैठ उनसे प्यार करूँ। पर उनकी बहु होने के नाते एक मर्यादा के कारण यह हो नहीं पाया। उस समय मेरे जहन में भावनाओं की कैसी कैसी मौजें उठ रहीं थीं यह कहना मुश्किल है। जिस जेठजी के चरणों की सेवा करने के लिए मेरे पति हमेशा लालायित रहते थे और मैं जिनको भगवान की तरह मानती थी मैं उस रात उनकी दुल्हन बन कर छलावा कर छद्म रूप से उनसे चुदवाने के लिए तैयार थी।
मैं मेरे मन में उठ रही सारी शंका कुशंकाओं को दरकिनार कर अपने मन को एकनिष्ठ कर जेठजी से लिपट गयी। उस समय मैं कितना रोकने पर भी मेरी आँखों से निकल पड़ते हुए आँसुंओं को रोक नहीं पायी। मैंने मेरे होँठ मेरे जेठजी के होँठों से चिपका दिए और उठ कर जेठजी को अपनी दो टाँगों के बिच में फंसाती हुई उनकी गोद में जा बैठी।
ऐसे बैठने से मेरी साड़ी और घाघरा मेरी जाँघों के ऊपर तक उठ गए। मैंने मुड़कर माया की और जब देखा तो माया ने अपने अंगूठे को ऊपर कर मुझे “ओके” का इशारा किया। मेरा यह उत्साह देख कर माया के चेहरे पर मुस्कान साफ़ दिख रही थी। मुझे इतना इमोशनल होते हुए देख माया की आँखों में भी आंसूं छलक आये। उसने मुझे बार बार अपने एक हाथ से अपने होठों को चूमते हुए फ्लाईंग किस की और हाथका अंगूठा ऊपर कर इशारा कर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
जेठजी ने अपने हाथ फिरा कर मेरा बदन महसूस किया। जब उनके गाल मेरे गाल को छू रहे थे तब उन्होंने मेरे आँसुंओं को महसूस किया। वह तब बोल पड़े, “क्या बात है? आज तुम इतनी ज्यादा भावुक क्यों हो? तुम्हारी आँखों में आंसूं क्यों?”
माया हमारे करीब आयी। वह भी तो काफी भावुक हालात में थी। उसने उसी भावुक अंदाज में धीरे से बोला, “देखिये जी आज मैं छाया आपसे एक दूसरी ही नयी नवेली दुल्हन बन कर आपसे चुदवाने के लिए आयी हूँ। आज आप माया को नहीं दूसरी औरत छाया को चोदेंगे। आज ना सिर्फ आप छाया को चोदेंगे, बल्कि आज आप अपनी छाया को आपके बच्चे की माँ भी बनाएंगे। आप अपने वीर्य से उसे गर्भवती भी बनाएंगे।
और मैं कोशिश करुँगी की आज मेरी हर अदा आपको नयी लगे। आपको महसूस हो की आप आज माया को नहीं दूसरी औरत छाया को चोद रहे हो। आप मुझे माया नहीं दूसरी औरत छाया समझ कर ही चोदेंगे और अपने वीर्य से गर्भवती बनाएंगे। अगर मैं आपको ऐसा करवा पायी तो मैं समझूंगी की मेरा जीवन धन्य हो गया। अब मैं चुप रहूंगी और बिलकुल बोलूंगी नहीं। ओके?”
मेरे जेठजी ने मेरा घूँघट उठाते हुए मेरे गालों को चुम कर मेरे आंसुओं को चाटते हुए कहा, “तू कैसी पागल औरत है रे? क्या तू मुझे इतना ज्यादा चाहती है?”
माया ने जेठजी की बात का कोई जवाब नहीं दिया। उस समय मेरा क्या हाल हुआ होगा? मेरी आँखों से झरझर आँसूं बह रहे थे। मैंने अपना सिर हिलाते हुए जेठजी को “हाँ” का इशारा किया। जेठजी के होंठ उस समय मेरे गालों के ऊपर से बह रहे मेरे आँसुओं को चाट रहे थे। जेठजी ने मेरी “हाँ” का इशारा महसूस किया और बोल पड़े, “मेरी पागल बीबी माया।”
मैंने मेरा सर आजुबाजु “ना” के अंदाज में हिलाकर जब “बीबी माया” शब्द का विरोध किया तो जेठजी समझ गए। वह फ़ौरन मुस्कुराते हुए बोले, “ठीक है बाबा। मेरी पागल बीबी माया नहीं मेरी पागल प्रेमिका छाया। ठीक है?”
मैंने अपना सिर हिला कर “हाँ” का जब इशारा किया तो मेरे जेठजी मुझ पर लपक पड़े और मेरे होँठों को बड़े जोश से चूमने और चूसने लगे। मेरे लिए यह अद्भुत रोमांचकारी अनुभव था। मेरे जेठजी को मैंने सपनों में कई बार चूमा था। आज वह सब सच में हो रहा था। जेठजी के हाथ मेरे स्तनोँ पर चिपक गए और वह उन्हें बेतहाशा मसलने लगे।
पहली बार मेरे जेठजी के हाथ मेरे स्तनों को हकीकत में छू रहे थे। मेरे पुरे बदन में एक जबरदस्त सिहरन फ़ैल गयी। रोमांच के मारे मेरे सारे रोंगटे खड़े हो गए। अभी तो जेठजी सिर्फ मेरे ब्लाउज के ऊपर से ही मेरे बूब्स मसल रहे थे।
मुझे काफी जोश से चूमने के बाद जेठजी मेरे सिर पर हाथ फिरा कर अपनी उँगलियों से मेरे बालों को संवारते हुए बोले, “छाया, मैं महसूस कर रहा हूँ की आज मैं वाकई में ही माया को नहीं छाया को प्यार कर रहा हूँ। तुम नयी नवेली दुल्हन सी सजी हुई कितनी सुन्दर लग रही हो?”
जेठजी की ऐसी प्यार भरी बात सुन कर मैं और भावुक हो गयी। मैंने माया की और देखा। माया मुझे प्यार भरी नज़रों से देख रही थी। मेरी आँखों से एक बार फिर आँसूं निकल पड़े।
मैंने अपना सिर जेठजी के सिने से लगा दिया और अपनी बाँहों में उनको भर लिया। मेरे बदन को सहलाते हुए मेरे जेठजी के हाथ जब मेरी नंगी जाँघों को छूने लगे तब मेरी महंगी भारी सी साड़ी मेरे बदन से हटाते हुए जेठजी बोले, “छाया तुम्हें मैं बिन देखे तुम्हारी सुंदरता महसूस कर रहा हूँ। तुम तो मेरी माया जैसी ही बहुत सुन्दर हो।”
अपने शरीर को इधरउधर कर मैंने जेठजी को मेरी साड़ी हटाने में सहायता की। जेठजी ने मेरी साड़ी निकाल कर एक तरफ कर दी। मैंने अपनी बाँहें जेठजी के गर्दन के इर्दगिर्द फैलायीं और उनके होंठों पर आने होँठ भींच कर मैं जेठजी के होँठ चूसने लगी। जेठजी मेरे मुंह में अपनी जीभ डालकर मेरी जीभ को चाटने और मेरी लार को चूस कर निगल ने में लग गए।
मैं भी मेरे जेठजी का पूरा साथ देते हुए उनसे मेरा मुंह, मेरे होँठ, मेरी जीभ चुसवा कर गजब रोमांच का अनुभव कर रही थी। मेरे लिए वह रात जैसे कोई सपनों की रात जैसी थी। मेरे पति ने सोने में सुहागा जैसे मुझे नयी नवेली दुल्हन जैसे सजधज कर तैयार होने के लिए कहा था।
थोडासा अफ़सोस यह था की मेरे जेठजी मुझे इस तरह सजी हुई देख नहीं पाएंगे। पर वह जरूर मेरी नई नवेली दुल्हन जैसे मेरे मन के भाव जरूर महसूस कर पायेंगे, उसका मुझे भरोसा था।
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