पड़ोसन बनी दुल्हन-57

This story is part of the Padosan bani dulhan series

    चुम्बन ख़तम होते है जेठजी ने मुझे प्यार से पलंग पर लिटाया। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी सुहागरात को मेरे प्रियतम ने मुझे प्यार करने के लिए पलंग पर लिटा दिया हो। जेठजी अपने हाथ से मेरे बदन को महसूस करने लगे। उनके हाथ पहले मेरे सिर से ले कर मेरे कपाल, मेरी नाक, मेरे होंठ, मेरी दाढ़ी से मेरी गर्दन पर होते हुए मेरे उरोजों पर कुछ देर टिक गए। मैं अपना हाल कैसे बयाँ करूँ?

    रोमाँच के मारे मेरी चूत का बुरा हाल हो रहा था। मुझे लगा की मेरी चूत इतनी तेजी से पानी छोड़ रही थी की मुझे डर लग रहा था की कहीं मेरे कपडे ही गीले ना हो जाएँ। मुझे यह भी डर था की जेठजी का लण्ड डलवाने से पहले ही मैं कहीं झड़ ने ना लगूँ। कहीं जेठजी मेरी इस तरह की बेसब्री को भाँप ना ले और उन्हें शक ना हो जाए की मैं माया नहीं हकीकत में ही दूसरी औरत थी।

    पर मैंने ठान ली थी की अब जो हो सो हो। मुझे जेठजी को खूब स्वछन्द भरा प्यार कर वह आनंद देना था जो मैं जब से इस घर में आयी थी तब से देना चाह रही थी। जेठजी अपनी जीभ से मेरे कपाल को चाट और चुम रहे थे। मेरे सर को चूमते हुए वह मेरी नाक, मेरे गाल और अपने सिर को घुमा फिरा कर जेठजी मेरी गर्दन को हर जगह चुम रहे थे। जैसे जैसे वह निचे की और आ रहे थे उनके हाथ फिर से मेरे स्तनोँ को ब्लाउज के ऊपर से मसलने लगे।

    मैंने मेरे जेठजी के हाथ मेरे ब्लाउज के बटनों पर रख दिए। यह मेरा संकेत था की वह मेरे ब्लाउज के बटनों को खोल दें। जेठजी भी मेरे नंगे स्तनोँ को मसलने, चूमने, काटने और निप्पलोँ को चूसने के लिए उतने ही बेताब थे जितनी की मैं उनको यह सब करवाने के लिए थी।

    मरे स्तनोँ की निप्पलेँ भी आने वाले अनुभव की अपेक्षा की उत्तेजना में एकदम सख्त हो कर नंगे होने का इंतजार कर रहीं थीं। जैसे ही जेठजी ने मेरे ब्लाउज के बटनों को खोल दिए, मैंने पीछे हाथ कर मेरी ब्रा के हूकों को खोल दिया।

    मैंने जेठजी के हाथ पकड़ कर उनको मेरे स्तनोँ पर रख दिया। बड़े दिनों से मेरी गुह्य इच्छा थी के मेरे जेठजी मेरे स्तनों को अपने हाथों में पकड़ कर खूब सख्ती से मसले, खींचे, दबाये और चूसे।

    मेरे स्तनों को छूते ही जेठजी के मुंह से”आह….” निकल गयी। वह बोल उठे, “ओह मेरी प्यारी प्यारी माया की छाया, तुम्हारे स्तन आज मुझे काफी भरे भरे और अलग ही महसूस हो रहे हैं। तुम बहुत मस्त हो रे!”

    यह कह कर जेठजी ने झुक कर अपना मुंह मेरे नंगे स्तनोँ पर रख दिया और मेरी निप्पलोँ को दाँत के बिच में दबाते हुए वह मेरे स्तनोँ को बेतहाशा जोर से चूसने लगे।

    मैंने जेठजी की जाँघों के बिच में अपनी उंगलियां डालकर जेठजी के लण्ड को सहलाना चाहा। जेठजी ने धोती हटा कर अपनी निक्कर निचे कर अपने लण्ड को बाहर निकाला। हालांकि मैंने जेठजी का लण्ड पहले भी अफरातफरी में देखा था पर उस रात को जेठजी का लण्ड मेरे इतने करीब पा कर मेरे मन में क्या भाव उठ रहे थे उनका वर्णन करना मेरे लिए नामुमकिन है।

    जेठजी का लण्ड गोराचिट्टा और काफी चिकना चमक रहा था। मुझे माया ने बताया था की माया हर हफ्ते नियमित रूप से जेठजी के लण्ड के बाल साफ़ करती रहती थी। यह काम माया ने अपने हाथों में ले रखा था।

    माया ने मुझे कहा था की वह जब जब भी जेठजी की जाँघों के बिच के बाल साफ़ करती थी तब वह हमेशा जेठजी के लण्ड की सरसों के तेल से अच्छी तरह मालिश करती थी। यह लण्ड के सर्विसिंग की प्रक्रिया करीब आधे घंटे तक चलती थी। उसके बाद जेठजी का लण्ड बढ़िया तरीके से चमका कर ही माया दम लेती थी।

    माया की किसी सहेली ने बोला था की ऐसा करने से लण्ड लम्बे समय तक खड़ा रहता है और उसकी लम्बे समय तक चोदने की क्षमता भी बढ़ती है। माया यह कहते हुए शर्मा कर बोलती थी की उसके बाद माया को मेरे जेठजी के लण्ड को चूसने का बड़ा मन करता था, पर चूँकि उसे तेल से लगे हुए ही कुछ देर रख छोड़ना होता था इस लिए वह उसे उस समय चूस नहीं पाती थी।

    जेठजी का लण्ड इसके कारण एकदम चिकना, गोरा और साफ़ दिख रहा था। लण्ड के ऊपर कई नसें फैली हुईं थीं। कुछ थोड़ी श्यामल रंग की नसें और कुछ थोड़ी लाल। जेठजी के लण्ड की मोटाई बापरे! मैंने इतना मोटा लंड सिर्फ पोर्न साइट में भी शायद ही देखा था।

    मेरे किसी भी बॉय फ्रेंड का लण्ड मोटाई और लम्बाई में मेरे जेठजी के करीब नहीं होगा। मैंने जेठजी का लण्ड मेरी हथेली में लिया और मैं उसे सच्चे दिल से प्यार से हिलाने और सहलाने लगी। मेरे जेठजी का लण्ड देखते ही मेरा मुंह उसे चूसने के लिए बेताब हो रहा था। इसे चूसने की चाह जब से मैंने उसे पहली बार देखा था तब से मेरे जहन को झकझोर रही थी।

    माया ने मेरी बगल में खड़े हुए मुझे इशारा किया की मैं जेठजी के लण्ड को चूसूं। वैसे भी मुझे इंतजार करने की कोई जरुरत नहीं थी। उस रात मेरे मन में जो भी कुछ छिपी हुई कामना थी, उन्हें पूरा करने का पूरा मौक़ा था।

    मैंने भी अपने मन में ठान ली की अब जब मुझे मेरे जेठजी से चुदवाना ही था तो फिर मैं क्यों डरते, घभराते या हिचकिचाते चुदवाउं? जब मुझे चुदवाना ही है तो फिर क्यों ना मैं दिल खोल कर के ही चुदवाउं और चुदाई के पुरे मजे लूँ?

    मैं अपनी जगह से बैठ खड़ी हुई और मैंने जेठजी को मेरी जगह लिटा दिया। मैंने धीरे से जेठजी की धोती और जांघिया निकाल दिए। जेठजी की सख्त सुडौल जाँघें मेरे सामने सादृश्य हो गयीं। जेठजी की जाँघों पार बाल थे ओर फिर भी उनकी जाँघों की सख्ती और सुदृढ़ता देखते ही बनती थी।

    जेठजी का बड़ा मोटा लण्ड उनकी जाँघों के बिच काफी निचे तक लटकता हुआ देख कर मेरी चूत में ना जाने क्या हलचल हो रही थी। यह कैसा लण्ड है? ऐसा लगता था जैसे वह शरीर का अंग नहीं कोई लटकता लम्बा मोटा घण्टा हो।

    वैसे सच कहूं तो हालांकि उस लण्ड को देख कर मेरी हालत खराब हो रही थी पर उससे कहीं ज्यादा मेरे पुरे बदन में और खासकर मेरी चूत में एक अजीब सा रोमांच और उत्तेजना थी। हर औरत की यह कामना होती है की जिंदगी में कम से कम एक बार वह ऐसे तगड़े लण्ड से चुदवाये।

    पर ऐसा तक़दीर किसी किसी औरत को ही मिलता है। मेरी तक़दीर भी उस रात खुल गयी थी। अब ना सिर्फ वह लण्ड से मैं चुदने वाली थी पर मैं उस लण्ड से माँ भी बनने वाली थी।

    मैं धीरे धीरे खिसक कर जेठजी के पाँव के पास पहुँच गयी। मैंने मेरे जेठजी की टाँगों के बिच में अपना सिर रखने के लिए उनकी टाँगे अपने दोनों हाथोँ से चौड़ी की और अपने हाथों में जेठजी का मोटा तगड़ा लण्ड लिया। उसे अपने हाथों में पकड़ कर और उठा कर मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैंने अपने हाथोँ में सनी देओल का ढाई किलो का हाथ पकड़ा हो। खैर ऐसा कहना थोड़ी अतिशयोक्ति होगी पर मुझे वैसे ही महसूस हुआ।

    मैंने अपनी उंगलियां मेरे जेठजी के लण्ड के इर्दगिर्द बड़े प्यार से घुमाई और फिर धीरे से जेठजी के लण्ड का टोपा मेरे होंठों के बिच रखा और उसे चूमने लगी। जेठजी मेरे होंठों को अपने लण्ड को छूते ही मचलने लगे।

    उनके मुंह से निकल गया, “आह….. मेरी छाया….. तुम वाकई गजब हो। तुम्हारे होंठ कितने सुकोमल और भरे भरे हैं? वाकई में तुम मेरी माया नहीं मेरी माया की छाया ही हो।”

    जैसे जैसे मैं जेठजी का लण्ड मेरे मुंह में लेने लगी, जेठजी पलंग के ऊपर और भी मचलने लगे। मैं अपना मुंह आगे पीछे करती हुई जेठजी का लण्ड चूसने लगी। मेरे पति का लण्ड मैंने कई बार चूसा था, पर जेठजी के लण्ड का स्वाद कुछ और ही था। मेरे मुंह की लार जेठजी के लण्ड के इर्दगिर्द चिपकाते हुए मेरी जीभ मैं जेठजी के लण्ड के चारों और घुमाती रहती थी।

    मेरा जेठजी के लण्ड को चूसने का सपना पूरा हो रहा था और मेरे इस काम का पारितोषिक मुझे मेरे जेठजी की कराहटों और आहों से मिलता रहता था।

    मुझे लगा की मेरे जेठजी मेरे होँठों से अपने लण्ड को चुसवाते हुए महसूस कर अद्भुत रोमांच अनुभव कर रहे थे। उनके मुंह से एक के बाद एक “आह…. छाया…… तुम कितना गजब चूसती हो…… हाय…….. ओह……” करते हुए मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे जेठजी मेरा सिर पकड़ कर जैसे मुझे दिल से आशीर्वाद दे रहे थे।

    मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मेरे इस कार्य से मेरे जेठजी वाकई बड़े ही प्रसन्न हुए थे। बार बार वह अचानक उठ बैठ जाते और मेरा सिर चुम लेते थे। मैं भी उनका लण्ड चूसते हुए इतनी भावावेश में डूबी हुई थी की मुझे यह भी होश नहीं था की उनका लण्ड मेरे गले में इतना घुस रहा था की मेरी साँसे घुट रहीं थीं।

    यहां मैं यह स्वीकार करती हूँ की मेरे जेठजी के लण्ड को बड़ी ही शिद्द्त से चूसने में मेरा एक जबरदस्त निजी स्वार्थ था। मैं जानती थी की मेरे जेठजी का लण्ड कितना महाकाय और लंबा था। जब जेठजी उस लण्ड को मुझे चोदने के लिए मेरी चूत में डालेंगे तब मेरा क्या हाल होगा यह मैं भलीभाँति जानती थी।

    जेठजी का लण्ड चूसते हुए मैं उनके लण्ड के ऊपर पूरी सतह पर मेरी लार की ख़ास चिकनाहट अच्छी तरह से लपेट कर जेठजी के लण्ड को पूरी तरह से स्निग्ध बना देना चाहती थी। मैं अपना प्लान बना रही थी जिससे जब वह लण्ड मेरी चूत में घुसे तब मेरी चूत में कुछ कम तकलीफ महसूस हो।

    इस कारण से मैं जेठजी का लण्ड चूसती रही और बार बार उसके ऊपर मेरी लार की चिकनाहट लपेटती रही। इस तरह चिकनाहट की कई सतह बनाकर मैं जब चुदवाउंगी तब अपना दर्द कम हो यह सुनिश्चित करने की अपनी और से कोशिश कर रही थी।

    जेठजी का लण्ड चूसते हुए मेरा जबड़ा जब दर्द करने लगा तब मैंने जेठजी का लण्ड मुंह से बाहर निकाला। मुझे लगा की जेठजी भी मेरे ऐसा करने से कुछ आश्वस्त हुए क्यूंकि उत्तेजना के मारे वह शायद डर रहे थे की कहीं वह मेरे मुंह में ही अपना वीर्य ना छोड़ दें।

    मेरे जेठजी ने मुझे अपने ऊपर खिंच लिया और मेरे होँठों को बेतहाशा चूमते हुए बोले, “छाया, तुम मुझे इतना ज्यादा प्यार करती हो? तुम मुझे इससे पहले क्यों नहीं मिली?”

    फिर उनकी काली पट्टी लगी हुई आँखें मेरी आँखों के सामने रख कर मेरी ठुड्डी पकड़ कर बोले, “देखो छाया मुझे देखो। मैं तुम्हें देख नहीं सकता पर तुम तो मुझे देख सकती हो। मैं पूछना चाहता हूँ की क्या तुम आज मुझसे सच्चे दिल से अपनी ख़ुशी से चुदवाओगी ना?”

    मेरे जेठजी की बात सुन कर फिर से मेरी आँखों में आंसूं छलकने लगे। मैंने अपना सर जेठजी को महसूस हो ऐसे हिला कर “हाँ” कहा। और फिर मैं मेरे जेठजी के पुरे बदन को बेतहाशा चूमने और चाटने लगी। ऐसा करते हुए बार बार मेरी नजरें माया की और चली जातीं। मैंने माया का प्यार भरे भाव से मंदमंद मुस्काता हुआ चेहरा देखा। उसकी आँखें मुझे मेरे जेठजी को प्यार करते हुए देख छलक रहीं थीं।

    जेठजी मेरे दोनों स्तनोँ को अपने दोनों हाथों में भर कर बोले, “छाया, मेरा मन करता है की मैं तुम्हारे स्तनोँ को खा जाऊं। कितने प्यारे और सख्त हैं यह।”

    मैंने जेठजी का सर पकड़ा और उनका मुंह मेरे स्तनोँ पर रख दिया। जेठजी एक के बाद एक निप्पलेँ मुंह में लेकर उन्हें चूसने और चबाने लगे। एक बार तो उनके दांत लगने से मेरी धीमी चीख निकल गयी। पर जेठजी के मेरे स्तनोँ को चूसना मुझे बहुत ज्यादा उत्तेजित कर रहा था।

    जेठजी को चूँचियाँ चूसने का महारथ था। जब जब वह एक स्तन चूसते थे तो मेरा पूरा का पूरा स्तन उनके मुंह में ही चला जाता था। जब मेरा स्तन जेठजी के मुंह में चला जाता था तब मुझे लगता था जैसे मेरे मेरे पिता समान मेरे जेठजी अचानक मेरे बच्चे जैसे हो गए हों।

    उस समय मेरे जहन में उनके लिए इतना प्यार उमड़ता था की मेरा मन करता था जैसे मेरे जेठजी के लिए मैं अपना बदन क्या अपनी जान भी कुर्बान कर सकती हूँ।

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