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पड़ोसन बनी दुल्हन-51

मुझे चुदाई का विकल्प सबसे अच्छा इस लिए भी लगा की चुदाई गोपनीय तरीके से हो सकती है और मैं, मेरे पति और तीसरा मर्द जो मुझे चोदेगा, उसके अलावा किसी और को इसके बारे में जानने की जरुरत ही नहीं। अगर मैंने मेरे पति संजयजी के किसी दोस्त को या किसी और को पसंद किया तो उसे हम हमारे घर में हमारे बैडरूम में रात को चुपके से बुला सकते हैं और उस समय वह मुझे रात भर चोद कर जल्दी सुबह जा सकता है।

पर इसमें दो दिक्कते हैं। पहला यह की कार्यक्रम एकाध दो रात के लिए तो हो सकता है पर ज्यादा दिन नहीं हो सकता। दुसरा यह की मेरे ख़याल से कोई भी भद्र पुरुष इस तरह रात में आकर सुबह घर वापस चोर की तरह जाना पसंद नहीं करेगा।

दुसरा विकल्प यह भी हो सकता था की हम तीन लोग: मैं, संजयजी और वह मर्द जिससे मुझे चुदवाना है वह कहीं छुट्टियां मनाने के लिए बाहर चले जाएँ और कोई रिसोर्ट या होटल में तीन चार दिन या एक हफ्ते रुक कर उस मर्द से मुझे चुदवाने का कार्यक्रम बनाया जाए। पर इसके लिए भी हमें ऐसे आदमी को ढूंढना पडेगा, उसे तैयार करना पडेगा और प्रोग्राम बनाना पड़ेगा।

यह जरुरी नहीं की उस मर्द को बताया जाए की मैं उस मर्द से गर्भ धारण करने के लिए चुदवाउंगी। कुछ ऐसा तिकड़म चलाया जाये की जिसमें उस दोस्त को यह कहा जाए की संजयजी और मैं मिलकर उस आदमी के साथ एम.एम.एफ. करना चाहते थे।

जैसे जैसे समय बीतता गया, इस बच्चे की समस्या ने गंभीर रूप ले लिया। करीब करीब हर रोज एक या दुसरा रिश्तेदार हमें बच्चे के बारे में पूछने लगा। तब मुझे ऐसा कोई मर्द नजर नहीं आया जो मेरे काम आ सके। उस वक्त किसी मन पसंद हैंडसम मर्द को ढूंढना और इस तरह का कोई सामन्जस्य या कोई समीकरण बिठाने का समय ही नहीं था।

मेरी और संजयजी की समझ में ही नहीं आ रहा था की क्या किया जाए। यह सारी बातें हमारा दिमाग चाट रहीं थीं और दिन बीतते जा रहे थे। हमें कोई जल्दी नहीं थी, पर मेरे सांस ससुर और कुछ हद तक मेरी ननद सा टीना भी बच्चों के बारे में बार बार पूछते रहते थे। हमारे पास कोई ठोस जवाब नहीं था। हमारा दिमाग दिन ब दिन खराब होता जा रहा था।

धीरे धीरे यह समस्या हमारे दिमाग पर ऐसी हावी होने लगी की मुझे और मेरे पति संजयजी को दिमाग पर एक भारी बोझ महसूस हो रहा था। मैं भी कई बार इतनी चिंतित हो जाती थी की क्या काम करना है यह सब ध्यान ही नहीं रहता था।

एक दिन जब माया रसोई में आयी तो उसने देखा की मैं रसोई के प्लेटफॉर्म से सटे हुए खड़े कुछ गहराई से सोच रही थी और स्टोव पर रखा दूध उफान आकर बाहर गिर रहा था। तब माया ने मुझे झकझोरते हुए पूछा, “दीदी, क्या बात है? आप क्या सोच रहे हो? सब ठीक तो है?”

मैं माया के हिलाने से चौंक गयी और बात को टालने के लिए बोली, “कुछ नहीं रे! सब ठीक है।” पर माया ने देखा होगा की मेरा जवाब मेरे चेहरे के भाव से मेल नहीं खा रहा था।

माया ने मेरा हाथ थामा और उसे प्यार से सहलाते हुए कहा, “दीदी, तुमने मुझे अपनी जेठानी बनाया पर हकीकत में तो मैं तुम्हारी छोटी बहन ही हूँ। आप मेरी जिंदगी के सूत्रधार हो। आपने मेरी जिंदगी संवार ने के लिए क्या क्या नहीं किया। आपकी ही वजह से मुझे आपके जेठजी ने अपनाया और सुहागन बनाया। आपने मेरी जिंदगी के सबसे मुश्किल वक्त में मुझे सहारा दिया। अब जब मैं आपसे आपकी मुश्किल के बारे में जानना चाहती हूँ तब आप मुझे अपनी चिंता में भागीदार नहीं बना रहे हो और टालने की कोशिश कर रहे हो? यह तो गलत है न?”

मैंने माया का हाथ थाम कर कहा, “क्या बताऊँ माया, बात ही कुछ ऐसी है की इसका कोई इलाज नहीं नजर आता। बात कुछ निजी और नाजुक है।”

माया मुझे पकड़ कर मेरे ही बैडरूम में ले गयी। वहाँ पलंग पर माया ने मुझे बिठाया और बोली, “क्या बात है दीदी? तुम्हें मेरी कसम अगर तुमने मुझसे कुछ भी छिपाया तो। जब मैं उस रात आपके सामने कटघरे में थी तब जैसे आपने मुझे साफ़ साफ़ कहने के लिए बोला था, तो अब मेरी बारी है, मैं आपकी बहन ही नहीं, मैं आपकी जेठानी की हैसियत से भी आपको हिदायत देती हूँ की आप भी मुझे साफ़ साफ़ स्पष्ट भाषा में सब कुछ कहोगे और मुझ से कुछ भी नहीं छिपाओगे।”

माया ने मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा, “क्या आपकी बात मेरी बात से भी ज्यादा नाजुक है? आपके जेठजी से मुझे चुदवा ने से और ज्यादा नाजुक तो नहीं है ना?”

मैंने माया की आँखों में आँखें डालकर कहा, “उससे भी ज्यादा नाजुक बात है, माया।” मेरी बात सुनकर माया भौंचक्की सी हो कर मुझे देखने लगी। अब उसे लगा की बात काफी गंभीर है।

माया ने मेरे दोनों हाथ थाम लिए और उन्हें बड़े प्यार से सहलाते हुए बोली, “दीदी, आपको मेरी कसम, आपको आपके पति संजयजी की कसम, आपको आपके जेठजी की कसम, आप बताओ की क्या बात है। बात जितनी भी नाजुक हो या गोपनीय हो, हम दोनों के बिच में तो कुछ भी गोपनीय है ही नहीं न दीदी? जब आप जिस तरह आपके जेठजी मेरी चुदाई करते हैं उस के बारे में भी सब कुछ जानते हो तो फिर आपका भी कर्तव्य है की आप मुझसे कुछ भी ना छिपाओ। अगर आप ने नहीं बताया तो कसम से मैं आज से अनशन करुँगी।”

माया की बात सुन कर मुझे हँसी आ गयी। मेरी ही छोटी बहन, जैसे मेरी बड़ी बहन हो ऐसे मुझे ही नसीहत दे रही थी और मैंने जो जो उसे जेठजी के कमरे में भेजते समय कहा था वही वह मुझे कह रही थी। मैंने माया को हलकी सी जफ्फी देते हुए कहा, “रे पगली, मैं तुझसे क्यों छिपाऊंगी? मैं तुमसे सारी बातें तो करती हूँ। जब हम एक दूसरे की चुदाई के बारे में भी खुल्लमखुल्ला बात करते हैं तो फिर अब मैं तुझसे कुछ भी कैसे छिपा सकती हूँ?”

 

वैसे मेरे और माया के बिच में औपचारिकता की कोई दीवार नहीं थी। माया की जेठजी से जब पहली बार चुदाई हुई तबसे हम दोनों एक दूसरे से सारी बातें साँझा करते रहते थे। यहां तक की हमारी हमारे पतियों से चुदाई के बारे में भी हम कई बार एक दूसरे की चुटकी लेते रहते थे। कई बार जब माया सुबह सुबह टेढ़ीमेढ़ी चलती तो मैं उसे रात को चुदाई के बारे में ताने मारना ना चुकती थी तो कई बार माया भी मेरी संजयजी से पिछली रात को हुई चुदाई के बारे में खिंचाई कर लेती थी।

इसी लिए हमारी बातें माया को बताने में मुझे कोई झिझक नहीं थी। बस झिझक थी तो सिर्फ यही की मैं मेरे पति संजयजी की कमी को जाहिर नहीं करना चाहती थी। पर अब माया ने मुझे इतनी तगड़ी कसम जो दे दी थी तो मैंने मेरी बात माया से साँझा करना ही ठीक समझा।

तब फिर मैंने माया को हमारे बच्चा ना होने के बारे में सारी बातें बतायी। मैंने संजयजी के बाँझ होने की बात जब बतायी तब वह दंग रह गयी। क्यूंकि पहले मैं उसे संजयजी मेरी कैसी तगड़ी चुदाई करते थे उसके बारे में बताती रहती थी, और हम कैसे फॅमिली प्लानिंग कर रहे थे वह भी मैंने माया को बताया था।

मैंने जब माया को मेरी समस्या के बारे में बताया तब वह एकदम गंभीर हो गयी। वह मुझसे थोड़ा अलग हो कर बैठी और मुझे ताकती हुई गहरी सोच में डूब गयी। मैंने उसे मेरे सामने जो तीन विकल्प थे उन तीनों विकल्पों के बारे में भी बताया। मैंने माया को यह भी कहा की क्यों मुझे पहले दो विकल्प मंजूर नहीं।

मैंने कहा की मैं नहीं चाहती थी की हमारे घर में किसी को भी पता चले की मरे पति नपुंशक हैं। वह नपुंशक तो बिलकुल नहीं थे पर बच्चा पैदा नहीं कर सकते। अब यह सारी बातों का बड़ा ही झंझट वाला स्पष्टीकरण रिश्तेदारों से कैसे और कौन करे? इसी लिए मैं इस राज़ को राज़ ही रखना चाहती थी।

अब हमारे अलावा माया को भी इस बात का पता लग चुका था। पहले माया को भी मैं यह बात नहीं बताना चाहती थी पर चूँकि माया मेरे हर राज़ में भागीदार थी और मैं उसके हर राज़ जानती थी इस लिए मुझे माया से यह बात शेयर करने में कोई खास दिक्क्त महसूस नहीं हुई। पर अब किसी और से यह बात ना पहुंचे यही मेरा मकसद था।

मेरी बात सुन कर माया ने मुझे कहा, “दीदी, एक नारी होने के नाते मैं आपसे सहमत हूँ। अपने पति की जरासी भी कमी कोई पत्नी नहीं चाहेगी की किसी के सामने आये। यहां तो यह सामजिक दृष्टि से इतनी बड़ी बात है। इस लिए मैं भी मानती हूँ की आपने सही विकल्प चुना है। पर क्या आप और संजयजी आपको किसी और मर्द से चुदवाने के लिए तैयार हैं?”

मैंने तब माया को कहा की मैंने मेरे पति संजयजी से वह सब बात कर ली थी। मैंने माया को यह भी कहा की मेरे पति तो पहले से ही जब यह बच्चे का चक्कर नहीं था तबसे ही मेरे पीछे पड़े थे की मैं मौज करने के लिए किसी गैर मर्द से चुदवाऊं।

मैंने माया को मेरी कॉलेज लाइफ के बारे में भी बता ही दिया ताकि वह समझ जाए की मैं पहले भी और मर्दों से चुदवा चुकी थी और मुझे जाती तरीके से किसी और मर्द से चुदवाने में कोई बहुत बड़ी आपत्ति नहीं थी। समस्या यही थी की ऐसा मर्द कहाँ से ढूंढे जो हमारे मापदण्ड में ठीक तरह से फिट बैठ सके।

जब मेरी बात ख़तम हुई तो माया एकदम गंभीर थी। वह उठ खड़ी हुई और बिना कुछ बोले उसने मुझे गले लगा लिया। मैंने महसूस किया की उसकी समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या बोले। मैंने देखा की उसकी आँखें नम हो गयीं थीं।

मुझसे बिना कुछ बोले, कुछ देर तक मेरे गले लगे रहने के बाद अपने भावावेश को नियंत्रण में रखने की कोशिश करते हुए माया चुपचाप धीरे धीरे चलते हुए मेरे कमरे से बाहर चली गयी। मैंने पहली बार इतने ठोस तरीके से महसूस किया की माया अब कोई बाहर की हस्ती नहीं, वह हमारे परिवार में एकरस हुई हमारे परिवार की ही एक बड़ी ही जिम्मेवार सदस्य बन चुकी थी।

मैं जानती थी की माया से अपना राज़ सांझा करने से मैंने अपने दिमाग का बोझ शायद जरूर कुछ कम किया होगा, पर उससे मुझे कोई सहायता मिलने की उम्मीद नहीं थी।

क्यूंकि उसके जाते जाते जब मैंने माया की आँखों में झाँक कर देखा तो मुझे इस समस्या में मेरी कुछ मदद न कर पाने के कारण उसकी की आँखों में असहायता के भाव दिखे। मैं उसमें उसका दोष कैसे दे सकती थी भला? जब मैं और मेरे पति संजयजी ही इसका समाधान कई महीनों से नहीं निकाल पाए तो माया क्या करेगी?

इस बात के दो दिन बाद दोपहर के खाने के बाद जब मेरे पति संजयजी और बड़े भैया ऑफिस गए हुए थे और माताजी और पिताजी अपने कमरे में विश्राम कर रहे थे तब माया मेरे कमरे में आयी और मेरे पास आ बैठी। मैं उस समय अपने बालों को सँवार रही थी।

माया का चेहरा काफी गंभीर सा लग रहा था। मैंने माया की और घूम कर प्रश्नात्मक दृष्टि से देखा, क्यूंकि उस समय माया भी सामान्यतः अपने कमरे में कुछ ना कुछ काम में लगी हुई होती थी। माया ने पूछा, “दीदी, जो मैं बात करने जा रही हूँ उसे आप को कुछ सदमा लगे या बुरा भी लगे तो मुझे माफ़ करना और अगर ना जँचे तो उसे नजरअंदाज़ कर देना।”

मैंने कुछ ना बोलते हुए माया की और देखा। माया ने मेरी नज़रों से नजर ना मिलाते हुए जमीन की और नजरें करते हुए कहा, “दीदी, आपने जो मुझे दो दिन पहले बात की थी, मैं आपसे उसके बारे में बात करने आयी हूँ। अगर आप को भयंकर एतराज ना हो तो मैं इसके बारे में एक बड़ा ही व्यावहारिक सुझाव देना चाहती हूँ।”

माया क्या कहने वाली थी यह जानने की उत्सुकता मुझसे रोकी नहीं जा रही थी, मैंने फिर भी उस समय चुप रहना ही ठीक समझा। हालांकि माया की आँखों में एकटक मेरी जिज्ञासु आँखें गाड़े बैठना माया को मेरी उत्सुकता जरूर बयाँ कर रहा होगा।

माया ने मेरी आँखों में मेरी स्वीकृति देखि तब बोली, “दीदी, मैं चाहती हूँ की आप किसी बाहर के आदमी से नहीं, अपने जेठजी से ही चुदवाइये। मतलब आपको जो बच्चा हो वह किसी और के वीर्य से नहीं जेठजी के वीर्य से ही हो। इससे घर की बात घर में रहेगी और बच्चा दिखने में भी हम सब की तरह तंदुरस्त, लंबा, चौड़ा और हैंडसम होगा।” यह कह कर माया चुप हो गयी और मेरी सकारत्मक या नकारात्मक प्रतिक्रया के इंतजार में कुछ आशंकित नज़रों से मुझे देखने लगी।

जब मैंने माया ने जो कहा उसे सुना तो मेरे पाँव तले से जैसे जमीन खिसक गयी। मेरे दिमाग में यह बात आयी ही नहीं थी और मैंने दूर दूर तक भी सोचा नहीं था की ऐसा कुछ हो सकता है। माया की बात सुन कर मुझे चक्कर आने लगे। मेरी हवा निकल गयी। जो माया कह रही थी, मेरे हिसाब से वह नामुमकिन सा था।

हालांकि माया ने जो बात कही थी वह बात काफी तर्कसंगत थी। पर उसकी बात अगर मैंने मेरे पति से की तो उनकी आस्था और विश्वास पर क्या कुठाराघात होगा यह सोचने से भी मैं डर रही थी। मैं मेरे जेठजी से चुदवाने की बात तो दूर, मैं उन के सामने नंगी कैसे होउंगी यह एक जटिल प्रश्न था।

अगर जो माया कह रही थी वह बगैर कुछ झंझट से हो सकता होता तो उससे अच्छी तो कोई बात ही नहीं हो सकती थी। कुछ झुंझलाहट और कुछ नाराजगी से माया को मैंने कहा, “माया, यह तो वही बात हो गयी ना? अगर मैं अपने जेठजी से ही चुदवाती हूँ तो फिर जेठजी को तो पता लग ही जाना है की मेरे पति संजयजी बाँझ हैं इसी लिए मैं उनसे चुदवा ने के लिए तैयार हुई हूँ? यही तो हमें नहीं करना है।

मुझे जेठजी को यह पता नहीं लगने देना है की मेरे पति बाँझ हैं। उससे तो फिर आई.वी.एफ़. ही बेहतर विकल्प था। उसमें मुझे बड़े भाई साहब के सामने नंगी हो कर चुदवाना तो नहीं पड़ेगा।”

माया मेरी बात सुनकर कुछ देर चुप रही, फिर मेरी और देख कर बोली, “दीदी, आप क्या समझते हो, मैंने इसके बारे में नहीं सोचा? अगर आप आई.वी.ऍफ़. से ही राजी हैं तो फिर मेरे हिसाब से वह सबसे अच्छा विकल्प है। पर आप किसका वीर्य लोगे? और क्या किसी के भी वीर्य से बच्चा पैदा करना वह सही है या फिर अपने ही पति के ज्येष्ठ भाई से बच्चा पैदा करना बेहतर है? जरा सोचिये तो।”

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