पिछला भाग पढ़े:- हादसा-11
मेरी हिंदी चुदाई कहानी में आपका फिर से स्वागत करती हूं।
मैं: मैंने हम दोनों की शादी फिक्स कर दी है।
राजेश्वर जी चौंक गए।
राजेश्वर जी: क्या! कब? और कैसे?
मैं: हां! हमारी परसों शादी है, और मैंने सारी शॉपिंग भी कर ली है।
राजेश्वर जी: लेकिन तुम पहले से ही शादी-शुदा हो।
मैं: अरे ये शादी बस मेरे मन की शांती के लिए होगी। सच-मुच की नहीं।
फिर भी राजेश्वर जी थोड़ा हिचकिचा रहे थे। मैंने जैसे-तैसे करके उन्हें मना लिया और राजेश्वर जी मुझसे शादी करने के लिए राजी हो गए। मैं बहुत खुश हो गई, और और उन्हें कस कर गले लगा लिया। राजेश्वर जी मेरी गांड दबाने लगे, तो मैं झट से उनसे अलग हो गई और बोली-
मैं: नहीं शादी से पहले कोई बदमाशी नहीं।
राजेश्वर जी: अरे यार मैंने तुझे चोदने के कितने प्लान बनाए थे।
मैं: थोड़ा सब्र रखिये, बस दो दिन की बात है।
राजेश्वर जी थोड़े नाराज होकर सोफे पर बैठ गए। कुछ देर बाद हम दोनों ने डिनर कर लिया, और हम अलग-अलग कमरे में जा कर सो गए। मुझे राजेश्वर जी के चुदाई की आदत पड़ गई थी, जिसके कारण मुझे नींद नहीं आ रही थी। मेरी चूत उनके विचार से ही गीली होने लगी। ऐसा लग रहा था कि अभी उनके कमरे में जाकर उनसे चुदवा लूं।
लेकिन मैंने ठान लिया था कि शादी से पहले मैं चुदाई नहीं करूंगी। मैं अपने आप को शांत करने के लिए चूत में उंगली करने लगी और झड़ने के बाद सो गई। अगले दिन की सुबह कुछ खास नहीं थी। हम दोनों ने एक-दूसरे को छुआ भी नहीं। लेकिन अन्दर ही अन्दर हम दोनों चुदाई के लिये तड़प रहे थे। वो पूरा दिन बहुत बोरियत भरा था, लेकिन अगले ही दिन हमारी शादी थी, इसलिए यह एक दिन सहना पड़ा।
मैं उस दिन ब्यूटी पार्लर गई और अपना फेशियल और वेक्सिंग करा लिया। मेरी त्वचा एक-दम कोमल हो गई थी। अगला दिन हम दोनों के लिये खास था। मैं सुबह जल्दी उठ गई, और तैयार हो गई। फिर थोड़ी देर बाद राजेश्वर जी भी उठ गए, और अपने कपड़े पहन कर वो भी तैयार हो गए।
8:30 बजे पंडित जी आ गए, और हमारी शादी की विधि शुरू हो गई। राजेश्वर जी ने मेरे गले में मंगल सूत्र पहनाया, और मेरी मांग भर दी। साथ फेरों के सात वचनों के बाद हम सात जनम के लिये एक-दूसरे के हो गए।
फिर हम दोनों ने पंडित जी के पैर छू लिए, और उनका आशीर्वाद ले लिया। मैंने पंडित के पास अपना फ़ोन दिया, और उन्हें हमारी तस्वीर लेने के लिए कहा। हम दोनों ने अलग-अलग पोज दे कर कई फोटोज ले लिये। आखिर में हमने पंडित जी को उनकी दक्षिणा दे दी, और वो चले गए। पंडित जी के जाने के बाद-
राजेश्वर जी: अब तो खुश हो ना तुम दिव्या?
मैं: हां मेरी जान, अब तो में बहुत खुश हूं। आपकी बीवी जो बन गई हूं।
ये कह कर मैंने राजेश्वर जी के गाल पर किस्स दे दी।
राजेश्वर जी: हां दिव्या, लेकिन फिर भी मुझे ये कुछ ठीक नहीं लग रहा है।
मैं: अरे बाबा… आप क्यूं इतना टेंशन ले रहें है? ये शादी बस हमारे प्यार की निशानी है, और कुछ नहीं।
राजेश्वर जी: ठीक है दिव्या। अगर तुम मुझे अपना पति मानती हो, तो मेरा सारा कहना मानना होगा।
मैं: जी मुझे मंजूर है आप कहिये आपकी ये नई-नवेली पत्नी आपके क्या काम आ सकती है?
राजेश्वर जी: मुझे तुम्हें अभी के अभी चोदना है। तुम्हारी चूत के बिना एक दिन भी एक साल जैसा लगता है।
मैं: बस इतनी सी बात। अरे मैं तो आपकी पत्नी हूं। आपका जब मन करे तब मुझे चोद डालो। और मैं भी आपके लंड के लिए प्यासी हूं।
राजेश्वर जी: तो चलो अपने कपड़े उतारो। आज तो तुझे पूरे दिन चोदूंगा। देख तुझे अपने लंड के लिए पागल कैसे बनाता हूं।
मैं मुस्कुराई और बोली: अरे मैं तो आपको और आपके लंड को देखते ही पागल हो गई थी।
मैंने अपनी शादी का जोड़ा उतार फेंक दिया, और मेरे बदन पर बस शादी के गहने थे। राजेश्वर जी किचन में जा कर दो ग्लास पानी लेकर आए, और तेल की बोतल लेकर आए। उन्होनें पानी और तेल टेबल पर रख दिया। मैं उनके सामने बिल्कुल नंगी खड़ी थी। मेरे शरीर पर बस शादी के गहने थे। राजेश्वर जी मुझे उपर से नीचे तक अच्छे से देख रहे थे।
राजेश्वर जी: अरे वाह दिव्या, बिल्कुल कमाल लग रही हो।
मैं: शुक्रिया।
राजेश्वर जी: हम्म… चलो फिर आज और अभी से तुम को मेरी एक बात और माननी पड़ेगी।
मैं: अब और क्या बाबा?
राजेश्वर जी: जब-जब हम दोनों घर में अकेले होंगे, तब-तब तुम्हें इस तरह से नंगी ही रहना पड़ेगा। अगर कपड़े पहनने होंगे तो मेरी अनुमती लेनी पड़ेगी।
शादी के बाद राजेश्वर जी मुझ पर अपना हक जमा रहे थे। मैं उनका ये रुप देख कर थोड़ी हैरान थी, मगर मुझे यहीं तो चाहिये था, कि राजेश्वर जी मुझे अपनी समझे, और मुझ पर हक जमा ले।
मैं: ठीक है मेरी जान। अब चोदोगे भी या बस यूं ही खड़े रहोगे?
राजेश्वर जी ने अपनी जेब में से दो गोलियों के पैकेट्स निकाले और एक पैक मुझे दिया। उन्होंने अपने पैक में से 1 गोली खा ली।
राजेश्वर जी: दिव्या तुम अपने पैक में से दो गोली खा लो।
मैं: ये किस चीज की गोली है?
राजेश्वर जी: चुदाई की है। आज हम दोनों बस चुदाई करेंगे, और कुछ नहीं। इसलिए ये गोलियां लाया हूं, तांकि हम दोनों को दिन भर चुदाई करने की ताकत मिले।
मैंने ये बात सुन कर दो गोलियां खा ली। शुरु में कुछ नहीं हुआ, लेकिन धीरे-धीरे गोली का असर शुरु हो गया। मेरे दिमाग में बस लंड और चुदाई के खयाल थे। मैं पसीने से लथ-पथ हो गई और मेरी चूत भी गीली हो गई।
मैं: चोदो मुझे प्लीज। मुझे आपका लंड चाहिये। आप जो बोलोगे मैं वो करूंगी, बस मुझे चोदना शुरु कर दो।
मैं राजेश्वर जी के सामने घुटनों पर बैठ कर भीख मांग रही थी, और राजेश्वर जी के चेहरे पर मुस्कान थी। उनका लंड एक दम कड़क हो गया था, मानों जैसे कोई लोहा या पत्थर हो। मैं समझ गई कि आज हम दोनों एक-दूसरे को निचोड़ने वाले थे।
मैंने जल्दी से राजेश्वर जी का लंड अपने हाथ में ले लिया। लंड एक दम गरम था। मैं लंड को आगे-पीछे करने लगी और राजेश्वर जी आंख बंद करके मजा ले रहे थे।
फिर मैं उनका लंड चूसने लगी। मैं उनका पूरा लंड चूस रही थी, और जब तक मेरी सांस नहीं फुल जाती, तब तक लंड मुंह में रख रही थी। मेरी आंखों से लगातार लंड चूसने के कारन आंसू आ गए, और मेरा काजल बहने लगा। मेरा चेहरा और मेरे बूब्स अपने ही थूक और राजेश्वर जी के वीर्य से लथ-पथ थे। मैं मानो कोई रंडी की तरह से राजेश्वर जी का लंड चूस रही थी।
कुछ देर ऐसे ही लंड चूसने के बाद राजेश्वर जी मेरे बाल पकड़ कर अपना लंड मेरे मुंह में जोर-जोर से आगे-पीछे करने लगे। वो मेरे मुंह को जोर-जोर से चोदे जा रहे थे। मैं समझ गई कि उनका अब झड़ने वाला था।
फिर 4-5 जोर के धक्कों के बाद राजेश्वर जी मेरे मुंह में अपनी मलाई छोड़ने लगे। मेरे पूरे मुंह में उनका एक-दम सफेद और गाढ़ा वीर्य भर चुका था। मैंने एक बूंद भी नहीं गिराई, और उनका वीर्य एक झटके में पी गई। मम्मम, क्या स्वाद था उनके वीर्य का वाह!
राजेश्वर जी: ओहो… दिव्या क्या मस्त हो तुम। पूरा पानी पी गई मेरा।
मैं: ये तो बस शुरुआत है मेरी जान। असली खेल तो अब चालू होगा।
यह कह कर मैं हसने लगी। राजेश्वर जी का लंड झड़ने के बाद भी खड़ा था और कड़क था।
राजेश्वर जी: चल फिर सोफे पर। अब शुरु होगी चुदाई।
इसके आगे की कहानी अगले भाग में। मेरी हिंदी चुदाई कहानी पर अपने विचार ज़रूर दें।
अगला भाग पढ़े:- हादसा-13