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खानदानी कंगन-2 (Khaandani Kangan-2)

पिछला भाग पढ़े:- खानदानी कंगन-1

फिर कबीर मुझे बिस्तर पर लिटा कर मेरे होंठो को चूमने-चूसने लगा। मैं भी उसका साथ दे रही थी। मैंने उसको अपने सीने पे लिटा रखा था। मेरी चूचियां उसके चौड़े सीने में दबी हुई थी, और मैं उसकी पीठ पर अपने हाथों से सहला रही थी। फिर हम एक-दूसरे की जीभ भी चूसने लगे। हम दोनों की थूक और लार एक-दूसरे के मुंह में जा रही थी, और हम उसे बड़े प्यार से पी रहे थे।

मुझे कबीर का और कबीर को मेरा मुख रस मीठा लग रहा था। हम एक-दूसरे को ऐसे चूम चाट रहे थे, जैसे अमृत हो। कबीर अब मेरे स्तनों को भी किस्स करते हुए दबाने लगा।

मेरी आह निकल रही थी। मुझसे नहीं रह गया और मैंने कबीर के लंड को ऊपर से दबाने लगी। मैंने कबीर के कपड़े निकाल कर नंगा कर दिया, और नीचे बैठ कर उसके लंड का टोपा मुह में भर कर चूसने लगी। कबीर का 6 इंच का लंड सीधा खड़ा था। उसने आज तक मुठ भी नहीं मारी थी। उसका प्री-कम निकल कर बूंद-बूंद मेरे मुंह में जा रहा था। मेरे थूक से उसका लंड चमक रहा था। फिर कबीर के लंड की नसें फूलने लगी और गुर्राते हुए मेरे मुंह में ही झड़ने लगा, और मैं उसके लंड के पहले पानी को पी गई। देखने में उसका वीर्य रबड़ी की तरह लग रहा था। उसका खट्टा-मीठा स्वाद बहुत अच्छा लगा।

अब कबीर ने मेरे सारे कपड़े निकाल दिया, और लिटा कर होंठ चूसने लगा। मैं भी मज़े से अपने रस भरे होंठों को चुसवाने लगी। फिर मैं अपनी जीभ उसके मुंह में डाल कर अपनी जीभ चुसवाने लगी। उसके मुंह का स्वाद बहुत अच्छा लग रहा था। फिर कबीर मेरे स्तनों पर आ गया, और मेरा दूध पीने लगा (चलो अभी ना सही 9 महीने बाद तो दूध पिला ही सकती हूं)। मैं भी उसे बच्चे की तरह दुलारते हुए अपना दूध पिलाने लगी।

मैं बारी-बारी से अपने निपल्स उसके मुंह में देकर चुसवा रही थी। मेरे निपल्स फूल कर खड़े हो गए थे। मेरी चूत पानी छोड़ने लगी थी। अब वह नीचे आकर मेरी फूली हुई चूत में अपनी जीभ घुसा कर चाटने लगा। मैं मज़े में पागल हो गई थी। मैं उसके बालों को उंगली से सहलाते हुए उसका सर अपनी चूत पर दबा रही थी। वह बड़े प्यार से मेरी चूत चाट रहा था। मैं इतना गरम हो गई थी, कि मेरी चूत ने अपना सारा रस कबीर के मुंह में उड़ेल दिया, और वह सारा रस मज़े में पी गया।

अब तक कबीर का लंड फिर से खड़ा हो गया था, और वह मेरे ऊपर आ गया। फिर अपना लंड मेरी चूत पर टिका कर धक्का मारा, तो उसका आधा लंड मेरी चूत में चला गया। मुझे थोड़ा दर्द हुआ, पर मैंने उसे आगे बढ़ने को बोला, और उसने एक जोरदार धक्का मार के पूरा लंड पेल दिया। मेरे मुंह से एक चीख निकल गई। और मैंने अपने नाखून उसकी पीठ में गड़ा दिये।

वह रुक गया, और अपना पूरा लंड मेरी चूत में डाल कर मेरे ऊपर लेटा रहा। आज मैं अपने प्यार को पा गई। मैंने कबीर को इशारा किया, और वह धक्के लगाने लगा। मेरे मुंह से आह आह निकल रही थी। अब वह पूरी स्पीड से मुझे चोदने लगा। मेरी चूत से फच-फच की आवाज आ रही थी। वह ऊपर से चोद रहा था, और मैं नीचे से कमर उठा कर धक्के लगा रही थी। उसका हर धक्का मुझे मेरी बच्चेदानी पर महसूस हो रहा था।

मैं बोल रही थी: कबीर मेरी जान, चोदो मुझे। मेरी जान निकाल दो। दबा के चोदो मुझे। कर लो अपनी सब इच्छा पूरी। आज मुझे चुदाई का असली सुख मिल रहा था।

कबीर मेरे दोनों स्तन हाथों में दबोच कर अपना पूरा लंड मेरी चूत में पेल रहा था। उसका लंड पिस्टन की तरह अंदर-बाहर हो रहा था। उसका माल एक बार मुंह से निकाल दिया था, तो वह झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। मैं तो दो बार झड़ चुकी थी। मैं तीसरी बार झड़ी तो वह भी मेरे साथ झड़ने लगा, और पूरा लंड पेल के मेरी बच्चेदानी के मुंह पर झड़ने लगा। मैं कबीर का बीज अपने कोख में बोने लगी थी। मुझे पक्का लग रहा था कि मैं आज ही गर्भवती हो जाउंगी, पर मैं कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी। उस दिन हमने तीन बार चुदाई की, और हर बार उसका बीज अपनी कोख में लिया।

5 बजे मम्मी आई और हमारे चेहरे को देख कर सब समझ गई। वह मुझे अपनी बहु समझ कर अपने गले से लगा कर रोने लगी। मुझे 15 दिन रह गए थे अपने ससुराल जाने में।

मैं अब उस घर की बहू की तरह रहने लगी। सुबह उठ कर अपने जान कबीर को होंठों पर चूम कर जगाती। फिर चाय बना कर मम्मी को और कबीर को पिलाती।

एक दिन कबीर ने कहा: मुझे तुम्हारे मुंह से चाय पीनी है।

मैंने डोर बन्द कर दिया, और उसके पास जाकर कप से चाय का घूंट मुंह में लिया, और कबीर के मुंह में डाल दिया। कबीर मेरी थूक से भरी चाय को मज़े से पी गया, और मेरे होंठो को चूसने लगा। इस तरह से हम दोनों एक-दूसरे के साथ खाना भी खाते थे। दिन में और रात में 6 या 7 बार चुदाई करते। रात को कबीर की बाहों में सोते हुए बड़ा सुकून मिलता था। वह मुझे अपनी बाहों में भर सोता था।

रात को हम बिना कपड़ों के नंगे सोते थे। इतनी बार चुदाई से मेरी चूत खुल सी गई थी। पूरे 10 दिन हमने जी भरके चुदाई की। 11 वे दिन मेरा पीरियड आना था जो कि नहीं आया। मैंने ये बात कबीर को बताई कि आप पापा बनने वाले हो। कबीर ने मेरा मुंह चूम लिया, और नाचने लगा।

मैं कबीर के गले में बाहों का हार डाल उससे चिपक गई। मेरी चूचियां उसके सीने में दबी हुई थी। मैंने उसके कान में फुसफुसा कर कहा-

मैं: अब तुम मुझे वह कंगन पहना सकते हो।

और ये कह कर अपनी चूत उसके लंड पर रगड़ने लगी। मेरी चूत पानी छोड़ रही थी। हमारे कपड़े तुरंत उतर गए। कबीर मुझे लिटा कर मेरी चूत चाटने लगा। फिर वो एक कटोरी में शहद ले आया, और मेरी चूत में डाल कर चाटने लगा। मैं भी मज़े से चूत चटवाते हुए कांप रही थी। फिर मैं उसके सर को अपनी चूत में दबाने लगी। ऐसा लग रहा था जैसे वो मेरी चूत के रास्ते मेरे पेट में घुस जाएगा।

फिर मैं ऊपर आ गई और उसके लंड को शहद में डुबा कर चाटने लगी। ऐसा करते हुए हमने सारा शहद साफ कर दिया। फिर वो मेरे ऊपर आ गया, और अपना लंड मेरी चूत पर टिका कर धीरे-धीरे पूरा अंदर डाल कर धीरे-धीरे ही चोदने लगा। मैंने उसे जोर से चोदने को कहा तो कबीर ने कहा-

कबीर: नहीं,‌ अंदर मेरे बच्चों को तकलीफ होगी।

ये सुन कर मेरी आँखों में आंसू आ गए, और मैं रोते हुए उसके होंठों को चूसते हुए चुदवाने लगी। फिर आधा घण्टे की चुदाई चलती रही, और फिर कबीर ने अपना सारा माल मेरी चूत में डाल दिया। फिर लंड चूत में डाल कर मेरे ऊपर ही सो गया, और मैं बड़े प्यार से उसके बालों में उंगलियां फिराते हुए उसके लंड को अपनी चूत में महसूस करती रही।

कबीर अपना मुंह मेरी चूचियों में दबा कर गहरी सांस ले रहा था, तो उसकी सांस मुझे मेरी चूचियों पर महसूस हो रही थी। फिर कबीर कंगन ले आया, और प्यार से मेरी कलाइयों में पहना दिया। फिर हम नंगे ही लिपट कर लेट गए। उसका लंड मेरी चूत पर हल्का सा घुसा हुआ था, और हम एक-दूसरे के अंगों को चूम रहे थे और सहला रहे थे।

मम्मी शाम को आई, और कंगन मेरे हाथों में देखा तो उनकी आंखें खुली रह गई। मुझे उनके सामने बड़ी शर्म आ रही थी, यह सोच कर कि उनके लड़के ने मुझे चोद-चोद कर गर्भवती कर दिया था। वह मेरे पास आई और मेरी आंखों में देख कर इशारे से पूछा-

मम्मी: क्या ये सच है?

तो मैं शर्म से गड़ गई, और झुक कर उनके पैर छू लिये। मम्मी ने मुझे ऊपर उठाया और मेरी बलाएं लेनी लगी। फिर अपने गले लगा कर मेरा माथा चूम लिया।

मम्मी बोली’ आज से इस घर की बहू तू ही रहेगी। मेरी सारी जायदाद का मालिक मेरा पोता या पोती होगी।

कह कर मम्मी ने रजिस्ट्रेशन का कागज मेरे हाथों में पकड़ा दिया। मम्मी ने अपने सारे गहने डाल कर मेरी गोद भराई की। मैंने मम्मी के पांव छुए और बोली-

मैं: मैं आपके आशीर्वाद को अपनी कोख में लेकर जा रही हूं, और वादा करती हूं कि आप अपने पोते-पोती को अपने हाथों से खिलाएगी।

पर मुझे डर लग रहा था कि कहीं किसी को पता ना चल जाये। और कबीर के बच्चों को मम्मी कैसे खिलाएंगी। मेरे जाने के दिन कबीर मुझे पकड़ कर बहुत रो रहा था। मैंने उसको संमभाला और कहा-

मैं: मैं जल्दी ही आउंगी।

मुझे क्या पता था कि मेरा कहना सच हो जायेगा?‌ पर होनी को कौन टाल सकता है? जब मैं ससुराल जाने लगी तो सबसे ज्यादा मम्मी रोइ थी, और मेरे कान में बोली हमे भूल ना जाना। पर मैं मजबूर थी। जब मैं ससुराल पहुंची तो एक खबर मेरा इंतज़ार कर रही थी। मेरे पति और उनका एक साथी ट्रेन दुर्घटना में मारे गए थे।

ससुराल वालों ने मुझे मनहूस बता कर वापस भेज दिया। मेरा तो सब कुछ लुट गया था। पेट में बच्चा था सो अलग। एक महीने बाद मम्मी मेरे घर आई और मां से मेरी और कबीर की शादी की बात कर रही थी। रात को पापा आये तो मां ने उनसे बात की। पापा भी मान गए। मां ने मुझे कबीर के साथ शादी के लिये कहा। मैं तो तैयार थी,‌ पर उदास सी बोली “जैसी आपकी मर्जी”।

एक मंदिर में सादे रीत रिवाज से हमारी शादी हो गई। मम्मी मुझे मन्दिर से ही अपने घर ले गई, और सारी चाबियां मुझे देकर मेरा गाल चूम लिया। मम्मी मेरा बड़ा ध्यान रखती थी। क्यों ना रखे, मैं उन्हें दादी जो बनाने वाली हूं। दोस्तों ठीक 9 महीने बाद मेरे जुड़वा बच्चे पैदा हुए। एक की शक्ल कबीर से, तो दूसरे की मुझसे मिल रही थी।

ये दोनों फूल मेरी और कबीर के मेहनत का फल है। और इसमें मम्मी का बहुत बड़ा हाथ है, हम दोनों के मिलन में। आज भी मैं कभी उन फूल से बच्चों को तो कभी अपने हाथों में कंगन को देख रही थी। और सोच रही थी कंगन ना होता तो मम्मी दादी भी ना बनती।

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