हादसा-14 (Haadsa-14)

पिछला भाग पढ़े:- हादसा-13

मेरी चुदाई की कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा, शादी के बाद राजेश्वर जी मेरी ताबातोड़ चुदाई कर रहे थे। अब आगे-

मेरा मुंह उनके वीर्य से भर गया। मैं तो हैरान थी कि एक आदमी इतनी बर झड़ने के बाद भी इतना माल कैसे छोड़ सकता था? राजेश्वर जी अपना पूरा लंड झड़ने के बाद भी मेरे मुंह में भरे हुए थे, जिसकी वजह से मुझे सांस लेने में तकलीफ होने लगी। मैं उनके लंड को अपने मुंह से बाहर निकलने की कोशिश करने लगी।

जब मैं बहुत झटपटाने लगी, तब कहीं जा कर राजेश्वर जी ने अपना लंड बाहर निकाला। उनका लंड बाहर निकलते ही मैं जोर-जोर से खांसने लगी, और लंबी-लंबी सांस लेने लगी। उनका वीर्य मेरे मुंह में से बाहर निकल कर मेरे मम्मों पर गिर गया।

मैं (गुस्से से): ये क्या था! आपने तो मेरी जान ही लेली थी।

राजेश्वर जी हसने लगे और बोले-

राजेश्वर जी: सॉरी मेरी जान, क्या करूं जब तुम मेरे लंड पर ऐसे छटपटाने लगी, तो मुझे बहुत मजा आया।

मैं: आपको मजा आया और मेरी जान निकल गई उसका क्या?

राजेश्वर जी: अरे बाबा बोला ना सॉरी। फिर कभी ऐसा नहीं होगा।

हम दोनों कुछ देर बाद उठ गए, और मैं नाश्ता बनाने के तैयारी में लग गई। राजेश्वर जी सोफे पर बैठ कर मेरे नंगे बदन को निहार रहे थे। मैंने उन्हें मुझे घूरते हुए देखा।

मैं: क्या मुझे पहली बार ऐसे देख रहे हैं आप?

राजेश्वर जी: अरे नहीं दिव्या, मैं तो तुम्हें ऐसे नंगे बदन नाश्ता बनाते देख थोड़ा उत्तेजित हो गया।

मैं: तो आईये अपनी उत्तेजना दूर करने।

राजेश्वर जी उठ कर किचन में आने ही वाले थे कि मेरा फ़ोन बजने लगा। मैंने देखा तो मेरे पति का फ़ोन आया था।

मैंने फोन उठाया और उनसे बाते करने लगी।

मैं: हैलो जान! कैसे हो?

शेखर: हैलो! मैं बढ़िया हूं। मेरी याद आती भी है कि नहीं?

मैं: याद आती है जान, लेकिन राजेश्वर जी है तो समय कट जाता है।

शेखर: अरे वाह! बहुत अच्छा हुआ राजेश्वर जी तुम्हारे साथ है। वरना अकेली बोर हो जाती।

मैं शेखर से बातें कर ही रही थी कि मुझे मेरी पीठ पर कुछ महसूस हुआ। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो राजेश्वर जी मेरी पीठ पर अपना हाथ सहला रहे थे। मेरी डर के मारे धड़कन बढ़ने लगी, ये सोच कर कि अब ये क्या करने की सोच रहे थे?

शेखर: हैलो दिव्या? शांत क्यों हो गई?

मैं: अरे वो कुछ नहीं, अभी नाश्ता बना रही थी, तो उसमें ध्यान था। तुम बोलो काम कैसा चल रहा है?

राजेश्वर जी अब पीछे से मेरी गांड को सहला और दबा रहे थे। मैं भी अब धीरे-धीरे फिर से उत्तेजित हो रही थी। मेरे पति फोन पर काम के बारे में कुछ बता रहे थे। लेकिन मेरा उस पर कुछ ध्यान नहीं था। मैं बीच-बीच में हां और अच्छा बोल रही थी।

फिर राजेश्वर जी ने मेरे मम्मों को दबाना शुरू कर दिया। पहले वो धीरे-धीरे दबा रहे थे। फिर उन्होंने जोर-जोर से मेरे मम्मों को दबाना शुरू कर दिया। मेरी सांसे अब तेज हो गई, और मेरी चूत में तो मानो आग सी लग गई।

शेखर: दिव्या तुम ठीक तो हो ना? तुम्हारी सांसे क्यों इतनी तेज हो गई?

मैं थोड़ी डर गई

मैं: कुछ नहीं डार्लिंग, किचन में हूं तो गर्मी लग रही है। इसी वजह से सांस फूल रही है।

मेरे चूत की हालत अब खराब हो गई थी। मेरी चूत राजेश्वर जी के लंड के लिए तड़प रही थी। राजेश्वर जी मुझे छेड़े जा रहे थे। कभी वो मेरे मम्मों को मसलते, कभी गांड पर अपना लंड रगड़ते, तो कभी मेरी गर्दन को चूमते थे।

एक तरफ मैं अपने पति से फोन पर बात कर रही थी, और दूसरी तरफ मेरे दूसरे पति यानी राजेश्वर जी मुझे चोदने की फिराक में थे। यह सोच कर मुझे बहुत मजा आ रहा था।

(मैं पति से फोन पर बात करते हुए)

मैं: जानू‌ वहां सब ठीक तो है ना? खाना-पीना अच्छे से हो रहा है ना?

शेखर: हां दिव्या तुम चिंता मत करो।

मैं: मैं तो बस…।

मैं फोन पर बोल ही रही थी कि राजेश्वर जी अपना लंड मेरी चूत पर रगड़ने लगे। मेरी चूत तो पानी-पानी हो गई।

शेखर: बस क्या? आगे बोलो।

मैं: कुछ नहीं बस तुम्हारी फिकर हो रही थी।

राजेश्वर जी ने अब अचानक से अपना लंड जोर के धक्के के साथ मेरी चूत में घुसा दिया। मेरी जोर से चीख निकल गई आह!

शेखर: क्या हुआ दिव्या?

मैं: कुछ नहीं आपसे बाद में बात करती हूं।

और मैंने फोन कट कर दिया। मेरे फोन रखते ही राजेश्वर जी ने मुझे चोदना शुरू कर दिया। मैं किचन के काउंटर को पकड़े झुक कर उनसे चुद रही थी। पता नहीं राजेश्वर जी को क्या हुआ था, वो मुझे दना दन चोदे जा रहे थे। वैसे भी वो शॉट जोर-जोर से ही मरते थे। मगर इस बार कुछ अलग ही जुनून चढ़ा था।

मैं: आह आह राजेश्वर जी, मैं कहीं भागने वाली नहीं हूं। थोड़ा आराम से चोदिए। व

मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी, कि राजेश्वर जी ने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया, और मुझे खड़ा कर दिया, और अपने बदन से चिपका कर चोदे जा रहे थे। मैं अब खड़ी-खड़ी चुद रही थी। मेरा पर शरीर ढीला पढ़ चुका था। मैंने आज पूरे दिन बिना आराम किये चुदाई कर-कर के मेरे शरीर में अब जान नहीं बची थी, और राजेश्वर जी ने दी हुई गोली का असर भी खतम हो गया था।

मैं यहीं सोच में पड़ गई कि राजेश्वर जी अभी कैसे नहीं थके। बल्कि अभी तो मुझे अपनी पूरी ताकत के साथ चोद रहे थे। मुझे राजेश्वर जी ऐसे ही खड़े-खड़े 10 मिनट तक पूरी ताकत के साथ चोद रहे थे। फिर उन्होंने अपना लंड मेरी चूत से निकाला और मुझे छोड़ दिया। मेरे शरीर में अब खड़े होने की भी जान नहीं बची थी। मैं किचन के काउंटर को पकड़ कर उसके सहारे जैसे-तैसे अपने आप को संभाल पा रही थी।

मुझे लगा राजेश्वर जी का अब झड़ने वाला होगा, लेकिन मैं गलत थी। राजेश्वर जी ने मुझे काउंटर पर चढ़ने बोला, लेकिन मेरी हालत बहुत खराब थी। राजेश्वर जी समझ गए उन्होंने मुझे किसी गुड़िया के तरह उठाया, और किचन काउंटर पर बिठाया। राजेश्वर जी अब मेरी चूत में फिर से लंड डालने के लिए रेडी थे।

मैं: प्लीज़ इस बार आराम से करिये।

राजेश्वर जी (गुस्से में): में तेरा पति हूं। अब से तेरी ऐसे ही चुदाई होगी हर बार।

मैं ये सुन कर हैरान हो गई कि ऐसे रोज चुदाई हुई तो मेरी चूत का भोंसड़ा बन जाएगा। मैं कुछ और कह पाती इससे पहले ही उन्होंने अपना लंड फिर से मेरी चूत में एक जोरदार झटके के साथ घुसेड़ दिया। उसके बाद जो उन्होंने मेरी ताबड़तोड़ चुदाई की। मेरे तो होश उड़ गए। चूत पानी छोड़-छोड़ के और ऐसे चुदाई से टमाटर जैसे लाल हो गई थी, और सूजन से फूल चुकी थी। मेरे पैरों ने तो जान ही छोड़ दी थी, और दिमाग में बस राजेश्वर जी की चुदाई का नशा चढ़ गया था।

राजेश्वर जी बिना रुके बस मुझे चोदे जा रहे थे। उन्होंने थोड़ी सी भी रफ्तार कम नहीं की। ऐसा करीब पूरे 40 मिनट तक चला। मैं तो पूरी लाल हो गई थी, और सोच रही थी कि ना जाने कब यह चुदाई खतम होगी। फिर और पांच मिनट बाद राजेश्वर जी ने आखरी 4-5 झटके मारे, और मेरी चूत को फिर से अपना पानी पिलाने लगे। हम दोनों हाफ रहे थे, और एक-दूसरे की आंखों में देख रहे थे।

5 मिनट हम दोनों एक-दूसरे के आंखों में खो गए थे। राजेश्वर जी अब भी अपना लंड मेरी चूत में डाले ही खड़े थे। मैं कुछ महसूस किया मेरे दिल में मानो मेरा दिल राजेश्वर जी को देख जोर से धड़क रहा था। मैं झट से बोल पड़ी-

मैं: राजेश्वर जी मैं आपसे प्यार करती हूं।

राजेश्वर जी थोड़े चौंक गए लेकिन उन्होंने कुछ कहा नहीं। बल्कि मेरी और झुके और मेरे होठों को चूमने लगे, और बोले-

राजेश्वर जी: में भी तुमसे प्यार करता हूं दिव्या।

मैंने राजेश्वर जी को गले लगाया और रोने लगी। अब हम दोनों को एहसास हो चुका था कि हम दोनों के बीच का ये रिश्ता अब वाकई में एक-दूसरे के दिल से जुड़ गया था।

इसके बाद के दिन हमने कैसे बिताए, और क्या नया मोड़ आया जानिए अगले भाग में। मेरी हिंदी चुदाई कहानी के बारे में अपने विचार ज़रूर सांझे करें।

 

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