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खानदानी कंगन-1 (Khaandani Kangan-1)

नमस्ते दोस्तों, मैं राशी आपको अपने जीवन की रहस्य की बात बताने जा रही हूं। कि कैसे मैं अपने दोस्त कबीर के दो जुड़वा बच्चों की मां बनी, और उसकी मम्मी को दादी बनाया। जब कि मेरी शादी कहीं और हो चुकी थी।

मैं अपने बारे में आपको बता दूं कि मैं बहुत ज्यादा सुंदर नहीं थी। मेरा चेहरा भोला भाला सा था। मेरा फिगर बहुत मस्त है 38-32-38। दोस्तों जब कोई मेरे मस्त उरोजो को अपने हाथों से मसलते हुए मेरे निप्पलों को होंठों से चूसता है, तो मैं आसमान में उड़ने लगती हूं। चूसे मेरे निपल्स जाते हैं,‌और पानी की धार चूत से निकलती है। अब कहानी पर आते हैं-

हम एक ही कॉलेज में पढ़ते थे, और हम दोनों एक-दूसरे से बहुत प्रेम करते थे, लेकिन कभी कह नहीं पाए। हम एक-दूसरे के घर भी जाते थे। कबीर की मां मुझे अपनी बेटी की तरह चाहती थी, और मुझमें अपनी बहू देखती थी। मुझे देख कर वो बहुत खुश होती थी।

पर होनी को कुछ और लिखा था। मेरे घर वालो ने मेरी शादी कर दी। मैंने बहुत कुछ कहा, पर कोई नहीं माना। मैं बहुत रोई, पर किसी का भी दिल नहीं पसीजा। तो जब मेरे फेरे हो रहे थे तो मैंने कसम खाई कि एक दिन आएगा जब मैं कबीर के साथ सुहागरात मनाऊंगी।

ससुराल में सब मुझे बहुत प्यार करते थे। पर मुझे कबीर की याद बहुत आती थी। मुझ पर कबीर का नशा चढ़ गया था। एक बार में रहने के लिए अपने घर आई। मुझे दो महीने तक रहना था। मेरे आने की खबर पा कर कबीर की मम्मी मुझसे मिलने आई, और मुझे गले लगा कर रोने लगी। मैं भी रोने लगी।

मुझे ऐसे लगा जैसे मेरी सास ने गले से लगा लिया हो। असल में मैं भी उनको मम्मी ही बुलाती थी। कुछ देर बाद जब वो जाने लगी, तो मुझे अपने घर आने के लिए कहा। मैंने उनको कल के लिए कह दिया। पर उसी रात मेरे पीरियड शुरू हो गया और मैं ना जा पाई।

खैर 5 दिन बाद जब मेरे पीरियड खत्म हो गये, तो मैं उनके घर गई। मम्मी ने दरवाजा खोला, और मुझे देख कर मेरा माथा चूम कर मुझे गले से लगा लिया। मैंने उनको देर से आने के बारे में सब कुछ बता दिया। वो मुझे कबीर के साथ छोड़ कर चली गई।

मैंने कबीर को देखा और मैं रो पड़ी। कबीर ने मुझे अपने गले से लगा लिया। मेरी चूचियां कबीर के सीने में कस के दब रही थी। वो मुझे चूमते हुए रोने लगा। मैंने उसको बहुत समझाया कि वो मुझे भूल कर जिंदगी में आगे बढ़े, पर वो कुछ सुनने को तैयार नहीं हो रहा था।

उसने कहा: इस घर में एक ही बहु आएगी, और वह होगी राशि। अगर तुम रोज मुझसे मिलने आओ, तो शायद मेरे मन को शांति मिल सकती है।

तभी मम्मी ने आकर चाय दी।

मैंने कहा: क्या मम्मी, मेरे होते आपने चाय बनाई! जाओ मैं नहीं पियूंगी।

मम्मी ने प्यार से मेरे चेहरे को हाथों में लेकर कहा: ठीक है, अब से तू जब तक यहां है, मुझे रोज आकर चाय पिलाना।

मैंने कहा: पर मम्मी मैं रोज कैसे आ सकती हूं?

तो मम्मी ने कहा: वो सब मुझ पर छोड़ दें।

मैंने उस दिन मम्मी को कोई काम नहीं करने दिया, और कबीर का कमरा भी साफ-सुथरा कर दिया। मैं ऐसे हुकुम चला रही थी, जैसे मैं उस घर की बहु थी। दोनों मुझे पाके बहुत खुश लग रहे थे।

मैं शाम को अपने घर आ गई। शाम को मम्मी मेरे घर आई और मेरे मां से बोली: मुझे थोड़े दिन राशि की मदद चाहिए। क्या वो कुछ दिन दोपहर को मेरे घर आ सकती है?

तो मां ने हां कर दी। अब मैं रोज 12 से 5 बजे तक कबीर के घर चली जाती। मेरे आने के बाद थोड़ी देर में मम्मी कोई बहाना बना कर 2 घंटे के लिए चली जाती थी। पीछे से मैं और कबीर खूब बातें करते। वो मेरी गोद में सर रख लेटा रहता था, और मैं उसका सर सहलाती रहती। कभी-कभी हम किस्स भी कर लेते और कबीर मेरी चूचियां दबा देता। पर इससे ज्यादा कुछ नहीं होता।

कबीर भी अब संभलने लगा था। ऐसे ही 7 दिन हो गए। अगले दिन जब मैं कबीर के घर पहुंची, तो मम्मी मेरे पास आई और मुझे एक कंगन दिया। मैंने मना किया तो रोने लगी कि मैंने बड़े शौंक से अपनी बहू के लिए लिया था और मैं तुझे अपनी बहू मान चुकी हूं। और मेरे साथ जबरदस्ती करके मुझे कंगन दे दिया। मैंने उनका मन रखने के लिए कंगन ले लिया, और झुक कर उनके पांव छू लिये, जैसे कोई बहु अपनी सास के पांव छूती है।

मम्मी ने मुझे अपने गले लगा कर मेरे कान में कहा: राशी मेरे कबीर का ध्यान रखना। उसको संभाल लो, नहीं तो टूट जाएगा।

कह कर वो रोज की तरह चली गई। मैं उनकी बात का मतलब ना समझ पाई, और कबीर के पास आ गई, और बातें करने लगे।

कबीर ने कहा: जानती हो राशी, जो कंगन मम्मी ने दिया है, वो हमारा खानदानी कंगन है. और वो किसको देते हैं?

मैं: किसको?

कबीर: वो कंगन सास अपनी बहू को देती हैं, और बदले में चाहती है कि उसकी बहु उसे दादी बनाये।

मैं सन्न रह गई और मुझे याद आया कि ससुराल में मेरी सास ने भी कुछ ऐसा ही किया था।

मैंने कहा: मैं कैसे बना सकती हूं? मेरी शादी हो चुकी है।

ये कह कर मैं उस दिन मम्मी के आने से पहले ही कंगन कबीर को देकर अपने घर आ गई। शाम को मेरे पास मम्मी का फोन आया और वो रोते हुए मुझे मनाने लगी।

वो बोली: कबीर बहुत रो रहा है। प्लीज़ उसे माफ कर दो।

पर मैंने फोन काट दिया और फोन बंद कर दिया। मैं सोच में पड़ गई कि मैं क्या करूं? मम्मी ने ऐसा क्यों सोचा? फिर कबीर का ध्यान आया और उस पर दया आई। मुझे मेरी कसम भी याद आई। कबीर के लिए मेरा प्यार और चाहत भी याद आई। मुझे लगा मेरे लिए यही मौका था, और मैं कबीर से चुदने का मज़ा ले सकती थी। मैंने सोचा मैं तो चुदाई के मज़े ले रही थी, और कबीर तरस रहा है। मुझे बच्चा तो पैदा करना ही है, तो मैं अपने प्यार से क्यों ना करूं?

किसी को क्या पता चलता था। मम्मी का भी मन रह जायेगा। कबीर को भी चुदाई का सुख मिल जायेगा। पीरियड के बाद मेरा ऐसा टाइम चल रहा था, कि एक बार चुदने से ही गर्भ रह जाये। जब कि कबीर का तो कई सालों से वीर्य जमा हुआ था। मैंने मम्मी के फोन पर कुछ मेसेज छोड़ दिये, जिसमें लिखा था कि-

मैं: मेरी तो शादी हो चुकी है, तो फिर मैं आपको दादी कैसे बना सकती हूं?

तो मम्मी ने लिखा: तू बच्चा चाहे जिससे पैदा करे। मैं तुम्हें अपनी बहू मान चुकी हूं। तेरा बच्चा मुझे दादी ही कहेगा। काश तू कुछ दिन के ही लिए सही मेरी बहु बन सकती।

मैंने मम्मी से कहा: लोग क्या कहेंगे, शादी कही की ओर रह मायके में कही और रह रही है।

मम्मी ने कहा: बहु तू कुछ दिन के लिये मेरी बहु बन जा, और कबीर को कुछ दिन संभाल दे। तेरी शादी हो चुकी है तो तुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा।

मैं बोली: मम्मी मुझे बड़ी शरम आ रही है। कबीर क्या सोचेगा?

मम्मी: बहु मैं सब संभाल लूंगी, तू बस मान जा।

मैं: पर मम्मी मैं घर पर क्या कहूंगी?

मम्मी बोली: तू सब मुझ पर छोड़ दे। कल मेरी बहु मुझे मेरे घर पर चाहिए।

मैंने ऊपर से कहा: ओके मम्मी।

पर अंदर से मन में लड्डू फूट रहे थे, कि कल से मैं कबीर से चुदने वाली थी। मैंने रात को ही चूत के बाल और दोनों बगलों के बाल साफ कर लिए। अगले दिन सुबह मम्मी मेरी मां से बात कर रही थी कि वे अपने एक रिश्ते में जा रही थी, तो वे मुझे अपने साथ ले जाना चाहती थी। मां ने पापा से पूछ कर हां कर दी।

अगले दिन तय समय पर कबीर के घर आ गई। मम्मी ने सारी तैयारी कर रखी थी। कबीर भी तैयार था। मम्मी ने मुझे दुल्हन की तरह तैयार कर दिया, और अपने सारे गहने पहना दिया। फिर हम दोनों को घर के मंदिर में गये और हाथ जोड़ कर खड़े हो गए। मम्मी ने कबीर को मुझे सिंदूर लगाने को कहा, और फिर मंगलसूत्र पहनाने को कहा। कबीर ने सिंदूर लगा कर मंगलसूत्र पहना दिया।

फिर हम एक दिए के सात फेरे लिए, और हमने भगवान को हाथ जोड़ कर मम्मी के पांव छू कर आशीर्वाद लिया। फिर मम्मी हमें कबीर के कमरे में भेज कर मेरे कान में बोली-

मम्मी: बहु मेरे कबीर का ध्यान रखना। वो अभी अनाड़ी है। कुछ गलत हो तो संभाल लेना। मैं बाहर से ताला लगा कर जा रही हूं और 6 बजे तक आउंगी।

इतना कह कर मम्मी चली गयी। कबीर मुझे बेड पर बिठा कर कंगन ले आया। पर मैंने उसे प्यार से मना किया। वो उदास हो गया, तो मैं हंस पड़ी और बोली-

मैं: पहले मुझे इस काबिल तो बनाओ कि मैं मम्मी को अपने बच्चों की दादी बना सकूं। मैं ये कंगन अब तभी पहनूंगी जब मैं मम्मी को दादी बना दूंगी।

कबीर ने कहा: तो चलो हम उस काम लग जाते हैं।

इसके आगे की कहानी अगले पार्ट में।

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