Site icon Desi Kahani

जहान्वी शर्मा-1 (Jhanvi Sharma-1)

नमस्ते दोस्तो ये मेरी पहली कहानी हैं, जो मैं आज यहां आपके सामने प्रस्तुत करना चाहती हूं। आप सब मुझे जहान्वी जवां कह सकते है। अगर ये कहानी आपको पसन्द आए या कुछ और लगे तो मुझे मेल जरूर कीजिएगा। कहानी शुरू होने से पहले सभी लंड धारकों और चूत मल्लिकाओं से निवेदन है कि लंड हाथ में लेले और उंगलियां चूत में डाल ले।

ये कहानी 2019 की हैं। मेरा नाम जहान्वी शर्मा है। मैं कथित रूप से जयपुर से‌ हूं। मेरी उम्र 34 साल हैं। मेरा रंग गोरा है, फिगर 34D-29-39 हैं। कद 5’4″ है। वैसे तो मेरी मुन्नी उर्फ चूत का उद्घाटन काफ़ी समय पहले ही हो गया था, किन्तु ये कहानी आज उस टाइम की नहीं हैं। मेरी शादी हुए अभी 1 साल के ऊपर हो गया था। शादी के बाद तीन महीने हर पति की तरह मेरे पति ने भी मेरा खूब ख्याल रखा, चाहे सुबह किचेन में या रात को बेडरूम में। इस बात को कई सारी शादी-शुदा औरतें मानती होंगी।

मेरी शादी हुए अभी 5 महीने हो गए थे, और अभी हमारा बच्चे करने का इरादा नहीं था। क्योंकि मेरे पति की तनख्वाह केवल 55,000 ही थी। मैं भी उन्हें पैसे के मामले में तंग ना करके इतने ही पैसों में घर चलाती थी। घर का किराया, किराने का सामान, बिजली-पानी के खर्चे, और बढ़ती महंगाई ने हमारी मानों कमर तोड़ दी थी। और इस पर एक दिन हमारे मकान मालिक ने घर खाली करने की हिदायत दे दी, क्योंकि उसका बेटा-बहू अब उस मंजिल पर रहने वाले थे।

नए घर की तलाश में पसीना बहाने के बाद भी सस्ते दाम में किराए का कमरा ना मिला हमें। अंत में हमने एक 1 BHK का मकान खरीदने का फैसला किया।

कुछ कागज कम पड़ने से हमे लोन नहीं मिला तो हमने एक साहूकार से 1.5 लाख उधार ले लिए। हमें ये कर्जा 8 महीनों में चुकाना था। मगर दोस्तों हमारा बस कर्ज़ बढ़ा था, तनख्वाह नहीं।

हम ये कर्ज़ समय पर ना चुका पाए। अभी भी करीब 90,000 तक का जुगाड़ करना था। मगर उस साहूकार ने हम पर कोई रहम नहीं दिखाया। वो और उसके गुंडे हमारे घर आके हमे गाली देने लगे, और हमारा सामान मेरे जेवर उठाने लगे। वो मेरे पति को ले गए, मैं उनके साथ ही गई। वहां पहुंचने के बाद साहूकार ने हम दोनों को बताया कि हमारे सामान को बेचने के बाद भी करीब 50,000 तक उसके पैसे बच रहे थे।

दोस्तों हम उससे ना तो और समय मांग सकते थे, और ना उसे इतने पैसें दे सकते थे। ना ही हमारे पास इतने पैसे इकट्ठे थे। हमने हमारे रिश्तेदारों से मदद नहीं मांगी, वरना तानों का शिकार होना पड़ता, और बूढ़े सास-ससुर को तो हम खुद पैसे भेज रहे थे। काफी बुरी हालत में थे हम। मेरे पति कोशिश कर रहे थे कि कहीं से थोड़े और पैसे जुगाड़ हो। तब तक उन्होंने मुझे मायके जाने के लिए कहा। मगर मैंने उनकी मदद करने की आखरी कोशिश की, और मैं साहूकार के पास गई।

दोस्तों उस साहूकार का नाम था धनपत लाल मीणा। वो तकरीबन 48 साल का था। उसके बाप के पैसों से उसने अपना धंधा शुरू किया था, और लोगो को ब्याज पे बिना कागज के कर्ज़ देता था। बाद में उसके बेटों के साथ उसने पीतल की फैक्ट्री और ऐसे कई व्यापार खड़े किए। वो दिखने में थोड़ा मोटा और एक दम काला था। हाथों में सोने की अंगूठियां और गले में सोने की एक चैन। मैं उसके बंगले के साथ बने दफ्तर गई जहां वो सब को कर्जा देता था। वहा पहुंच के मैंने उससे हमारे कर्जे की बात करने के लिए समय मांगा। उसने कुछ देर बाद अपने केबिन में बुलाया। कैबिन में:-

मैं: जी नमस्ते सेठ जी।

मीणा: जी बोलिए, कैसे आना हुआ?

मैं: जी मैं नितिन शर्मा की घरवाली।

मीणा: अच्छा-अच्छा तभी सोचूं कि‌ तुझको कही तो देखा है। हां तो हो गया पैसों का इंतजाम?

मैं: उसी बारे में बात करनी थी आपसे सेठ जी। हमारे घर की हालत बहुत तंग हैं, और अगर इकट्ठे पैसे होते तो आपसे थोड़ी ना मांगते। अगर आप थोड़ी मोहोलत दें तो 3 महीने में सारा कर्जा ब्याज सहित उतार देंगे।

मीणा: देख पैसे और टाइम मैं लेनदार की हालत देख के देता हूं, और जहां तक तेरे पति की बात है, अगर मैं उसे बचे हुए 50,000 ब्याज पे चुकाने को दे भी दूं, तो कोई दूसरा मुंह उठा के हर बार टाइम मांगने आ जायेगा। अब बाजार में डर तो चाहिए ही ना धंधा चलाने के लिए। इसीलिए पैसे तो देने होंगे, या फिर कुछ और गिरवी रख दे। या तो पैसा, जमीन या जोरू।

मैं: देखो सेठ जी पैसे हमारे पास अभी तो नहीं हैं, और जमीन भी कोई ना तो पुश्तैनी, ना अभी की है। बस घर है, और वो भी आपके भरोसे ही है। रही आपके यहां नौकरी की बात तो मैं वो कर सकती हूं। मैंने B.Com. किया है, और मैं हिसाब भी अच्छा कर लेती‌ हूं। आप खाने बनाने का काम भी देदो तो में कर लूंगी। बस हमारा घर छोड़ दो।

मीणा: मेरे पास मुनीम हैं हिसाब-किताब के लिए, और नौकरानी है खाने बनाने के लिए। अगर काम करना ही हैं तो एक दूसरा काम हैं, बोल करेगी?

उसके बात करने का ढंग बदल सा गया था। उसकी आवाज़ में अलग सा रोब था, और अब वो मेरे आगे मेज़ के सहारे अपनी सोने की चेन मसलते हुए खड़ा था। मुझे अब गड़बड़ की बू आ रही थी दोस्तों। मैंने कांपती आवाज़ में पूछा,

मैं: क.. के… केस..‌ कैसा काम? म.. मैं कोई ऐसा-वैसा क.. काम वाम नहीं करूंगी सेठ जी।

सेठ मेरे मंगलसूत्र के पेंडेंट को पकड़ कर बोला-

मीणा: मेरे कंधों में बहुत अकड़न रहती हैं, मालिश करेगी रोज़ (आंख मारते हुए)?

मैं उसका इशारा समझ के भी अंजान बन के अपना मंगलसूत्र खींचते हुए बोली-

में: क.. क. क्या?

मीणा (मेरे कान के पास आके): रोज़ दिन में एक बार बिस्तर गरम करके 3 महीने में कर्जा उतरवा दे।

दोस्तों अगर मैं पहले वाली जहान्वी होती तो चुदाई की बात से मान जाती। मगर अब मेरी ग्रहस्ती थी, और मेरी पति की लाज के लिए मैंने उसे सीधे मुंह मना कर दिया। उसने मुझे सोचने का टाइम दिया और कहा कि अगर मूड बदले तो कल दिन में उसके ऑफिस आ जाऊं 12 से 3 बजे तक के लिए।

इसके आगे क्या हुआ ये आपको अगले पार्ट में पता चलेगा। कहानी की फीडबैक के लिए मेल करे jlkm21747@gmail.com पर। जल्दी लौटूंगी अगले पार्ट के साथ।

अगला भाग पढ़े:- जहान्वी शर्मा-2

Exit mobile version