पिछला भाग पढ़े:- हादसा-14
मेरी इस चुदाई कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कैसे हमने हमारे रिश्ते की शुरुआत की, और मेरे पति से फोन पर बात करने के दौरान कैसे राजेश्वर जी ने मेरे साथ मजा किया। फिर ताबड़-तोड़ चुदाई करके मेरी चूत का भोंसड़ा बनाया। अब आगे।
ऐसी जोरदार चुदाई के बाद मेरी चूत में दर्द होने लगा था, और हम दोनों का शरीर पसीने से चमक रहा था। राजेश्वर जी ने धीरे-धीरे अपना लंड मेरी चूत में से बाहर निकाला। लंड बाहर निकलते ही मेरी चूत से राजेश्वर जी के वीर्य की धार बहने लगी।
मैंने चैन कि सांस ली, कि ये चुदाई आखिरकार थम गई। मुझे ऐसी चुदाई में मजा तो बहुत आया, मगर मेरे शरीर में अब जान नहीं थी राजेश्वर जी का लंड लेने की।
मैं (आंसू पोंछते हुए): क्या राजेश्वर जी, अपने मेरी चूत फाड़ दी।
राजेश्वर जी: सॉरी दिव्या, दिव्या मुझसे रोका नहीं गया।
मैं: ठीक है, कोई बात नहीं। मै़ आपकी पत्नी हूं और मैंने आपको वादा किया था जब चाहो चोद सकते हो।
मुझे लगा राजेश्वर जी का अब मन भर गया होगा। लेकिन ये दिन मेरे लिए बहुत लंबा होने वाला था। मैंने मुझे उठाने के लिए राजेश्वर जी के आगे हाथ बढ़ाया, ताकि उनके सहारे मैं खड़ी हो सकूं। मगर राजेश्वर जी ने ऐसी बात बोल दी कि मेरे होश उड़ा दिए।
राजेश्वर जी: कहां जा रही हो? अभी तक चुदाई खतम नहीं हुई है।
मैं ये सुन कर दंग रह गई। राजेश्वर जी इंसान है या जानवर? कोई कैसे इतनी चोदने की क्षमता रख सकता है?
मैं: आप मजाक कर रहे है? आपने मेरी चूत फाड़ दी है। मेरे शरीर में अब खड़े होने की जान नहीं है, और आपको मुझे और चोदना है?
राजेश्वर जी ये सुन कर थोड़े मायूस हो गए। मुझे उनको ऐसा देख बहुत बुरा लग रहा था। आखिर मैंने ही बड़े ताव में आकर उनको मुझे आज दिन भर चुदाई का सपना दिखाया था। मैं आगे कुछ बोलने वाली थी मगर उतने में ही राजेश्वर जी ने कहा।
राजेश्वर जी: दिव्या माफ कर दो। मगर, चाहे कुछ भी हो जाए, आज मैं तुम्हें मेरी पूरी ताकत के साथ ही चोदने वाला हूं।
मैं थोड़ी शॉक में थी। आखिर ऐसा क्या हो गया जो इतना चुदाई का जुनून इनके सर चढ़ गया? लेकिन राजेश्वर जी ने आगे जो बोला, उससे मुझे बहुत बुरा लगा।
राजेश्वर जी: आखिर अपना पति-पत्नी का रिश्ता तो नाम का है ना, तुम भला क्यों मेरा हर कहना मानोगी?
मैं: ऐसे मत बोलिये। मैंने अभी आपसे कहा के मुझे आपसे प्यार है।
राजेश्वर जी: छोड़ो दिव्या जाने दो।
ये कह कर राजेश्वर जी निराश होकर मुड़ने लग। मुझे बहुत बुरा लगा और मैंने अपने प्यार को सच्चा साबित करने के लिए उनको रोक दिया और कहा-
मैं: रुकिए… आपके पास वोह चुदाई वाली गोली है ना? वो लादो प्लीज़।
राजेश्वर जी ने वो गोली का पैकेट और पानी लाकर मेरे सामने रख दिया। मैंने तुरंत उस पैकेट में से चार गोलियां खा ली।
राजेश्वर जी ने मुझे कहा: इतनी गोलियां मत खाओ एक साथ।
मगर मैंने अपने प्यार को साबित करने की ठान ली थी। मेरा शरीर अब भी ढीला था। मेरे टांगों में अभी जान नहीं थी, मगर मेरे दिमाग में जल्दी ही कामुकता से भरे खयाल आने लगे और चूत फिर से गीली होने लगी। कुछ ही पल में मेरी चूत का दर्द आनंद में बदल गया।
मेरा बदन अब धीरे-धीरे झटपटाने लगा। मैं आँखें बंद कर काउंटर पर लेट के मेरे निप्पल दबाने लगी, और फिर मेरे मुंह से लार टपकने लगी। गोली का नशा अब मेरे दिमाग में पूरी तरह से हावी हो चुका था। मेरे शरीर पूरी तरह थकने के बावजूद मुझे अब चुदाई करनी थी।
राजेश्वर जी ये सारा नजारा देख दंग रह गए थे। वो समझ गए कि मैं चुदाई के लिए फिरसे रेडी थ। वो बिना कोई समय गवाए मेरे पास आए, और मेरी चूत को चाटने लगे।
मैं मजे से सिसकियां ले रही थी अह्ह… आह्ह… फिर राजेश्वर जी अपना लंड मेरी चूत में डालने ही वाले थे कि मैंने उन्हें रोक दिया।
मैं: नहीं जान, चूत नहीं। अभी गांड मारो मेरी।
ये कह कर मैं मुस्कुराने लगी।
राजेश्वर जी: सोच लो, तेरी गांड का भरता बना दूंगा मैं।
मैं: सोच लिया, आज से मेरा सारा बदन आपके हवाले। चीर के रख दो मेरी गांड को।
राजेश्वर जी ने तेल की बॉटल ली, और ढेर सारा तेल मेरी गांड पर डाल दिया, और अपने लंड को भी तेल से लथ-पथ कर दिया। राजेश्वर जी ने लंड मेरी गांड पर सेट किया, और एक जोर के धक्के के साथ पूरा लंड एक ही बार में मेरी गांड में घुसेड़ दिया। ली हुई गोलियों के वजह से मुझे दर्द नहीं हुआ, बल्कि और मजा आने लगा।
लंड अंदर जाते ही मेरी चूत ने पानी की पिचकारी छोड़ दी, जो सीधा राजेश्वर जी के मुंह पर जाके लगी। राजेश्वर जी अब पहले के जैसे ही मुझे अपनी पूरी ताकत के साथ चोद रहे थे। मेरी गांड में उनका लंड बड़ी तेजी से और जोर से अंदर-बाहर हो रहा था। मैं हर दो मिनट में झड़ रही थी। राजेश्वर जी रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उन्होंने ने मुझे अपनी गोदी में उठाया, और दनादन मेरी गांड चोदने लगे। मैं बस इस चुदाई के आंनद से चीख रही थी आहह.. आह्ह…
मैं: चोदो, और जोर से गांड को फाड़ कर रख दो। अपनी रंडी बना कर रख दो।
राजेश्वर जी (मुझे चोदते हुए बोले): हां मेरी जान, तुझे ऐसा चोदूंगा कि मेरे लंड के आगे कुछ सोच नहीं पाओगी।
राजेश्वर जी ऐसे ही मुझे गोद में लिए खड़े-खड़े 10 मिनट तक चोदते रहे। फिर उन्होंने मुझे किचन के फ्लोर पर मुंह के बल लिटा दिया, और मेरी गांड चोदने लगे। लेटे होने की वजह से उनका लंड मेरी गांड में और भी अंदर जा रहा था, और वो मुझे अपने पूरे शरीर के भार के साथ चोद रहे थे। मैं तो मानो उनके शरीर के नीचे कुचली जा रही थी। मुझे ऐसे और भी मजा आ रहा था।
करीब 2 घंटे की नॉन-स्टॉप गांड चुदाई के बाद राजेश्वर जी मेरी गांड में झड़ गए। मेरी गांड का छेद तो मानो फट गया था। राजेश्वर जी के लंड निकालने के बावजूद वो खुला का खुला था। राजेश्वर जी अब चुदाई करके थक गए थे, और गोलियां भी खतम हो गई थी। लेकिन मुझ पर अब भी चुदाई का भूत सवार था।
मैं: और चोदो प्लीज़, मैं हाथ जोड़ती हूं। आप जो बोलोगे में वो करूंगी, मगर मुझे और चोदो।
राजेश्वर जी: मेरा हो गया दिव्या, और ताकत नहीं बची।
मुझे ये सुन कर बहुत गुस्सा आया। कि मैंने इनके लिए इतनी चुदाई सही, और अब जब मेरी बारी आई तो मुझे ऐसे ही छोड़ रहे थे।
मैं: अब क्यों? मन भर गया? जब चोदना था तो गिड़गिड़ा रहे थे।
राजेश्वर जी: देखो तुम पर गोलियों का असर ज्यादा हो गया है।
मैं: मुझ पर कुछ असर नहीं हुआ है। आपको मेरे उपर प्यार नहीं है।
मैं ये कह कर जैसे-तैसे उठने की कोशिश करने लगी। बड़ी मुश्किल से मैं खड़ी हो पाई, और धीरे-धीरे फ्रिज की ओर बढ़ने लगी। मेरी टांगे लड़खड़ा रही थी, और चूत में अब भी आग लगी थी। दिमाग में अभी भी चुदाई के खयाल चल रहे थे।
मैं फ्रिज के पास पहुंच गई, और फ्रिज में से एक बड़ा खीरा लिया। वो लगभग राजेश्वर जी के लंड जितना ही होगा। मैं नीचे बैठ कर उस खीरे को मेरी चूत में डाल कर खुद को चोदने लगी। मुझे ऐसा करके बहुत मजा आ रहा था। राजेश्वर जी ये सब चुप-चाप देख रहे थे।
मैं खीरे को कभी चूत में डालती, तो कभी मेरी गांड में। ऐसे ही करीब आधे घंटे तक खुद को चोदने के बाद में ऐसी झड़ी, कि मैं जोर-जोर से कांपने लगी, और मेरी चूत का इतना बुरा हाल हो गया था कि मेरा पेशाब निकल गया। मेरा शरीर भी अब पूरी तरह से जवाब दे चुका था।
मेरी आँखों के सामने अंधेरा छा गया और मैं बेहोश हो गई। जब आँखें खुली, तो सुबह हो गई थी। मैं उठने की कोशिश कर रही थी, मगर मेरा पूरा बदन दर्द कर रहा था। बहुत कोशिश के बाद मैं बेड पर से उठ कर खड़ी हो गई। मेरी चूत और गांड दोनों बहुत दर्द कर रहे थे। मैंने आईने में देखा तो मेरी चूत लाल और फूली ही थी।
मैं अब भी नंगी ही थी। मैं धीरे-धीरे चल कर बाहर आ गई। बाहर राजेश्वर जी लिविंग रूम में सोफे पर बैठे हुए थे। मुझे बाहर देख वो बोले-
राजेश्वर जी: उठ गई दिव्या, तबियत कैसी है?
मैं: पूरा बदन दर्द कर रहा है। चूत और गांड दोनों तो मानो फट गई है, और सिर दर्द भी कर रहा है।
राजेश्वर जी: कल क्या हुआ याद है या भूल गई?
मैं: याद है बाबा, सब याद है।
मैं धीरे से आगे बढ़ने लगी। हर कदम पर मेरी चूत में दर्द हो रहा था। मैं बस कुछ कदम ही आगे बड़ी थी, कि मुझे उल्टी जैसे होने लगा। राजेश्वर जी समझ गए, और वो तुरंत मेरी तरफ आए, और मुझे गोद में उठा कर बाथरूम ले गए।
बाथरूम में जा कर मुझे नीचे रखते ही मैंने कमोड में उल्टी करना शुरू कर दिया। उल्टी करके थोड़ा हल्का एहसास हुआ और थोड़ा अच्छा लगा। मैंने उल्टी फ्लश कर दी और कमोड पर पेशाब करने बैठ गई। मैंने देखा कि राजेश्वर जी अभी भी वहीं खड़े होकर मुझे देख रहे थे।
मैं: यहां क्यों खड़े हो? मुझे पेशाब करने दो, जाओ।
राजेश्वर जी: क्यों जाऊं? कल तो तुम गोली खाने के बाद एक-दम चुदक्कड़ बन गई थी, और मेरे सामने ही किचन में पेशाब करके बेहोश हो गई थी।
मैं: अरे वोह गोलियों का असर हो गया था। मैं दिल से माफी मांगती हूं।
राजेश्वर जी हसने लगे और बोले-
राजेश्वर जी: माफी मत मांगो। मुझे तुम्हारा वो रूप अच्छा लगा। तुम ऐसे ही बेफिक्र होकर मुझसे चुदाई करो।
मैंने राहत की सांस ली। राजेश्वर जी तो जाने का नाम नहीं ले रहे थे, तो मैंने भी सोचा “वैसे भी ये मेरे पति है, इनके सामने पेशाब करने में कैसी शर्म?” मैं पेशाब करने लगी, और मुझे पेशाब करता देख राजेश्वर जी अपना लंड निकाल कर मेरे सामने हिलाने लगे। मैं ये देख कर दंग रह गई, और डर गई कि फिर ये मेरी चूत ना मार दे।
मैं: छी! ये क्या कर रहे हो? प्लीज़ अभी मत चोदना।
राजेश्वर जी: मेरा लंड पहली बार देखा है? डर मत चोदूंगा नहीं। कल की चुदाई से मेरी कमर में थोड़ा दर्द है।
मैं ये सुन कर थोड़ी खुश हुई, कि अब और नहीं चुदना था। मेरा पेशाब करके हो गया और मैं कमोड पर से उठ गई। राजेश्वर जी का हाथ पकड़ कर मैंने अपने आप को संभाल लिया। अब मैं राजेश्वर जी को पकड़ के धीरे-धीरे शॉवर की ओर बढ़ने लगी। शॉवर में जाकर मैंने नल चालू किया, और शॉवर के नीचे गरम पानी में खड़ी हो गई।
गरम पानी मेरे शरीर पर पढ़ने से मुझे सुकून मिला। बदन में दर्द भी थोड़ा कम हुआ। मैंने देखा राजेश्वर जी बाथरूम में खड़े होकर मेरा नंगा बदन घूर रहे थे, और अपना लंड हिला रहे थे। मुझे उन्हें ऐसा देख बोहोत अच्छा लगा। मैंने उन्हें इशारे से मेरे साथ नहाने के लिए बुलाया। राजेश्वर जी अपने कपड़े उतार कर मेरे साथ शॉवर में आ गए।
राजेश्वर जी ने साबुन लिया और मेरे बदन पर रगड़ना शुरू कर दिया। मुझमें खड़े होने की ताकत नहीं बची थी, तो मैं नीचे बैठ गई। राजेश्वर जी भी मेरे साथ नीचे बैठे। वो मुझे बड़े प्यार से और कोमलता से साफ कर रहे थे।
मुझे इसीलिए उनसे प्यार हो गया था, क्योंकि उन्हें पता था कब जोर लगाना है, और कब स्त्री को प्यार करना है। हम दोनों बीच-बीच में एक-दूसरे को किस्स कर रहे थे। ऐसे शॉवर करने में बहुत मजा आ रहा था। मुझे अच्छे से साफ करने के बाद राजेश्वर जी खड़े हो गए। उनका लंड मेरे चेहरे के सामने ही था। मैंने बिना कुछ सोचे उनका लंड मुह में लिया और चूसने लगी।
राजेश्वर जी: अरे ये क्या कर रही हो? तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है। आज आराम करो।
मैं: जानती हूं, मगर आपको इस हालत में छोड़ नहीं सकती। और मैं कोन सा चुदाई करने वाली हूं, बस लंड ही तो चूसना है।
मैंने दस मिनट तक राजेश्वर जी का लंड धीरे-धीरे बड़े आराम से चूसा। वह भी एक-दम संयम के साथ खड़े थे। जरा सा भी जोर नहीं लगा रहे थे। कुछ ही पल में राजेश्वर जी झड़ गए, और मेरे चेहरे पर अपना वीर्य छोड़ दिया। मेरा चेहरा उनके वीर्य से ढक गया। मैंने उठने की कोशिश की, तो राजेश्वर जी ने मुझे नीचे बैठे रहने को कहा।
राजेश्वर जी: अभी तुम्हारी शिक्षा की बारी है।
मैं: किस बात की?
राजेश्वर जी: कल तुमने किचन में पेशाब किया, वो मुझे साफ करना पड़ा।
मैं: क्या शिक्षा दोगे अब?
राजेश्वर जी: तुमने पेशाब किया तो मुझे भी पेशाब करना है।
मैं: तो करिये, रोक कौन रहा है?
राजेश्वर जी: दिव्या तुम समझी नहीं।
मैं: क्या मतलब?
राजेश्वर जी: मुझे तुम पर पेशाब करना है।
मैं ये सुन कर दंग रह गई, और घिन आने लगी।
मैं: छी! कैसी बाते कर रहे हो आप? पागल हो गए हो?
राजेश्वर जी: इसमें गलत कुछ नहीं है। जानवर अपनी चीजों पर हक जमाने के लिए पेशाब करते है। मैं भी वहीं कर रहा हूं।
मैं: जानवर और इंसानो में फरक है। ये शिक्षा नहीं चलेगी।
राजेश्वर जी: अभी क्यों घिन आ रही है? कल खुद पेशाब करने के बाद मुझे बुला कर अपने उपर मूतने तूने ही तो बोला था।
मैं: मैंने ये कब किया कल?
राजेश्वर जी ने मुझे याद करने के लिए कहा। मैंने अपने दिमाग पर जोर दिया तो मुझे याद आया जब कल मेरा मूत निकल गया था, तो मैं जोर से हंस पड़ी, और राजेश्वर जी को बुला कर उन्हें मुझ पर मूतने के लिए भी बोला, और उसके उपर उनका मूत भी पिया था।
मैं थोड़ी देर के लिए शांत हो गई, और उनकी शिक्षा को मंजूर किया। मैं आँखें बंद करके घुटनों के बल बैठी थी। राजेश्वर जी समझ गए कि में तैयार थी। उन्होंने अपने मूत की धार को मेरे चेहरे पर धीरे-धीरे छोड़ना शुरू कर दिया। मुझे शुरू के कुछ सेकंड गंदा लगा। मगर बाद में ना जाने क्यों वो गरमा-गरम मूत मेरे चेहरे पर गिरता हुआ अच्छा लग रहा था। राजेश्वर जी पूरे 30 सेकंड या शायद उससे ज्यादा मूत रहे थे, और मैं मस्त मजे में बैठी थी, और मेरे चेहरे पर हल्की मुस्कान थी। जब राजेश्वर जी का पेशाब करके हो गया तो मैंने अपनी आँखें खोल दी।
राजेश्वर जी: मजा आया ना?
मैंने मुस्कुरा कर हां में सर हिलाया, और शर्म से अपना चेहरा छुपा लिया।
मैं: चलो अब बाहर जाओ। मुझे फिर से नहाना पड़ेगा अभी।
राजेश्वर जी बाहर चले गए और मैंने फिर से जल्दी से नहा लिया। मैं बाथरूम के बाहर टॉवल लपेट कर बाहर आ गई। मेरी तबियत खराब होने के कारण हम दोनों डॉक्टर के पास गए। वहां डॉक्टर ने कुछ दवाइयां लिख कर दी। वो दिन हम दोनों ने चुदाई नहीं की। मैं आराम कर रही थी और राजेश्वर जी मेरे हाथ पैर की मालिश कर रहे थे।
अगले दिन मेरी तबियत ठीक हो गई। चूत की सुजन भी हट गई। लेकिन अब भी मेरी चूत फूली ही नज़र आ रही थी। शायद राजेश्वर जी का लंड ले-ले कर मेरी चूत का आकार ही बदल गया हो। हमने आने वाले दिनों में पहले जैसे चुदाई करना चालू किया, और अब तो मुझे राजेश्वर जी के पेशाब से नहाने में भी मजा आता था। ऐसे ही दिन बीतते गए।
हमने शॉवर से लेकर बालकनी तक, घर के हर कोने में चुदाई की। मुझे तो अब नंगी रहने की आदत सी पढ़ गई, और राजेश्वर जी के वीर्य के साथ-साथ उनका मूत पीने में भी मजा आता था, वो भी मेरा मूत बड़े मजे से पीते थे।
ऐसे ही एक हफ्ता कब गुजर गया मुझे पता भी नहीं चला, और आखिरकार पूजा का दिन आ गया। पूजा के दिन कुछ बड़ा हुआ, जिससे मेरे जिंदगी की सबसे बड़ी मुसीबत आई। वो मुसीबत आखिर क्या थी जानिए इस सेक्स कहानी के अगले भाग में।
अगला भाग पढ़े:- हादसा-16