This story is part of the Padosan bani dulhan series
एक दिन शाम को जब मैं ऑफिस से घर पहुंचा तो दरवाजा खोलते ही टीना मुझसे लिपट गयी और जोर शोर से रोने लगी। दर असल कुछ ही देर पहले टीना के पापा का फ़ोन आया की टीना के बड़े भाई का एक गंभीर एक्सीडेंट हुआ था और वह हॉस्पिटल में एडमिट थे। उनकी हालत नाजुक थी। टीना के भाई की माली हालत कोई ख़ास ठीक नहीं थी।
टीना का भाई उस समय दिल्ली से करीब ३५० किलो मीटर दूर राजस्थान में जयपुर से करीब ५० किलोमीटर दूर एक छोटे शहर में रहता था और कोई छोटीमोटी नौकरी करता था। वहाँ जाने के लिए कोई सीधी ट्रैन नहीं थी। हमारी पुरानी कार उतनी दुरी उन रास्तों पर बिना दिक्कत तय कर पाएगी उसका भरोसा मुझे नहीं था। हमने फ़ौरन तय किया की हम सराई कालेखां बस अड्डा चलेंगे और जो भी बस मिल जायेगी वह पकड़ कर टीना के भाई के पास सुबह तक पहुंचेंगे।
टीना ने सुषमा जी को यह समाचार दे दिया और कहा की हम कुछ दिनों के लिए जा रहे थे और घर की चाभी उनको दे कर जाएंगे। अगर वापस आने में देर हुई तो एकाद हफ्ते बाद घर की साफ़ सफाई करवा देना। सुषमा ने जब सेठी साहब को बताया तो फ़ौरन वह दोनों हमारे घर पहुंचे। मुझसे पूरी हकीकत समझने के बाद सेठी साहब ने मुझे पांच मिनट रुकने को कहा। सेठी साहब और सुषमा अपने फ्लैट में गए। उन्हें गए हुए मुश्किल से पंद्रह मिनट लगे होंगे की सेठी साहब वापस आ गए।
आते ही सेठी साहब ने कहा, “तुम्हें बस में जाने की कोई जरुरत नहीं है। मैं तुम्हारे साथ मेरी टोयोटा कार भेज रहा हूँ। तुम्हें कार चलाने के भी जरुरत नहीं। मैं मेरे ड्राइवर को भी तुम्हारे साथ भेज रहा हूँ। वह कार चला लेगा। तुम अपनी कार मुझे दे दो। मैं दिल्ली में ऑफिस जाने के लिए तुम्हारी कार यूज़ कर लूंगा।”
मैं कुछ आगे बोलता इसके पहले सेठी साहब ने मुझे एक तरफ ले जा कर कहा, “देखो मामला एक्सीडेंट का है। हॉस्पिटल आजकल बहुत महंगे हो गए हैं। तुम्हें कुछ रुपयों की जरुरत पड़ेगी।” सेठी साहब ने मेरे हाथ में दो हजार रुपयों के १०० नोटों का एक बंडल पकड़ा दिया और बोले, “रखलो तुम्हारे काम आएंगे।”
मुझे पता था की टीना के पिता और भाई की आर्थिक हालत कोई ख़ास ठीक नहीं थी और वह रुपये जरूर काम आएंगे। एक्सीडेंट के समाचार मिलते ही टीना ने सबसे पहले मुझे यही पूछा था की क्या हम कुछ रुपये ले कर जा सकते हैं? हमने घर में जो पचीस तीस हजार रुपये के करीब थे वह ले लिए थे। पर मैं जानता था की उससे काम नहीं चलेगा।
मैंने सेठी साहब से वह नोटों का बंडल वापस करते हुए कहा, “सेठी साहब यह मामला टीना की रिश्तेदारी का है, इसमें मैं कुछ बोल नहीं सकता। आप सीधे टीना से बात कीजिये।”
सेठी साहब ने टीना को पास बुलाया और वही बंडल टीना को पकड़ा कर बोले, “देखो टीना, मामला एक्सीडेंट का है। हॉस्पिटल आजकल बहुत महंगे हो गए हैं। तुम्हें कुछ रुपयों की जरुरत पड़ेगी। इन्हें रखलो तुम्हारे काम आएंगे। अगर जरुरत ना पड़े या बच जाए तो वापस कर देना। देखो मना मत करना।”
टीना ने मेरी और देखा। टीना की आँखों में आंसू उभर आये वह दर्शाता था की वह रुपयों की जरुरत कितनी थी। पर टीना ने रुपयों का बंडल सेठी साहब के हाथ में वापस देते हुए बोली, “यह मैं कैसे ले सकती हूँ? वैसे ही आपके हम पर बड़े एहसान हैं। मैं इन्हें ले नहीं सकती। हम लोगों ने कुछ रुपयों का इंतजाम किया है, बाकी देख लेंगे। वहाँ से भी कुछ ना कुछ इंतजाम हो जाएगा।”
सेठी साहब ने कहा, “देखो टीना जिद मत करो। अभी इसे ले लो बाद में बेशक वापस कर देना।”
टीना ने अपनी जिद पर अड़े रहते हुए कहा, “सेठी साहब मैं किस अधिकार से इन्हें लूँ? आप हमारे पडोसी हैं और पडोसी सबसे पहला और सबसे बड़ा होता है यह सच है पर आखिर हम एक दूसरे के क्या लगते हैं? आपने यह पैसे कुछ ना कुछ काम के लिए रक्खे होंगे। मैं नहीं चाहती की हमारी वजह से आपको कोई परेशानी हो। नहीं सेठी साहब मैं यह नहीं ले सकती।”
सेठी साहब ने जब यह सूना और महसूस किया की टीना ज़िद पर अड़ी हुई है और पैसे नहीं लेगी, तो एकदम भावुक हो गए। वह रुपयों का बंडल टीना से ले कर वह हमारे घर से बाहर निकलते हुए बोले, “टीना, राज मुझे माफ़ करना। टीना, में जानता हूँ की आप को मतलब आपके मायके वालों को इन पैसों की जरुरत है। मेरे पास यह रुपये रखे हुए हैं और मुझे अभी इनकी जरुरत नहीं है..
अगर ऐसे वक्त में अपने काम नहीं आये तो वह अपने कहाँ से हुए? मैंने आप दोनों का इतना करीबी और इतना अपना समझा था की टीना को तो मैं एक अधिकार से अपनी गर्ल फ्रेंड की तरह समझता था और उसको गर्ल फ्रेंड कह कर छेड़ता रहता था। पर आज मुझे पता चला की वह सब कही सुनाई बातें थी। ठीक है, अगर आप हमारे कुछ भी नहीं लगते और अगर आपको लगता है की हमारा आप पर और आपका हम पर कोई अधिकार नहीं है तो फिर तो आज से हमारा रिश्ता ख़तम..
जिस रिश्ते में अपनापन ना हो वह रिश्ता किस कामका? मैं तो वाकई में बेवकूफ था की समझ रहा था की हमारा एकदम करीब का रिश्ता है और आपका मुझ पर और मेरा आप पर एक विशेष अधिकार है। मैं सोचता था की हम एक दूसरे के सुख, दुःख, धन, प्यार सब कुछ शेयर कर सकते हैं। आज टीना ने यह पैसे लेने से मना कर यह जता दिया की हमारे रिश्ते की वाकई में कोई भी अहमियत नहीं है।”
टीना ने और मैंने देखा की इतने सख्त दिखने वाले सेठी साहब की आँखों में उस वक्त आंसू उमड़ पड़े। मैंने उससे पहले सेठी साहब को इतना भावुक होते हुए नहीं देखा था। जब सेठी साहब निराश और हताश हो कर हमारे घर से जाने लगे तो भाग कर टीना सेठी साहब के पास पहुंची। सेठी साहब से लिपट कर टीना बोली, “सेठी साहब आप क्या बात करते हैं? आप का हम पर पूरा हक़ है। मैंने आपका दिल दुखाया हो तो माफ़ करना।”
सेठी साहब के हाथ में से रुपयों का बंडल लेते हुए टीना बोली, “सेठी साहब, यह क्या कह रहे हैं आप? आगे से ऐसे शब्द मत बोलियेगा। आप का मुझ पर बल्कि हम दोनों पर पूरा हक़ है। आप मुझे गर्ल फ्रेंड कहते हैं ना? हाँ, मैं आपकी गर्ल फ्रेंड हूँ और हमेशा रहूंगी। मुझे आपकी गर्ल फ्रेंड होनेका गर्व है। आपका अधिकार है की बॉय फ्रेंड होने के नाते आप मुझसे जो चाहे जब चाहे कह सकते हैं और कर सकते हैं। पर प्लीज ऐसा मत कहिये की आपका हम पर कोई हक़ नहीं है। आपका हम पर पूरा हक़ है। मुझे मेरे कड़वे शब्दों के लिए माफ़ कर दीजिये प्लीज।”
सेठी साहब ने टीना की गीली आँखों से आंसू पोंछते हुए हंसने की कोशिश करते हुए कहा, “यह हुई ना गर्ल फ्रैंड वाली बात। चलो अब और कुछ मत बोलो और निकलो। ज्यादा पैसों की जरुरत पड़े तो मुझे फ़ोन करना। तुम्हारे या भाई साहब के अकाउंट में जमा करवा दूंगा। तुम जितने दिन रहो रहना। कार की चिंता मत करना।”
फिर सेठी साहब फिर मेरी और मुड़ कर हंस कर बोले, “जब वापस आओगे तो मैं मेरी कार ले लूंगा और तुम्हारी कार वापस कर दूंगा। तब तक तुम्हारी कार मेरे पास सिक्योरिटी के एवज में जमा रहेगी।”
सेठी साहब की बात सुन कर मेरी आँखों में से भी बरबस आंसू निकल पड़े। मैं उनके गले लग गया और बोला, “आपने तो आज हम को खरीद लिया। आप क्या बात करते हैं सेठी साहब। मेरा सब कुछ आपका ही तो है!”
करीब एक घंटे के बाद खाना खा कर हम सेठी साहब की कार में निकल पड़े। सेठी साहब के दिए हुए पैसे हॉस्पिटल का बिल चुकाने में और सेठी साहब की कार और ड्राइवर घर से हॉस्पिटल और हॉस्पिटल से दवाई इत्यादि लाने में, आने जाने में बहुत ही काम आ गए। टीना के भाई का ऑपरेशन कामयाब रहा और पांच दिन बाद हम वापस दिल्ली आ गये।
पर वापस आने पर हमारे और सेठी साहब के रिश्तों में आमूल परिवर्तन आ चुका था। आते ही टीना सुषमा के गले से लिपट गयी और रोती हुई बोली, “दीदी अगर तुमने हमारी यह ऐन मौके पर मदद नहीं की होती तो पता नहीं क्या हो जाता।”
सुषमा ने टीना को अपने से अलग कर सेठी साहब की और धकेलते हुए कहा, “शुक्रिया मेरा नहीं सेठी साहब का अदा करो। यह सब इन्हीं के कारण हुआ है। मैं तो सिर्फ उन्हीं के कहने के अनुसार कर रही थी।”
टीना मुड़कर सेठी साहब के पास गयी और सेठी साहब के हाथों को अपने हाथों में ले कर बोली, “सेठी साहब आप दोनों हमारे लिए दोस्त नहीं फ़रिश्ते साबित हुए हो। आप दोनों के कारण मेरे भाई की जान बच गयी। मैं पैसे तो चुकता कर दूंगी, पर इस एहसान का ऋण कभी चुका नहीं सकती।” उस समय मैंने मेरी बीबी की आँखों में सेठी साहब के लिए सच्चे प्यार और एहसानमंदी का इजहार देखा।
सेठी साहब के दिए हुए पैसे तो हमने चुकता कर दिए पर उस हादसे के बाद सेठी साहब से हमारी नजदीकियां तेजी से बढ़ने लगीं। जब मैं टूर पर नहीं होता था, तब करीब करीब हर हफ्ते या दो हफ्ते में एक बार, या तो हमारे घर में या उनके घरमें हम एक मूवी साथ में मिलकर जरूर देखते थे। उस दिन ड्रिंक्स और खाने का प्रोग्रम भी हो जाता था। ज्यादातर हम दोनों कपल अपनी अपनी बीबियों के साथ या तो ड्राइंग रूम में फर्श पर गद्दा बिछा कर उस पर लेट कर या तो बैडरूम में पलंग पर लेट कर मूवी देखते थे।
टीना के गाँव से वापस आने के एक या दो हफ्ते बाद एक बार ऐसे ही हम चारों मेरे घर के ड्राइंग रूम में गद्दे पर लेटे हुए थे की अचानक ही मेरे मुंह से निकल पड़ा, “सेठी साहब यार एक बात मेरी समझ में नहीं आयी। आपने इतनी कम जान पहचान में अपनी कार और इतने सारे पैसे हमें सौंप दिए, ऐसा कोई करता है क्या? आप कौनसी मिटटी से बने हो?”
मेरी बात सुन कर सेठी साहब उठ खड़े हुए। “अभी एक मिनट में आता हूँ” कह कर वह हमारे घर का दरवाजा खोल कर बाहर निकले। हम सब एक दूसरे का मुंह देखते ही रहे की सेठी साहब अपने घर से दुर्गा माँ की एक फोटो ले कर हमारे सामने उपस्थित हुए। देवी माँ की तस्वीर सामने एक स्टूल पर रख
देवी माँ को प्रणाम करते हुए सेठी साहब बोले, ” यह माँ दुर्गा हमारी कुलदेवी है। देखो भाई, मेरे लिए यह देवी माँ से कोई ज्यादा नहीं। मैं इस देवी माँ के सामने यह सौगंध खा कर कहता हूँ की आज इसी वक्त से तुम दोनों को मैं अपना क़बूल करता हूँ। इसका मतलब यह हुआ की मेरा जो भी कुछ है वह तुम्हारा है। तुम्हें उसे मांगने की जरुरत नहीं। तुम उसे बगैर मांगे ले जा सकते हो।”
हम तींनों सेठी साहब की यह बात स्तब्ध से सुनते रहे। यह अचानक सेठी साहब को क्या हो गया? कमरे में वातावरण एकदम गंभीर हो गया। माहौल को कुछ हल्का करने के लिए सेठी साहब की बात सुन कर टीना कुछ शरारती मूड में मुस्कुराती हुई बोली, “सेठी साहब, आप बगैर सोचे समझे ऐसे सौगंध मत खाओ। आप मेरे पति को नहीं जानते। वह बड़े चालू हैं। कहीं आपसे वह ऐसी चीज़ ना मांगलें जो आप दे ना पाओ।”
टीना की बात सुन कर सेठी साहब टीना की और मुड़ कर बोले, “टीना मैं जानता हूँ, तुम्हारा इशारा तुम्हारी भाभी सुषमा की और है।” फिर हलका सा हँसते हुए बोले, “भाई साहब जब चाहें सुषमा की सहमति ले कर उसे उड़ा ले जाएँ। मुझे कोई शिकायत नहीं होगी। मैं जो कह रहा हूँ उसमें सुषमा की भी सहमति है। क्यों सुषमा, क्या मैं गलत कह रहा हूँ?”
सुषमाजी यह सुन कर ताली बजाते हुए टीना का हाथ थाम कर बोली, “टीना यह बढ़िया है। तुम्हारे पति मुझे और मेरे पति तुम्हें उड़ा लेजाने का प्लान करने में लग गए। चलो ऐसे ही सही, इस बहाने में हम दोनों को हवाई जहाज में घूमने का अवसर तो मिलेगा।”
तब सेठी साहब ने कुछ गंभीर आवाज में ख़ास कर टीना की और देख कर कहा, “देखो मुझे गलत मत समझना। यह बात मैंने अपनी तरफ से कही है। मैंने यह कहा है की हमारा सब कुछ सांझा है। मतलब मेरा जो है वह तुम्हारा है। पर इसका मतलब यह नहीं की मेरी नजर में तुम्हारा सब कुछ मेरा है। यह भूल कर भी मत सोचना की मैं तुम पर या जो तुम्हारा है उस पर कोई अधिकार जमाने की कोशिश कर रहा हूँ।“
सेठी साहब की बात सुन कर टीना ने मेरी और तीखी नजर से देखा। मैं टीना का इशारा समझ गया। मैंने खड़े हो कर सेठी साहब के हाथ थाम कर माँ दुर्गा को प्रणाम किया और कहा, “क्या सेठी साहब, यह आप क्या कह रहे हो? एक तरफ आप माँ दुर्गा की कसम खा कर कहते हो की हमारा सब कुछ सांझा है, और दूसरी तरफ तेरा मेरा करते हो? देखो सेठी साहब, माँ दुर्गा की कसम खा कर मैं भी कहता हूँ की जैसा आप सोचते हैं बिलकुल वैसा ही हम भी सोचते हैं..
यह सच है की हमारे पास उतना धन नहीं जितना भगवान् ने आपको दिया है। पर मेरा और टीना आपके हैं और हमारा सब कुछ आपका है और अगर हम लोग आपके लिए कुछ भी काम आये तो उससे ज्यादा ख़ुशी हमें और कुछ नहीं होगी। टीना पर आप का भी उतना ही हक़ है जितना मेरा। आप उसे परायी मत समझना। क्यों टीना, क्या मैंने कुछ गलत कहा?” मैंने टीना की और मुड़कर टीना से पूछा।
टीना ने मेरी बात का जबरदस्त समर्थन करते हुए कहा, “बिलकुल सेठी साहब, सिर्फ हमारा सब कुछ ही नहीं, मैं और राज हम दोनों भी आपके ही हैं। आप ने हमें अपने प्यार और अपनापन से खरीद लिया है।”
सुषमाजी ने उसी हंसी मजाक के टोन में कहा, “टीना अगर तुम सेठी साहब की हो तो मैं कहाँ जाउंगी?”
मैंने हँसते हुए कहा, “सुषमाजी, अगर टीना सेठी साहब की हुई तो आप मेरी हुई। क्यों सेठी साहब आप को कोई एतराज तो नहीं?”
सेठी साहब हंस कर बोले, “वाह भाई यह तो कमाल ही हो गया। हमारी बीबियाँ तो सांझा हो गयीं? जब आप लोगों ने मिल कर यह तय कर ही लिया है तो मैं बिच में बोलने वाला कौन हूँ?”
ऐसे ही हंसी मजाक, छेड़छाड़ और हंसी मजाक में ही इशारों ही इशारों में कुछ गंभीरता का सिलसिला हम दोनों कपल के बिच शुरू हो चुका था। एक बार हमारे बेटे की स्कूल में पैरेंट टीचर मीटिंग में टीना और मुझे जाना था। स्कूल घर से थोड़ा दूर था। उस समय मैं टूर पर गया हुआ था। जब टीना को पता चला तो टीना ने मुझे फ़ोन किया की क्या मैं उस दिन आ सकूंगा?
मैंने कहा की मैं नहीं आ पाऊंगा पर अगर सेठी साहब फ्री हों तो उन्हें ले कर टीना जा सकती है। मैंने भी सेठी साहब को फ़ोन करके पूछा की अगर वह जा सकें तो टीना को जाने आने में दिक्कत नहीं होगी और स्कूल में भी अच्छा लगेगा। जब टीना ने सेठी साहब से बात की तो सेठी साहब फ़ौरन जाने के लिए राजी हो गए।
स्कूल में पहुँचते ही हमारा मुन्ना सेठी साहब को देख कर भाग कर उनसे लिपट गया। सेठी साहब टीचर से मुन्ना के प्रोग्रेस के बारेमें बात करने लगे। टीना बेचारी सेठी साहब के साथ बैठी हुई उन्हें देखती ही रही।
टीचर भी सेठी साहब को ही मुन्ना के पापा समझ कर सारी बातें करते रहे। जब मीटिंग खतम हुई तो टीचर ने टीना को मुबारकबाद देते हुए कहा की अक्सर माँ ही अपने बच्चों के बारे में बात करतीं हैं। पापा को बच्चों के बारे में ज्यादा मालुम नहीं होता। पर तुम्हारे हस्बैंड तो बेटे के स्टडी बारे में कितना इंटरेस्ट ले रहे हैं। उस समय टीना की टीचर को यह कहने की हिम्मत नहीं हुई की सेठी साहब दर असल मुन्ना के पापा नहीं एक पडोसी थे।
स्कूल से बाहर निकलते हुए जब टीना ने सेठी साहब से यह बात कही तो सेठी साहब ठहाका मार कर हंस पड़े और बोले, “चलो, भले ही गलत फहमी में कुछ देर के लिए ही सही पर इस बहाने मेरा तुम्हारे बॉय फ्रेंड से हस्बैंड में प्रमोशन हो गया।” सेठी साहब की बात सुन कर टीना के गाल शर्म के मारे लाल हो गए।
टीना कहाँ चुप रहने वाली थी? टीनाने कहा, “सेठी साहब बॉयफ्रेंड बनकर रहने में ही फायदा है। पूछो कैसे?”
सेठी साहब ने पूछा, “कैसे?”
टीना ने कहा, “बॉयफ्रेंड के पास गर्लफ्रेंड को एन्जॉय करने का अधिकार तो होता है पर कोई जिम्मेदारी नहीं होती। जब की हस्बैंड के पास अधिकार के साथ साथ बड़ी जिम्मेदारी भी होती है। तो आपको तो बॉयफ्रेंड बनकर रहने में ही फायदा है। बोलो आप क्या बनोगे?”
सेठी साहब ने टीना का हाथ अपने हाथ में लिया और टीना की आँखों में आँखें डाल कर बड़ी गंभीरता से बोले, “टीना तुमने मुझे शायद अब तक ठीक तरहसे नहीं समझा। मैं जिम्मेदारियों से भागनेवालों में से नहीं हूँ। बॉयफ्रेंड या हस्बैंड का तुम्हें एन्जॉय करने का अधिकार जो तुम मुझे देना चाहती हो उसके बिना भी मैं तुम्हारी सारी जिम्मेदारियां लेने के लिए तैयार हूँ। तुम एकबार आजमा कर तो देखो।”
सेठी साहब की बात सुन के एक बार टीना शर्म के मारी पानी पानी हो गयी। अपनी नजरें झुका कर कुछ दबी सी आवाज में जवाब देते हुए टीना ने कहा, “मैंने एक बार नहीं कई बार आजमा कर देखा है आपको सेठी साहब। हरबार आप अव्वल नंबर से पास हुए हो। आप मेरे सिर्फ हस्बैंड ही नहीं, आप मेरे सब कुछ बनने के लायक हो। पर हाँ, आपने मुझे कभी आजमाया नहीं सेठी साहब। मुझे आपके लिए कुछ करने का मौक़ा ही नहीं मिला। इसका मुझे अफ़सोस है।”
सेठी साहब ने टीना का हाथ थाम कर कहा, “देखो समय समय की बात है। आज मैं आपके काम आया, कल क्या पता मुझे आपकी जरुरत पड़े? वक्त का किसी को पता नहीं होता।”
टीना ने गाडी चला रहे सेठी साहब की जांघ पर एक हाथ रख कर कहा, “सेठी साहब, अगर कोई ऐसा वक्त आया की आप को हमारी मदद की जरुरत पड़े तो मैं आपको वचन देती हूँ की मेरी कोई भी चीज़ तो क्या, मेरी जान भी देनी पड़े तो मैं पीछे नहीं हटूंगी।”
सेठी साहब ने भावुक टीना का हाथ थामा और अपने हाथ में रखा। स्कूल से वापसी के दरम्यान टीना अपना एक हाथ सेठी साहब के हाथ में रखे हुए सेठी साहब के हाथ को अपने दूसरे हाथ से सँवारती रही। शायद उसका सेठी साहब को सम्पूर्ण आत्मीयता का संदेश देने का यह एक तरिका था।
जब टीना ने मुझे उसकी सेठी साहब से हुई इस बातचीत के बारे में बताया तो मैंने टीना को खिंच कर बाँहों में ले लिया और उसके के होँठों को चुम लिया और कहा, “वाकई में तुमने बहुत ही अच्छा किया। मैं आज तुमसे बहुत खुश हूँ।”
मेरी बात सुन कर मेरी बीबी के गाल शार्म से लाल हो गए। अपने आप को सम्हालते हुए हलका सा मुस्कुराती हुई वह बोली, “मैं मेरे पति की पसंद नापसंद अच्छी तरह जानती हूँ।”
एक बार नेट पर मैंने एक पोर्न मूवी देखि। वैसे स्टोरी का तो कोई ख़ास प्लॉट नहीं था पर वीडियो का टॉपिक मेरे मतलब का था। उसमें एक बीबी को उसका पति अपने दोस्त से कैसे चुदवाता है वह बताया था। वीडियो में खुली चुदाई के सिन थे। मेरे मन में आया की इसे टीना को तो जरूर दिखाना चाहिए।
उसी दिन रात को मैंने टीना से कहा की एक पोर्न मूवी है और उसे देखेंगे। टीना ने कोई जवाब नहीं दिया। इसका मतलब था की वह देखने के लिए तैयार थी। सोने के वक्त मैंने ड्राइंग रूम में टीना को ले जा कर टीवी स्क्रीन पर वह वीडियो की लिंक क्लिक की और वीडियो शुरू हो गया।
पढ़ते रखिये.. कहानी आगे जारी रहेगी!