This story is part of the Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din series
जब सुनीता फिल्म फेस्टिवल में जाने के लिए छोटी स्कर्ट और पतला सा छोटा ब्लाउज पहन के बाहर आयी तो उसे देख कर सुनील की हवा ही निकल गयी। वह स्कर्ट और ब्लाउज में सुनील ने अपनी बीबी को पहले नहीं देखा था।
ऐसा लगता था जैसे रम्भा अप्सरा स्वर्ग से निचे उतर कर कोई ऋषि मुनि के तप का भंग कराने के लिए आयी हो।
उस दिन कहीं कहीं कुछ बारिश हो रही थी। गर्मी थी इस लिए हवामें काफी उमस भी थी। पर ऐसा लगता था की उस शाम बारिश जरूर होगी।
चूँकि सुनीता को सिनेमा हॉल में तेज A.C. के कारण अक्सर ठण्ड लगती थी, सुनीता ने अपने और अपने पति के लिए दो शॉल ली और निचे उतरी। कर्नल साहब और ज्योति उनका इंतजार ही कर रहे थे। जब कर्नल साहब ने अपनी शिष्या का मोहिनी रूप देखा तो उनकी आँखें फटी की फटी ही रह गयीं।
उन्होंने जो रूप सपने में देखा था (और शायद उसे कई बार अपने हाथों से निर्वस्त्र भी किया होगा) वह उनके सामने था। छोटी सी चोली में सुनीता के मदमस्त स्तन उभर कर ऐसे दिख रहे थे जैसे दो छोटे पहाड़ किसी प्रेमी के हाथों को उन पर सैर करने का आमंत्रण दे रहे हों।
चोली के ऊपर से सुनीता के स्तनों का उदार उभार साफ़ दिख रहा था। वह उभार उन स्तनों की निप्पलोँ से थोड़ा सा ऊपर तक जा कर ब्रा के पीछे ओझल हो जाता था।
कोई भी रसिक मर्द को इससे स्वाभाविक ही कुंठा या निराशा होगी। ऐसा महसूस होगा जैसे नाव किनारे तक आ कर डूब गयी। वह सोचने लगते, अरे चोली या ब्रा थोड़ी सी और निचे होती तो क्या हो जाता?
होँठ की तेज लाली और उसके गले का निखार कर्नल साहब ने उस दिन तक कभी ध्यान से देखा ही नहीं था। सुनीता के गाल कुदरती लालिमा से लाल थे।
आँखों की तो बात ही क्या? काजल से अंकित आँखों की पलकें जैसे आतुरता से कोई प्रश्न पूछ रही हों और स्त्री सुलभ लज्जा से झुक कर आँखों से आँखें मिलाने से कतराती हों। आँखें ऐसी कामुक लग रही थी जैसे जस्सूजी को अपने करीब बुला रही हों।
सुनीता की नोकीली नाक ऐसे लगती थी जैसे उन्हें किसी उमदा चित्रकार ने बड़े प्यार और ध्यान से बनाया हो। शर्म से हँसने के लिए आतुर हों ऐसे आधे खुले हुए होँठ की पंखुड़ियां जैसे तीर छोड़ने के बाद के धनुष्य के सामान दिख रहे थे।
छोटी सी चोली के तले से निचे सुनीता की नंगी कमर के सारे उतार चढ़ाव और घुमाव इतने लुभावने एवं कामुक थे की कर्नल साहब की नजरें वहाँ से हटने का नाम नहीं ले रही थीं।
स्कर्ट का छोर घुटनों से काफी ऊपर होने के कारण सुनीता की मुलायम, सपाट, सुआकार और चिकनी जाँघें देखते ही बनती थी। किसी भी मर्द की नजरें जब उनपर पड़ेंगी तो जाहिर है, फिर वही समंदर के किनारे तक पहुंचकर पानी में डूब जाने वाली निराशा दिमाग पर हावी हो जाएगी।
जब सुनीता ने कर्नल साहब को देखा तो अपने चमकते दाँत खोल कर सुन्दर मुस्कान दी और दोनों हाथ जोड़ कर नमस्ते करते हुए बोली, “आपको इंतजार कराने के लिए माफ़ करें जस्सूजी।”
फिर जस्सूजी की पत्नी ज्योति की और मुड़कर उनके हाथ थाम कर बोली, “ज्योति जी आप बड़ी खूबसूरत लग रही हो।”
ज्योति ने पट से पलटवार किया और बोली, “कहर तो आप ढा रही हो सुनीता। आज तो तुम्हें देख कर कई मर्द लोग घायल हो जाएंगे।” फिर अपने पति की सुनीता के बदन पर गड़ी हुई निगाहें देख कर बोली, “तुम्हारे निचे उतरते ही घायलों की गिनती शुरू हो चुकी है।”
शायद बाकी तीनों ने ज्योति के उस कटाक्ष को सूना नहीं या फिर उसपर ध्यान नहीं दिया।
पर सुनील का पूरा ध्यान ज्योति के बदन पर केंद्रित था। कर्नल साहब की पत्नी ज्योति ने टाइट स्लैक्स और ऊपर टाइट टॉप पहन रखी थी। इससे उनके स्तनों का उभार भी अच्छे खासे मर्दों का लण्ड खड़ा करने के काबिल था।
सबसे खूबसूरत ज्योति के सुआकार कूल्हे (जो की बिलकुल ही ज्यादा बड़े नहीं थे) टाइट स्लैक्स में बड़े उन्नत बाहर निकले हुए लग रहे थे। दोनों जाँघों के बिच की दरार सुनील की आँखों को बेचैन करने में सक्षम थीं।
दोनों जनाब एक दूसरे की बीबी को पूरी कामुकता से नजरें चुराकर देख रहे थे। पर भला बीबियों से यह कहाँ छुपता?
जब कर्नल साहब की बीबी ज्योति के बार बार गला खुंखारने पर भी कर्नल साहब सुनील की बीबी सुनीता के बदन पर से अपनी नजरें हटा नहीं पाए तो उस ने धीरे से अपने शौहर को अपनी कोहनी मारकर अवगत कराया की वह बाहर काफी लोग आसपास खड़े हैं और बेहतर है वह सज्जनता के दायरे में ही रहें।
सुनीता तो बेचारी ज्योति के पति जस्सूजी की लोलुप नजरें जो उसके बदन का पूरा मुआइना कर रहीं थी, उसे देखकर सकुचा और सहमा कर शर्म के मारे इधर उधर नजरें घुमा कर यह जताने की कोशिश कर रही थी की जैसे उसने कर्नल साहब की नजरों को देखा ही नहीं।
उसे समझ नहीं आ रहा था की ऐसे कपडे पहनने के बाद वह अपना बदन कैसे छुपाए?
इतनी गर्मी और उमस होते हुए भी, सुनील की बीबी ज्योति ने अपने पास रखी हुई एक शाल शर्म के मारे अपने कंधे पर डाल दी और अपनी छाती को छुपाने की नाकाम कोशिश करने लगी।
उनके घर के पास ही मेट्रो स्टेशन था। जब चारों चलने लगे तो कर्नल साहब की पत्नी ज्योति ने सुनीता के पास आकर धीरे से उसकी शाल अपने हाथ में ले ली और हँस कर बोली, “इतनी गर्मी में इसकी कोई जरुरत नहीं। तुम जैसी हो ठीक हो। तुम बला की खूबसूरत लग रही हो। आज तो मेरा भी मन कर रहा है की मैं तुमसे लिपट जाऊं और खूब प्यार करूँ। मैं भी मेरे पति की जगह होती तो तुम्हें मेरी आँखों से नोंच खाती।”
सुनील की पत्नी सुनीता ने शर्माते हुए कहा, “ज्योति जी मेरी टांगें मत खींचिए। यह वेश मेरे पति ने मुझे जबरदस्ती पहनने के लिए बोला है। मैं तो आपके सामने कुछ भी नहीं। आप गझब की खूबसूरत लग रही हो।”
जब चारों साथ में चलने लगे तो कर्नल साहब की पत्नी ज्योति सुनील के साथ हो गयी और उनसे बातें करने लगीं। सुनील की पत्नी सुनीता की चप्पल में कुछ कंकर जैसा उसे चुभने लगा तो वह रुक गयी और अपनी चप्पल निकाल कर उसने कंकर को निकाला।
यह देख कर कर्नल साहब भी रुक गए। सुनील और ज्योति बात करते हुए आगे निकल गए। उन्होंने ध्यान नहीं दिया की सुनीता और कर्नल साहब रुक गए थे।
कर्नल साहब ने देखा की सुनील की पत्नी सुनीता अपनी टाँगे उठा कर अपनी चप्पल साफ़ करने में लगी थीं तो उनसे रहा नहीं गया।
वह सुनीता को मदद करने के बहाने या फिर साथ देने के लिए रुक गए और जब सब कुछ ठीक हो गया तो कर्नल साहब और सुनीता भी एक साथ धीरे धीरे साथमें चलने लगे। रास्ते में कर्नल साहब सुनीता से इधर उधर की बातें करने लगे।
पढ़ते रहिये.. क्योकि यह कहानी अभी जारी रहेगी..