Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 67

This story is part of the Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din series

    सुनीलजी ने सिर्फ एक धोती जो डॉ. खान की अलमारी में मिली थी वह पहन रक्खी थी। उसकी गाँठ भी बिस्तरे में पलटते हुए छूट गयी थी। वह बिस्तर में नंगे ही सोये हुए थे।

    अपनी पत्नी के दो मस्त गुम्बजों को अपने हाथों में मसलते हुए और सुनीता की निप्पलों को पिचकाते और अपनी बीबी की गाँड़ में पीछे से धक्का मारते हुए कहा, “डार्लिंग, जस्सूजी हमारे लिए भगवान से भी ज्यादा हैं। वह इस लिए की भगवान को कुछ भी करने के लिए सिर्फ इच्छा करनी पड़ती है। जब की हम इंसानों को अपने प्रियजन के लिए कुछ करने के लिए महेनत और अपना आत्म समर्पण करना पड़ता है।

    जस्सूजी ने वह तुम्हारे लिए क्यों किया? क्यूंकि वह तुम्हें दिलोजान से चाहते थे। वह तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकते हैं। तो क्या तुम उनके लिए कुछ कर नहीं सकती?”

    सुनीता ने अपने पति की बात का कुछ भी जवाब नहीं दिया। वह जानती थी की उसके पति क्या चाहते थे। पर वह क्यों अपना मुंह खोले? वह सिर्फ अपने पति के अपनी गाँड़ पर धक्का मरते हुए लण्ड को मेहसूस कर रही थी। अपने पति का जाना पहचाना मोटा और लंबा लंड एकदम कड़क और जोशीला तैयार लग रहा था।

    सुनीता भी एक साथ दो लण्ड से चुदवाने के विचार से ही काफी उत्तेजित हो रही थी। उसने कभी सोचा नहीं था की उसके दोनों प्राणप्रिय मर्द उसे एकसाथ चोदेंगे। उसके पति तो तैयार थे, पर क्या जस्सूजी भी तैयार होंगे? यह सुनीता को पता नहीं था।

    सुनीलजी ने जब अपनी पत्नी का कोई जवाब नहीं मिला तो वह समझ गए की सुनीता तैयार तो है पर अपने मुंह से हाँ नहीं कहना चाहती। आखिर में वह मानिनी जो ठहरी? सुनीलजी ने फ़ौरन सुनीता गाउन पूरा खोल कर उसे हटाना चाहा। सुनीता ने भी कोई विरोध ना करते हुए अपने हाथ और पाँव ऊपर निचे कर के उसे हटाने में सुनीलजी की मदद की।

    अब सुनीलजी और उनकी पत्नी सुनीता बिस्तरे में एक़दम नंगे थे। सुनीलजी ने फिर से अपना लण्ड सुनीता की गाँड़ के गालों पर टिका दिया और हलके धक्के मारने लगे। अपने पति का तगड़ा लण्ड अब उसकी गाँड़ को टोचने लगा तो सुनीता चंचल हो उठी। उससे रहा नहीं गया।

    सुनीता के मुंह से कुछ ज्यादा ही जोर से कराहट निकल पड़ी। सुनीता समझ गयी की अब वख्त आ पहुंचा था जब उसके पति उसकी पीछे से चुदाई करेंगे। सुनीता जानती थी की सुनीलजी को पीछे से चोदना बहुत पसंद था।

    सुनीता की दोनों चूँचियों को अपने हाथों में पकड़ कर उन्हें दबोचते हुए सुनीता की गाँड़ की दरार में से होते हुए सुनीता की रसीली चूत में अपना लण्ड पेलने के लिए उसके पति हमेशा व्याकुल रहते थे।

    जब वह सुनीता को पीछे से चोदते थे तो अपना मुंह सुनीता के घने बालों में मलते हुए सुनीता की गर्दन, पीठ और कन्धों को बार बार चूमते रहते जिससे सुनीता का उन्माद सातवें आसमान पर पहुंच जाता था।

    सुनीता को महसूस हुआ की जस्सूजी सुनीता की कराहट सुनकर शायद उठ चुके थे। सुनीता के मन में उस समय एकसाथ कई भाव जाग्रत हो रहे थे। एक जस्सूजी के इतने करीब से देखते हुए की सुनीता पने पति से कैसे चुदाई करवा रही है यह सोच कर रोमांच का भाव। दुसरा चिंता का भाव की जस्सूजी कहीं ईर्ष्या या दुःख से परेशान तो नहीं हो जाएंगे की सुनीता किसी और से चुद रही थी?

    तीसरा डर का भाव की कहीं उसी समय अगर जस्सूजी का सुनीता को चोदने का मन किया तो कहीं वह सुनीलजी से सुनीता को चोदने के लिए बहस तो नहीं करेंगे? चौथा भाव की कहीं दोनॉ मर्द मिलकर सुनीता को एक साथ चोदने के लिए तैयार अगर हो गए तो क्या एक सुनीता की चूत में तो दुसरा उसकी गाँड़ में तो अपना लण्ड नहीं घुसाना चाहेंगे?

    सुनीता डर चिंता और रोमांच से एकदम अभिभूत हो रही थी। सुनीता ने महसूस किया की जस्सूजी थोड़ा हिल रहे थे। उसका मतलब वह जाग गए थे। सुनीता ने देखा की जस्सूजी ने अपनी आँखें नहीं खोलीं थी। यह अच्छा था। क्यूंकि भले ही जस्सूजी ने महसूस किया हो की सुनीता अपने पति से चुदाई करवा रही थी। पर ना देखते हुए कुछ हद तक सुनीता की लज्जा कम हो सकती थी।

    पर सुनीलजी ने कोई कोशिश नहीं की वह सुनीता की गरम चूत में अपना लण्ड डालें। वह तो सुनीता को इतना गरम करना चाहते थे की सुनीता आगे चलकर अपनी सारी लज्जा और शर्म छोड़ कर, अगर जस्सूजी उठ जाएँ तो भी अपने पति से बिनती करे की “प्लीज आप मुझे चोदिये।”

    सुनीलजी ने फुर्ती से पलंग से निचे उतर कर सुनीता की जाँघें फैलायीं। अपना मुंह सुनीता की जाँघों के बिच में रख कर वह सुनीता का रिस्ता हुआ स्त्री रस चाटने लगे और अपनी जीभ डाल कर सुनीता की चूत को जीभ से कुरेदने लगे।

    सुनीलजी की जीभ के अंदर घुसते ही सुनीता अपनी आँखें कस के मूंद के रखती हुई एकदम पलंग पर चौक कर उछल पड़ी। उसके तन के ऊपर से कम्बल हट गया। वह नंगी दिखने लगी। शायद जस्सूजी ने भी एक आँख खोल कर सुनीता का कामातुर खूबसूरत कमसिन नंगा बदन देख लिया था।

    जस्सूजी ने यह भी देखा की सुनीता के पति जस्सूजी के उठने की परवाह ना करते हुए सुनीता की चूत में अपनी जीभ डाल कर अपनी बीबी को “जिह्वा मैथुन” करा रहे थे।

    सुनीता पलंग के ऊपर उछल उछल कर उसे झेलने की कोशिश कर रही थी। थोड़ी देर सुनीता का जिह्वा मैथुन करने के बाद सुनीलजी वापस पलंग पर आ गए। सुनीलजी फिर वही सुनीता की गाँड़ पर अपना लण्ड टिकाकर सुनीता को अपनी जाँघों के बिच में जकड कर सके माध मस्त स्तनोँ को अपनी हथलियों में दबाने लगे और सुनीता की फूली हुई निप्पलों को पिचकाने में फिर व्यस्त हो गए।

    सुनीलजी ने अपना हाथ सुनीता की पतली कमर और नाभि को सहलाते हुए धीरे से निचे ले जाकर उसकी चूत के ऊपर वाले टीले से सरका कर सुनीता की चूत पर रक्खा। अपने पति का हाथ जब अपनी चूत के पास महसूस किया तो सुनीता बोल पड़ी, “डार्लिंग यह क्या कर रहे हो?”

    सुनीलजी ने कुछ ना बोलते हुए सुनीता की पानी झरती चूत में अपनी दो उंगलियाँ डाल दीं और उसे प्यार से अंदर बाहर करने लगे। सुनीता की (और शायद सब स्त्रियों की) यह बड़ी कमजोरी होती है की जब पुरुष उनकी चूत में उँगलियाँ डालकर उनको हस्तमैथुन करते हैं तब वह उसे झेलनेमें नाकाम रहतीं हैं।

    सुनीलजी कभी उँगलियों से सुनीता की चूत के पंखुड़ियों को खोल कर प्यार से उसे ऐसे रगड़ ने लगे की सुनीता मचल उठी और उसके रोंगटे खड़े हो गए। बड़ी मुश्किल से वह अपने पति को चुदाई करने के लिए आग्रह करने से अपने आप को रोक पायी।

    जैसे जैसे सुनीलजी की उँगलियाँ फुर्ती से सुनीता की चूत में अंदर बाहर होने लगीं, सुनीता की मचलन बढ़ने लगी। साथ साथ में सुनीता की चूत की फड़कन भी बढ़ने लगी। सुनीता अपनी सिसकारियां रोकने में नाकाम हो गयी। उसके मुंह से बार बार “आहहहह…… ओफ्फफ्फ्फ़…… हाय……… उम्फ………” आवाजों वाली सिकारियाँ बढ़ती ही गयीं।

    जाहिर है की ऐसे माहौल में एक मर्द कैसे सो सकता है जब एक जवान औरत उसके बगल में एक ही पलंग पर उसके साथ नंगी सोई हुई जोर शोर से सिकारियाँ मार रही हो? जस्सूजी उठ तो गए पर अपनी आँखें मूंद कर पड़े रहे और उम्मीद करते रहे की उनको भी कभी कुछ मौक़ा मिलेगा।

    सुनीलजी को भी शायद आइडिया हो गया था की जस्सूजी उठ गए थे। सुनीलजी का आइडिया था की वह ऐसे हालत पैदा करदें की जस्सूजी खुल्लमखुल्ला जाहिर करने के लिए मजबूर हो जाएँ की वह उठ गए हैं। सुनीलजी ने सुनीता की चूत में अपनी उँगलियों से चोदने की फुर्ती एकदम तेज करदी। उनकी उँगलियाँ सुनीता की चूत से इतनी फुर्ती से अंदर बाहर होने लगीं जैसे कोई इंजन में पिस्टन सिलिंडर के अंदर बाहर होता हो।

    सुनीता के लिए यह आक्रमण झेलना असंभव था। वह अपनी सिसकारियों को रोकने में अब पूरी तरह से नाकाम हो रही थी। अब उसे परवाह नहीं थी की उसके साथ में ही सोये हुए जस्सूजी उसकी कराहट सुनकर उठ जाएंगे। वास्तव में तो कहीं ना कहीं उसके मन में भी छिपी हुई इच्छा थी की जस्सूजी उठ जाएँ और सुनीता को उसके पति के साथ दोनों मिलकर चोदें।

    सारी कुशंका और चिंताओं के बावजूद सुनीता के मन में भी पति की यह इच्छा पूरी करने का बड़ा मन तो था ही। जैसे जैसे सुनीलजी ने उंगलयों से चोदने की गति तेज कर दी तो सुनीता की सिसकारियों ने कराहट का रूप ले लिया। सुनीता अब जोर शोर से सुनीलजी को, “डार्लिंग, यह क्या कर रहे हो? अरे……. भाई तुम थोड़ा रुको तो…… अरे यह कोई तरिका है? आह्ह्ह्हह्ह……. ओह…… अह्ह्ह्हह.” इत्यादि आवाजें निकालने लगी। पीछे से सुनीलजी अपना लण्ड भी सुनीता की गांड के गालों पर घुसेड़ रहे थे।

    सुनीलजी इस बात का ध्यान रख रहे थे की उनका लण्ड अभी जब तक उपयुक्त समय ना आये तब तक सुनीता की चूत या गाँड़ में ना घुसेड़ें। सुनीता अपने पति के उसकी गाँड़ में मारे जा रहे धक्कों और उनकी उँगलियों की चुदाई से इतनी ज्यादा उत्तेजित हो गयी थी की उसने जस्सूजी की बाहें पकड़ीं और अपने साथ साथ जस्सूजी को भी हिलाने लगी।

    जब थोड़ी देर तक ऐसा चलता रहा तो मज़बूरी में जस्सूजी ने अपनी आँखें खोलीं और सुनीता की और देखा। सुनीता आँखें बंद किये हुए अपने पति की उंगल चुदाई और फ़ालतू के गाँड़ पर उनका कडा और खड़ा लण्ड धक्के मार रहा था उसे एन्जॉय कर रही थी। जस्सूजी ने एक हाथ सुनीता की नंगी कमर पर रखा तो सुनीता ने अपनी आँखें खोलीं।

    जब सुनीता की जस्सूजी से आँखें मिलीं तो वह शर्म के मारे फिर झुक गयीं और फिर सुनीता ने अपनी आँखें बंद कर लीं। पर सुनीता की कराहटें रुक नहीं पा रहीं थीं क्यूंकि उसके पति अपनी उँगलियों से सुनीता की चूत में बड़े जोरसे चुदाई कर रहे थे। सुनीता ने अब तय किया की जब जस्सूजी ने उसे अपने पति से चुदते हुए देख ही लिया था तो अब फ़ालतू का पर्दा रखने का कोई फ़ायदा नहीं था।

    सुनीता तब जस्सूजी की और खिसकी और जस्सूजी से चिपक गयी। सुनीता के स्तन पर सुनीलजी का हाथ भी जस्सूजी की छाती का स्पर्श कर रहा था। सुनीलजी समझ गए की जस्सूजी जग गए हैं और सुनीता की उंगली चुदाई देख रहे हैं। सुनीलजी ने सुनीता की चूँचियों से अपना हाथ हटाकर जस्सूजी के कन्धों पर रख दिया।

    सुनीलजी ने तब अपनी बीबी की उँगलियों से चुदाई रोक दी। उन्होंने अपने हाथों से जस्सूजी का कंधा थोड़े जोर से दबाया और बोले, “जस्सूजी, उठो। मैं और सुनीता आपसे प्रार्थना करते हैं की आप अपनी प्रिया और मेरी बीबी का आत्मसमर्पण स्वीकार करो।”

    सुनीता की चूँचियों को दबाते हुए सुनीलजी बोले, “मैं जानता हूँ आप इन स्तनोँ को सहलाने के लिए कितने ज्यादा उत्सुक हो। मैं सुनीता का पति आपसे कहता हूँ की आज से सुनीता के प्यार और बदन पर सिर्फ मेरे अकेले का ही हक़ नहीं होगा। सुनीता के प्यार और बदन पर हम दोनों का साँझा हक़ होगा अगर सुनीता इस के लिए राजी हो तो।”

    फिर वह अपनी बीबी की और देखते हुए बोले, “सुनीता डार्लिंग तुम क्या कहती हो?”

    सुनीता ने शर्म से अपनी नजरें निचीं कर लीं और कुछ नहीं बोली। सुनीलजी ने जस्सूजी का हाथ पकड़ा और अपनी बीबी के खुले स्तनों को उनके हाथ में पकड़ा दिए।

    जस्सूजी ने सुनीलजी के सामने देखा और झिझकते हुए सुनीता के स्तनोँ पर अपना हाथ फिराने लगे। हालांकि जस्सूजी ने पहले भी सुनीता के मस्त स्तनोँ का भलीभांति आनंद ले रखा था, पर यह पहली बार हुआ था की सुनीता के पति ने सामने चलकर अपनी पत्नी के स्तनोँ को उनके हाथों में दिए थे।

    जस्सूजी को इस बात से एक अद्भुत रोमांच का अनुभव हुआ। जस्सूजी की हिचकिचाहट सुनीलजी के वर्ताव से काफी कम हो चुकी थी। उस समय के जस्सूजी के चेहरे के भाव देखने लायक थे। जैसे कोई नई नवेली वधु शादी की पहली रात को पति के कमरे में पति के सामने होती है और पति जब उसके कपड़ों को छूता है तो कैसे उसका पूरा बदन रोमांचा से सिहर उठता है ऐसा भाव उनको सुनीता के भरे सुनीलजी के हाथों में उठाये हुए स्तनों को छूने से हुआ।

    सुनीता का हाल तो उससे भी कहीं और बुरा था। उसकी जाँघों के बिच उसकी चूत में से तो जैसे रस की धार ही निकल रही थी। अपने पति के सामने ही किसी और पुरुष के हाथों अपने स्तनोँ को छुआना कैसा अनूठा और पुरे शरीर को रोमांच से भर देने वाला होता है यह सुनीता ने अनुभव किया।

    जस्सूजी ने सुनीता के दोनों स्तनोँ को अपने हाथों की हथेलियों में लिए और उनको झुक कर चूमा। सुनीलजी ने सुनीता को अपनी बाँहों में जकड कर पीछे से सुनीता के कन्धों को चुम कर कहा..

    “सुनीलजी, मैं सच कह रहा हूँ। हालांकि मेरे मन में सुनीता के लिए बहुत ही अजीब भाव थे और मैं जानता था की आपको और सुनीता को भी इसके लिए कोई एतराज नहीं था पर मैं यह चाहता था की सुनीता सामने चलकर मुझे अपने आपको पूरी ख़ुशी के साथ समर्पित करे और उसकी माँ को दिया हुआ वचन अगर पूरा ना हो तो ऐसा ना करे।

    अगर सुनीता की माँ को दिया हुआ वचन आपके और सुनीता के हिसाब से पूरा हो गया है तो मुझे और कुछ नहीं कहना। सुनीता मेरी थी और रहेगी। वह आपकी पत्नी थी है और रहेगी। अगर वह मेरी शैय्या भागिनी हुई तो उससे आपके अधिपत्य पर कोई भी असर नहीं होगा।”

    कहानी आगे जारी रहेगी..

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