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Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 65

प्रिय पाठकगण, पता नहीं कोई यह कहानी पढ़ भी रहा है या नहीं। कोई कमैंट्स नहीं है। मैं समझ रहा हूँ की मेरी कहानी अब ज्यादा ही लम्बी होती जा रही है और ज्यादा इंटरेस्टिंग भी नहीं रही। मैं इसे अब जल्दी ही समाप्त करने जा रहा हूँ। आपके धैर्य के लिए आपका धन्यवाद।
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अब वापस कहानी पर

कुछ ही देर में गद्दा और रजाई चटाई बगैरह लेकर डॉ. खान हाजिर हुए। डॉ. खान ने जस्सूजी से सुनीलजी की कहानी सुनी। कैसे आतंकवादियों से उनका पाला पड़ा था, बगैरा।

आखिर में गहरी साँस लेते हुए डॉ. खान बोले, “अल्लाह, ना जाने कब ये मातम का माहौल थमेगा और चमन फिर इन वादियों में लौटेगा? पर बच्चों, यहां दुश्मनों को गोलीबारी का ज्यादा असर नहीं होता क्यूंकि यहां से सरहद दुरी पर है।”

कर्नल साहम ने डॉ. खान से कहा, “डॉक्टर साहब आपका बहुत बहुत शुक्रिया। पर हमें हिंदुस्तानी सेना बड़ी शिककत से खोज रही होगी। हमें चाहिए की हम फ़ौरन हमारी सेना को इत्तला करदें की हम यहां है ताकि वह हमें यहां से ले जाने की व्यवस्था करें।”

डॉ. खान ने अपना सर हिलाते हुए कहा, “पिछले दो दिन से यहां दहशतगर्दों के कारण इंटरनेट और टेलीफोन सेवा ठप्प पड़ी हुई है। वैसे भी टेलीफोन मुश्किल से चलता है। पर हाँ अगर मेरी मुलाकात कोई हिंदुस्तानी फ़ौज के जवान से हुई तो मैं उसे बताऊंगा की आप लोग यहाँ रुके हुए हैं। आप अपना नाम और पता एक कागज़ में लिख कर मुझे दीजिये। जब तक सेना का बुलावा नहीं आता आप आप निश्चिन्त यहाँ विश्राम कीजिये। तब तक इन जनाब का घाव भी कुछ ठीक होगा। आपके खाने पिने का सारा इंतजाम यहां है।”

जस्सूजी इस भले आदमी को आभार से देखते रहे। उन्होंने अपना, सुनीता का और सुनीलजी का नाम एक कागज़ पर लिख कर दे दिया। फिर डॉ. खान ने सुनीता को सही कपडे भी ला दिए और सब के नाश्ते का सामान दे कर वह ऊपर नमाज पढ़ने चले गए। सुबह के करीब दस बज रहे थे।

जस्सूजी ने सुनीता की और देखा। वह डॉ. खान की बड़ी लड़की के दिए हुए ड्रेस में कुछ खिली खिली सी लग रही थी। दरवाजा बंद होते ही सुनीता जस्सूजी की गोद में आ बैठी और जस्सूजी की चिबुक अपनी उँगलियों में पकड़ कर अपने पति की और इशारा कर के बोली, “मेरे राजा, यह क्या हो गया? सुनीलजी की मानसिक हालत ठीक नहीं लग रही। अब बताओ हम क्या करें?”

जस्सूजी ने सुनीता को अपनी बाँहों में भर कर कहा, “जानेमन, पहले तो हम इन्हें उठायें और कुछ् खाना खिलाएं। टेबल पर गरमागरम खाने की खुशबु आ रही है और मैं भूखा हूँ। ”

सुनीता ने मजाक में हंसकर कहा, “जस्सूजी आप तो हरबार भूखे ही होते हो।”

जस्सूजी ने फिर सुनीता को अपनी बाँहिं में भरकर उसे चूमते हुए कहा, तुम्हारे लिए तो मैं हरदम भूखा होता हूँ। पर मैं अभी खाने की बात कर रहा हूँ।”

सुनीता ने अपने पति की और इशारा करते हुए कहा, “इनका क्या करें?”

जस्सूजी ने कहा, “सुनीलजी बहुत ज्यादा थके हुए हैं। वह ना सिर्फ शारीरिक घाव से परेशान है, बल्कि उनके मन पर काफी गहरा घाव है। लगता है, उस विदेशी लड़की से उनका लगाव कुछ ज्यादा ही करीब का हो गया था। देखो यह थोड़ी गंभीर बात है पर मुझे लगता है एक ह रत में उस लड़की से सुनीलजी का शारीरिक सम्बन्ध भी हुआ लगता है।”

सुनीता थोए कटाक्ष करते हुए थोड़ा टेढ़ा मुंह कर बोली, “जस्सूजी साफ़ साफ़ क्यों नहीं कहते की मेरे पति किसी अनजान औरत को चोद कर आए हैं?”

जस्सूजी ने बड़ी गंभीरता से सुनीलजी की और देखते हुए कहा, “सुनीता, चुदाई को इतने हलके में मत लो। यह प्यार का अपमान है। चुदाई दो तरह की होती है। एक तो कहते हैं ना, “मारा धक्का, माल निकाला, तुम कौन और हम कौन?” यह एक रीती है। भरी जवानी के पुर जोश में कई बार कुछ लोग ऐसे चुदाई करते हैं। ख़ास कर आजकल कॉलेज में कुछ सिर्फ चंद युवा युवती। पर तुम्हारे पति ऐसे नहीं।

मैं जानता हूँ की आज तक वह कितनी लड़कियों को चोद चुके हैं। पर अब वह बदल गए हैं। उनका सेक्स का भाव अब परिपक्व हो गया है। वह भी तुम्हारी तरह हो गए हैं। वह मानने लगे हैं की चुदाई याने सेक्स, वह मन के मिलने से होना चाहिए। सुनीलजी का उस लड़की से सम्बन्ध भी उसी कक्षा में था भले ही एक ही रात में हुआ हो। तुम्हारे पति ने अगर उस लड़की को चोदा भी होगा तो उन्होंने खुद बताया की दोनों ने एक दूसरे के लिए जान न्यौछावर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अफ़सोस इस बात का है की वह लड़की अपनी जान गँवा बैठी। ख़ुशी इस बात की है की सुनीलजी बाल बाल बच गए।”

जस्सूजी की बात सुन सुनीता कुछ झेंप सी गयी और जस्सूजी के होँठों से होंठ मिलाती हुई बोली, “जस्सूजी आप बड़े ही परिपक्व और सुलझे हुए इंसान हो। मैं अपने पति को नहीं समझ पायी। आपने उन्हें सही समझा। वाकई आप ठीक कहते हैं।”

जस्सूजी ने सुनीता के होँठों को चूमते हुए कहा, “तुम जाओ और अपने पतिको प्यार से उठाओ। पहले उनको खाना खिलाते हैं। बाद में ठंडा हो जाएगा। फिर देखते हैं वह क्या कहते हैं।”

सुनीता अपने पति सुनीलजी के पास गयी और उनके बालों को हलके से संवारते हुए उनके कानों में प्यार भरे शब्दों में बोली, “जानेमन सुनील, उठो तो, खाना आ गया है। थोड़ा खालो प्लीज? अभी गरम है। फिर ठंडा हो जाएगा।”

सुनीलजी ने आँखें खोलीं और आधी नींद में ही दोनों की और देखा। फिर बिना बोले ही बिस्तरमें लुढ़क पड़े।”

यह बहुत थक गए हैं और वैसे भी उनको आराम की सख्त जरुरत है। उनको सोने देते हैं। जब वह जग जाएंगे तो मैं उनके लिए खाना गरम कर दूंगी। अभी हम दोनों खा लेते हैं और फिर हम भी आराम करते हैं। आप भी बहुत थके हुए हो। आखिर फौजियों को भी आराम की जरुरत होती है। मैं तो थकान और आधी अधूरी नींद के कारण चकनाचूर हो चुकी हूँ। बस बिस्तर में जाकर औंधी होकर सो जाउंगी। आज पूरा दिन और पूरी रात बस सोना ही है।”

सुनीता ने फ़ौरन खाना परोसा और जस्सूजी और सुनीता दोनों ने खाना खाया। सुनीता ने जस्सूजी से पलंग की और इशारा कर कहा, “आप पलंग पर सो जाओ। मैं निचे फर्श पर इस गद्दे पर सो जाउंगी।”

जस्सूजी, “क्यों? तुम्हें फर्श पर बहुत ठण्ड लगेगी। मैं गद्दे पर क्यों नहीं सो सकता?”

सुनीता, “तो क्या आपको ठण्ड नहीं लगेगी? तो फिर क्या करें?”

जस्सूजी, “तो हम दोनों भी पलंग पर सो जाते हैं। वैसे भी यह पलंग काफी बड़ा है। तुम अपने पति के साथ सो जाना मैं हट के सो जाऊंगा।” यह कह कर जस्सूजी ने निचे रक्खी हुई रजाई उठायी और पलंग एक छोर पर सो गए।

सुनीता ने कहा, “ठीक है। मैं अपने पति के साथ सो जाउंगी।” यह कह कर सुनीता ने सारे बर्तन उठाये और उन्हें साफ़ कर सुनीलजी का खाना अलग से रख कर हाथ धो कर गाउन पहने हुए बिस्तर पर जा पहुंची। पलंग पर एक कोने में सुनीलजी सो रहे थे, दूसे छोर पर जस्सूजी थे। सुनीता बिच में जा कर लेट गयी। बिस्तर में पहुँच कर सुनीता ने जस्सूजी की रजाई खींची और अपने ऊपर ओढ़दी। अपना हाथ पीछे कर सुनीता ने जस्सूजी को अपनी और खिंच लिया।

जस्सूजी ने धीमे शब्दों में कुछ हलकी सी कड़वाहट के साथ कहा, “अरे! तुम अपने पति के पास सो जाओ ना? मेरा क्या है? मैं यहीं ठीक हूँ।”

सुनीता ने जवाब दिया, “मैं अपने पतियों के साथ ही तो सोई हुई हूँ। मैंने तुम्हें भी मेरे पति के रूप में स्वीकार किया है। अब तुम मुझसे बच नहीं सकते।”

जस्सूजी के मुंह पर बरबस मुस्कान आ गयी। जस्सूजी ने कहा, “नहीं। सिर्फ सोना ही नहीं है। अभी तो हमारा मिलन पूरा नहीं हुआ। उसे भी तो पूरा करना है।”

सुनीता ने अपने पति की और इशारा करते हुए कहा, “तो फिर इनका क्या करें?”

जस्सूजी ने कहा, “यह तो आपका सामान है। इसे तो आपको सम्हालना ही पडेगा।”

सुनीता ने कहा, “ठीक है, मेरा जो भी सामान है उन्हें मैं ही सम्हालूँगी।” यह कह कर सुनीता करवट बदल कर अपने पति सुनीलजी के पास उनके शरीर से लिपट गयी।

सुनीता ने अपनी एक टाँग उठायी और अपने पति की जाँघ पर रख दी और सुनीलजी को अपनी बाँहों में घेर लिया। फिर सुनीता ने एक हाथ पीछे कर जस्सूजी को अपनी और करीब खींचा।

जस्सूजी को खिसक कर सुनीता के पीछे उस की गाँड़ से अपना लण्ड सटा कर लेटना पड़ा। सुनीता ने जस्सूजी की एक बाँह पकड़ कर अपने एक बाजू को ऊपर कर जस्सूजी का हाथ अपने बाजू के निचे बगल में से अपने मस्त स्तनोँ पर रख दिया।

सुनीता चाहती थी की जस्सूजी उसके स्तनोँ को सहलाते रहें। तीनों गरम बदन एक दूसरे से चिपके हुए लेट गए। कुछ देर तक कमरे में एकदम शान्ति छा गयी। कुछ ही देर में तीनों खर्राटे मारने लगे। प्रचुर थकान की वजह से चाहते हुए भी तीनों गहरी नींद सो गए। चारों और सन्नाटा छाया हुआ था। खिड़की में से दूर दूर तक कोई इंसान जानवर नजर नहीं आता था। ऐसे ही कुछ घंटे बीत गए।

अचानक सुनीता के गाल पर कुछ पानी की बूंदड़ें टपकने लगी। सुनीता ने आँखें खोलीं तो पाया की उसके पति सुनीलजी सुनीता की आँखों में करीब से एकटक देख रहे थे। उनकी आँखों से आँसुंओं की धारा बह रही थी। सुनीता अपने पति के और करीब खिसकी और और उनसे और कस के चिपक गयी और बोली, “मेरी जान! क्या बात है? इतने दुखी क्यों हो?”

सुनीलजी ने सुनीता के होंठों पर हलके से चुम्बन किया और बोले, “डार्लिंग, आजतक मैंने किसी पर हाथ तक नहीं उठाया। आज इन्हीं हाथों से मैंने दो इंसानों को मौत के घाट उतार दिया। आज तक मैंने किसी डेड बॉडी को करीब से नहीं देखा था। आज और कलमें मैंने चार चार मृत शरीर को मेरे हाथों में उठाया। मैं खुनी हूँ, मैंने खून किया है। मुझे माफ़ कर दो।”

सुनीता ने अपने पति के सर को अपनी छाती से चिपका दिया और बोली, “जानू, तुम कोई खुनी नहीं हो। तुमने कोई खून नहीं किया। तुमने अपनी जानकी रक्षा की है और आत्मा रक्षा करना हम सब का कर्तव्य है। भगवान श्री कृष्ण ने भी श्रीमद भगवत गीता में अर्जुन को यही उपदेश दिया था की आत्मरक्षा से पीछे हटना कायरता का निशान है। जानू, तुम कायर नहीं और तुम खुनी भी नहीं हो। अगर तुमने उनको नहीं मारा होता तो वह तुमको मार डालते।”

ऐसा कह कर सुनीता ने अपने पति सुनील के ऊपर उठकर उनके होँठों से अपने होंठ चिपका दिए। अपने पति को क़िस करते हुए सुनीता उनको दिलासा दिलाती हुई बार बार यही बोले जा रही थी की “मेरा जानू कतई खुनी नहीं है। वह किसीका खून कर ही नहीं सकता।” जैसे माँ अपने बच्चे को दिलासा देती रहती है ऐसे ही सुनीता अपने पति को यह भरोसा दिला रही थी की उन्होंने कोई खून नहीं किया। साथ ही साथ में अपने स्तनों पर सुनीलजी का मुंह रगड़ कर सुनीता अपने स्तनों का अस्वादन भी अपने पति को करवा रही थी। सुनीता चाहती थी की सुनीलजी का मूड़ जो नकारात्मक भावों में डूबा हुआ था वह कुछ रोमांटिक दिशा में घूमे।

जस्सूजी नींद से जाग गए और पति पत्नी की चर्चा ध्यान से सुन रहे थे। वह भी सुनीता के पीछे उसके और करीब आये और सुनीलजी के आंसूं पोंछते हुए बोले, “सुनीलजी आप ने देश की और अपनी सुरक्षा की है और वास्तव में आप शाबाशी के पात्र हो। एक साधारण नागरिक के लिए इस तरह अपनी रक्षा करना आसान नहीं है। आपने अपने देश की भी रक्षा की है। वह ऐसे की, अगर आप पकडे जाते तो आपको यह दुश्मन बंधक बना देते और फिर अपनी सरकार से कुछ आतंकवादी छुड़वाने के लिए फिरौती के रूप में सौदेबाजी करते। हो सकता है मज़बूरी में सरकार मान भी जाती। इस नजरिये से देखा जाये तो आपने अपने आपकी सुरक्षा कर के देश सेवा की है।”

सुनीलजी ने जस्सूजी को अपनी पत्नी सुनीता के पीछे देखा तो अपना हाथ बढ़ा कर उनका हाथ अपने हाथों में लिया। सुनीलजी ने जस्सूजी से कहा, “जस्सूजी, मैं बता नहीं सकता की सुनीता को बचाकर आपने मुझ पर कितना बड़ा एहसान किया है। जो काम करने की मेरी हिम्मत और काबिलियत नहीं थी वह आपने कर दिखाया। मैं और सुनीता आपके सदा ऋणी रहेंगे।”

अपनी पत्नी और जिगरी दोस्त के सांत्वना और उत्साह से भरे वाक्य सुनकर सुनीलजी का मूड़ बिलकुल बदल चुका था। अब वह अपने पुराने शरारती अंदाज में आ गए थे। उन्होंने सुनीता को पकड़ा और जबरदस्ती करवट लेने को बाध्य किया। सुनीता अब जस्सूजी के मुंह से मुंह मिलाने के करीब थी। सुनीलजी ने सुनीता की गाँड़ में अपने पेंडू से धक्का माते हुए कहा, “सुनीता अब तो तुम्हारा प्रण पूरा हुआ की नहीं? अब तो तुम अपनी माँ को दिए हुए वचन का पालन करोगी ना? जस्सूजी ने अपनी जान जोखिम में डाल कर तुम्हारी जान बचायी। अब तो तुम मेरी ख्वाहिश पूरी करोगी ना?”

सुनीता ने अपने पति को चूँटी भरते हुए पर काफी शर्म से गालों पर लाली दिखाते हुए उसी अंदाज में कहा, “अब आपको जस्सूजी का ऋणी होने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने किसी और को नहीं बचाया उन्होंने अपनी सुनीता को ही बचाया है। जहां तक आपकी ख्वाहिश पूरी करने का सवाल है तो मैं क्या कहूं? आप दोनों मर्द हैं। मैं तो आपकी ही मिलकियत हूँ। अब आप जैसा चाहेंगे, मैं वैसा ही करुँगी।”

सुनीता ने धीरे से सारी जिम्मेवारी का टोकरा अपने पति के सर पर ही रख दिया। वैसे भी पत्नियां ऐसे नाजुक मामले में हमेशा वह जो करेगी वह पति के ख़ुशी के लिए ही करती है यह दिखावा जरूर करती है।

सुनीलजी ने अपनी पत्नी को और धक्का देते हुए जस्सूजी से बिलकुल चिपकने को बाध्य किया और अपने पेंडू से और कड़क लण्ड से सुनीता की गाँड़ पर एक धक्का मार कर जस्सूजी के होँठों से सुनीता के होँठ चिपका दिए। उन्होंने सुनीता का एक हाथ उठाया और जस्सूजी के बदन के ऊपर रख दिया जिससे सुनीता जस्सूजी को अपनी बाँहों में ले सके।

जस्सूजी ने बड़े ही संङ्कोच से सुनीलजी की और देखा। सुनीलजी ने आँख मारकर जस्सूजी को चुप रहने का इशारा किया और अपना हाथ भी अपनी बीबी के हाथ पर रख कर सुनीता को जस्सूजी को बाहुपाश में बाँधने को बाध्य किया।

कहानी आगे जारी रहेगी…

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