This story is part of the Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din series
सुनीता को जस्सूजी का लण्ड अपनी चूत में लेकर जो भाव हो रहा था वह अवर्णीय था। एक तो जस्सूजी उसके गुरु और मार्ग दर्शक थे। उसके अलावा वह उसको बहुत चाहते थे।
जस्सूजी सुनीता पर अपनी जान छिड़कते थे। यह तो साबित हो ही गया था। ऊपर से उनके मन में सुनीता के लिए बड़ी सम्मान की भावना थी।
जस्सूजी का लण्ड सुनीता की चूत में पहले कभी ना हुआ था ऐसा अनोखा प्यार भरा उन्माद पैदा कर रहा था। इसके कारण सुनीता की चूत में भी एक ऐसी फड़फड़ाहट और कम्पन हो रहा था जिसे जस्सूजी स्वयं भी अनुभव कर रहे थे।
सुनीता की चूत में इतना उन्माद हो रहा था की जस्सूजी के हर एक धक्के से वह अपने आपको गदगद महसूस कर रही थी। सुनीता के पुरे बदन में रोमांच की उत्कट लहर दौड़ जाती थी।
सुनीता ने जस्सूजी का मुंह अपने स्तनों पर रखा और उन्हें स्तनोँ को चूमने और चूसने का आग्रह किया। वह रात सुनीता की सबसे ज्यादा यादगार रात थी। जस्सूजी महसूस कर रहे थे की सुनीता की चूत की दीवारें कभी एकदम उनके लण्ड को सिकुड़ कर जकड लेतीं तो कभी ढीला छोड़ देतीं।
जैसे जैसे चूत सिकुड़ कर जकड़ लेतीं तो जस्सूजी के लण्ड और पुरे बदन में अजीब सा रोमांच और उत्तेजक सिहरन फ़ैल जाती। सुनीता चाहती थी की जस्सूजी उसके पुरे बदन का आनंद उठायें। वह बार बार कभी जस्सूजी के हाथ अपनी गाँड़ पर तो कभी अपने स्तनोँ पर तो कभी अपनी चूत पर रख कर जस्सूजी को उसे सहलाने के लिए बाध्य करती।
सुनीता की चूत में फड़कन इतनी तेज हो रही थी की उसके लिए अब अपने आप पर नियत्रण रखना नामुमकिन सा हो रहा था। सुनीता के नंगे बदन पर जस्सूजी का हाथ फिराना ही सुनीता को बेकाबू कर रहा था।
सुनीता को यकीन था की उसकी बहुत बढ़िया अच्छीखासी चुदाई होने वाली थी और वह दर्द के डर के बावजूद भी अपने प्रियतम जस्सूजी से ऐसी घमासान और भद्दी चुदाई के लिए बेकरार थी।
पर जस्सूजी के नंगे बदन का, उनके लण्ड का और उनकी मांसल बाँहों का स्पर्श मात्र से ही सुनीता का अंग अंग फड़क उठा था। जब पहली बार जस्सूजी के लण्ड ने सुनीता की चूत में प्रवेश किया तो सुनीता को ऐसा लगा जैसे वह मर ही गयी। उसके पुरे बदन में उन्माद और रोमांच की एक अजीब सी लहर दौड़ने लगी। उसे लगा की उसका पानी छूटने वाला ही था।
अगर जस्सूजी को यह पता लग गया की सुनीता अपना पानी छोड़ने वाली है तो शायद जस्सूजी अपनी चोदने की रफ़्तार कम करदें या कहीं अपना लण्ड बाहर ही ना निकाल लें इस डर से सुनीता अपनी उंचाई पर पहुंचें के बावजूद अपने आप पर कण्ट्रोल कर रही थी।
पर जैसे जैसे जस्सूजी ने एक एक बाद एक धक्के मारने शुरू किया तो सुनीता नियत्रण से बाहर हो गयी और जस्सूजी की बाँहें अपने हाथों में जकड कर बोल पड़ी, “आहहह ….. ओह्ह्ह…. उफ्फ्फ….” जस्सूजी प्लीज मुझे और जोरसे चोदिये. मेरा छूटने वाला है। पर आप मत रुकिए।”
एक बड़ी हलकी सी “आह….. की सिसकारी दे कर सुनीता ढेर हो गयी। जस्सूजी ने देखा की सुनीता झड़ चुकी है तो वह अपना फुला हुआ लण्ड सुनीता की चूत में से बाहर निकालने लगे। सुनीता ने जस्सूजी का हाथ थाम कर उन्हें अपना लण्ड उसकी चूत में से बाहर निकाल ने से रोका। सुनीता ने जस्सूजी को चुदाई जारी रखने को कहा। पर जस्सूजी ने कहा, “सुनीता, तुम चिंता मत करो। मैं तैयार ही हूँ। मैं ढीला नहीं पड़ने वाला। तुम कुछ पल आराम कर लो।”
सुनीता ने जस्सूजी की और ऊपर आँखें उठा कर देखा। सुनीता को अपनी चूत में जस्सूजी का फड़फड़ाता हुआ कड़क छड़ सा सख्त लण्ड महसूस कर यकीन हुआ की जस्सूजी इस ब्रेक के कारण ढीले नहीं पड़ेंगे और उसकी चुदाई में कोई कमी नहीं आएगी।
कुछ देर आराम करने के बाद सुनीता एकदम फुर्ती से उठी और जस्सूजी का लण्ड अपनी चूत में ही गड़े हुए रखते हुए जस्सूजी के होँठों को चूमकर जस्सूजी को कहने लगी, “जस्सूजी मैं तैयार हूँ। मैं भले ही झड़ जाऊं। पर आपको ढीला नहीं पड़ना है। मुझे पूरी रात और पुरे दिन भर चोदना है।”
सुनीता की बात सुनकर जस्सूजी के होँठों पर प्यार भरी मुस्कान आ गयी। जस्सूजी ने भी सुनीता के होँठों को चूसते हुए कहा, “सुनीता, तुम क्या समझती हो? क्या मैं इतनी आसानी से मेरी महीनों की अधूरी कामाग्नि को ऐसे ही छोड़ दूंगा? मुझे भी मेरी सुनीता को रात भर चोदना है।”
यह कह कर जस्सूजी ने सुनीता को धीरे से सुलाया और फिर उसके ऊपर ठीक से सवार हो कर सुनीता के दोनों फुले हुए बॉल (स्तनोँ) को अपनी हथेली और उँगलियों में मसलते हुए सुनीता की चूत में अपना लण्ड अंदर बाहर करते हुए उसे चोदने में एक बार फिर से मशगूल हो गए।
जस्सूजी एक के बाद एक फुर्ती से अपना लण्ड सुनीता की चूत में पेले जा रहे थे। सुनीता भी अपनी गाँड़ उछाल उछाल कर जस्सूजी के मोटे तगड़े लण्ड को अपनी चूत में पूरा अंदर तक लेने का प्रयास करती थी। जस्सूजी के हर एक धक्के को सुनीता “उँह….. उँह…….” करती हुई कराहती। जस्सूजी भी हर एक धक्के के साथ साथ “उफ…. उफ़…..” करते हुए सुनीता को चोदे जा रहे थे।
सुनीता ने अपनी टाँगें उठाकर जस्सूजी के कंधे की दोनों तरफ चौड़ी कर फैला रखीं थीं जिससे जस्सूजी को उसकी टाँगों के बिच में घुसने में कोई दिक्कत ना हो। पुरे कमरे में चुदाई की “फच्च…. फच्च……” आवाज का उद्घोष हो रहा था। जस्सूजी का इतना मोटा लण्ड भी सुनीता की चूत में समा गया और सुनीता को कोई खून नहीं निकला यह सुनीता के लिए एक राहत की बात थी।
उस रात सुनीता ने जस्सूजी को उस रात तक जितना तड़पाया था उसका पूरा मुआवजा देना चाहती थी। सुनीता उन्हें वह आनंद देना चाहती थी जो ज्योतिजी उन्हें नहीं दे पायी हो।
इस लिए अलग अलग कोने से अपना बदन इधर उधर कर सुनीता जस्सूजी का लन्ड अपनी चूत के हर कोने में महसूस करना चाहती थी। जस्सूजी भी सुनीता के ऐसा करने से अद्भुत रोमांच अनुभव कर रहे थे।
कुछ देर की चुदाई के बाद सुनीता ने जस्सूजी को रोका। सुनीता ने अपना सर ऊपर उठाकर जस्सूजी के होँठ अपने होँठों प् रखे और उन्हें चूमते हुए सुनीता ने कहा, “जस्सूजी, आज से मेरे इस बदन पर आपका उतना ही हक़ है जितना की मेरे पति का। हाँ, क्यूंकि मैं सुनीलजी की सामाजिक पत्नी हूँ इस लिए मैं रोज आपके साथ सो नहीं सकती, पर आप जब चाहे मुझे चुदाई के लिए बुला सकते हैं या फिर मेरे बैडरूम में आ सकते हैं। मैं जानती हूँ की मेरे पति को इसमें कोई आपत्ति नहीं होगी। जहां तक ज्योतिजी का सवाल है तो वह भी तो आपसे मेरी चुदाई करवाने के लिए बड़ी उत्सुक थीं।”
जस्सूजी ने सुनीता को प्यार से चूमते हुए कहा, “सुनीता, ज्योति ने मुझे वचन दिया था की एक ना एक दिन वह तुम्हें मेरे बिस्तर में मुझसे चुदवाने के लिए मना ही लेगी। यह आपसी समझौता मेरे और ज्योति के बिच में तो पहले से ही थी। सुनीता तुम इतना समझ लो की मैं भी तुम्हें उतना ही प्यार करता हूँ जितना तुम मुझ से करती हो। हमारे सिर्फ बदन ही नहीं मिले, आज हमारे ह्रदय भी मिले हैं।”
सुनीता ने जस्सूजी को चूमते हुए “मेरे राजा, आज हम और कोई बात नहीं करेंगे। हम ने बहुत बातें की, बहुत प्यार भरी हरकतें की, पर चुदाई का मौका तो अब मिला है। जस्सूजी आप को पता नहीं, मैं इस लम्हे के लिए कितनी बेबस थी। आप शायद नहीं समझ पाएंगे एक स्त्री की भावनाओं को। हम औरतों की चूत हमारी आँखों के साथ साथ हमारे दिल से जुडी है। आप मर्दों का लण्ड सिर्फ आपकी आँखों से जुड़ा है। यही फर्क है मर्द औरऔरतों की सेक्स करने की उत्तेजना को भड़काने वाली चाभी में।
आप मर्द लोग शायद सुन्दर औरत का कमसिन बदन देख कर उसे चोदने के लिए आमादा हो जाते हो। हम औरत लोग ज्यादातर मर्द के बदन से जरूर आकर्षित होते हैं, पर उससे भी ज्यादा हम मर्द के प्यार और हमारे लिए उसके मन में त्याग या निछावर होने की भावना से ज्यादा उत्तेजित होते हैं। पहली बार शायद हम जरूर आँखों की बात मानते हैं। पर आखिर में आँखों से भी ज्यादा हम दिल की बात मानते हैं।
आप से तो मैं उसी दिन मानसिक रूप से चुदवाने के लिए तैयार हो गयी थी जब आप ने पहेली बार उस सिनेमा हॉल में अपना लण्ड मेरे हाथों में दे दिया था। मेरे पति के लण्ड को छोड़ आप का लण्ड मेरे लिए पहला मरदाना लण्ड था जिसे मैने अपने हाथों में लिया था।
उसी समय मेरी चूत से मेरा पानी निकल ने लगा था। आपका लण्ड मेरे पति से कहीं भारी, मोटा और लंबा है। पता नहीं कितनी रातें मैंने आपके लण्ड को मेरी चूत में डलवाने के सपने देखते हुए गुजारी है।
कितनी रातें मैंने अपने पति चुदवाते हुए भी यह समझ कर गुजारीं थीं की मैं मेरे पति से नहीं आपसे चुदवा रही हूँ। उसके बाद जब आपने मेरी पढ़ाई के लिए इतना ज्यादा बलिदान किया की मुझे अव्वल दर्जा दिला कर ही छोड़ा। इसके कारण मेरे मन में आपके लिए वह भाव उमड़ पड़ा जिसे मैं कह नहीं सकती।
जब मैं उस झरने में आपके सामने आधी नंगी हाजिर हुई और आपका बदन जब मेरे बदन को छुआ तो मेरे धैर्य ने जवाब दे दिया। अगर उस दिन आपने मुझे रोका नहीं होता तो मैं माँ को दिया हुआ वचन तोड़कर भी आपसे चुदवाने के लिए बिलकुल तैयार थी। मैंने अपने आप पर नियत्रण बिलकुल खो दिया था। पर आपने अपना मरदाना धैर्य का ज्वलंत प्रदर्शन दिया और मुझे माँ का वचन तोड़ने से बचाया।
पर अगर आपने मुझे उस दिन चोदा होता तो आपके लिए मेरे मन में आज जो भाव है वह शायद नहीं रहता। आखिर मैं आपने अपनी जान का लगभग बलिदान देकर मुझे बचाया तो माँ को दिया हुआ वचन भी पूरा हुआ और आपने मुझे बिना मोल खरीद भी लिया। अब सिर्फ मेरा यह बदन, मेरा स्त्रीत्व, मेरा प्यार यहां तक की मेरी जान भी आप पर न्योछावर है।
आखिर में आज घर से कितनी दूर, कुदरत की इन वादियों के बिच नदिओं, पहाड़ और झरनों के सान्निध्य में आज आप से चुदवाने की मेरी मनोकामना पूरी करने का अवसर मुझे मिला है। आज तक आपके और मेरे इतनी उत्कटता से एक दूसरे को चोदने की गाढ़ इच्छा और अवसर मिलने के बावजूद भी माँ की आज्ञा के कारण मैं आपकी शय्या भागिनी नहीं बन सकी। आज मुझे अवसर मिला है की मैं अपने तन, मन और माँ की इच्छा पूरी करूँ और मेरे सारे अस्तित्व को आपको समर्पित करूँ।”
जस्सूजी सुनीता को देखते ही रहे। सुनीता की आँखों में से भाव के प्यार भरे आँसूं बह रहे थे। उन्होंने सुनीता की चूत में ही अपने लण्ड को गाड़े रखे हुए सुनीता को चूमा और बोले, “प्रिया, तुम मेरी अपनी हो। तुम मेरी पत्नी नहीं उससे भी कहीं अधिक हो। तुम ना सिर्फ मेरी शैय्या भागिनी हो, तुम मेरी अंतर आत्मा हो। तुम्हें पा कर आज मैं खुद धन्य हो गया।
पर जैसा की तुमने सबसे पहले कहा, अभी हमें अपना ध्यान प्यार से भी ज्यादा चुदाई में लगाना है क्यूंकि हमारे पास अभी भी ज्यादा समय नहीं। कहीं ऐसा ना हो, हमारा पीछा करते हुए दुश्मन के सिपाही यहां आ पहुंचे। यह भी हो सकता है की हमारी ही सेना के जवान हमें ढूंढते हुए यहां आ पहुंचे।”
सुनीता ने जस्सूजी के मुंह में अपनी जीभ डाली और जस्सूजी के मुंह को सुनीता जोश खरोश के साथ चोदने लगी। चोदते हुए एक बार जीभ हटा कर सुनीता ने कहा, “जस्सूजी, आज मुझे आप ऐसे चोदिये जैसे आपने पहले किसी को भी चोदा नहीं होगा। ज्योतिजी को भी नहीं। आपका यह मोटा तगड़ा लण्ड मैं ना सिर्फ मेरी चूत के हर गलियारे और कोने में, बल्कि मेरे बदन के हर हिस्से में महसूस करना चाहती हूँ।”
यह कह कर सुनीता ने जस्सूजी का वीर्य से लबालब भरा लण्ड जो की सुनीता की चूत की गुफा में खोया हुआ था, उसे अपनी उँगलियों में पकड़ा। सुनीता की चूत और जस्सूजी के लण्ड के बिच उंगली डाल कर सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड और अपनी चूत को अपनी कोमल उँगलियों से रगड़ा।
सुनीता की नाजुक उँगलियों को छूने से जस्सूजी का वीर्य उनके अंडकोषों में फुंफकार मारते हुए उनके लण्ड की रगों में उछलने लगा। जस्सूजी ने अपनी प्रियतमा की इच्छा पूरी करते हुए अपना लण्ड सुनीता की प्यासी चूत में फिर से पेलना शुरू किया।
जस्सूजी का लण्ड पूरी तरह फुला हुआ अपनी पूरी लम्बाई और मोटाई पा चुका था। सुनीता की चूत के हर मोहल्ले और गलियारे में वह जैसे एक बादशाह अपनी रियाया (प्रजा) के इलाके में उन्मत्त सैर करता है वैसे ही जस्सूजी का लण्ड अपनी प्रियतमा सुनीता की चूत की सुरंग के हर कोने में हर सुराख में जाकर उसे टटोलता और उसे चूमता हुआ सुनीता की चूत के द्वार में से अंदर बाहर हो रहा था।
सुनीता के स्त्री रस से सराबोर और जस्सूजी के पूर्व स्राव की चिकनाहट से लथपथ जस्सूजी के मोटे लण्ड को सुनीता की चूत के अंदर बाहर जाने आने में पहले की तरह ज्यादा दिक्कत नहीं हो रही थी। पर फिर भी सुनीता की चूत की दीवारों को जस्सूजी का लण्ड काफी तनाव में रखे हुए था। और इसके कारण ही सुनीता को अपनी चूत में एक अनोखा उन्माद हो रहा था।
सुनीता उछल उछल कर जस्सूजी के लण्ड को अपने अंदर गहराई तक डलवा रही थी। उसे इस लण्ड को आज इतने महीनों से ना चुदवाने की कसर जो निकालनी थी। सुनीता ने थोड़ा ऊपर उठ कर जस्सूजी के लण्ड को अपनी चूत से अंदर बाहर जाते हुए देखना चाहा। वह अपनी चुदाई को अनुभव तो कर रही थी पर साथ साथ उसे अपनी आँखों से देखना भी चाहती थी।
जस्सूजी का चिकनाहट भरा लण्ड उसने अपनी चूत में से घुसते हुए और निकलते हुए देखा तो उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ की जस्सूजी का इतना मोटा लण्ड अंदर लेने के लिये उसकी चूत कितनी फूली हुई थी। सुनीता ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी की इतना मोटा लण्ड लेने के लिए उसकी चूत इतनी फ़ैल भी पाएगी और वह कभी जस्सूजी का लण्ड अपनी चूत में ले भी पाएगी।
जस्सूजी का लण्ड सफ़ेद चिकनाहट से लथपथ द्देख सुनीता को डर लगा की कहीं जस्सूजी ने अपना वीर्य तो नहीं छोड़ दिया? अगर ऐसा हुआ तो फिर जस्सूजी ढीले पड़ जायेंगे और वह सुनीता नहीं चाहती थी।
पर जस्सूजी की तेज रफ़्तार से चुदाई करते देख कर और उसकी चूत में जस्सूजी के लण्ड की जो मोटाई और लम्बाई तब भी बरकरार थी उसे महसूस कर के सुनीता को यकीन हो गया की जस्सूजी ने अपना वीर्य नहीं छोड़ा था और जो चिकनाहट वह देख रही थी वह जस्सूजी के लण्ड में से निकला हुआ पूर्व स्राव ही था।
अपनी चुदाई का साक्षात दृश्य देख कर और जस्सूजी का मोटा चिकनाहट से लथपथ लण्ड अपनी फूली हुई चूत के अंदर बाहर निकलते हुए देख कर सुनीता की उत्तेजना और बढ़ने लगी।
उसका स्त्रीत्व और उसका मन का उत्कट भाव उसकी चूत की झनझनाहट को ऐसे छेड़ रहा था जैसे कोई सितार बजाने वाला सितार के तारों को अपनी उँगलियों से झनझनाहट करता हुआ छेड़ रहा हो।
सुनीता की चूत जैसे जैसे सुनीता अपनी चुदाई देखती गयी वैसे वैसे और ज्यादा रोमांचित होती गयी। सुनीता की चूत में उसका स्त्री रस फव्वारे सा बहने लगा। सुनीता एक बार फिर अपने चरम पर पहुँचने वाली थी। जस्सूजी का लण्ड उसकी चूत पर कहर ढा रहा था। इतनी थकान और कम नींद के बावजूद जस्सूजी का लंड रुकने का नाम नहीं ले रहा था।
एक बार फिर सुनीता ने जस्सूजी की कलाई सख्ती से पकड़ी और “आह्ह्ह्हह्ह…… अरे……. ऑफ़….. जस्सूजी आपका लण्ड कमाल कर रहा है। मेरा छूट रहा है। पर आप रुकिएगा नहीं। प्लीज चोदिये, चोदते जाइये।” कह कर सुनीता फिर ढेर सी गिर पड़ी।
उसका बदन एकदल ढीला पड़ गया था। वह चुदाई की थकान से हांफने लगी थी। जस्सूजी ने सुनीता के मना करने पर भी अपने आपको रोका और अपनी प्रियतमा को साँस लेने और आराम का मौक़ा दिया।
बने रहिएगा.. क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी!