This story is part of the Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din series
जस्सूजी ने देखा की सुनीता पानी के अंदर रुक गयी पर एक ही जगह भँवर के कारण गोल गोल घूम रही थी। पानी में खतरनाक भँवर हो रहे थे। उस भँवर में फंसना मतलब अच्छे खासे तैराक के लिए भी जानका खतरा हो सकता था।
अगर उन्होंने सुनीता को फ़ौरन पकड़ा नहीं और सुनीता पानी के भँवर में बिच की और चली गयी तो सीधी ही अंदर चली जायेगी और दम घुटने से और ज्यादा पानी पीने से उसकी जान भी जा सकती थी।
पर दूसरी तरफ एक और खतरा भी था। अगर वह अंदर चले गए तो उनकी जान को भी कोई कम ख़तरा नहीं था। एक बार भँवर में फँसने का मतलब उनके लिए भी जान जोखिम में डालना था। पर जस्सूजी उस समय अपनी जान से ज्यादा सुनीता की जान की चिंता में थे।
बिना सोचे समझे जस्सूजी भँवर के पास पहुँच गए और तेजी से तैरते हुए सुनिताका हाथ इन्होने थाम लिया। जैसे ही सुनीता भँवर में फँसी तो उसने अपने बचने की आशा खो दी थी।
उसे पता था की इतने तेज भंवर में जाने की हिम्मत जस्सूजी भी नहीं कर पाएंगे। किसी के लिए भी इतने तेज भँवर में फँसना मतलब जान से हाथ धोने के बराबर था।
पर जब जस्सूजी ने सुनीता का हाथ अपने हाथ में थामा तो सुनीता के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा। “यह कैसा पागल आदमी है? सुनीता को बचाने के लिए अपने जान की भी परवाह नहीं उसे?” सुनीता हैरान रह गयी। उसे कोई उम्मीद नहीं थी और नाही वह चाहती थी की जस्सूजी अपनी जान खतरे में डाल कर उसे बचाये।
पर जस्सूजी ने सुनीता का ना सिर्फ हाथ पकड़ा बल्कि आगे तैर कर सुनीता को अपनी बाँहों में भर लिया और कस के सुनीता को अपनी छाती से ऐसे लगा लिया जैसे वह कोई दो बदन नहीं एक ही बदन हों। सुनीता ने भी अपना जान बचाने के चक्कर में जस्सूजी को कस कर पकड़ लिया और अपनी दोनों बाजुओं से उनसे कस के लिपट गयी।
भँवर बड़ा तेज था। जस्सूजी इतने एक्सपर्ट तैराक होने के बावजूद उस भँवर में से निकलने में नाकाम साबित हो रहे थे। ऊपर से बारिश एकदम तेज हो गयी थी। पानी का बहाव तेज होने के कारण भँवर काफी तेजी से घूम रहा था।
जस्सूजी और सुनीता भी उस तेज भँवर में तेजी से घूम रहे थे। घूमते घूमते वह दोनों धीरे धीरे भँवर के केंद्र बिंदु (जिसे भँवर की आँख कहते हैं) की और जा रहे थे।
वह सबसे खतरनाक खाई जैसी जगह थी जिस के पास पहुँचते ही जो भी चीज़ वहाँ तक पहुँचती थी वह समुन्दर की गोद में गायब हो जाती थी। भंवर काफी गहरा होता है। २० फ़ीट से लेकर १०० फ़ीट से भी ज्यादा का हो सकता है।
जस्सूजी का सर चक्कर खा रहा था। भँवर इतनी तेजी से घूमर घूम रहा था की किसी भी चीज़ पर फोकस कर रखना नामुमकिन था। जस्सूजी फिर भी अपना दिमाग केंद्रित कर वहाँ से छूटने में बारे में सोच रहे थे। सुनीता अपनी आँखें बंद कर जो जस्सूजी करेंगे और जो भगवान् को मंजूर होगा वही होगा यह सोचकर जस्सूजी से चिपकी हुई थी। थकान और घबराहट के कारण सुनीता जस्सूजी से करीब करीब बेहोशी की हालात में चिपकी हुई थी।
तब अचानक जस्सूजी को एक विचार आया जो उन्होंने कहीं पढ़ा था। उन्होंने सुनीता को अपने से अलग करने के लिए उसके हाथ हटाए और अपने बदन से उसे दूर किया। सुनीता को कस के पकड़ रखने के उपरांत उन्होंने सुनीता और अपने बदन के बिच में कुछ अंतर रखा, जिससे भँवर के अंदर काफी अवरोध पैदा हो।
एक वैज्ञानिक सिद्धांत के मुताबिक़ अगर कोई वस्तु अपकेंद्रित याने केंद्र त्यागी (सेन्ट्रीफ्यूगल) गति चक्र में फंसी हो और उसमें और अवरोध पैदा किया जाये तो वह उस वस्तु को केंद्र से बाहर फेंकने को कोशिश करेगी।
सुनीता को अलग कर फिर भी उसे कस के पकड़ रखने से पैदा हुए अतिरिक्त अवरोध के कारण दोनों जस्सूजी और सुनीता भँवर से बाहर की और फेंक दिए गए।
जस्सूजी ने फ़ौरन ख़ुशी के मारे सुनीता को कस कर छाती और गले लगाया और सुनीता को कहा, “शुक्र है, हम लोग भँवर से बाहर निकल पाए। आज तो हम दोनों का अंतिम समय एकदम करीब ही था। अब जब तक हम पानी के बाहर निकल नहीं जाते बस तुम बस मुझसे चिपकी रहो और बाकी सब मुझ पर छोड़ दो। मुझे पूरा भरोसा है की हमें भगवान् जरूर बचाएंगे।”
सुनीता ने और कस कर लिपट कर जस्सूजी से कहा, “मेरे भगवान् तो आप ही हैं। मुझे भगवान् पर जितना भरोसा है उतना ही आप पर भरोसा है। अब तो मैं आपसे चिपकी ही रहूंगी। आज अगर मैं मर भी जाती तो मुझे कोई अफ़सोस नहीं होता क्यूंकि मैं आपकी बाँहों में मरती। पर जब बचाने वाले आप हों तो मुझे मौत से कोई भी डर नहीं।
पानी के तेज बहाव में बहते बहते भी सुनीता जस्सूजी से ऐसे लिपट गयी जैसे सालों से कोई बेल एक पेड़ से लिपट रही हो। सुनीता को यह चिंता नहीं थी की उसका कौनसा अंग जस्सूजी के कौनसे अंगसे रगड़ रहाथा। उसके शरीर पर से कपडे फट चुके थे उसका भी उसे कोई ध्यान नहीं था। सुनीता का टॉप और ब्रा तक फट चूका था। वह जस्सूजी के गीले बदन से लिपट कर इतनी अद्भुत सुरक्षा महसूस कर रही थी जितनी उसने शायद ही पहले महसूस की होगी।
भँवर में से निकल ने के बाद जस्सूजी अब काफी कुछ सम्हल गए थे। अब उनका ध्येय था की कैसे पानी की बहाव का साथ लिए धीरे धीरे कोशिश कर के किनारे की और बढ़ा जाए।
उन्होंने सुनीता के सर में चुम्बन कर के कहा, “सुनीता अब तुम मुझे छोड़ कर पानी में तैर कर बह कर किनारे की और जाने की कोशिश करो। मैं तुम्हारे साथ ही हूँ और तुम्हारी मदद करूंगा।”
पर सुनीता कहाँ मानने वाली थी? सुनीता को अब कोई तरह की चिंता नहीं थी। सुनीता ने कहा, “अब इस मुसीबत से आप अपना पिंड नहीं छुड़ा सकते। अब मैं आपको छोड़ने वाली नहीं हूँ। वैसे भी मुझमें तैरने की हिम्मत और ताकत नहीं है। अब आपको किनारे ले जाना है तो ले जाओ और डुबाना है तो डुबाओ।” इतना बोल कर सुनीता जस्सूजी के बदन से लिपटी हुई ही बेहोश हो गयी।
सुनीता काफी थकी हुई थी और उसने काफी पानी भी पी लिया था। जस्सूजी धीरे धीरे सुनीता को अपने बदन से चिपकाए हुए पानी को काटते हुए कम गहराई वाले पानी में पहुँचने लगे और फिर तैरते, हाथ पाँव मारते हुए गिरते सम्हलते कैसे भी किनारे पहुँच ही गए।
किनारे पहुँचते ही जस्सूजी सुनीता के साथ ही गीली मिटटी में ही धड़ाम से गिर पड़े। सुनीता बेहोशी की हालत में थी। जस्सूजी भी काफी थके हुए थे। वह भी थकान के मारे गिर पड़े।
सुनीता ने बेहोशी की हालत में भी जस्सूजी का बदन कस के जकड रखा था और किनारे पर भी वह जस्सूजी के साथ ऐसे चिपकी हुई थी जैसे किसी गोंद से उसे जस्सूजी से चिपका दिया गया हो। दोनों एक दूसरे से के बाजू में एकदूसरे से लिपटे हुए भारी बारिश में लेटे हुए थे।
उस समय उन दोनों में से किसी को यह चिंता नहीं थी की उनके बदन के ऊपर कौनसा कपड़ा था या नहीं था। बल्कि उन्हें यह भी चिंता नहीं थी की कई रेंगते हुए कीड़े मकोड़े उनको बदन को काट सकते थे।
जस्सूजी ने बेहोश सुनीता को धीरे से अपने से अलग किया। उन्होंने देखा की सुनीता काफी पानी पी चुकी थी। जस्सूजी ने पानी में से निकलने के बाद पहली बार सुनीता के पुरे बदन को नदी के किनारे पर बेफाम लेटे हुए देखा। सुनीता का स्कर्ट करीब करीब फट गया था और उसकी जाँघें पूरी तरह से नंगी दिख रही थी।
सुनीता की छोटी से पैंटी उसकी चूत के उभार को छुपाये हुए थी। सुनीता का टॉप पूरा फट गया था और सुनीता की छाती पर बिखरा हुआ था। उसकी ब्रा को कोई अतापता नहीं था। सुनीता के मदमस्त स्तन पूरी तरह आज़ाद फुले हुए हलके हलके झोले खा रहे थे।
पर जस्सूजी को यह सब से ज्यादा चिंता थी सुनीता के हालात की। उन्होंने फ़ौरन सुनीता के बदन को अपनी दो जाँघों के बिच में लिया और वह सुनीता के ऊपर चढ़ गए। दूर से देखने वाला तो यह ही सोचता की जस्सूजी सुनीता को चोदने के लिए उसके ऊपर चढ़े हुए थे।
सुनीता का हाल भी तो ऐसा ही था. वह लगभग नंगी लेटी हुई थी। उसके बदन पर उसकी चूत को छिपाने वाला पैंटी का एक फटा हुआ टुकड़ा ही था और फटा हुआ टॉप इधरउधर बदन पर फैला हुआ था जिसे जस्सूजी चाहते तो आसानी से हटा कर फेंक सकते थे।
जस्सूजी ने सुनीता के बूब्स के ऊपर अपने दोनों हाथलियाँ टिकायीं और अपने पुरे बदन का वजन देकर दोनों ही बूब्स को जोर से दबाते हुए पानी निकालने की कोशिश शुरू की। पहले वह बूब्स को ऊपर से वजन देकर दबाते और फिर उसे छोड़ देते। तीन चार बार ऐसा करने पर एकदम सुनीता ने जोर से खांसी खाते हुए काफी पानी उगल ना शुरू किया। पानी उगल ने के बाद सुनीता फिर बेहोश हो गयी।
जस्सूजी ने जब देखा की सुनीता फिर बेहोश हो गयी तो वह घबड़ाये। उन्होंने सुनीता की छाती पर अपने कान रखे तो उन्हें लगा की शायद सुनीता की साँस रुक गयी थी।
जस्सूजी ने फ़ौरन सुनीता को कृत्रिम साँस (आर्टिफिशल रेस्पिरेशन) देना शुरू किया। जस्सूजी ने अपना मुंह सुनीता के मुंह पर सटा लिया और उसे अपने मुंह से अपनी स्वास उसे देने की कोशिश की।
अचानक जस्सूजी ने महसूस किया की सुनीता ने अपनी बाँहें उठाकर जस्सूजी का सर अपने हाथों में पकड़ा और जस्सूजी के होँठों को अपने होँठों पर कस के दबा कर जस्सूजी के होँठों को चूसने लगी।
जस्सूजी समझ गए की सुनीता पूरी तरह से होश में आ गयी थी और अब वह कुछ रोमांटिक मूड में थी।
जस्सूजी ने अपना मुँह हटा ने की कोशिश की और बोले, “छोडो, यह क्या कर रही हो?”
तब सुनीता ने कहा, “अब तो मैं कुछ भी नहीं कर रही हूँ। मैं क्या कर सकती हूँ तुम अब देखना।”
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