This story is part of the Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din series
सुनीता जैसे ही जस्सूजी की बाँहों में समायी उसने जस्सूजी के खड़े लण्ड को महसूस किया। सुनीता जानती थी की जस्सूजी उस पर कोई जबरदस्ती नहीं करेंगे पर बेचारा जस्सूजी का लण्ड कहाँ मानने वाला था? सुनीता को ऐसे स्विमिंग कॉस्च्यूम में देख कर जस्सूजी के लण्ड का खड़ा होकर जस्सूजी की निक्कर में फनफनाना स्वाभाविक ही था।
सुनीता को जस्सूजी के लण्ड से कोई शिकायत नहीं थी। दो बार सुनीता ने जस्सूजी के लण्ड की गरमी अपने दक्ष हाथों के जादू से निकाल दी थी। सुनीता जस्सूजी के लण्ड की लम्बाई और मोटाई के बारे में भलीभांति वाकिफ थी। पर उस समय उसका एक मात्र लक्ष्य था की उसे जस्सूजी से तैरना सीखना था।
कई बार सुनीता को बड़ा अफ़सोस होता था की उसने तैरना नहीं सीखा था। काफी समय से सुनीता के मन में यह एक प्रबल इच्छा थी की वह तैरना सीखे।
जस्सूजी जैसे आला प्रशिक्षक से जब उसे तैरना सिखने का मौक़ा मिला तो भला वह उसे क्यों जाने दे? जहां तक जस्सूजी के उसके बदन छूने की बात थी तो वह सुनीता के लिए उतनी गंभीर बात नहीं थी।
सुनीता के मन में जस्सूजी का स्थान ह्रदय के इतना करीब था की उसका बस चलता तो वह अपनी पूरी जिंदगी जस्सूजी पर कुर्बान कर देती। जस्सूजी और सुनीता के संबंधों को लेकर बार बार अपने पति के उकसाने के कारण सुनीता के पुरे बदन में जस्सूजी का नाम सुनकर ही एक रोमांच सा हो जाता था।
जस्सूजी से शारीरिक संबंधों के बारेमें सुनीता के मन में हमेशा अजीबो गरीब ख़याल आते रहते थे। भला जिसको कोई इतना चाहता हो उसे कैसे कोई परहेज कर सकता है?
सुनीता मन में कहीं ना कहीं जस्सूजी को अपना प्रियतम तो मान ही चुकी थी। सुनीता के मन में जस्सूजी का शारीरिक और मानसिक आकर्षण उतना जबरदस्त था की अगर उसके पाँव माँ के वचन ने रोके नहीं होते तो शायद अब तक सुनीता जस्सूजी से चुद चुकी होती। पर एक आखरी पड़ाव पार करना बाकी था शायद इस के कारण अब भी जस्सूजी से सुनीता के मन में कुछ शर्म और लज्जा और दुरी का भाव था।
या यूँ कहिये की कोई दुरी नहीं होती है तब भी जिसे आप इतना सम्मान करते हैं और उतना ही प्यार करते हो तो उसके सामने निर्लज्ज तो नहीं हो सकते ना? उनसे कुछ लज्जा और शर्म आना स्वाभाविक भारतीय संस्कृति है।
जब जस्सूजी के सामने सुनीता ने आधी नंगी सी आने में हिचकिचाहट की तो जस्सूजी की रंजिश सुनीता को दिखाई दी। सुनीता जानती थी की जस्सूजी कभी भी सुनीता को बिना रजामंदी के चोदने की बात तो दूर वह किसी भी तरह से छेड़ेंगे भी नहीं।
पर फिर भी सुनीता कभी इतने छोटे कपड़ों में सूरज के प्रकाश में जस्सूजी के सामने प्रस्तुत नहीं हुई थी। इस लिए उसे शर्म और लज्जा आना स्वाभाविक था। शायद ऐसे कपड़ों में पत्नीयाँ भी अपने पति के सामने हाजिर होने से झिझकेंगी।
जब जस्सूजी ने सुनीता की यह हिचकिचाहट देखि तो उन्हें दुःख हुआ। उनको लगा सुनीता को उनके करीब आने डर रही थी की कहीं जस्सूजी सुनीता पर जबरदस्ती ना कर बैठे।
हार कर जस्सूजी पानी से बाहर निकल आये और कैंप में वापस जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने सुनीता से इतना ही कहा की जब सुनीता उन्हें अपना नहीं मानती और उनसे पर्दा करती है तो फिर बेहतर है वह सुनीता से दूर ही रहें।
इस बात से सुनीता को इतना बुरा लगा की वह भाग कर जस्सूजी की बाँहों में लिपट गयी और उसने जस्सूजी से कहा, “अब मैं आपको नहीं रोकूंगी। मैं आपको अपनों से कहीं ज्यादा मानती हूँ। अब आप मुझसे जो चाहे करो।”
उसी समय सुनीता ने तय किया की वह जस्सूजी पर पूरा विश्वास रखेगी और तब उसने मन से अपना सब कुछ जस्सूजी के हाथों में सौंप दिया। पर जस्सूजी भी तो अकड़ू थे।
वह दया, दान, मज़बूरी या भिक्षा नहीं वह अपनी प्रियतमा से प्यार भरा सक्रीय एवं स्वैच्छिक सम्पूर्ण आत्म समर्पण चाहते थे।
ट्रैन में सफर करते हुए जस्सूजी सुनीता के बिस्तर में जा घूसे थे उस वाकये के कारण वह अपने आपसे बड़े नाराज थे।
कैसे उन्होंने अपने आप पर नियत्रण खो दिया? जब सुनीता ने उन्हें स्पष्ट शब्दों में कहा था की वह उनसे शारीरिक सम्बन्ध नहीं रख सकती तब क्यों वह सुनीता के बिस्तर में चले गए? यह तो उनके सिद्धांतों के बिलकुल विरुद्ध था।
उन्होंने सुनीता के सामने सौगंध सी खायी थी की जब तक सुनीता सामने चलकर अपना स्वैच्छिक सक्रीय एवं सम्पूर्ण आत्म समर्पण नहीं करेगी तब तक वह सुनीता को किसी भी तरह के शारीरिक सम्बन्ध के लिए बाध्य नहीं करेंगे।
पर फीर भी ट्रैन में उस रात सुनीता के थोड़ा उकसाने पर वह सुनीता के बिस्तर में घुस गए और अपनी इज्जत दाँव पर लगा दी यह पछतावा जस्सूजी के ह्रदय को खाये जा रहा था।
सुनीता ने तो अपने मन में तय कर लिया की जस्सूजी उसके साथ जो व्यवहार करेंगे वह उसे स्वीकारेगी। अगर जस्सूजी ने सुनीता को चोदने की इच्छा जताई तो सुनीता जस्सूजी से चुदवाने के लिए भी मना नहीं करेगी, हालांकि ऐसा करने से उसने माँ को दिया गया वचन टूट जाएगा।
पर सुनीता को पूरा भरोसा था की जस्सूजी एक सख्त नियम पालन करने वाले इंसान थे और वह कभी भी सुनीता का विश्वास नहीं तोड़ेंगे।
जस्सूजी ने सुनीता को सीमेंट की फर्श पर गाड़े हुए स्टील के बार हाथ में पकड़ कर पानी को सतह पर उलटा लेट कर पॉंव एक के बाद एक पछाड़ ने को कहा।
खुद स्टील का पाइप पकड़ कर जैसे सिख रहे हों ऐसे पानी की सतह पर उलटा लेट गए और पॉंव को सीधा रखते हुए ऊपर निचे करते हुए सुनीता को दिखाया। और सुनीता को भी ऐसा ही करने को कहा।
सुनीता जस्सूजी के कहे मुजब स्टील के बार को पकड़ कर पानी की सतह पर उल्टी लेट गयी। उसकी नंगी गाँड़ जस्सूजी की आँखों को परेशान कर रही थी। वह सुनीता की सुआकार गाँड़ देखते ही रह गए।
सुनीता की नंगी गाँड़ देख कर जस्सूजी का लण्ड जस्सूजी के मानसिक नियत्रण को ठेंगा दिखाता हुआ जस्सूजी की दो जाँघों के बिच निक्कर में कूद रहा था। पर जस्सूजी ने अपने ऊपर कडा नियत्रण रखते हुए उस पर ध्यान नहीं दिया।
जस्सूजी के लिए बड़ी दुविधा थी। उन्हें डर था की अगर उन्होंने सुनीता के करारे बदन को इधर उधर छु लिया तो कहीं वह अपने आप पर नियत्रण तो नहीं खो देंगे? जब सुनीता ने यह देखा तो उसे बड़ा दुःख हुआ।
वह जानती थी की जस्सूजी उसे चोदने के लिए कितना तड़प रहे थे। सुनीता को ऐसे कॉस्च्यूम में देख कर भी वह अपने आप पर जबर दस्त कण्ट्रोल रख रहे थे। हालांकि यह साफ़ था की जस्सूजी का लण्ड उनकी बात मान नहीं रहा था।
खैर होनी को कौन टाल सकता है? यह सोचकर सुनीता ने जस्सूजी का हाथ थामा और कहा, “जस्सूजी, अब आप मुझे तैरना सिखाएंगे की नहीं? पहले जब मैं झिझक रही थी तब आप मुझ पर नाराज हो रहे थे। अब आप झिझक रहे हो तो क्या मुझे नाराज होने का अधिकार नहीं?”
सुनीता की बात सुनकर जस्सूजी मुस्कुरा दिए। अपने आप को सम्हालते हुए बोले, “सुनीता मैं सच कहता हूँ। पता नहीं तुम्हें देख कर मुझे क्या हो जाता है। मैं अपना आपा खो बैठता हूँ। आज तक मुझे किसी भी लड़की या स्त्री के लिए ऐसा भाव नहीं हुआ। ज्योति के लिए भी नहीं।”
सुनीता ने कहा, “जस्सूजी मुझमें कोई खासियत नहीं है। यह आपका मेरे ऊपर प्रेम है। कहावत है ना की ‘पराये का चेहरा कितना ही खूबसूरत क्यों ना हो तो भी उतना प्यारा नहीं लगता जितनी अपने प्यारे की ____ लगती है।; सुनीता जस्सूजी के सामने गाँड़ शब्द बोल नहीं पायी।
सुनीता की बात सुनकर जस्सूजी हंस पड़े और सुनीता की नंगी गाँड़ देखते हुए बोले, “सुनीता, मैं तुम्हारी बात से पूरी तरह सहमत हूँ।”
सुनीता जस्सूजी की नजर अपनी गाँड़ पर फिरती हुई देख कर शर्मा गयी और उसे नजर अंदाज करते हुए उलटा लेटे हुए अपने पाँव काफी ऊपर की और उठाकर पानी की सतह पर जैसे जस्सूजी ने बताया था ऐसे पछाड़ने लगी।
पर ऐसा करने से तो जस्सूजी को सुनीता की चूत पर टिकाई हुई सुनीता के कॉस्च्यूम की पट्टी खिसकती दिखी और एक पल के लिए सुनीता की खूबसूरत चूत का छोटा सा हिस्सा दिख गया।
यह नजारा देख कर जस्सूजी का मन डाँवाँडोल हो रहा था। सुनीता काफी कोशिश करने पर भी पानी की सतह पर ठीक से लेट नहीं पा रही थी और बार बार उसक पाँव जमीन को छू लेते थे।
जस्सूजी ने बड़ी मुश्किल से अपनी नजर सुनीता की जाँघों के बिच से हटाई और सुनीता के पेट के निचे अपना हाथ देकर सुनीता को ऊपर उठाया।
सुनीता ने वैसे ही अपने पाँव काफी ऊपर तक उठा कर पछाड़ती रही और ना चाहते हुए भी जस्सूजी की नजर सुनीता की चूत के तिकोने हिस्से को बारबार देखने के लिए तड़पती रही।
सुनीता जस्सूजी के मन की दुविधा भलीभाँति जानती थी पर खुद भी तो असहाय थी।
ऐसे ही कुछ देर तक पानी में हाथ पाँव मारने के बाद जब सुनीता कुछ देर तक पानी की सतह पर टिकी रह पाने लगी तब जस्सूजी ने सुनीता से कहा, “अब तुम पानी की सतह पर अपना बदन तैरता हुआ रख सकती हो। क्या अब तुम थोड़ा तैरने की कोशिश करने के लिए तैयार हो?”
सुनीता को पानी से काफी डर लगता था। उसने जस्सूजी से लिपट कर कहा, “जैसे आप कहो। पर मुझे पानी से बहुत डर लगता है। आप प्लीज मुझे पकडे रखना।”
जस्सूजी ने कहा, “अगर मैं तुम्हें पकड़ रखूंगा तो तुम तैरना कैसे सिखोगी? अपनी और से भी तुम्हें कुछ कोशिश तो करनी पड़ेगी ना?”
सुनीता ने कहा, “आप जैसा कहोगे, मैं वैसा ही करुँगी। अब मेरी जान आप के हाथ में है।”
जस्सूजी और सुनीता फिर थोड़े गहरे पानी में आ गए। सुनीता का बुरा हाल था। वह जस्सूजी की बाँह पकड़ कर तैरने की कोशिश कर रही थी।
जस्सूजी ने सुनीता को पहले जैसे ही पानी की सतह पर उलटा लेटने को कहा और पहले ही की तरह पाँव उठाकर पछाड़ने को कहा, साथ साथ में हाथ हिलाकर पानी पर तैरते रहने की हिदायत दी।
पहली बार सुनीता ने जब जस्सूजी का हाथ छोड़ा और पानी की सतह पर उलटा लेटने की कोशिश की तो पानी में डूबने लगी। जैसे ही पानी में उसका मुंह चला गया, सुनीता की साँस फूलने लगी।
जब वह साँस नहीं ले पायी और कुछ पानी भी पी गयी तो वह छटपटाई और इधर उधर हाथ मारकर जस्सूजी को पकड़ने की कोशिश करने लगी।
दोनों हाथोँ को बेतहाशा इधर उधर मारते हुए अचानक सुनीता के हाथों की पकड़ में जस्सूजी की जाँघें आ गयी। सुनीता जस्सूजी की जाँघों को पकड़ पानी की सतह के ऊपर आने की कोशिश करने लगी और ऐसा करते ही जस्सूजी की निक्कर का निचला छोर उसके हाथों में आ गया।
सुनीता ने छटपटाहट में उसे कस के पकड़ा और खुद को ऊपर उठाने की कोशिश की तो जस्सूजी की निक्कर पूरी निचे खिसक गयी और जस्सूजी का फुला हुआ मोटा लण्ड सुनीता के हांथों में आ गया।
पढ़ते रहिये.. यह कहानी आगे जारी रहेगी!