This story is part of the Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din series
उस रात जसवंत सिंह ने जब ज्योति को पहली बार नग्न अवस्था में देखा तो उसे देखते ही रह गए। ज्योति की अंग भंगिमा देख कर उन्हें ऐसा लगा जैसे जगत के विश्वकर्मा ने अपनी सबसे ज्यादा खूबसूरत कला के नमूने को इस धरती पर भेजा हो।
ज्योति के खुले, काले, घने बाल उसके कूल्हे तक पहुँच रहे थे। ज्योति का सुआकार नाक, उसके रसीले होँठ, उसके सुबह की लालिमा के सामान गुलाबी गाल उसके ऊपर लटकी हुई एक जुल्फ और लम्बी गर्दन ज्योति की जवानी को पूरा निखार दे रही थी।
लम्बी गर्दन, छाती पर सख्ती से सर ऊंचा कर खड़े और फुले हुए उसके स्तन मंडल जिसकी चोटी पर फूली हुई गुलाबी निप्पलेँ ऐसे कड़ी खड़ी थीं जैसे वह जसवंत सिंह को कह रही थीं, “आओ और मुझे मसल कर, दबा कर, चूस कर अपनी और मेरी बरसों की प्यास बुझाओ।”
पतली कमर पर बिलकुल केंद्र बिंदु में स्थित गहरी ढूंटी जिसके निचे थोड़ा सा उभरा हुआ पेट और जाँघ को मिलाने वाला भाग उरुसंधि, नशीली साफ़ गुलाबी चूत के निचे गोरी सुआकार जाँघें और पीछे की और लम्बे बदन पर ज़रा से उभरे हुए कूल्हे देख कर जसवंत सिंह, जिन्होंने पहले कई खूब सूरत स्त्रियों को भली भाँती नंगा देखा था, उनके मुंह से भी आह निकल गयी।
ज्योति भी जब कप्तान जसवंत सिंह के सख्त नग्न बदन से रूबरू हुई तो उसे अपनी पसंद पर गर्व हुआ। जसवंत सिंह के बाजुओं के फुले हुए डोले, उनका मरदाना घने बालों से आच्छादित चौड़ा सीना और सीने की सख्त माँस पेशियाँ, उनके काँधों का आकार, उनकी चौड़ी छाती के तले उनकी छोटी सी कमर और सबसे अचम्भा और विस्मयाकुल पैदा करने वाला उनका लंबा, मोटा, छड़ के सामान खड़ा हुआ लण्ड को देख कर ज्योति की सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी। ज्योति ने जो कप्तान जसवंत सिंह के बारे में सूना था उससे कहीं ज्यादा उसने पाया।
जसवंत सिंह का लण्ड देख कर ज्योति समझ नहीं पायी की कोई भी औरत कैसे ऐसे कड़े, मोटे, लम्बे और खड़े लण्ड को अपनी छोटी सी चूत में डाल पाएगी? कुछ अरसे तक चुदवाने के बाद तो शायद यह संभव हो सके, पर ज्योति का तो यह पहला मौक़ा था।
जसवंत सिंह ने ज्योति को अपने लण्ड को ध्यान से ताकतें हुए देखा तो समझ गए की उनके लण्ड की लम्बाई और मोटाई देख कर ज्योति परेशान महसूस कर रही थी। जसवंत सिंह के लिए अपने साथी की ऐसी प्रतिक्रया कोई पहली बार नहीं थी।
उन्होंने ज्योति को अपनी बाँहों में लिया और उसे पलग पर हलके से बिठाकर कर ज्योति के सर को अपने हाथों में पकड़ कर उसके होँठों पर अपने होँठ रख दिए।
ज्योति को जैसे स्वर्ग का सुख मिल गया। उसने अपने होँठ खोल दिए और जसवंत सिंह की जीभ अपने मुंह में चूस ली। काफी अरसे तक दोनों एक दूसरे की जीभ चूसते रहे और एक दूसरे की लार आपने मुंह में डाल कर उसका आस्वादन करते रहे।
साथ साथ में जसवंत सिंह अपने हाथों से ज्योति के दोनों स्तनों को सहलाते और दबाते रहे। उसकी निप्पलोँ को अपनी उँगलियों के बिच कभी दबाते तो कभी ऐसी तीखी चूँटी भरते की ज्योति दर्द और उन्माद से कराह उठती।
काफी देर तक चुम्बन करने के बाद हाथों को निवृत्ति देकर जसवंत सिंह ने ज्योति की दोनों चूँचियों पर अपने होँठ चिपका दिए।
अब वह ज्योति की निप्पलोँ को अपने दांतो से काटते रहे जो की ज्योति को पागल करने के लिए पर्याप्त था। ज्योति मारे उन्माद के कराहती रही। ज्योति के दोनों स्तन दो उन्नत टीलों के सामान प्रतित होते थे।
जसवंत सिंह ने ज्योति की चूँचियों को इतना कस के चूसा की ज्योति को ऐसा लगा की कहीं वह फट कर अपने प्रियतम के मुंह में ही ना आ जायें।
ज्योति के स्तन जसवंत सिंह के चूसने के कारण लाल हो गए थे और जसवंत सिंह के दांतों के निशान उस स्तनों की गोरी गोलाई पर साफ़ दिख रहे थे।
जसवंत सिंह की ऐसी प्रेमक्रीड़ा से ज्योति को गजब का मीठा दर्द हो रहा था। जब जसवंत सिंह ज्योति के स्तनों को चूस रहे थे तब ज्योति की उंगलियां जसवंत सिंह के बालों को संवार रही थी।
जसवंत सिंह का हाथ ज्योति की पीठ पर घूमता रहा और उस पर स्थित टीलों और खाईयोँ पर उनकी उंगलयां फिरती रहीं। जसवंत सिंह ने अपनी उस रात की माशूका के कूल्हों को दबा कर और उसकी दरार में उंगलियां डाल कर उसे उन्मादित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
थोड़ी देर तक स्तनों को चूसने और चूमने के बाद जसवंत सिंह ने ज्योति को बड़े प्यार से पलंग पर लिटाया और उसकी खूबसूरत जॉंघों को चौड़ा करके खुद टाँगों के बिच आ गए और ज्योति की खूब सूरत चूत पर अपने होँठ रख दिए।
रतिक्रीड़ा में ज्योति का यह पहला सबक था। जसवंत सिंह तो इस प्रकिया के प्रमुख प्राध्यापक थे। उन्होंने बड़े प्यार से ज्योति की चूत को चूमना और चाटना शुरू किया।
जसवंत सिंह की यह चाल ने तो ज्योति का हाल बदल दिया। जैसे जसवंत सिंह की जीभ ज्योति की चूत के संवेदनशील कोनों और दरारों को छूने लगी की ज्योति का बदन पलंग पर मचलने लगा और उसके मुंह से कभी दबी सी तो कभी उच्च आवाज में कराहटें और आहें निकलने लगीं।
धीरे धीरे जसवंत सिंह ने ज्योति की चूत में अपनी दो उंगलियां डालीं और उसे उँगलियों से चोदना शुरू किया। ज्योति के लिए यह उसके उन्माद की सिमा को पार करने के लिए पर्याप्त था।
ज्योति मारे उन्माद के पलंग पर मचल रही थी और अपने कूल्हे उठा कर अपनी उत्तेजना ज़ाहिर कर रही थी। उसका उन्माद उसके चरम पर पहुँच चुका था। अब वह ज्यादा बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं थी। ज्योति जसवंत सिंह का हाथ पकड़ा और उसे जोरों से दबाया।
ज्योति के रोंगटे रोमांच से खड़े हो गए थे। ज्योति ने अपनी गाँड़ ऊपर उठायी और एक बड़ी सुनामी की लहर जैसे उसके पुरे बदन में दौड़ पड़ी।
वह गहरी साँस ले कर कराह ने लगी, “कप्तान साहब काफी हो गया। अब तुम प्लीज मुझे चोदो। अपना लण्ड मेरी भूखी चूत में डालो और उसकी भूख शांत करो।”
जसवंत सिंह ने ज्योति से कहा, “तुम्हारे लिए मैं कप्तान साहब नहीं, मैं जसवंत सिंह भी नहीं। मैं तुम्हारे लिए जस्सू हूँ। आज से तुम मुझे जस्सू कह कर ही बुलाना।”
ज्योति ने तब अपनी रिक्वेस्ट फिरसे दुहराते हुए कहा, “जस्सू जी काफी हो गया। अब तुम प्लीज मुझे चोदो। अपना लण्ड मेरी भूखी चूत में डालो और उसकी भूख शांत करो।”
जस्सू जी ने देखा की ज्योति अब मानसिक रूप से उनसे चुदवाने के लिए बिलकुल तैयार थी तो वह ज्योति की दोनों टाँगों के बिच आगये और उन्होंने अपना लण्ड ज्योति के छोटे से छिद्र के केंद्र बिंदु पर रखा।
ज्योति के लिए उस समय जैसे क़यामत की रात थी। वह पहली बार किसी का लण्ड अपनी चूत में डलवा रही थी। और पहली ही बार उसे महसूस हुआ जैसे “प्रथम ग्राहे मक्षिका” मतलब पहले हे निवालें में किसी के मुंह में जैसे मछली आजाये तो उसे कैसा लगेगा? वैसे ही अपनी पहली चुदाई में ही उसे इतने मोटे लण्ड को चूत में डलवाना पड़ रहा था।
ज्योति को अफ़सोस हुआ की क्यों नहीं उसने पहले किसी लड़के से चुदवाई करवाई? अगर उसने पहले किसी लड़के से चुदवाया होता तो उसे चुदवाने की कुछ आदत होती और यह डर ना लगता। पर अब डर के मारे उसकी जान निकली जा रही थी। पर अब वह करे तो क्या करे? उसे तो चुदना ही था। उसने खुद जस्सूजी को चोदने के लिए आमंत्रित किया था। अब वह छटक नहीं सकती थी।
ज्योति ने अपनी आँखें मुंदी और जस्सूजी का लण्ड पकड़ कर अपनी चूत की गीली सतह पर रगड़ने लगी ताकि उसे लण्ड को उसकी चूत के अंदर घुसने में कम कष्ट हो। वैसे भी जस्सूजी का लण्ड अपने ही छिद्र से पूर्व रस से चिकनाहट से सराबोर लिपटा हुआ था।
जैसे ही ज्योति की चूत के छिद्र पर उसे निशाना बना कर रख दिया गया की तुरंत उसमें से पूर्व रस की बूंदें बन कर टपकनी शुरू हुई। ज्योति ने अपनी आँखें मूँद लीं और जस्सू के लण्ड के घुसने से जो शुरुआती दर्द होगा उसका इंतजार करने लगी।
जसवंत सिंह ने अपना लण्ड हलके से ज्योति की चूत में थोड़ा घुसेड़ा। ज्योति को कुछ महसूस नहीं हुआ। जसवंत सिंह ने यह देखा कर उसे थोड़ा और धक्का दिया और खासा अंदर डाला। तब ज्योति के मुंह से आह निकली। उसके चेहरे से लग रहा था की उसे काफी दर्द महसूस हुआ होगा।
जसवंत सिंह को डर लगा की कहीं शायद उसका कौमार्य पटल फट ना गया हो, क्यूंकि ज्योति की चूत से धीरे धीरे खून निकलने लगा।
तभी जसवंत सिंह ने अपना लण्ड निकाल कर साफ़ किया। उनके लिए यह कोई बार पहली बार नहीं था। पर ज्योति खून देखकर थोड़ी सहम गयी। हालांकि उसे भी यह पता था की कँवारी लडकियां जब पहली बार चुदती हैं तो अक्सर यह होता है।
ज्योति ने सोचा की अब घबरा ने से काम चलेगा नहीं। जब चुदवाना ही है तो फिर घबराना क्यों? उसने जसवंत सिंह से कहा, “जस्सू जी आप ने आज मुझे एक लड़की से औरत बना दिया। अब मैं ज्यादा इंतजार नहीं करना चाहती। आप मेरी चिंता मत कीजिये। मैं आपके सामने टाँगे फैला कर लेटी हूँ। अब प्लीज देर मत कीजिये। मुझे जी भर कर चोदिये। मैं इस रात का महीनों से इंतजार कर रही थी।”
जसवंत सिंह अपनी टाँगें फैलाये नग्न लेती हुई अपनी खूबसूरत माशूका को देखते ही रहे। उन्होंने ज्योति की चूत के ऊपर फैले हुए खूनको टिश्यू पेपर अंदर डाल कर उससे खून साफ़ किया।
उन्होंने फिर ज्योति की चूत पर अपना लण्ड थोड़ा सा रगड़ कर फिर चिकना किया और धीरे धीरे ज्योति की खुली हुई चूत में डाला। अपने दोनों हाथों से उन्होंने माशूका के दोनों छोटे टीलों जैसे उरोजों को पकड़ा और प्यार से दबाना और मसलना शुरू किया।
अपनी माशूका की नग्न छबि देखकर जस्सूजी के लण्ड की नर्सों में वीर्य तेज दबाव से नर्सों को फुला रहा था। पता नहीं उन रगों में कितना वीर्य जमा था। जस्सूजी ने एक धक्का और जोर से दिया और उस बार ज्योति की चूत में आधे से भी ज्यादा लण्ड घुस गया।
ना चाहते हुए भी ज्योति के मुंह से लम्बी ओह्ह्ह निकल ही गयी। उसके कपोल पर प्रस्वेद की बूँदें बन गयी थीं। जाहिर था उसे काफी दर्द महसूस हो रहा था।
पर ज्योति ने अपने होँठ भींच कर और आँखें मूँद कर उसे सहन किया और जस्सू जी को अपने कूल्हे ऊपर उठाकर उनको लण्ड और अंदर डालने के लिए बाध्य किया।
धीरे धीरे प्रिय और प्रियतमा के बिच एक तरह से चोदने और चुदवाने की जुगल बंदी शुरू हुई।
हालांकि ज्योति को काफी दर्द हो रहा था पर वह एक आर्मी अफसर की बेटी थी। दर्द को जाहिर कैसे करती? जस्सूजी के धक्के को ज्योति उतनी ही फुर्ती से ऊपर की और अपना बदन उठाकर जवाब देती।
उसके मन में बस एक ही इच्छा थी की वह कैसे अपने प्रियतम को ज्यादा से ज्यादा सुख दे जिससे की उनका प्रियतम उनको ज्यादा से ज्यादा आनंद दे सके। जस्सू जी मोटा और लम्बा लण्ड जैसे ही ज्योति की सनकादि चूत के योनि मार्ग में घुसता की दो आवाजें आतीं।
एक ज्योति की ओहह ह…… और दुसरी जस्सूजी के बड़े और मोटे अंडकोष की ज्योति की दो जाँघों के बिच में छपाट छपाट टकरा ने की आवाज। यह आवाजें इतनी सेक्सी और रोमांचक थीं की दोनों का दिमाग सिर्फ चोदने पर ही केंद्रित था।
देर रात तक जसवंत सिंह और ज्योति ने मिलकर ऐसी जमकर चुदाई की जो की शायद जसवंत सिंह ने भी कभी किसी लड़की से नहीं की थी। ज्योति के लिए तो वह पहला मौक़ा था।
स्कूल और कॉलेज में कई बार कई लड़कों से उसकी चुम्माचाटी हुई थी पर कोई भी लड़का उसे जँचा नहीं। .जसवंत सिंह की बात कुछ और ही थी।
अच्छी तरह चुदाई होने के बाद आधी रात को ज्योति ने जसवंत सिंह से कहा, “मैं आपसे एक बार नहीं हर रोज चुदवाना चाहती हूँ। मैं आपसे शादी करना चाहती हूँ।”
जसवंत सिंह उस लड़की ज्योति को देखते ही रहे। कुछ सोच कर उन्होंने ज्योति से कहा, “देखो ज्योति। मैं एक खुला आजाद पंछी हूँ। मुझे बंधन पसंद नहीं। मैं यह कबुल करता हूँ की आपके पहले मैंने कई औरतों को चोदा है। मैं शादी के बंधन में फँस कर यह आजादी खोना नहीं चाहता…
इसके अलावा तुम तो शायद जानती ही हो की मैं इन्फेंट्री डिवीज़न में हूँ। मेरा काम ही लड़ना है। मेरी जान का कोई भरोसा नहीं। अगले महीने ही मुझे कश्मीर जाना है। मुझे पता नहीं मैं कब लौटूंगा या लौटूंगा भी की नहीं…
मुझसे शादी करके आप को वह जिंदगी नहीं मिलेगी जो आम लड़की चाहती है। पता नहीं, शादी के चंद महीनों में ही आप बेवा हो जाओ। इस लिए यह बेहतर है की आपका जब मन करे मुझे इशारा कर देना। हम लोग जम कर चुदाई करेंगे। पर मेरे साथ शादी के बारे में मत सोचो।”
ज्योति हंस कर बोली, “जनाब, मैं भी आर्मी के बड़े ही जाँबाज़ अफसर की बेटी हूँ। मेरे पिताजी ने कई लड़ाइयाँ लड़ी हैं और मरते मरते बचे हैं। रही बात आपकी आजादी की तो मैं आपको यह वचन देती हूँ की मैं आपको शादी के बाद भी कभी भी किसी भी महिला से मिलने और उनसे कोई भी तरह का शारीरिक या मानसिक रिश्ता बनाने से रोकूंगी नहीं…
यह मेरा पक्का वादा है। मैं वादा करती हूँ की मुझसे शादी करने के बाद भी आप आजाद पंछी की तरह ही रहोगे। बल्कि अगर कोई सुन्दर लड़की आपको जँच गयी, तो मैं उसे आपके बिस्तर तक पहुंचाने की जी जान लगा कर कोशिश करुँगी…
पर हाँ. मेरी भी एक शर्त है की आप मुझे जिंदगी भर छोड़ोगे नहीं और सिर्फ मेरे ही पति बन कर रहोगे। आप किसी भी औरत को मेरे घर में बीबी बनाकर लाओगे नहीं।”
जसवंत सिंह हंस पड़े और बोले, “तुम गजब की खूबसूरत हो। और भी कई सुन्दर, जवान और होनहार लड़के और आर्मी अफसर हैं जो तुमसे शादी करने के लिए जी जान लगा देंगे। फिर मैं ही क्यों?”
तब ज्योति ने जसवंत सिंह के गले लगकर कहा, “डार्लिंग, क्यूंकि मैं तुम्हारी होने वाली बीबी हूँ और तुम लाख बहाने करो मैं तुम्हें छोड़ने वाली नहीं हूँ। मुझे तुम्हारे यह मोटे और तगड़े लण्ड से रोज रात चुदवाना है, तब तक की जब तक मेरा मन भर ना जाए। और मैं जानती हूँ, मेरा मन कभी नहीं भरेगा। मैं तुम्हारे बच्चों की माँ बनना चाहती हूँ। अब तुम्हारी और कोई बहाने बाजी नहीं चलेगी। बोलो तुम मुझसे शादी करोगे या नहीं?”
जसवंत सिंह ने अपनी होने वाली पत्नी ज्योति को उसी समय आपने बाहुपाश में लिया और होँठों को चूमते हुए कहा, “डार्लिंग मैंने कई औरतों को देखा है, जाना है और चोदा भी है। पर मैंने आज तक तुम्हारे जैसी बेबाक, दृढ निश्चयी और दिलफेंक लड़की को नहीं देखा। मैं तुम्हारा पति बनकर अपने आप को धन्य महसूस करूंगा…
मैं भी तुम्हें वचन देता हूँ की मैं भी तुम्हें एक आजाद पंछी की तरह ही रखूंगा और तम्हें भी किसी पराये मर्द से शारीरिक या मानसिक सम्बन्ध बनाने से रोकूंगा नहीं। पर हाँ मेरी भी यह शर्त है की तुम हमेशा मेरी ही पत्नी बनकर रहोगी और पति का दर्जा और किसी मर्द को नहीं दोगी। ”
उस बात के कुछ ही महीनों के बाद जसवंत सिंह और ज्योति उन दोनों के माँ बाप की रज़ामंदी के साथ शादी के बंधन में बंध गए। यह थी कर्नल साहब और उनकी पत्नी ज्योति की प्रेम कहानी।
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पढ़ते रहिये.. क्योकि यह कहानी अभी जारी रहेगी!