सुनीता की हालत साँप छछूंदर निगले ऐसी हो गयी। ना वह निगल सकती थी और ना वह उगल सकती थी। ना वह जस्सूजी को रोक सकती थी और नाही उन्हें आगे बढ़ने की इजाजत दे सकती थी। वह करे तो क्या करे? उस रात वह भी ठीक तरह सो नहीं पायी थी।
उसके दिमाग में पिछली शाम की घंटनाएँ पूरी रात घूमती रही थीं। सुनीलजी का पीछा कौन कर रहा था? क्यों कर रहा था? वाकई में कर भी रहा था की नहीं? यह सवाल उसको खाये जा रहे थे।
पर उस समय वह सब सोचने का वक्त नहीं था। उसे एक ही चिंता थी। अगर जस्सूजी उसे चोदने के लिए मजबूर करेंगे तो वह क्या करेगी? एक बात साफ़ थी।
सुनीता जानती थी की उसमें उतनी हिम्मत नहीं थी की वह जस्सूजी को रोक सके। इसका कारण यह था की वह खुद भी कहीं ना कहीं अपने मन की गहराइयों में जस्सूजी से चुदवाना चाहती थी।
सुनीता को जस्सूजी का मोटा, लंबा लण्ड उसकी चूत में कैसे फिट होगा उसकी जिज्ञासा मार रही थी। वह उस लण्ड को अपनी चूत में अनुभव करना चाहती थी।
तो दूसरी और उसने माँ को दिया हुआ वचन था। उसे अपने पति से धोका करेगी उसकी चिंता नहीं थी, क्यूंकि उसके पति को अगर सुनीता जस्सूजी से चुदवाने के लिए राजी हो जाए तो कोई आपत्ति नहीं होगी यह सुनीता जानती थी।
बल्कि सुनीता के पति सुनील तो सुनीता को जस्सूजी का नाम लेकर उकसाने के लिए जी भर कोशिश कर रहे थे। जाहिर था की सुनील चाहते थे की कभी ना कभी सुनीता जस्सूजी से चुदवाले ताकि उनका रास्ता साफ़ हो जाये।
मतलब सुनीता के पति सुनील जी भी तो जस्सूजी की बीबी ज्योतिजी को चोदना चाहते थे ना? अगर सुनीता जस्सूजी से चुदवाने लगी तो फिर सुनीता भी तो अपने पति सुनील को जस्सूजी की बीबी ज्योति को चोदने से कैसे रोक सकती है?
हालांकि सुनीता ने कभी अपने पति को किसी भी औरत को चोदने से रोकना नहीं चाहा। सुनीता जानती थी की उसके पति भी रंगीले मिज़ाज के तो हैं ही।
वह विदेश में जाते हैं तो वहाँ तो औरतें, अगर कोई मर्द मन भाया तो, अक्सर अपनी टाँगों को खोलने में देर नहीं करतीं। मर्दों को अपने देश की तरह वहाँ खूबसूरत औरतों को चोदने के लिए बहुत ज्यादा प्रयास नहीं करने पड़ते।
इस लिए सुनीता ने मानसिक रूप से यह स्वीकार कर लिया था की उसके पति सुनील मौक़ा मिलने पर दूसरी औरतों को चोदते थे और इसके बारे में ना तो वह अपने पति से पूछती थी और ना तो उसके पति सुनीता को कुछ बताते थे। तो मानसिक रूप से उनका वैवाहिक जीवन खुला सा ही था। पर बात यहां सुनीता की अपनी अस्मिता की थी।
सुनीता को लगा की वह उस समय ज्यादा कुछ सोचने की स्थिति में नहीं थी। दबाव के मारे उसका सर फटा जा रहा था। उसे कुछ ज्यादा ही थकान महसूस हो रही थी।
उसकी बगल में जस्सूजी भी शायद नींद में थे क्यूंकि काफी समय से उन्होंने अपनी आँखें खोली नहीं थी और उनकी साँसे एक ही गति से मंद मंद चल रहीं थी। सुनीता को एक नींद की झपकी आ गयी और वह जस्सूजी के बदन पर ही लुढ़क गयी। उसका एक स्तन जस्सूजी के मुंह में था वह जानते हुए भी वह उस समय कुछ कर पाने के लिए असमर्थ थी।
सुनीता गहरी नींद में बेहोश सी हालत में जस्सूजी के मुंह में अपना एक स्तन धरे हुए जस्सूजी के ऊपर अपना बदन झुका कर ही सो गयी। कर्नल साहब भी बुखार के कारण आधी निंद और आधे जागृत अवस्था में थे। उनके जहन में अजीब सा रोमांच था। उनके सपनों की रानी सुनीता उनपर अपना पूरा बदन टिका कर सो रही थी। उसका एक मद मस्त स्तन जस्सूजी के मुंह में था जिसका रसास्वादन वह कर रहे थे, हालांकि सुनीता ने ब्लाउज और ब्रा पहन रक्खी थी।
जब कर्नल साहब थोड़ा अपनी तंद्रा से बाहर आये तो उन्होंने सुनीता का आधा बदन अपने बदन पर पाया। कर्नल साहब जानते थे की सुनीता एक मानिनी थी। वह किसी भी मर्द को अपना तन आसानी से देने वाली नहीं थी।
ज्योति ने उनको बताया था की सुनीता एक राजपूतानी थी और उसने प्रण लिया था की वह अगर किसीको अपना तन देगी तो उसको देगी जो सुनीता के ऊपर अपना प्राण तक न्योछवर करने के लिए तैयार हो। किसी भी ऐसे वैसे मर्द को सुनीता अपना तन कभी नहीं देगी।
कर्नल साहब ऐसी महिलाओं की इज्जत करना जानते थे। वह कभी भी स्त्रियों की कमजोरी का फायदा उठाने में विश्वास नहीं रखते थे। यह उनके उसूल के खिलाफ था। पर उनकी भी हालत ख़राब थी।
वह ना सिर्फ सुनीता के बदन के, बल्कि सुनीता के पुरे व्यक्तित्व से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। सुनीता की सादगी, भोलापन, शूरवीरता, देश प्रेम, जोश के वह कायल थे। सुनीता की बातें करते हुए हाथों और उँगलियों को हिलाना, आँखों को नचाना बगैरह अदा पर वह फ़िदा थे।
और फिर उन्होंने सुनीता को इस हाल में अपने पर गिरने के लिए मजबूर भी तो नहीं किया था। सुनीता अपने आप ही आकर उनकी इतनी करीबी सेवा में लग गयी थी। उन्होंने अपने लण्ड पर भी सुनीता का हाथ महसूस किया था।
कर्नल साहब भी क्या करे? क्या सुनीता उनपर अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए तैयार थी? यह सब सवाल कर्नल साहब को भी खाये जा रहे थे।
खैर कर्नल साहब थोड़ा खिसके और सुनीता के स्तन को मुंह से निकाल कर सुनीता को धीरे से अपने बगल में सुला दिया। सुनीता का ब्लाउज और उसकी ब्रा जस्सूजी के मुंह की लार के कारण पूरी तरह गीली हो चुकी थी।
जस्सूजी को सुनीता के स्तन के बिच में गोला किये हुए सुनीता के स्तन का गहरे बादामी रंग का एरोला और उसके बिलकुल केंद्र में स्थित फूली हुई निप्पल की झांकी हो रही थी।
कर्नल साहब की समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या करे। पर उस समय उन्होंने देखा की सुनीता गहरी नींद सो रही थी। उन्होंने सुनीता को एक करवट लेकर ऐसे लिटा दिया जिससे सुनीता का पिछवाड़ा कर्नल साहब की और हो।
सुनीता की गाँड़ कर्नल साहब के लण्ड से टकरा रही थी। कर्नल साहब ने अपना हाथ सुनीता की बाँह और कंधे के ऊपर से सुनीता के स्तन पर रख दिया।
वह इतना तो समझ गए थे की सुनीता को अपना बदन जस्सूजी से छुआ ने में कोई भारी आपत्ति नहीं होगी। क्यूंकि जस्सूजी ने पहले भी तो सुनीता के स्तन छुए थे। उस समय सुनीता ने कोई विरोध नहीं किया था। सुनीता गहरी नींद में एक सरीखी साँसे लेती हुई मुर्दे की तरह लेटी हुई थी। उसे कुछ होश न था।
जस्सूजी ने धीरे से सुनीता के ब्लाउज के बटन खोल दिए। फिर उन्होंने दूसरे हाथ से पीछे से सुनीता की ब्रा के हुक खोल दिए। सुनीता के अल्लड़ करारे स्तन पूरी स्वच्छंदता से आज़ाद हो चुके थे। जस्सूजी बदन में रोमांचक सिहरनें उठ रही थी। जस्सूजी के रोंगटे खड़े हो गए थे।
जस्सूजी ने दुसरा हाथ धीरे से सुनीता के बदन के निचे से घुसा कर सुनीता को अपनी बाँहों में ले लिया। जस्सूजी दोनों हाथोँ से सुनीता के स्तनोँ को दबाने मसलने और सुनीता के स्तनोँ की निप्पलोँ को पिचकाने में लग गए।
अपने हाथों की हाथेलियों में सुनीता के दोनों स्तनोँ को महसूस करते ही जस्सूजी का लण्ड फुंफकार मारने लगा था। कर्नल साहब ने सुनीता का निचला बदन अपनी दोनों टाँगों के बीचमें ले लिया। सुनीता उस समय जस्सूजी की दोनों बाँहों में और उनकी दोनों टांगों के बिच कैद थी। ऐसा लगता था जैसे उस समय सुनीता थी ही नहीं।
सुनीता और जस्सूजी दोनों जैसे एक ही लग रहे थे। जस्सूजी का लण्ड इतना फुंफकार रहा था की जस्सूजी उसे रोकना नामुमकिन सा महसूस कर रहे थे।
जस्सूजी महीनों से सुनीता को अपने इतने करीब अपनी बाहों में लाने के सपने देख रहे थे। सुनीता के स्तन, उसकी गाँड़, उसका पूरा बदन और ख़ास कर उसकी चूत चूसने के लिए वह कितने व्याकुल थे?
उसी तरह उनकी मँशा थी की एक ना एक दिन सुनीता भी उनका लण्ड बड़े प्यार से चूसेगी और सुनीता एक दिन उनसे आग्रह करेगी वह सुनीता को चोदे। यह उनका सपना था।
यह सब सोच कर भला ऊनका लण्ड कहाँ रुकता? जस्सूजी का लण्ड तो अपनी प्यारी सखी सुनीता की चूत में घुसने के लिए बेचैन था। उसे सुनीता की चूत में अपना नया घर जो बनाना था।
सुनीता उस समय साडी पहने हुए थी। कर्नल साहब ने देखा की सुनीता को ऊपर निचे खिसकाने के कारण सुनीता की साडी उसकी जाँघों से ऊपर तक उठ चुकी थी।
सुनीता की करारी मांसल सुडौल नंगी जाँघें देख कर जस्सूजी का मन मचल रहा था। पर जैसे तैसे उन्होंने अपने आप पर नियत्रण रक्खा और सुनीता को खिंच कर कस कर अपनी बाँहों में और अपनी टाँगों के बिच दबोचा और सुनीता के बदन का आनंद लेने लगे।
जाहिर था की जस्सूजी का मोटा लंबा लण्ड पजामें में परेशान हो रहा था। एक शेर को कैद में बंद करने से वह जैसे दहाड़ता है वैसे ही जस्सूजी लण्ड पयजामे में फुंफकार मार रहा था।
सुनीता की गाँड़ और उसकी ऊपर उठी हुई साडी के कारण जस्सूजी का लण्ड सुनीता की गाँड़ की बिच वाली दरार में घुसने के लिए बेताब हो रहा था। पर बिच में साडी का मोटा सा लोचा था।
जस्सूजी सुनीता की गाँड़ में साडी के कपडे के पीछे अपना लण्ड घुसा कर संतोष लेने की कोशिश कर रहे थे। पर सुनीता के नंगे स्तन उनकी हथेलियों में खेल रहे थे। उसे सहलाने में, उन्हें दबानेमें और मसलने में और उन स्तनोँ की निप्पलोँ को पिचकाने में जस्सूजी मशगूल ही थे की उन्हें लगा की सुनीता जाग रही थी।
अपनी नींद की गहरी तंद्रा में सुनीता ने ऐसे महसूस किया जैसे वह अपने प्यारे जस्सूजी की बाँहों में थी। उसे ऐसा लगा जैसे जस्सूजी उसकी चूँचियों को बड़े प्यार से तो कभी बड़ी बेरहमी से दबाते, मसलते तो कभी उसकी निप्पलों को अपनी उँगलियों में कुचलते थे। वह मन ही मन बड़ा आनंद महसूस कर रही थी। उसे यह सपना बड़ा प्यारा लग रहा था।
बेचारी को क्या पता था की वह सपना नहीं असलियत थी? जब धीरे धीरे सुनीता की तंद्रा टूटी तो उसने वास्तव में पाया की वह सचमुच में ही जस्सूजी की बाँहों और टाँगों के बिच में फँसी हुई थी। जस्सूजी का मोटा और लम्बा लण्ड उसकी गाँड़ की दरार को टोंच रहा था।
हालांकि उसकी गाँड़ नंगी नहीं थी। बिच में साडी, घाघरा और पेंटी थी, वरना शायद जस्सूजी का लण्ड उसकी गाँड़ में या तो चूत में चला ही जाता। शायद सुनीता की गाँड़ में तो जस्सूजी का मोटा लण्ड घुस नहीं पाता पर चूत में तो जरूर वह चला ही जाता।
सुनीता ने यह भी अनुभव किया की वास्तव में ही जस्सूजी उसके दोनों स्तनों को बड़े प्यार से तो कभी बड़ी बेरहमी से दबाते, मसलते और कुचलते थे। वह इस अद्भुत अनुभव का कुछ देर तक आनंद लेती रही। वह यह सुनहरा मौक़ा गँवा देना नहीं चाहती थी।
ऐसे ही थोड़ी देर पड़े रहने के बाद उसने सोचा की यदि वह ऐसे ही पड़ी रही तो शायद जस्सूजी उसे स्वीकृति मानकर उसकी साडी, घाघरा ऊपर कर देंगे और उसकी पेंटी को हटा कर उसको चोदने के लिए उस के ऊपर चढ़ जाएंगे और तब सुनीता उन्हें रोक नहीं पाएगी।
सुनीता ने धीरे से अपने स्तनों को सहलाते और दबाते हुए जस्सूजी के दोनों हाथ अपने हाथ में पकडे। जस्सूजी का विरोध ना करते हुए सुनीता ने उन्हें अपने स्तनोँ के ऊपर से नहीं हटाया। बस जस्सूजी के हाथों को अपने हाथों में प्यार से थामे रक्खा।
जस्सूजी फिर भी बड़े प्यार से सुनीता के स्तनों को दबाते और सँवारते रहे। सुनीता ने जस्सूजी के हाथों को दबा कर यह संकेत दिया की वह जाग गयी थी। सुनीता ने फिर जस्सूजी के हाथों को ऊपर उठा कर अपने होठों से लगाया और दोनों हाथों को धीरे से बड़े प्यार से चूमा। फिर अपना सर घुमा कर सुनीता ने जस्सूजी की और देखा और मुस्काई।
हालांकि सुनीता जस्सूजी को आगे बढ़ने से रोकना जरूर चाहती थी पर उन्हें कोई सदमा भी नहीं देना चाहती थी। सुनीता खुद जस्सूजी से चुदवाना चाहती थी। पर उसे अपनी मर्यादा का पालन भी करना था।
सुनीता ने धीरे से करवट बदली और जस्सूजी के हाथों और टाँगों की पकड़ को थोड़ा ढीले करते हुए वह पलटी और जस्सूजी के सामने चेहरे से चेहरा कर प्रस्तुत हुई।
सुनीता ने जस्सूजी जी की आँखों से आँखें मिलाई और हल्का सा मुस्कुराते हुए जस्सूजी को धीरे से कहा, “जस्सूजी, मैं आपके मन के भाव समझती हूँ। मैं जानती हूँ की आप क्या चाहते हैं। मेरे मन के भाव भी अलग नहीं हैं। जो आप चाहते हैं, वह मैं भी चाहती हूँ…
जस्सूजी आप मुझे अपनी बनाना चाहते हो, तो मैं भी आपकी बनना चाहती हूँ। आप मेरे बदन की जंखना करते हो तो मैं भी आपके बदन से अपने बदन को पूरी तरह मिलाना चाहती हूँ। पर इसमें मुझे मेरी माँ को दिया हुआ वचन रोकता है।
मैं आपको इतना ही कहना चाहती हूँ की आप मेरे हो या नहीं यह मैं नहीं जानती, पर मैं आपको कहती हूँ की मैं मन कर्म और वचन से आपकी हूँ और रहूंगी। बस यह तन मैं आपको पूरी तरह से इस लिए नहीं सौंप सकती क्यूंकि मैं वचन से बंधी हूँ…
इसके अलावा मैं पूरी तरह से आपकी ही हूँ। यदि आप मुझे आधा अधूरा स्वीकार कर सकते हो तो मुझे अपनी बाँहों में ही रहने दो और मुझे स्वीकार करो। बोलो क्या आप मुझे आधा अधूरा स्वीकार करने के लिए तैयार हो?
यह सुनकर कर्नल साहब की आँखों में आँसू भर आये। उन्होंने कभी सोचा नहीं था की वास्तव में कोई उनसे इतना प्रेम कर सकता है। उन्होंने सुनीता को अपनी बाँहों में कस के जकड़ा और बोले, “सुनीता, मैं तुम्हें कोई भी रूप में कैसे भी अपनी ही मानता हूँ।”
यह सुनकर कर सुनीता ने अपनी दोनों बाँहें जस्सूजी के गले में डालीं और थोड़ा ऊपर की और खिसक कर सुनीता ने अपने होँठ जस्सूजी से होँठ पर चिपका दिए।
जस्सूजी भी पागल की तरह सुनीता के होठों को चूसने और चूमने लगे। उन्होंने सुनीता की जीभ को अपने मुंह में चूस लिया जीभ को वह प्यार से चूसने लगे और सुनीता के मुंह की सारी लार वह अपने मुंह में लेकर उसे गले के निचे उतारकर उसका रसास्वादन करने लगे। उन्हें ऐसा महसूस हुआ की सुनीता ने उनसे नहीं चुदवाया फिर भी जैसे उन्हें सुनीता का सब कुछ मिल गया हो।
जस्सूजी गदगद हो कर बोले, “मेरी प्यारी सुनीता, चाहे हमारे मिले हुए कुछ ही दिन हुए हैं, पर मुझे ऐसा लगता है जैसे तुम मेरी कई जीवन की संगिनीं हो।”
सुनीता ने जस्सूजी की नाक अपनी उँगलियों में पकड़ी और हँसती हुई बोली, “मैं कहीं ज्योतिजी का हक़ तो नहीं छीन रही?”
जस्सूजी ने भी हंस कर कहा, “तुम बीबी नहीं साली हो। और साली आधी घरवाली तो होती ही है ना? ज्योति का हक़ छीनने का सवाल ही कहाँ है?”
सुनीता ने जस्सूजी की टाँगों के बिच हाथ डालते हुए कहा, “जस्सूजी, आप मुझे एक इजाजत दीजिये। एक तरीके से ना सही तो दूसरे तरीके से आप मुझे आपकी कुछ गर्मी कम करने की इजाजत तो दीजिये। भले मैं इसमें खुद वह आनंद ना ले पाऊं जो मैं लेना चाहती हूँ पर आपको तो कुछ सकून दे सकूँ।”
जस्सूजी कुछ समझे इसके पहले सुनीता ने जस्सूजी की दो जॉंघों के बिच में से उनका लण्ड पयजामे के ऊपर से पकड़ा। सुनीता ने अपने हाथ से पयजामा के बटन खोल दिए और उसके हाथ में जस्सूजी इतना मोटा और लम्बा लण्ड आ गया की जिसको देख कर और महसूस कर कर सुनीता की साँसे ही रुक गयीं।
उसने फिल्मों में और सुनील जी का भी लंड देखा था। पर जस्सूजी का लण्ड वाकई उनके मुकाबले कहीं मोटा और लंबा था। उसके लण्ड के चारों और इर्दगिर्द उनके पूर्वश्राव पूरी चिकनाहट फैली हुई थी।
सुनीता की हथेली में भी वह पूरी तरहसे समा नहीं पाता था। सुनीता ने उसके इर्दगिर्द अपनी छोटी छोटी उंगलियां घुमाईं और उसकी चिकनाहट फैलाई।
अगर उसकी चूतमें ऐसा लण्ड घुस गया तो उसका क्या हाल होगा यह सोच कर ही वह भय और रोमांच से कांपने लगी। उसे एक राहत थी की उसे उस समय वह लण्ड अपनी चूत में नहीं लेना था।
सुनीता सोचने लगी की ज्योतिजी जब जस्सूजी से चुदवाती होंगी तो उनका क्या हाल होता होगा? शायद उनकी चूत रोज इस लण्ड से चुद कर इतनी चौड़ी तो हो ही गयी होगी की उन्हें अब जस्सूजी के लण्ड को घुसाने में उतना कष्ट नहीं होता होगा जितना पहले होता होगा।
सुनीता ने जस्सूजी से कहा, “जस्सूजी, हमारे बिच की यह बात हमारे बिच ही रहनी चाहिए। हालांकि मैं किसीसे और ख़ास कर मेरे पति और आपकी पत्नी से यह बात छुपाना नहीं चाहती। पर मैं चाहती हूँ की यह बात मैं उनको सही वक्त आने पर कह सकूँ। इस वक्त मैं उनको इतना ही इशारा कर दूंगी की सुनीलजी ज्योतिजी के साथ अपना टाँका भिड़ा सकते हैं। डार्लिंग, आपको तो कोई एतराज नहीं ना?”
जस्सूजी ने हँसते हुए कहा, “मुझे कोई एतराज नहीं। मैं तुम्हारा यानी मेरी पारो का देवदास ही सही पर मैं मेरी चंद्र मुखी को सुनीलजी की बाँहों में जाने से रोकूंगा नहीं। मेरी तो वह है ही।”
सुनीता को बुरा लगा की जस्सूजी ने बात ही बात में अपने आपकी तुलना देवदास से करदी। उसे बड़ा ही अफ़सोस हो रहा था की वह जस्सूजी की उसे चोदने की मन की चाह पूरी नहीं कर पायी और उसके मन की जस्सूजी से चुदवाने की चाह भी पूरी नहीं कर पायी पर उसने मन ही मन प्रभु से प्रार्थना की की “हे प्रभु, कुछ ऐसा करो की साँप भी मरे और लाठी भी ना टूटे। मतलब ऐसा कुछ हो की जस्सूजी सुनीता को चोद भी सके और माँ का वाचन भंग भी ना हो।”
पर सुनीता यह जानती थी की यह सब तो मन का तरंग ही था। अगर माँ ज़िंदा होती तो शायद सुनीता उनसे यह वचन से उसे मुक्त करने के लिए कहती पर माँ का स्वर्ग वास हो चुका था।
इस कारण अब इस जनम में तो ऐसा कुछ संभव नहीं था। रेल की दो पटरियों की तरह सुनीता को इस जनम में तो जस्सूजी का लण्ड देखते हुए और महसूस करते हुए भी अपनी चूत में डलवाने का मौक़ा नहीं मिल पायेगा। यह हकीकत थी।
सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड अपनी छोटी छोटी हथेलियों में लिया और उसे सहलाने और हिलाने लगी। वह चाहती थी की जस्सूजी का वीर्य स्खलन उसकी उँगलियों में हो और वह भले ही उस वीर्य को अपनी चूत में ना डाल सके पर जस्सूजी की ख़ुशी के लिए वह उस वीर्य काआस्वादन जरूर करेगी।
सुनीता ने जस्सूजी के लण्ड को पहले धीरे से और बाद में जैसे जैसे जस्सूजी का उन्माद बढ़ता गया, वैसे वैसे जोर से हिलाने लगी। साथ साथ में सुनीता और जस्सूजी मुस्काते हुए एक प्यार भरे प्रगाढ़ चुम्बन में खो गए।
कुछ मिनटों की ही बात थी प्यार भरी बातें और साथ साथ में सुनीता की कोमल मुठी में मुश्किल से पकड़ा हुआ लम्बे घने सख्त छड़ जैसा जस्सूजी का लण्ड जोरसे हिलाते हिलाते सुनीता की बाहें भी थक रही थीं तब जस्सूजी का बदन एकदम अकड़ गया।
उन्होंने सुनीता के स्तनों को जोरसे दबाया और “ओह…. सुनीता….. तुम कमाल हो…..” कहते हुए अचानक ही जस्सूजी के लण्ड के छिद्र से जैसे एक फव्वारा फूट पड़ा जो सुनीता के चेहरे पर ऐसे फ़ैल गया जैसे सुनीता का चेहरा कोई मलाई से बना हो।
उस दिन सुबह ही सुबह सुनीता ने ब्रेकफास्ट में वह नाश्ता किया जो उसने पहले कभी नहीं किया था।
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