हादसा-11 (Haadsa-11)

पिछला भाग पढ़े:- हादसा-10

मेरी इस चुदाई की कहानी के पिछ्ले भाग में आपने पढ़ा कि हमारे घर राजेश्वर जी के दोस्त विजय और संजय आ गए थे, और उनके साथ एक पंडित जी भी थे, जिनके साथ मैंने मजा किया। और कैसे राजेश्वर जी की आवाज से हम दोनों डर गए। अब आगे-

राजेश्वर जी की आवाज से हम दोनों डर गए। मैंने जैसे-तैसे अपने आप को शांत किया और उन्हें उपर से ही आवाज दी।

मैं: आ रहें है राजेश्वर जी रुकिये।

राजेश्वर जी (नीचे से): ठीक है, जल्दी आओ।

मैंने चैन की सांस ली और सोचा “अच्छा हुआ वो उपर नहीं आए”। मैंने पंडित जी की ओर देखा तो उनके पसीने छूट रहे थे। मैंने उन्हें गले लगाया और शांत कर दिया।

फिर मैं बाथरुम में चली गई और अपना चेहरा अच्छे से धो लिया, और अपने बाल फिर ठीक कर दिये। मैं बाहर आई तो पंडित जी मुझे देख रहे थे।

मैं: क्या हुआ, अब भी मन नहीं भरा क्या?

पंडित जी: नहीं बेटी, बस तुम्हारी खुबसूरती देख रहा था।

मैं शर्मा गई, और अपने कपड़े पहनने लगी। मैं कपड़े पहन ही रही थी कि पंडित जी ने मुझे रोक दिया।

मैं: क्या हुआ पंडित जी? कपड़े तो पहन लेने दो मुझे।

पंडित जी: दिव्या बेटी तुम मेरे सामने ऐसे ही नंगी कुछ और देर खड़ी रहो।

मैंने उनकी बात मान ली, और उनके सामने ऐसे ही नंगी खड़ी हो गई। पंडित जी मुझे देखे जा रहे थे और मेरी खुबसूरती निहार रहे थे।‌ मैं तो पूरी शर्म से लाल हो गई थी।

पंडित जी (मुझे देखते हुए): सच में तुम्हें भगवान ने अप्सरा का रूप दिया है।

मैं शर्मा गई और बोली-

मैं: आपको भी भगवान ने लगातार झड़ने का वरदान दिया है। सच में अपका वीर्य पीकर मेरा तोह पेट भर गया।

पंडित जी ने मुझे शुक्रिया कहा और अपने झोले में से एक माला निकाली‌। उन्होंने उस माला को पकड़ कर कुछ मंत्र बोला, और वो माला मुझे पहना दी।

मैं: ये क्या है?

पंडित जी: ये माला पहनने से तुम हमेशा खुश रहोगी, और तुम पर कोई बड़ा संकट नहीं आएगा।

मैं: शुक्रिया पंडित जी।

पंडित जी ने फिर एक धागा निकाला, और मंत्र पढ़ते-पढ़ते मेरे हाथ में बांध दिया।

मैं: अब ये क्या है?

पंडित जी: इस धागे से तुम्हें शारिरीक सुख की कमी नहीं होगी, और तुम गर्भवती होने की शक्यता बढ़ जाएगी।

मैंने नंगे बदन ही पंडित जी के पैर छू लिए और उन्होनें मुझे आशीर्वाद दिया। मैंने उन्हे माला और उस धागे के लिये शुक्रिया कहा।

मैं: वैसे पंडित जी, पूजा का मुहूर्त निकला कि नहीं।

पंडित जी: हां दिव्या बेटा, अगले हफ्ते का ही मुहूर्त है।

मैं: पंडित जी, मेरी एक इच्छा है, जो आप पूरी करने में मेरी मदद कर सकते है।

पंडित जी: हां बेटी बोलो। कौन सी इच्छा है?

मैं: मुझे शादी करनी है।

पंडित जी ये सुनते ही चौंक गए और बोले-

पंडित जी: ये क्या कह रही हो? तुम तो पहले से ही शादी-शुदा हो, और किससे शादी करना चाहती हो?

मैं: सब बताती हूं। आप पहले शांत हो जाईये।

मैं पंडित जी को अपनी कहानी बताने लगी।

मैं: मेरे पति हमेशा काम से बाहर रहते है, तो मुझे शारिरीक सुख की कमी थी, और उस कमी को मेरे मुंह बोले पति राजेश्वर जी ने पूरा किया।

पंडित जी: वो नीचे बैठे हुए है, वो?

मैं: हां। लेकिन आप यह मत सोचिये कि मेरा मेरे असली पति पर प्यार नहीं है।

पंडित जी: तो फिर राजेश्वर जी से शादी क्यूं करनी है?

मैं: मेरा मेरे असली पति पर जितना प्यार है, उतना ही मेरा राजेश्वर जी पर भी प्यार है। इसलिये मुझे उनको भी अपना पति बनाना है।

पंडित जी: लेकिन फिर भी दूसरी शादी?

मैं: ये शादी बस मेरे समाधान के लिये होगी, कानूनी तैर पर नहीं।

पंडित जी: फिर ठीक है। लेकिन कब करनी है शादी?

मैं: परसो।

पंडित जी: इतनी जल्दी तो मुश्किल है। लेकिन मैं परसो आ जाऊंगा। तुम बस सारा सामान लाकर रख देना।

फिर हम दोनों ने कपड़े पहन लिए, और नीचे आ गए। नीचे वो तीनो बातें कर रहे थे। राजेश्वर जी ने मुझे देखते ही पूछा-

राजेश्वर जी: अरे कहां रह गई थी तुम?

मैंने झूठा कारन दे दिया-

मैं: वो पंडित जी उपर मंत्र पढ़ रहे थे, तो मैं उनके साथ रुक गई।

राजेश्वर जी: ठीक है। लेकिन कैसा मंत्र पढ़ रहे थे?

मैं: वो मैं बाद में बताती हूं, और हां, मुझे पंडित जी ने प्रसाद भी दिया।

यह कह कर मैंने पंडित जी की तरफ देख कर हल्की सी मुस्कान दी। फिर राजेश्वर जी ने पंडित जी से पूजा के मुहूर्त के बारे में पूछा, तो पंडित जी ने उन्हें बता दिया कि मुहूर्त अगले हफ्ते का ही था।

कुछ देर बाद पंडित जी चले गए और फिर राजेश्वर जी और उनके दोस्त भी बाहर चले गए पूजा का सामान लाने के लिए ।

मैं फिर एक बार घर में अकेली थी। मैंने अपने पति को कॉल किया, और उन्हें पूजा के मुहूर्त के बारे में बता दिया और फ़ोन रख दिया।

मैं भी अब घर में अकेले-अकेले बोर हो रही थी। मैंने सोचा “परसों मेरी राजेश्वर जी के साथ शादी थी, तो क्यों ना मेरी शादी की शॉपिंग की जाए”। और मैं तैयार होकर मेरी शादी की शॉपिंग करने बाहर निकल गई।

मैंने अपना क्रेडिट कार्ड साथ ले लिया, और बहुत सारी कैश लेली। लगभग 80 हज़ार रुपए थे, और क्रेडिट कार्ड की तोह लाखों में लिमिट थी। अमीर घर का होने का यही फायदा है, पैसों की कभी चिंता नहीं रहती। मैं अपनी कार में बैठ कर सोनार की दुकान में गई। वहां मैंने अपने लिये एक बढ़िया सा मंगल सत्र और हार खरीद लिया। दोनों की कीमत मिला कर लगभग 2 लाख तक होगी।

फिर मैं साड़ी की दुकान में गई, और वहां मैंने अपने लिये दुल्हन का जोड़ा खरीद लिया जो पचास हजार का था। चापल, अंगूठियां, चैन और बाकी सब खरीद लिया। आखिर में मैंने राजेश्वर जी के लिये  शेरवानी खरीद ली। मैंने अपने लिये बहुत सारे गहने भी खरीद लिये थे, और आखिर में मैंने फूलों की दुकान में जाकर शादी का हार परसों मेरे घर भेजने बोला।

शाम के 7 बजे मैं घर वापस आ गई, और सारा हिसाब-किताब करने लगी। मैंने कुल मिला कर 6 लाख की शॉपिंग की। मैंने ज्यादातर गहने ही खरीदे थे। मैंने ये सब सामान मेरी अलमारी में सजा कर रख दिया।

कुछ ही देर बाद राजेश्वर जी घर आ गए उनके साथ कुछ और लोग भी थे, जिनके हाथ में पूजा का सामान था। उन्होंने वो सामान स्टोर रूम में रखा, और वहां से चले गए।

वो लोग जाते ही राजेश्वर जी ने मुझे अपनी ओर खींच लिया और मुझे जोर से किस्स करने लगे। मैं भी उनका पूरा साथ दे रही थी।

रजेश्वर जी: चलो दिव्या, मुझसे रहा नहीं जाता। मुझे तुम्हें अभी चोदना है।

मैं: नहीं। आप दो दिन मुझे नहीं चोद सकते। और छू भी नहीं सकते।

राजेश्वर जी थोड़े चिंतित हो गए और बोले।

राजेश्वर जी: क्या हुआ दिव्या? तुम्हारी तबियत तो ठीक है?

मैं: मुझे कुछ नहीं हुआ है।

राजेश्वर जी: तो फिर क्या हुआ?

मैं: जी वो, मुझे आपसे कुछ कहना है।

राजेश्वर जी: क्या कहना है, बोलो?

मैंने उनको क्या कहा, और इसके आगे मेरी चुदाई कहानी में क्या हुआ, वो अगले भाग में पढ़िएगा।

अगला भाग पढ़े:- हादसा-12