पिछला भाग पढ़े:- जहान्वी शर्मा-1
मैं जब घर जा रही थी, तब भी उसके शब्द मेरे दिमाग में गूंज रहे थे। फिर मैंने मेरे घर की और देखा और सोचा कि इस घर को बचाने की खातिर हम क्या कुछ और नहीं कर सकते? मेरे पति बाहर चबूतरे पर ही बैठे थे। उन्होंने मुझे देख के पूछा कि मैं कहा थी। मैंने उन्हें बस इतना कहा कि मैं मीणा के पास गई थी। इतने में बीच में ही नितिन पूछे-
नितिन: क्या सेठ कर्ज़ कम कर रहे है?
उनकी आखों की चमक देख के मेरे मुंह से हां निकल गया हां। नितिन यह सुन के बच्चों जेसे खुश हो गए। उनकी खुशी के लिए मैंने भी सोचा कि इतनी जल्दी नौकरी भी ना मिलेगी, और जहां तक लाज की बात है, तो बंद कमरे किसे मेरी चूत की ठुकाई के बारे में पता चलेगा? और चोद चोद के वो बूढ़ा सेठ कितना चोदेगा?
नितिन ने मुझसे पूछा कि बदले में सेठ ने क्या मांगा तो मैंने कह दिया कि मुझे उनके कारोबार का बही खाता देखना होगा, और सचिव वाले काम करने होंगे।
अगले दिन मैं 11: 45 बजे उसके ऑफिस पहुंच गई। मैंने पीले रंग ब्लाउज पे गुलाबी रंग की साड़ी और अंदर काली रंग की चड्डी-ब्रा पहनी और एक थैली में एक तेल की शीशी लेली। रिसेप्शन पे बोला कि धनपत सेठ जी ने बुलाया हैं। रिसेप्शनिस्ट ने फोन पे सेठ को बोला कि मैं आई थी। फिर मुझे 5 मिनट बाद केबिन से बाहर आके मुझे बुलाया और ऑफिस के पीछे वाले कमरे में लेके गया।
ये कमरा उसने लंच खाने के बाद सोने या किसी को ”खाने” के लिए बनवाया था। अंदर एक 1 BHK का कमरा था। उसमें एक डबल बेड, शावर वाला बाथरूम टीवी, एसी, फ्रिज वगैरह जेसी सुविधाएं थी।
धनपत ने कमरे में आके दरवाजा बंद कर लिया और फिर अपना कुर्ता बनियान उतार लिये। दोस्तों उसके सीने और पेट पे बाल ही बाल थे, आज कल के हीरो के जैसे साफ नहीं। उसका पेट काला था और थोड़ा बाहर आ रखा था। उसने अपनी पतलून खोलने से पहले मुझे बाथरूम में चलने को कहा। वहां उसने मुझे अपने साथ शावर के नीचे ला कर ठंडा पानी चालू कर दिया।
पानी के कारण रुई की साड़ी मेरे बदन से चिपक गई। धनपत ने अपना हाथ मेरी कमर पर रख के मुझे अपनी बाहों में लिया और मेरे गले को चूमने लगा। वो मेरे बाल पीछे से पकड़ कर, मेरे गले पे अपना हाथ रख के, मेरे होठों के ऊपर अपने जीभ फिराने लगा, और फिर मेरे मुंह में जीभ डाल के चूमने लगा।
ये सब करते समय अब मेरी हवस भड़कने लगी थी। उसकी ये करने की ही देर थी कि अब मैंने भी उसका साथ देना शुरू कर दिया। अब हम दोनों की जीभ आपस में लिपट रही थी। हम दोनों एक-दूसरे के मुंह की थूक को चूस रहे थे। उसने अब अपनी पतलून का नाड़ा खोल दिया, और एक हाथ से मेरी गांड पकड़ी, और दूसरा मेरे पेटीकोट में डाल कर चड्डी के ऊपर से मेरी चूत रगड़ने लगे।
उसकी भीगी हुई काली चड्डी में उसका लंड उभरता हुआ दिख रहा था। मैं अपने दोनों हाथों को उसकी चड्डी में डाल के उसका लंड मसलने लगी। इस दौरान हमारे होठ जुदा नहीं हुए थे। वो मेरी गांड पर रखे हाथ को ब्लाउज में डाल के मेरे चूचों के निप्पल मसलने लगा। इससे अब मेरी कामवासना की ज्वाला फूट पड़ी।
अब मैं दीवार के सहारे खड़े होके, एक पैर थोड़ा उठा के, अपनी चूत रगड़वा रही थी। इस चुसाई-रगड़ाई ने हमें बहुत गरम कर दिया था। शादी के बाद मैं पहली बार किसी पराए मर्द से चुम्मा-चाटी करके इतनी गर्म हुई थी। फिर धनपत ने अपने होठ हटा कर शावर बंद किया और बोला-
मीणा: अब क्या बस भीग के चाटेगी? नंगी मालिश क्या तेरी मां करेगी छिनाल?
इसके बाद हम मेन कमरे में आ गए। वहां एक गद्देदार मेज़ थी। उस पर धनपत पेट के बल चड्डी में लेट गया। उसने मुझे कहा-
मीणा: चल रंडी, अब साड़ी उतार और उस कटोरी में तेल निकाल कर मालिश शुरू कर।
उसके यू मुझे गाली देने पर मुझे गुस्सा नहीं आ रहा था। मैंने उसका कहा माना और साड़ी पेटीकोट उतर कर ब्रा-चड्डी में होकर तेल कटोरे में निकाल लिया। मैंने पहले धनपत की पीठ की मालिश शुरू की। उसे मेरे हाथों की मालिश का आनंद आ रहा था। वाकई में उसकी थकान उतर रही थी।
धनपत ने फिर अपनी काली Jockey की चड्डी उतार दी। दोस्तों उसकी गांड पर घने बाल उग रहे थे किसी भालू के जैसे। और अब यह भालू मेरा शहद चाटने की तैयारी में था। धनपत फिर अपनी पीठ के बल लेटा। जैसे ही उसने करवट बदली, उसका लंड स्प्रिंग के जैसे नाचने लगा। उसका लंड तकरीबन 5-6 इंच तक का था। मैंने पहले उसकी पैरों की, फिर जांघों की मालिश की। जांघों की मालिश करते समय उसके ढीले टट्टे का थैला झूल रहा था।
फिर मैंने धनपत के लंड पर तेल डाल कर उसकी दोनों हाथों से मालिश की। उसपे मैंने अच्छे से तेल मसला और फिर उसके टट्टों को अच्छे से तेल मालिश किया। कटोरे में तेल खत्म हो गया था, तो मैं तेल की दूसरी बोतल में से तेल निकलने लगी। तेल का कटोरा धनपत के पास में ही था। मैं जब उसमे तेल डालकर बॉटल को रखने झुकी, तो उसने खड़े होकर, तेल हाथ में लेके मेरे बदन, गांड और मेरे अंतर्वस्त्र (ब्रा-चड्डी) पर डाल दिया। अब मैं पूरी तेल से लबालब भीग गई थी।
इसके बाद धनपत ने मेरे पीछे से गले लगते हुए एक हाथ झांट पे और दूसरा मेरे चूचों पे डाल तेल मसलने लगा। उसका हाथ मेरी चूत से होते हुए मेरी भग्नासा पर जा पहुंचा। अब वो एक हाथ से मेरे निप्पल और दूसरे से मेरी भग्नासा रगड़ रहा था। मैंने इस आनंद में मेरी आंखे मूंद ली। ये देख वो मेरा कान गला चूमने चाटने काटने लगा। मैं भी अब बेशरम बनके सिसकारिया निकाल कर मज़े लेने लगी।
अब मेरी चूत में वासना के मारे गरम हो रही थी। अब मैं धनपत के बाहों में उसके कंधे पर सर रख कर, एक हाथ उसके गले पर रख दूसरे से उसका लंड हिलाने लगी। धनपत समझ गया कि अब मुझसे उसको हरी झंडी मिल गई थी।
इसके आगे क्या हुआ, ये आपको कहानी के अगले पार्ट में पता चलेगा। कहानी का मजा आया हो तो अपनी फीडबैक जरूर दे। मेरी मेल आईडी नीचे दी हुई है-
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