हैलो दोस्तो आपका अपना दीप पंजाबी एक बार फेर आपकी सेवा में एक नई कहानी के साथ हाज़िर है। सो ज्यादा इंतज़ार न करवाते हुए सीधा कहानी पे आते है।
ये राजस्थान के एक छोटे से गांव की कहानी है। जहां भीमा एक गरीब मज़दूर, जो अपनी पत्नी शांति और बेटे विजय के साथ अपने मालिक जमीदार राजेन्द्र सिंह की हवेली के बाहर एक छोटी सी झोपडी में रहता था।
भीमा के पुराने बज़ुर्ग दादा पड़दादा ने कोई बड़ी रकम ज़मीदार साब से ब्याज पे ली थी और वो रकम चुकाने के लिए शुरू से ही ज़मीदार साहिब के खेतो में ही काम करते आये थे और अब तक सिर्फ ब्याज ही बड़ी मुश्किल से चुकता कर पाये थे। मूल वैसे का वैसा वहीँ रुका हुआ था।
भीमा भी उसी रीत को आगे चला रहा था। गरीब होने की वजह से भीमा अपने बेटे विजय को ज्यादा पढ़ा लिखा नही सका और सारा परिवार जमीदार साब की दिन रात चाकरी करता था।
भीमा का बेटा विजय 25 साल का हो चूका था और जब से उसने होश सम्भाला था। खुद और परिवार को जमीदार का गुलाम ही पाया था। जमीदार साब चाहे पैसे से पूरी दुनिया खरीद सकते थे, पर अपने घर में गरीब थे, मतलब खुद के घर उनकी अपनी औलाद नही थी। जिसकी वजह से दोनों मिया बीवी बहुत परेशान रहते थे ।
एक दिन भीमा अपनी झोपडी में बैठा खाना खा रहा था के एक आदमी जो के ज़मीदार साब का संदेसा लेकर आया था, के उन्होंने कही जाना ही जल्दी हवेली में पहुँचो। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे हैं।
भीमा ने खाना खाकर 20 मिनट में पहुंचने का बोलकर है उसको वापिस भेज दिया।
(खाना खाकर जब भीमा हवेली गया तो)
भीमा – कैसे याद किया हज़ूर ?
जमीदार – हा तो भीमा, आ गए हो। सुनो मैं कारोबार के सिलसिले में एक महीने के लिए विदेश जा रहा हूँ। तुम और शांति दोनों अपनी मालकिन का ख्याल रखना। उनको समय समय पे दवाइया, खाना देते रहना।
भीमा – जो हुक्म हज़ूर, आप निश्चि्त होकर अपने काम पे जाओ, मालकिन और घर की हिफाज़त की जिम्मेवारी हमारी है।
ज़मीदार – बहुत बढ़िया !! तुमसे मुझे यही उम्मीद थी।
(और जमीदार साब अपनी गाडी में बैठ कर हवाई अड्डे को तरफ रवाना हो जाते हैं)
उनके जाने के बाद मालकिन अपने कमरे में सो रही होती है तो..
शांति (दरवाजा खटकाते हुए) – मालकिन, दरवाजा खोलिए ! आपके लिए खाना लेकर आई हूँ।
(नींद में ही उठी मालकिन ने दरवाजा खोला और वापिस अपने बैड पे जाकर बैठ गयी )
शांति – लो मालकिन, खाना खालो पहले बाद में आपकी दवाई लेने का समय हो जायेगा।
मालकिन – आज तुम क्यों आई, शांति, बड़े मालिक कहाँ गए है, दिखाई नही दिए सुबह से ?
शांति – क्या बात करती हो मालकिन ? आपको बताकर नही गए क्या ज़मीदार साब ?
मालकिन – (रोटी का निवाला तोड़कर, मुह में डालने से पहले) – क्या मतलब तुम्हारा शांति ??
शांति – मतलब के मालिक ने विजय के बाबू जी को सुबह ही बुलाया था के उनको बाहर बिदेश में किसी काम से जाना था। इसलिए आज मालिक दिख नही रहे यहां।
मालकिन – अच्छा तो ये बात है ?
(खाना खाने के बाद)
शांति तुम ऐसा करो मेरी अलमारी से कपड़े निकाल दो, मुझे नहाकर दवाई लेने अस्पताल जाना है और हाँ आपके मालिक तो है नही यहाँ पे तो आज दवा लेने किसके साथ जाउगी मैं, ऐसा करो विजय को बुला लेते हैं खेत से, उसे गाडी चलाना भी आता है और थोडा पढ़ा लिखा भी है, बाहर के लोगो से बोलने की तमीज़ भी है ! क्या कहती हो शांति ??
शांति – ठीक है मालकिन, जैसी आपकी मर्ज़ी।
(मालकिन मुनीम जी को फोन लगाकर विजय को घर भेजने का कहती है)
करीब आधे घण्टे बाद विजय भी खेत से हवेली आ जाता है। उधर मालकिन भी तैयार होकर बैठी होती है।
विजय – हांजी मालकिन क्यों बुलाया खेत से ?
मालकिन – विजय तुम्हारे मालिक एक महीने के लिए कही बाहर गए हैं तब तक तुम मेरे साथ हर जगह चलोगे, जैसे अस्पताल, कही घूमने या फेर किसी पार्टी में, समझ गए न।
विजय – जो हुक्म मालकिन, अब कहाँ चलना है।
मालकिन – अब हमको शहर के सबसे बड़े अस्पताल में जाना है, दवाई लेने ! जाओ तुम कपड़े बदल कर तैयार हो जाओ, इन कपड़ो में अच्छे नही लगते हो।
विजय – पर मालकिन मेरे पास इससे अच्छे कपड़े नही है।
मालकिन – उफ्फ्फ !!! क्या नई मुसीबत है, ठीक है पहले नहाकर आओ कपड़ो का बन्दोबस्त मैं करती हूँ।
विजय – ठीक है मालकिन।
(करीब आधे घम्टे बाद विजय नहाकर आ जाता है)
मालकिन – ये लो विजय तुम्हारे साब जी के कपड़े है ध्यान से हिफाज्त करना इनकी फटने नही चाहिए, और एक बात किसी को ऐसा न महसूस होने देना के तुम हमारे नौकर हो, हमे आज नए अस्पताल में जाना है। उनसे ऐसे वयवहार करना के तुम ही जमीदार हो, इससे हमारी भी इज्ज़त बनी रहेगी।
विजय – ठीक है मालकिन !!
(विजय उन कपड़ो को पहन कर खुद ज़मीदार साब लग रहा था)
(दोनों गाड़ी में बैठकर अस्पताल चले गए)
डॉक्टर ने दोनो को हम उम्र होने की वजह से पति पत्नी समझ लिया और पुरानी रिपोर्ट्स को पड़कर बोले – हाँ तो राजेन्दर जी, आप बैठो और आपकी पत्नी को जरा बाहर ही बैठने को बोलो..
(ज़मीदार बने विजय ने वैसा ही किया)
डॉक्टर – हाँ तो राजेन्द्र जी, आपकी रिपोर्ट के हिसाब से आप में कमज़ोरी की वजह से आपके वीर्य में शुक्राणु बनने की प्रकिर्या बहुत धीमी है।
ज़मीदार – क्या मतलब आपका डॉक्टर साब ?
डॉक्टर – मतलब साफ़ है आपकी बीवी की रिपोर्ट आपसे मिलाकर देखी है, उनमे कोई कमी नही है। कमी आपमें है, पर आप चिंता न करो मैं कुछ दवाइया लिख देता हूँ, इनके सेवन से आप कुछ ही महीनो में शरीर में आई कमज़ोरी से बाहर निकल जाओगे।
ज़मीदार – ठीक है डॉक्टर साब..
जमीदार डॉक्टर के कॅबिन से बाहर आ जाता है और उसकी पत्नी यानि मालिकिन पूछती है – क्या बोला डॉक्टर ने विजय ?
विजय – बात यहाँ बताने वाली नही है। रस्ते में बताऊंगा आपको अब चलो यहां से मालकिन।
मालकिन – ठीक है चलो।
दोनों गाड़ी में बैठकर घर की तरफ रवाना हो जाते है।
मालकिन – अब बोलो क्या बोला डॉक्टर ने ?
विजय (एक साइड पे गाड़ी रोककर) – डॉक्टर ने कहा के आप ज़मीदार साब से कभी माँ नही बन पाओगे। मैं तो ज्यादा पढ़ा भी नही हूँ । आप खुद ही देखलो। साफ साफ लिखा है के उनके वीर्य में औलाद पैदा करने के कण नही है।
अब मालकिन आँखे फाड़-फाड़ कर उस रिपोट को देख रही है, और आँखों से आंसुओ को नदी बेह रही है।
विजय – सम्भालो अपने आप को मालकिन, सब ठीक हो जायगा। डॉक्टर ने दवाईया लिखकर दी है। जिनके सेवन से मालिक ठीक हो जायेंगे।
मालकिन – तुम नही जानते विजय तुम्हारे मालिक कितने गर्म स्वभाव के है। अगर उनको ये बात पता चली तो कुछ कर बैठेंगे। क्योंके ये उनकी इज़्ज़त का स्वाल है। तुम भी ये बात किसी से न कहना वरना हमारे खानदान की बहुत बदनामी होगी। मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ। ये बात हम तीनो वो डॉक्टर, तुम और मैं जानते है। आगे किसी चौथे को पता नही चलना चाहिए।
विजय – (उनके हाथ पकड़कर) – ना मालकिन ना केसी बाते करते हो ? आपकी इज़्ज़त पे आंच नही आने देगा ये विजय, चाहे उसके लिए मेरी जान क्यों न चली जाये।
मालकिन – चलो गाड़ी चलाओ मुझे अभी घर जाना है।
विजय – जो हुक्म मालकिन।
विजय गाड़ी लेकर हवेली आ गया पर सारे रास्ते में मालकिन रोती रही।
शांति – क्या हुआ मालकिन आपका चेहरा उत्तरा उत्तरा सा क्यों लग रहा है?
मालकिन – नही कुछ नही शांति।
शांति – क्या हुआ मालिक की याद आ गयी क्या ?
मालकिन – हाँ कुछ ऐसा ही समझ लो। तुम जाओ और विजय को मेरे कमरे में भेजो।
शांति ने विजय को भेज दिया।
विजय – आपने बुलाया मालकिन?
मालकिन – हाँ विजय आओ और आते वक़्त कमरा अंदर से बन्द करते आना।
विजय ने ज्यादा सवाल नही किये और आकर उनके बेड के पास खड़ा हो गया।
विजय – बोलो मालकिन क्या हुक्म है मेरे लिए?
मालकिन – देखो विजय तुमसे एक बात करनी है।
विजय – हां जी फरमाइए।
मालकिन – तुम्हारे पुरखो ने हमारा कितना क़र्ज़ देना है? ये तो तुम भी जानते हो !!
विजय – हांजी पता है बहुत बड़ी रकम है। पर आप चिंता न करो हम आपकी पाई पाई चूका देंगे।
मालकिन – मुझे तुमसे एक सौदा करना है।
विजय – कैसा सौदा मालकिन ?
मालकिन – यदि तुम चाहो तो तुम्हारा सारा क़र्ज़ माफ़ हो सकता है।
विजय – (हैरानी से) – क्या बोला आपने मालकिन ???
मालकिन – हाँ दुबारा सुनो, तुम चाहो तो तुम्हारा क़र्ज़ माफ़ हो सकता है वो भी पूरे का पूरा।
विजय – हाँ ये बात तो समझ आ गयी, पर मुझे करना क्या होगा?
मालकिन – अपनी एक बहुत ही कीमती चीज़, मुझे देनी होगी। सोच लो !!
विजय – मेरे पास ऐसी क्या कीमती चीज़ है जिसके बदले में मेरा क़र्ज़ माफ़ जो सकता है।
मालकिन – आज रात तक सोच लो सुबह यही आकर बात करेंगे, और हाँ किसी से इसके बारे में ज़िक्र न करना। अब जाओ तुम अपने घर, सुबह टाइम से आ जाना।
विजय घर आकर सारा दिन, सारी रात सोचता रहा ऐसी कोनसी चीज़ है। जिसको देकर अपना क़र्ज़ माफ़ करवा सकता हूँ। सारी रात करवटे लेते निकल गयी।
सुबह हुई नहा धोकर सुबह ही हवेली आ गया और मालकिन के कमरे के बाहर से आवाज़ लगाई – मालकिन आप उठ गए क्या।
मालकिन – हाँ कब की जाओ अंदर, दरवाजा खुला ही है।
विजय अंदर आ गया और मालिकन का इशारा पाकर दरवाजा अंदर से लॉक भी कर दिया।
मालकिन – आज इतनी सुबह सुबह कैसे ?
विजय – मालकिन मुझे सारी रात नींद नही आई यही सोचता रहा क्या चीज़ हो सकती है वो, जो हमे क़र्ज़ से मुक्ति दिला सकती है। कही आप मुझसे मज़ाक तो नही कर रहे न।
विजय की बात सुनकर मालिकन हस पड़ी और बोली बस इतनी सी बात के लिए इतनी सुबह आ गए हो।
विजय – हांजी !
मालकिन – तुम बाहर बैठो मैं नहाकर आती हूँ और सारी बात विस्तार से समझाती हूँ।
विजय बाहर आकर बैठ गया।
करीब एक घण्टा उडीकने के बाद मालकिन बाहर आई और बोली – विजय गाड़ी निकालो और हमने अपनी दूसरे शहर वाली हवेली में जाना है।
विजय हुक्म मानकर गाड़ी में बिठाकर मालकिन को दूसरे शहर वाली हवेली ले गया। वहां जाकर देखा के वहां कोई भी नही है। दरवाजे पे बड़ा सा ताला लगा हुआ था।
मालकिन ने उसे दरवाजे की चाबी दी और दरवाजा खोलने को बोला।
विजय ने दरवाजा खोल दिया और गाड़ी अंदर करके दरवाजा अंदर से बन्द कर दिया। गाड़ी अंदर तक ले गया, दोनों गाड़ी से उतरे और वहां एक कमरे में पडे सोफे पे मालिकन बैठ गयी और विजय खड़ा रहा। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे हैं।
मालकिन – तुम भी बैठो विजय।
विजय – भला, मैं आपके साथ कैसे बैठ सकता हूँ, मालकिन?
मालिकन – क़र्ज़ माफ़ कराना है तो बैठना हो पड़ेगा न !
कुछ सोचकर विजय मालकिन से थोड़ी दूर उसी सोफे पे बैठ गया।
मालकिन – अब सीधा मुद्दे की बात पे आते है।
विजय – जी बोलो।
मालकिन – तुम तो जानते हो तुम्हारे मालक मुझे औलाद का सुख नही दे सकते।
विजय – हाँ जी तो?
मालकिन – तो मैं चाहती हूँ तुम मेरे बच्चे के पिता बनो। मैं तुमसे वादा करती हूँ ये बात हम दोनों में रहेगी।
मालकिन की ये बात सुनकर विजय भौचंका रह गया। उसे काटो तो खून नही, क्योंके उसमे ऐसा कभी सपने में भी नही सोचा था।
मालकिन उसे झंजोड़ते हुए – कहाँ खो गए विजय?
विजय – कहीं नही मालकिन, आपकी बात ने सोचने पे मज़बूर कर दिया। परन्तु ऐसा कैसे हो सकता है? मेने आपके बारे में ऐसा सपने में भी सोचा नही है।
मालकिन – देखो विजय तुम भी जानते हो जिस कर्जे को उतारने में तुम्हारे दादा पडदादा नाकाम रहे, तुम अकेले उसे कैसे उतार पाओगे?
विजय – हाँ मालकिन ये तो है।
मालकिन – तो तुम्हारे सिर का बोझ भी उत्तर जायेगा और हमे अपने खानदान को रोशन करने वाला चिराग मिल जायेगा। पर इसमें मेरी कुछ शर्ते हैं। जितना टाइम मैं चाहूँगी, तुम्हे यहाँ रहना पड़ेगा। हमारे घर ऐसे ही गुलाम बनकर, क़र्ज़ माफ़ है पर काम यही करोगे। उसकी तुम्हे हर महीने तनख्वाह भी दूंगी।
विजय – ठीक है जी।
मालकिन – जितने दिन आपके मालिक नही आते आप मेरे साथ ही रात को सोओगे। मंजूर है।
विजय – हाँ जी मन्ज़ूर है अब न कहने की कोई गुंजाइश भी नही है।
मालकिन – तो ये नेक काम आज से मतलब अभी से शुरू हो जाना चाहिए।
विजय – जो हुक्म मेरे मालिकन।
मालकिन – एक बात और जब मेरे साथ हो मालकिन नही कहना नाम लो निर्मला देवी।
विजय – ठीक है निर्मला देवी।
और दोनों हंसने लगे..
विजय ने निर्मला को गोद में उठाया और निर्मला के बताएं कमरे की तरफ चल दिया। अंदर पहुंच कर उसको बैड पर लिटाया और अपनी सारी शर्म, हया उतारकर उसके ऊपर आकर उसको चूमने लगा। इधर निर्मला भी अपनी हम उम्र के मर्द के स्पर्श को पाकर धन्य हो गयी। उसकी रग-रग ने काम वीना बजने लगी। मानो अंधे को आँखों की जोड़ी मिल गयी हो।
मालकिन की उम्र 25 साल, रंग गोरा, गदराया बदन, खुले बाल, साड़ी में लिपटी हुई एक अप्सरा लगती थी। माँ बाप छोटे ज़मीदार होने की वजह से इनके हिसाब का कोई रिश्ता नही मिला। तो राजेन्दर सिंह (35 साल) से शादी कर दी गयी।
करीब 10 मिनट निर्मला के होंठो का रसपान करने के बाद विजय भी थोड़ा सरूर में आ गया और निर्मला को उठाकर उसके सारे कपड़े एक एक करके निकाल दिए।
निर्मला भी एक एक करके विजय के सारे कपड़े निकालने लगी। जब दोनों एकदम नंगे हो गए तो एक दूजे को बाँहो में लेकर बैड पे लेट गए और एक दूजे को चूमने चाटने लगे।
फिर निर्मला को पीठ के बल लिटाकर विजय उसके ऊपर आके उसके माथे पे किस करने लगा। जिससे निर्मला के शरीर में 440 वाल्ट का करन्ट दौड़ने लगा और आँखे बन्द करके आह्हह्हह्हह्ह की आवाज़ निकालने लगी। आज पहली बार कोई अपनी उम्र का मर्द उसकी जवानी से खेल रहा था।
अब थोडा कान की तरफ झुककर कान की पेपड़ी को जीभ से मुह में लेकर चूसने लगा। जिस से निर्मला मज़े के सागर में गोते लगाने लगी। उसकी सिसकिया बढ़ती ही जा रही थी।
अब विजय निर्मला के निचले होंठ को अपने होंठो में लेकर उसका रसपान करने लगा, निर्मल भी उसका साथ दे रही थी। अब धीरे धीरे विजय निचे को सरकता जा रहा था। अब विजय ने निर्मला का दायना मम्मा अपने मुह में लिया और बायीं तरफ वाले मम्मे को हाथ में लेकर भिचने लगा। जिस से मानो निर्मला के शरीर में चींटिया दौड़ने लगी और वो अपने हाथो से विजय का सर पकड़कर अपने मम्मे पे दबाव बनाने लगी..
निर्मला – और चूसो, विजय खा जाओ इन आमो को तुम्हारे लिए ही सम्भालकर रखे है – जैसी बहकी बहकी बाते करने लगी।
विजय अपनी मस्ती में आगे बढ़ता जा रहा था और बार बार बदल बदल कर मम्मे चूस और उसने हल्की हल्की चक्की भी काट रहा था। जिस से कई बार निर्मल के मुह से ज़ोर से चीख निकल जाती थी।
अब निचे की और आते आते विजय का हाथ निर्मला की एकदम शेव की हुई चूत पे आ गया। जिसे वो देखता ही रह गया। क्या गज़ब की चूत थी। एक दम क्लीनशेव छोटे छोटे उसके होंठ मानो सन्तरे की दो फाड़ियां हो। उनमे एक छोटा सा भूरा सा दाना, जिसपे विजय का हाथ लगते ही निर्मला का शरीर मानो आकाश में उड़ने लगी हो।
निर्मला की चूत से चूतरस की बूंदे बह रही थी। उसकी बन्द आँखे, बेड की चादर नोचते उसके हाथ जिनको देखकर विजय भी समझ गया के लोहा बहुत गर्म हो गया है। अब हथौड़ा मारने की बारी है। यह कहानी आप देसी कहानी डॉट नेट पर पढ़ रहे हैं।
विजय ने उसकी टाँगे ऊची करवाकर अपने कंधो पर रखवाली और अपने साढे 5 इंची मोटे लण्ड को अपने हाथ में लेकर, उसका सुपाड़ा खोलकर धीरे धीरे उसकी चूत पे घिसाने लगा। जिस से निर्मला का सब्र जवाब देने लगा और वो लडखडाती आवाज़ में बोली..
विजय और न तड़पाओ, पहले ही बहुत तड़पी हूँ, इस दिन को देखने के लिए। अब बस मेरी चूत में अपना मोटा लण्ड डाल दो और मेरी झोली में एक बच्चा डाल दो। मैं तुम्हे मुंह माँग इनाम दूंगी और तुम्हारा सारा क़र्ज़ माफ़ भी कर दूंगी।
क़र्ज़ का नाम सुनते ही विजय को पता नही क्या हो गया। उसने अपने लण्ड को निर्मला की चूत पे सेट करके जैसे ही पहला झटका मारा।
तो उसका 2 इंच लण्ड निर्मला की तंग चूत के मुँह में घुस गया। जिस से निर्मला की ज़ोर से चीख निकल गयी और दर्द से छटपटाने लगी।
कुछ मिनट ऐसी ही हालत में रहने के बाद जब निर्मला का दर्द कुछ कम हुआ तो विजय ने अगला झटका मारा इस बार 2 इंच और लण्ड निर्मल की चूत में घुस चुका था।
इस बार विजय ने निर्मला के दर्द की ज्यादा परवाह नही की और दे दाना दन, दे दना दन झटके देने लगा और तब तक नही हटा जब तक जड़ तक लण्ड निर्मल की चूत में घुस न गया। अब निर्मला का दर्द भी मज़े में बदल गया और वो भी चूत उठा उठाकर चुदवाने लगी।
करीब 10 मिनट बाद आह्ह्ह्ह्ह्ह् की आवाज़ से झड़ गयी और शरीर को ढीला छोड़ कर लेटी रही। इधर विजय ने भी अपनी स्पीड बढ़ा दी और अगले 10 मिन्टो में एक लम्बी आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह् लेकर उसकी छोटी सी चूत में झड़ गया। दोनों आधे घण्टे तक इसी हालत में एक दूजे की बाँहो में लेटे रहे।
दोनों के चेहरे पे अपार ख़ुशी की झलक देखने लायक थी। क्योंके उन्होने अपने प्लान का पहला राउंड पार कर लिया था। दोनों एक दूजे की आँखों में आँखे डालकर खोये हुए थे के मोबाइल की घण्टी से उनका ध्यान एक दूजे से टूट गया। जो के ज़मीदार साब की विदेश से आई थी।
काफी देर तक फोन बज़ने के बाद जब निर्मला ने विजय की बाँहो में पड़े ही फोन उठाया तो आगे से आवाज़ आई – कहाँ चली गयी थी फोन रखकर निर्मला ?
निर्मला – जी.. वो.. वो.. मैं नहाने आई थी बाथरूम में और फोन बैड पे ही पड़ा बज रहा था और सुनाइए कैसे हो आप और कितने दिन यहां रहोगे आप ?
जमींदार – हाल बस बढ़िया है। अभी तो एक हफ्ता ही हुआ है। वहां से यहाँ आये हुए अभी एक महीना या इस से भी ज्यादा लग सकता है।
निर्मला (झूठी मुठी नाटक करती हुई) – इतने दिन मैं कैसे रहूंगी बिन आपके, मुझेे अपने साथ क्यों नही लेकर गए। यहां किसके सहारे छोड़कर गए हो। जाते वक़्त भी बताना जरूरी नही समझा।
ज़मींदार – माफ़ करदो मेरी जान, उस वक़्त तुम सोई हुई थी तो काम के सिलसिले में यहां आना पड़ा। तुम्हे उठाना अच्छा नही लगा। सोचा जाना तो मुझे है इसकी नींद क्यों खराब करनी।
निर्मला – जाओ मुझे नही बात करनी आपसे और आगे से फोन काट दिया।
फोन काटकर दोनों खूब हंसे और दुबारा एक दूजे में समा गए।
अब रोज़ाना ही उनका दिन में ये जवानी वाला खेल घर से बाहर और रात को मालकिन के कमरे में चलता। कब एक महीना पूरा हो गया इनको पता ही नही चला।
एक दिन फिर दोनों उसी अस्पताल में गए जहां पहले भी एक बार जाकर आये थे। डॉकटर ने दोनों के टेस्ट करके रिपोट बनाई और बधाई दी के निर्मला के गर्भ में बच्चा बनना शुरू हो गया है। दोनो की ख़ुशी का कोई ठिकाना नही था।
अब मालिक भी विदेश से लौट चुके थे। फिर भी जब भी उनको वक़्त मिलता दो बदन एक जान हो जाते। इस तरह वक्त बीतता रहा और निर्मला ने एक बहुत ही खूबसूरत बेटे को जन्म दिया। जिसका नाम विजय के नाम पर ही रखा गया।
फेर एक दिन निर्मला ने राजेन्दर सिंह से बात की किस तरह इसने मेरी आपके जाने के बाद मेरी दिन रात सेवा की, मुझे हर जगह लेकर घुमा ताजो हमारे घर बच्चा हो जाये। सो इसकी सेवा के बदले विजय का पूरा क़र्ज़ माफ़ कर दिया जाये।
मालिक को उसका सुझाव पसन्द आ गया और विजय का पूरा क़र्ज़ माफ़ कर दिया।
अब ज़मीदार ने विजय को महीने की तनख्वाह पे रख लिया। जिस से विजय की ज़िन्दगी में एक नया मोड़ आ गया।
सो इस तरह एक बेटे से अपने बाप दादा को फंसे क़र्ज़ से निकाला।
सो मित्रो ये थी एक और नई कहानी.. जैसी भी लगी अपने विचार मेरे ईमेल पते पे भेजदो। मेरी मेल आई डी है “[email protected]”.
अब अपने दीप पंजाबी को दो जाने की इज़ाज़त। जल्द ही एक बार फिर मिलेंगे.. तब तक के लिए नमस्कार।