पंजाब की सरदारनियां-3 (Punjab ki sardarniyan-3)

पिछला भाग पढ़े:- पंजाब की सरदारनियां-2

जस्मीन को अब बैंक में दो महीने बीत चुके थे, और वह अपने काम में पूरी तरह से परिपक्व हो गई थी, और उपर से संतोष भी जस्मीन से नजदीकियां बढ़ाते हुए टार्गेट पूरे करने में जस्मीन की हेल्प करता रहता था।

चूंकि लोन/लिमिट की फाइल्स की वेरिफिकेशन के लिए संतोष जब कभी साइट पर जाता, तो फाइल वर्क के लिए जस्मीन को भी अपने साथ ले जाता।

जब कभी भी संतोष को मौका मिलता, तो वह जस्मीन के जिस्म को किसी ना किसी बहाने से छूने की कोशिश करता, और अकेले में उसके साथ कभी डबल मीनिंग बाते करता, तो कभी उसकी तारीफ करता।

जस्मीन संतोष की इस बातों का कभी तो जवाब दे देती, तो कभी बस एक हल्की मुस्कुराहट दे देती। ऐसा लगने लगा जैसे अब जस्मीन भी संतोष की बातों का आनंद लेती थी, और उसके दिल के किसी कोने में अब अपनी जवानी की आग में जलने और उसे बुझाने की कोई बहस चल रही थी।

भले ही जस्मीन ने अब तक किसी लड़के को अपने नजदीक नहीं फटकने दिया था, पर ऐसा भीं नहीं था, कि जस्मीन मर्द और औरत के रिश्ते से बेखबर हो। 26 साल की पंजाबन की जवानी के समुंदर में अब तूफान आने लगे थे, और इन तूफानों से लड़ने के लिए अब जस्मीन अकेली सी महसूस कर रही थी।

इसी तरह आज फिर से संतोष किसी गांव में एक लोन फाइल की वेरिफिकेशन के लिए जाने लगा। तो उसने केबिन से बाहर आकर जस्मीन को आवाज लगाई,

“जस्मीन, वो तेजा सिंह की फाइल उठा लो, उसकी वेरिफिकेशन करने जाना है अभी”

“जी सर,”। कह कर जस्मीन ने अपने टेबल पर पड़ी कुछ फाइल्स देखी और उनमें से एक फाइल उठा कर संतोष के पीछे ही बाहर चली गई।

संतोष गाड़ी में बैठा जस्मीन का इंतजार कर रहा था, और उसके गाड़ी में बैठते ही संतोष गाड़ी चालू करके चलाने लगा।

“और जस्मीन घर में सब अच्छा है”, संतोष ने चुप्पी तोड़ते हुए और जस्मीन से बातचीत की शुरुआत की।

“जी सर सब अच्छा है”, जस्मीन ने भी जवाब दिया।

इसके बाद एक बार फिर से गाड़ी में सन्नाटा सा छा गया।

तभी संतोष की नज़र सड़क पर गुजरती एक औरत पर पड़ी जिसे देख कर संतोष बोलने लगा,

“वैसे एक बात तो माननी पड़ेगी जस्मीन, पंजाब की औरतें है बहुत खूबसूरत”।

जस्मीन ने एक-दम से संतोष को देखा और फिर एक मुस्कुराहट के साथ दूसरी तरफ देखने लगी।

“क्या हुआ कुछ गलत बोल दिया क्या मैंने?”, संतोष ने जस्मीन को देख कर पूछा।

“अहा, नहीं, पर अपने आप में हर कोई खूबसूरत होता है सर”, जस्मीन ने अब जवाब दिया।

“हां भई, पर पंजाबनो की बात ही अलग है”, संतोष ने अब जस्मीन को ही देख कर मुस्कुरा कर कहा।

“क्यों सर, फिर मिस वर्ल्ड एंड मिस यूनिवर्स क्या है”, जस्मीन के होंठो पर भी हल्की मुस्कुराहट आ गई।

“अरे तुम समझी नहीं, ये कंपीटीशन जो है उनमें मेकअप ब्यूटी होती है। और मैं कुदरती सुंदरता की बात कर रहा हूं”, संतोष ने एक दलील के साथ जवाब दिया।

“हां, हो सकता है सर, पर कुदरती सुंदरता तो आपको हमारे भारत के किसी भी स्टेट में मिल जायेगी”, जस्मीन ने हार ना मानते हुए नहले पर दहला मारने की कोशिश की।

“अहा, घाट-घाट का पानी पी चुका हूं मैं अपने 17 साल के कैरियर में। पर तुम्हारे जैसी सुंदरता कही नहीं मिली। मेरा मतलब यहां की औरतों जैसी”, संतोष ने एक तीर से दो निशाने भेदते हुए जसमीन को निहारते हुए बोला।

“अच्छा जी, वैसे सर हमारे यहां के पहलवान भी बहुत जान वाले और तगड़े है, दारा सिंह जी जैसे”,‌ जस्मीन ने अब संतोष को मुस्करा कर पर आंखो के इशारों से एक ताना कसती हुई ने कहा।

“ह्हम्म दारा सिंह जी तो मुझे याद है जस्मीन जी, पर आप शायद गामा पहलवान को भूल गई”, संतोष भी झट से जवाब देते हुए बोला।

“पर वो तो अमृतसर से थे तो आपके कैसे हो गए?”, जस्मीन एक दम से बोल उठी। क्योंकि उसने गामा के बारे में थोड़ा बहुत पढ़ा था।

“हां थे आपके यहां से पर रहे हमारे यहां, और कुश्ती भी वहीं सीखी। इसलिए पहलवानी की बात हमसे तो मत कीजिए जस्मीन मैडम”, संतोष ने भी तंज कसते हुए कहा।

“फिर भी सर, कुश्ती और कबड्डी में हम आपसे आगे है”, जसमीन एक बार फिर से बोली।

“हा हा हा, कहां की बात कहा ले गई तुम जस्मीन। खैर कोई बात नहीं। किसी दिन मौका मिला तो हम आपको कुश्ती के दांव पेंच भी दिखा देंगे”, संतोष हंसते हुए जसमीन को देख कर बोला।

संतोष की बात को जस्मीन भी समझ जाती है और उसकी तरफ देखती हुई मुस्कुराती हुई अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लेती है।

वहीं दूसरी तरफ गांव में सरपंची के इलेक्शन में यहां बलवंत सिंह दिन भर व्यस्त रहता था। तो उसके पशुओं और खेती के काम के लिए उसने घर में एक बिहारी नौकर को रख लिया, जो बलवंत के बेटे के साथ खेत में काम किया करता।

राजवंत घर में काम करती हुई कभी कभार फोन पर अपने रिश्तेदारों से बात कर लेती, या फिर आस-पड़ोस की सहेलियों के यहां चली जाती, या उन्हें घर पर बुला लेती।

ऐसे ही आज भी एक औरत घर के छोटे दरवाजे से अंदर आती है। “नी राजवंत घर ही ए?”, औरत ने आते हुए आवाज लगाई।

राजवंत ने आवाज सुन के अंदर से शीशे में से देखा बाहर की तरफ और फिर आवाज लगाई,

“आजा सिमर कौरे अंदर ही आजा”।

सिमर कौर 45 साल की 36-34-38 फिगर के साथ भरी पूरी औरत जिसके पति की मौत 10 साल पहले हो चुकी थी, और वह अपने इकलौते बेटे के साथ खेतों में अपने मकान में रहती थी। हालाकि पति की मौत के पहले और बाद से उसके संबंध गैर मर्दों से भी थे, जिनमे सिर्फ बाहर के मर्द ही है, गांव के नहीं।

चूंकि सिमर कौर का पुराना घर राजवंत के पड़ोस में ही था, इसलिए वह राजवंत की सबसे पुरानी सहेली थी, जिसके साथ वो अपनी हर बात शेयर करती थी।

“की हाल चाल ने बहन दे?”, लॉबी का दरवाजा खोल कर अंदर आती हुई सिमर कौर बोली।

“बस बढ़िया बहने, तू अपनी दस्स, आज पिंड में कैसे गेड़ी लगा रही है?”, राजवंत कौर मंजा (चारपाई) नीचे रखती हुई बैठ जाती है।

“आई तो अपने दूसरे घर वालों के पास थी बहने, सोची तेनु भी मिल लवा हुन”, सिमर कौर भी बैठती हुई बोली।

“सुख से ही आई थी सिमरो, कोई अनहोनी तो नहीं हो गई न?”, राज कौर सिमर को देख कर पूछने लगी।

“सुख से आई थी बहन, घबरा मत सब ठीक है”, सिमर कौर ने कहा।

“अच्छा, और कैसी चल रही है जिंदगी, बेटा क्या कर रहा है तेरा आज कल?”, राज कौर पूछने लगी।

“रब दा शुक्र है बहने, लड़के का तो वीजा आया पड़ा है। अगले महीने तक चला जायेगा”, सिमर ने कहा।

“बधाई हो फिर तो तुम्हे सिमरो, तू भी तैयारी कर ली फिर तो उसके साथ ही”, राजवंत हस्ती हुई बोली।

“ना बहने तू ना जाओ, यहां वाली मौज बाहर कहा मिलेंगी”, सिमर कौर भी हंस कर कहने लगी।

“हां बहने, तू बाहर चली गई तो तेरे यारों का क्या होगा?”, राजवंत ने फिर से तंज कसा मुस्कुरा कर।

“अच्छा कमीनिये, तो तू संभाल लेना उन्हें, जवान घोड़ी पढ़ी है तू भी तो अभी”, सिमर कौर ने कोहनी से राज कौर को छेड़ते हुए कहा।

“जा नी बहने, अपने झोटेया (सांड) नू तुम ही झेलो, मैं क्यों आने लगी उनके पास?”, राज कौर मुंह सा बनाती हुई कहने लगी।

“हा राज कौरे, अब तेरे घर में झोटा आ गया है, तो क्यों बाहर झांकने लगी?”, सिमर कौर ने राज कौर को ताना मारा।

“कौन सिमरो? किस झोटे की बात कर रही है, जो मेरे घर में आ गया?”, राजवंत हैरानी से बोली।

“ले जैसे तेनु पता नहीं, तुहाडे घर का नौकर, बिहारी झोटा”, सिमर कौर राज को देख कर बोली।

“जा नी बहने, मैं भला उस बिहारी नू देखन लगी, फिर तेनु पता तो हैं तेरे वीर (सिमर का देवर और राज कौर का पति बलवंत सिंह) जी का”, राजवंत कौर सिमर को देखती हुई कहने लगी।

“जानती हूं बहने, अपने वीर जी को, के कितना कु टाइम टिक पाते हैं मेरी राज बहन की गर्मी के आगे”, सिमर कौर ने फिर से तंज कसा।

“नी की जानती है तू बहने? मैं तो मछली की तरह छटपटाती हूं उनके आगे”, राज कौर ने सिमरो के आगे बलवंत के बारे में डींग मारी।

“बहन झूठा दिलासा क्यों दे रही है खुद को? जानती हूं मैं,‌ 5 मिनट नहीं टिक पाता वो तुम पर”, सिमर कौर ने कहा।

सिमरो के इतना कहते ही राज कौर चुप हो गई। उसके पास कोई शब्द ना रहें बोलने के लिए।

“देख बहन मैं तो सच कहती हूं, मीठा लगे या कड़वा। पर सच्चाई तो यही है। अब आगे तेरी इच्छा के अपनी आग में झुलसना है या उसे बुझाना है”, सिमरो ने एक बार फिर से राज कौर को देख कर कहा।

“जब सब जानती है फिर चुप क्यों नहीं कर जाती बहन”, राज कौर उदास मुंह से बोली।

“मेरे चुप होने से कुछ बदल थोड़े ना जायेगा बहन। कितने सालो से तुझे मना रही हूं के एक बार ट्राई तो कर ले। पर तू है के मानती ही भी”, सिमरो फिर से कड़वे शब्दो में बोली।

“मानू भीं क्यों बहन? 15 एकड़ की मालकिन हूं मैं, और एक बिहारी के नीचे लेट जाऊं”, राज कौर अब थोड़े गुस्से ले बोली।

“ऐसे तो मैं भी 13 एकड़ की मालिक हूं बहन, पर ये एकड़ जिस्मानी सुख तो नहीं देते। वो सुख तो मर्द के गुल्ले से मिलता है”, सिमर कौर ने राज कौर को देख हंस कर कहा।

“पर जरूरी तो नहीं वो गुल्ला किसी बिहारी मजदूर का ही हो”, राज कौर भी अंदर से स्वाद लेती हुई बोली।

“ना कोई जरूरी नहीं बहन, तू चाहे तो किसी अपने का लेले। पर उसमे खतरा है कि अपने वालों के पेट में ना बात पचती नहीं”, सिमर कर ने राज कौर को जवाब दिया।

“बात कैसे नहीं पचती बहन? ये बिहारी/ यूपी वाले क्या मुंह पर पट्टी बांध के रखते है”, राजवंत कौर ने कहा।

“अच्छा सुन बहन, मुझे कितने साल हो गए इनके साथ, कभी तूने सुना किसी से बारे में? नहीं ना?‌ और वो जिंदू की औरत, उसका चक्कर था अपने वालो के साथ। क्या हुआ उसके साथ तू जानती है। ये विश्वास वाले है बहन। अपने वालों का क्या है। एक पेग लगा के कही भी कुछ भी बक देते है”, सिमर कौर जैसे राजवंत को समझा रही थी।

“चल छोड़ बहने, ऐसे ही डरा मत, मैं तो पहले ही बदनामी से डरती हूं”, राजवंत कौर सिमरो को कहने लगी।

“बदनामी से डरती है बहन तो फिर किसी बिहारी/यूपी वाले से ही लगाना यारी, मजा भी मिलेगा और सेफ्टी भी”, सिमरो ने फिर से राज कौर को उकसाया।

“तुम भी ना बहन, मौका चाहिए इनकी तारीफ का तुझे तो”, राजवंत हस कर कहने लगी

“अब जो तारीफ के लायक है उसी की तारीफ होगी ना बहन”, सिमरो भी हस्ती हुई बोली।

“चल चंगा बहन चलदी हा हुन मैं। अगली बार आऊंगी तो खुशखबरी देना के मेरी भैंस जैसी राजवंत बहन पर बिहारी/यूपी का झोटा चढ़ाई कर गया”, सिमर कौर मंजे से उठती हुई बोली।

“अच्छा, और अगर उस झोटे में मुझे गब्बन (पेट से) कर दिया तो?”, राजवंत कौर भी हस कर बोली।

“तो क्या हुआ बहन, तगड़े सांड का बीज होगा, रख लेना”, सिमर कौर ने राजवंत की तरफ आंख मारती हुई ने कहा”।

“है देख कमीनी कही की”, राजवंत कौर ने भी हस कर कहा और सिमर कौर को दरवाजे तक छोड़ कर वापिस अंदर आने लगी,‌ तो उसके दिल में सिमर कौर की कही बातों ने एक तूफान सा खड़ा कर दिया।

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