This story is part of the Padosan bani dulhan series
अब आगे दिल्ली में राज और सुषमा जी की कहानी राज की जुबानी…
यहां मैं पाठकगण से यह पूछना चाहता हूँ की क्या उनको यह कहानी पसंद आ रही है, या नहीं? अगर आ रही हो तो अपने कमैंट्स लिखें। कुछ कमैंट्स जरूर लिखे जा रहे हैं पर ज्यादातर जो कमैंट्स जो मैं देखता हूँ वह किसी लड़की की कमैंट्स के पीछे लिखे हुए ही होते हैं। जिसमें दूसरे लड़के लड़की को ललचा ने की, पटाने की और अपनी और आकर्षित करने की कोशिश में ही लगे रहते हैं, उनके होते हैं।
मेरे लिखने के लिए प्रोत्साहन या प्रेरणा आप लोगों के कमैंट्स से ही मिलती है। वरना क्यों मैं अपना समय बर्बाद कर यह सब लिखूं? करने को मेरे पास बहुते काम है जो ज्याद लाभकर हैं।
तो अगर आपको कहानी पसंद आये तो कमैंट्स लिखिए त्या मुझे [email protected] पर मेल कीजिये। मेरा ईमेल आईडी पहले कहानी में देते थे। पर अब इन्होने शायद बंद कर दिया है। यह दुःख की बात है। मेरा इनसे अनुरोध है की उसे दुबारा शुरू करें।
मेरा और सुषमा का रिश्ता कुछ अलग ही था। मैं यह कहूं की हम दोनों एक दूसरे की मन की बात बिना कहे समझ जाते थे तो गलत नहीं होगा। सुषमा मेरी और मैं सुषमा की बातें एक दूसरे के चेहरे के भाव देख कर ही समझने लगे थे। मेरी और सुषमा की चुदाई भी सेठी साहब के चुदाई से काफी अलग होती थी।
सेठी साहब के जैसी चुदाई तो बहुत कम ही लोग कर पाते होंगे। जिस तरह सुषमा ने टीना को बताया था सेठी साहब के लण्ड के जैसा लण्ड बहुत ही कम इंसानों का होगा।
हालांकि सेठी साहब अच्छी अच्छी औरतों को अपने चोदने की क्षमता की वजह से संतुष्ट कर देते थे। पर कहते हैं ना की दिया तले अन्धेरा। उनकी अपनी बीबी ही उनकी चुदाई से संतुष्ट नहीं थी।
ऐसा नहीं की सुषमा को तगड़ी चुदाई पसंद नहीं थी। किस औरत को तगड़ी चुदाई पसंद नहीं होगी भला? पर सेठी साहब की चुदाई उससे कहीं ज्यादा तगड़ी हुआ करती थी। कोई भी औरत कभी भी सौतन होना या सौतन उसकी जिंदगी में आना स्वीकार नहीं करेगी। पर कई बार सुषमा सोचती थी की काश उनकी कोई सौतन होती।
अगर सौतन होती तो सेठी साहब की चुदाई दो औरतें मिलकर झेलतीं। सेठी साहब का जोश तब सुषमा को आधा ही झेलना पड़ता। इस तरह हर चुदाई के बाद उसे अपने पाँव चौड़े कर चलना नहीं पड़ता।
जब भी सुषमा को इस तरह चलती हुई लोग देखते तब सब देखने वाले अपने मन ही मन में हँसते की देखो इसकी कितनी तगड़ी चुदाई हुई होगी। सुषमा को उनकी नज़रों से ही पता चल जाता।
सुषमा मुझे कहती थी की उसे प्यार भरी धीमी चुदाई पसंद थी जब की सेठी साहब जब तैयार हो जाते थे तब उनका अपने लण्ड पर नियत्रण रखना अति कठिन हो जाता था और वह अपनी प्रेमिका पर लगभग टूट ही पड़ते थे। हालांकि इसका यह कतई मतलब नहीं की वह किसी भी औरत के ऊपर जबरदस्ती करते थे।
पर एक बार औरत ने अपनी मर्जी दिखाई और अपने आपको नंग्न किया तो फिर सेठी साहब का लण्ड सेठी साहब पर हावी हो जाता था और सेठी साहब के लिए उसे काबू में रखना लगभग नामुमकिन सा हो जाता था। इसके परिणाम स्वरूप सेठी साहब की चुदाई अक्सर काफी आक्रमक होती थी जिसको ज्यादातर औरतें काफी पसंद करती होंगी। पर सुषमा के अनुसार शायद सुषमाजी उनमें अपवाद थीं।
पर मैं जानता और समझता था की सुषमा कोई अपवाद नहीं थी। शादी से पहले सुषमा ने सेठी साहब की चुदाई देख कर ही उन्हें पसंद किया था। पर कहते हैं ना की घरकी मुर्गी दाल बराबर। हर शादीशुदा औरत की तरह शायद सुषमा भी चुदाई में कुछ नयापन चाहती थी। सुषमा किसी भी चीज़ से जल्दी ऊब जाती थी यह मैंने महसूस किया था।
टीना और सेठी साहब के जाने के दूसरी शाम मैं जल्दी ही सेठी साहब के घर पहुँच गया था। मुझसे सुषमा से दुरी बर्दाश्त नहीं हो रही थी। शाम को छे बजे ही मैं पहुँच गया। मैंने देखा की सुषमा भी तैयार हो कर मेरे इंतजार में बैठी थी।
इस बार सुषमा जैसे एक नयी नवेली दुल्हन सुहाग रात को सजधज कर अपने पति का इंतजार सुहागरात की शैय्या में करती है ऐसे ही सुषमा भी सजधज कर चूड़े, लाल रंग की साड़ी और सोलह श्रृंगार कर मेरे इंतजार अपने ड्राइंग रूम में बैठ कर कर रही थी। मेरे आने का समय हमने सात बजे का तय किया था। पर पता नहीं कैसे वह छे बजे ही तैयार हो गयी थी, जैसे उसे पता हो की मैं भी छे बजे उसके घर पहुँच जाऊंगा।
मैं जब सुषमा और सेठी साहब के घर पहुंचा तो दरवाजा खुला था। मेरे दाखिल होते ही मुझे बिना देखे ही सुषमा ने अंदर से आवाज दी, “दरवाजा अंदर से बंद कर देना।”
जैसे सुषमा को पता हो की मैं ही आया था। मैंने सुषमा को नईनवेली वधु के रूप में सजी हुई देखा तो मेर लण्ड में अजीब सी हलचल मच गयी। उस भेष में सुषमा इतनी खूबसूरत और कामुक लग रही थी। मैंने सुषमा को अपनी बाँहों में भर कर उसके गाल पर चुम्बन किया। और फिर सुषमा को अपनी बाँहों में उठा कर मैं उसे बैडरूम में ले गया।
मैंने जैसे सुषमा को अपनी बाँहों में उठाया तो सुषमा ने शर्म के मारे अपनी आँखें बंद कर दीं। मैंने सुषमा की पलकों को चूमा तब सुषमा ने आँख खोलीं और मेरी नज़रों से नजरें मिलाकर उसने मुझे एक शर्म भरी मुस्कान दी और फिर अपना सर मेरी छाती पर रख कर उसने आँखें मुंद लीं।
मैंने सुषमा को धीरे से पलंग पर लिटाया और उसके होँठों के पास अपने होँठ ले जा कर धीमी आवाज में बोला, “आँखें तो खोलो मेरी जान। आज तुम नयी नवेली दुल्हन के भेष में बड़ी ही खूबसूरत लग रही हो।“
सुषमा ने पूछा, “सच में? या कहीं तुम मेरी झूठी तारीफ़ तो नहीं कर रहे?”
मैंने अपना गला पकड़ कर कहा, “मेरी कसम। आज तुम गजब की खूबसूरत और सेक्सी लग रही हो। मन करता है की काश मैं तुम्हें अपनी बना सकता।”
सुषमा ने मुझे अपने ऊपर खिंच लिया और मेरी बाँहों में आती हुई बोली, “आज तुम मुझे ऐसा चोदोगे जैसा तुमने कभी किसीको नहीं चोदा। अपनी पत्नी टीना को भी नहीं।”
मैंने कुछ खिसियाने से स्वर में कहा, “सुषमा, देखो हम दोनों जानते हैं की मैं कोई सेठी साहब नहीं हूँ। तुम्हें सेठी साहब से तगड़े से चुदने की आदत है। भला सेठी साहब से मैं मुकाबला कैसे कर सकता हूँ?”
सुषमा ने कुछ रिसाई हुई आवाज में कहा, “यह मैं नहीं जानती। पर आज मैं तुम्हारी रंडी बनकर तगड़े से चुदना चाहती हूँ। यह सच है की मुझे सेठी साहब बड़ा तगड़ा चोदते हैं। पर मैं उस चुदाई से बोर हो गयी हूँ। तुम मुझे अच्छी तरह से चोदते हो। मुझे तुम्हारा चोदना अच्छा लगता है। पर मैं आज चुदाई में कुछ और नयापन चाहती हूँ।”
सुषमा ने लेटे हुए अपनी बाँहें फैलायीं। मैं लेटी हुई सुषमा के ऊपर सवार हो कर सुषमा की करारी बाँहों में समा गया। साडी ब्लाउज सब पहनी हुई सुषमा भी इतनी ज्यादा सेक्सी लग रही थी। मैं चिंता में पड़ गया। मैं चुदाई में नयापन कैसे लाऊँ? मैंने पूछा, “कैसा नयापन? तुम्हारे दिल में क्या है?”
सुषमा ने कुछ शर्माते हुए कहा, “पता नहीं, मैं कैसे बताऊँ? कुछ नया, जो आज तक नहीं किया। जिसके बारे में सुनते हैं पर किया नहीं।”
मैंने कहा, “ऐसा तो कोई कालिये के बड़े लण्ड से चुदना, या दो मर्दों से माने एम एम ऍफ़, यानी दो मर्द और एक औरत। कहीं तुम यह तो नहीं चाहती की तुम्हें दो मर्द मिलकर चोदे? उधर तुम्हारे पति आज दो औरतों को चोदेंगे और यहां तुम दो मर्दों से चुदना चाहती हो?”
सुषमा यह सुन कर एकदम उत्तेजित हो गयी और उसने पूछा, “क्या यह हो सकता है?”
मैंने सबसे पहले सुषमा के पाँव का तलवा चाटते हुए कहा, “कहाँ से लाऊँ वह दुसरा मर्द इस टाइम? क्या तुम सेठी साहब और मेरे साथ एम एम ऍफ़ करना चाहती हो? अगर ऐसा है तो वह तो सेठी साहब के आने के बाद ही हो सकता है।”
सुषमा ने अपने कान पकड़ कर कहा, “नारे बाबा ना! सेठी साहब अकेले ही तीन मर्दों के बराबर हैं।” फिर सुषमा हँस कर बोली, “और अगर तुम जोर लगाओ तो तुम एक मर्द के बराबर तो हो ही सकते हो। तो चार मर्द हुए। हम तो सिर्फ दो मर्दों की बात कर रहे हैं।”
मर्दों और औरतों में अपनी अपनी कमजोरियां है। सब से बड़ी कमजोरी यह होती है की औरत की तुलना उससे पतली सी सुन्दर और कम उम्र की लड़की से की जाए और मर्दों की तुलना अगर किसी और तगड़े और तगड़ी चुदाई करने वाले मर्द से की जाए तो उनके स्वाभिमान पर उसका घातक असर पड़ता है।
मैंने फ़ौरन सुषमा से कहा, ” सुषमा यह गलत बात है। तुम मुझे इस तरह भिगो बिगो के मत मारो। तुम सेठी साहब की पत्नी हो और राजदार हो। किसी भी साधारण मर्द के लिए सेठी साहब की चुदाई की क्षमता से मुकाबला करना नामुमकिन है। यार एक बात बताओ। ऐसी क्या बात है सेठी साहब में की वह बिना झड़े इतने लम्बे समय तक एक औरत की चुदाई कर सकते हैं जब तक औरत ना कहे की बस करो। क्या सेठी साहब कोई स्टेरॉइड्स या ऐसी ड्रग्स लेते हैं जिससे उनके चोदने की क्षमता इतनी बढ़ जाती है?”
सुषमा ने कुछ गंभीरता दिखाए हुए कहा, “नहीं सेठी साहब कोई ऐसी दवाई या स्टेरॉइड्स नहीं लेते हैं। राज यह एक लम्बी कहानी है। अगर मैं कहने बैठूंगी तो काफी समय लग जाएगा और फिर तुम शिकायत करोगे की मैंने तुम्हें पूरा वक्त नहीं दिया।”
मैने कहा, “नहीं मैं शिकायत नहीं करूंगा। मैं जानने के लिए बहुत ही ज्यादा अधीर हूँ। तुम मुझे कहो। हमारे पास पूरी रात है।”
मैं यहां पाठकगण से प्रार्थना करता हूँ की अब जो आगे मैं लिखूंगा वह शायद आप में से कुछ लोगों को ना भाये। जो लोग कहानी में सिर्फ चुदाई चुदाई और चुदाई चाहते हैं वह नाराज हों। उनसे आग्रह है की वह अगले कुछ पन्नों को छोड़ दें।
सुषमा ने मुझे सेठी साहब की चुदाई करने की क्षमता के बारे में जो कहा उसे सुनकर मेरी सिट्टीपिट्टी गुम हो गयी। सुषमा ने जो कहा उसे मैं उन्हीं के शब्दों में निचे लिख रहा हूँ।
सेठी साहब ने मुझे यह सारी बातें शादी के बाद शुरू शुरू में खूब एन्जॉय करने के बाद जब मैं खुद एक हद से ज्यादा सेठी साहब की चुदाई की क्षमता से परेशान हो रही थी बतायीं थीं।
सेठी साहब कॉलेज में काफी हैंडसम थे। पर पता नहीं क्यों वह हमेशा लड़कियों के साथ कुछ सहमें सहमे से रहते थे। कॉलेज में कई लडकियां उनकी दीवानी थीं। पर सेठी साहब ज्यादातर लड़कियों से दूर ही रहते थे। वैसा नहीं की उनका दिल नहीं कर रहा था। वैसे सेठी साहब का दिल एक लड़की पर आया था और उससे उनको एक तरफ़ा ही प्यार हो गया था।
सेठी साहब उस लड़की से शादी कर घर बसाना चाहते थे। लड़की भी सेठी साहब पर फ़िदा थी। पर सेठी साहब की उससे जब भी मुलाक़ात होती थी तो सेठी साहब की जुबान पर जैसे ताला लग जाता था।
वाक्या उस समय का है जब फाइनल एग्जाम का परिणाम आ चुका था और परीक्षा के परिणाम को सेलिब्रेट करने के लिए कॉलेज के लड़के लड़कियों ने एक पिकनिक का प्रोग्राम बनाया। उस पिकनिक में सेठी साहब को अपनी चहेती लड़की से अकेले मिलने का मौक़ा मिला। बल्कि यूँ कहिये की उस लड़की ने सेठी साहब से अकेले में मिलने का मौका ढूंढ ही लिया।
लड़की बड़ी ही चुदासी थी। उसने सेठी साहब से चुदवाने का मन बना लिया था। सेठी साहब उस समय चुदाई के मामले में बड़े ही अनाड़ी थे। शुरू शुरू की फोरप्ले चली उसके बाद सेठी साहब समझ गए थे की वह लड़की उनसे चुदवाना चाहती थी।
सेठी साहब के मन में भी चुदाई के बड़े सपने थे। पर सेठी साहब की झिझक या हिचकिचाहट के कारण बात आगे नहीं बढ़ सकती थी। जब मौका मिला तो एकांत में लड़की ने सेठी साहब की पतलून के ऊपर से ही सेठी साहब के लण्ड के ऊपर हाथ फिरा कर इशारों इशारों में ही अपनी इच्छा प्रकट की।
सेठी साहब के काफी रोकने पर भी लड़की ने जब सेठी साहब के पतलून की ज़िप खोली और निक्कर में से उनका लण्ड बाहर निकाला तो लड़की उसे देख हैरान रह गयी। सेठी साहब का लण्ड ठीकठाक ही था। पर चोदने के हालात होते हुए भी वह लण्ड एकदम ढीलाढाला मरे हुए साँप की तरह बेजान चोदने के नाकाबिल सा उनकी टांगों के बिच लटक रहा था।
लड़की के चेहरे पर यह देख निराशा छा गयी। अक्सर चुदाई की बात के नाम पर ही लड़कों के लण्ड उनकी निक्कर में फुंफकार ने लगते हैं। पर फिर भी लड़की ने उसे अपने हांथों में ले कर काफी सहलाया, उसे मुंह में लेकर चूसा और उसे सख्त करने के लिए, खड़ा करने के लिए जो कुछ हो सकता है किया। पर सेठी साहब के लण्ड के ऊपर उसका कोई भी असर ही नहीं हुआ।
काफी मशक्क्त के बाद भी जब सेठी साहब का लण्ड खड़ा नहीं हो पाया तब लड़की बड़ी ही हैरान परेशान हो कर उसने सेठी साहब की और देख कर बड़े ही कड़वे शब्दों में कहा, “अरे यार अगर तुम नपुंशक हो, नामर्द हो, अगर तुम्हारा लण्ड खड़ा ही नहीं होता तो तुम लड़कियों के पास ही क्यों जाते हो? शादी करने के सपने क्यों देखते हो?
मेरे पीछे इतने सारे लड़के पड़े हुए थे। मैंने एक तुम्हें ही आज तक लिफ्ट दी थी, और तुम ऐसे नामर्द निकले। तुम्हारी जिंदगी बेकार है। तुम्हारे माँ बाप कितना भी जोर लगाएं तुम शादी मत करना, किसी भोली भाली लड़की की जिंदगी खराब मत करना। हो सके तो चुल्लू भर पानी में डूब मरो। अब आज के बाद ना तो तुम मुझसे बात करना और ना ही किसी और लड़की से। अगर मैंने तुम्हें किसी लड़की के पास भी देखा तो मैं तुम्हारा भाँडा फोड़ कर तुम्हारी जिंदगी बर्बाद कर दूंगी। चले जाओ मेरे सामने से।”