Sasur Ji Ka Dukh Halka Kiya – Part 2

हेल्लो दोस्तों, अब आप आगे की कहानी का मजा लीजिये, अगर इस सेक्स स्टोरी का पिछला पार्ट नहीं पढ़ा है, तो अभी पढ़िए!

बाबु जी शायद भांप गए थे के मेरा मन उनका मूसल लण्ड देखकर बहक गया है। उन्होंने मुझे अपने आगोश में लिया और मेरी पीठ सहलाने लगे। उनके स्पर्श मात्र से ही मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया। अब मैं भी चाहती थी के मेरी चुदाई हो।

लेकिन मुंह से बोलने की हिम्मत नही हो रही थी। बाबू जी ने मुझे बेड पे ही लिटा लिया और खुद ऊपर आकर मेरे होंठो का रसपान करने लगे। पहले तो मैं बनावटी गुस्सा दिखाने लगी। लेकिन जब मुझे भी मज़ा आने लगा तो मैंने विरोध करना बन्द कर दिया और उनका साथ देने लगी। हम अपने काम में व्यस्त थे के मोबाइल पे रमेश की काल आ गयी।

मैंने उन्हें अपने ऊपर से हटने को बोला और काल रिसीव की। आगे से रमेश ने बताया के वो 2 दिन और नही आ सकता, क्योंके किसी कारणवश वो मींटिंग आगे 2 दिन करदी गई है। मैंने रमेश को बनावटी गुस्सा दिखाया के उसके बिना मैं मर रही हूँ।

वो बोला,” बस जान 2 दिन की तो बात है, फेर आकर मैं तुम्हारे सारे शिकवे दूर कर दूगा। इतना कहकर उसने फोन काट दिया।

अब हमारे पास आज के इलावा 2 दिन और थे मज़े करने के लिए। जेसे ही मैं बाबूजी के पास वापिस लौटी तो वो एक दम नंगे बेड पे लेटे हुए थे। मैं उनका ये रूप देखकर शर्मा गयी। उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और अपना लण्ड मेरे हाथ में देते हुए उसे चूसने का इशारा किया।

अब जब सब कुछ हममे खुल गया था तो ये कोई बड़ी बात नही थी। मैं उनका इशारा पाते ही उनके लण्ड पे टूट पड़ी। तीन दिन से भूखी जो थी।

बाबू जी भी मेरे बाल पकड़ के अपना लण्ड चुसवा रहे थे। उनके स्वभाव में कामुकता, वहशीपन, क्रोध समेत अनेको भावनाये शामिल थी। जो के करीब एक साल बाद सेक्स करने के लिए तड़प दिख रही थी।

वो शरारत से मेरा सिर अपने लंड पे दबा देते थे। जिस से मेरी साँस हलक में अटक जाती थी। जब थोड़ी देर बाद वो सिर पीछे खींचते तब जाकर खांसी और सांस आती। मुझे महसूस हो रहा था यदि ऐसा 1 या 2 बार और हो गया तो साँस घुटने की वजह से मेरी मौत लाज़मी हो सकती है।

अब मैंने उन्हें वो पोज़िशन बदलने का इशारा किया और अपनी चूत चाटने का इशारा किया। मुझे लगा के शायद वो मना कर देंगे। लेकिन मेरा सोचना गलत था। वो झट से उठे और मुझे लिटाकर मेरी सलवार का नाड़ा एक ही झटके में तोड़कर मुझे नंगी करके मेरी क्लीनशेव चूत का हाथ की बड़ी ऊँगली से ज़ायज़ा लिया और मेरी टाँगे चौड़ी करके मेरी चूत को बेतहाशा चूमने चाटने लगे।

फेर पता नही उनके मन में क्या आया, वो नंगे ही अपना काम छोड़कर अपने कमरे में चले गए और एक छोटी सी कांच की शीशी लेकर आ गए।

मैंने इशारे से पूछा,” इसमें क्या है ? वो बोले,” आराम से देख क्या है इसमें, पहले मुझे लगा इसमें वैसलीन होगी के बहु को लण्ड लेने में दिक्कत न हो। लेकिन मेरा सोचना इस बार भी गलत था। उस शीशी में शहद था। जो काफी समय से उनके कमरे में ही पड़ा देखा था।

बाबू जी ने अपनी ऊँगली शहद में डुबोई और ऊँगली पे ढेर सारा शहद निकाल के मेरी चूत में अंदर तक लगा दिया और फेर शीशी बन्द करके वहीँ पास ही रखली। अब वो अपनी जीभ को चूत के अंदर तक घुसा घुसा कर कामरस चाट रहे थे। जिससे मेरी हालत पतली हो रही थी।

उनके 4-5 बार ऐसा करने मात्र से ही मेरे अंदर से पानी का फवारा फूटा और बाबू जी का मुंह भीग गया। जिस से मैं भी हांफने लग गयी। कोई 5 मिनट तक हम ऐसे ही बैठे रहे। फेर उन्होंने दुबारा मेरी वाली जगह ले ली और अपनी ऊँगली शहद से भिगोकर अपने लण्ड पे मसल मसलकर लगाने लगे।

अब मुझे फेर आकर लण्ड चूसने का न्योता दिया। काम तो काफी कठिन था लेकिन फेर मुझे “जब ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना”

वाली कहावत याद आई और सोचा, यदि बाबू जी इसमें खुश है, तो मैं ये सब सह लुंगी। मैंने फेर उनका लण्ड चूसना शुरू किया। अब की बार उन्होंने मुझे तंग नही किया। वो आराम से लेटे रहे और मैं अपना सिर हिला हिला कर उनका लण्ड चूस रही थी। जब उन्हें लगा के मैं थक गयी हूँ।

तो वो बोले,” आओ बहु अब तुम आराम करो, आगे की करवाई मैं डालता हूँ। मैं उनका कहना मानके खुद बेड पे लेट गयी और अपनी टाँगे खोलकर उनको समर्पित करदी। अब बाबूजी ने अपना लण्ड जो के मेरे थूक से तर था, उसे मेरी चूत पे सेट किया और हल्का सा धक्का दिया, मोटे गर्म लण्ड का सुपाड़ा जो के फुला हुआ था, झट से अंदर घुस गया और जलन होने लगी।

मैं दर्द से छटपटाने लगी। बाबू जी ने अपनी बांहो की पकड़ मज़बूत की और पूरे जोर के साथ अपना लंड अंदर बाहर करने लगे। बाबू जी और रमेश के लण्ड में जमीन आसमान का फर्क था। चाहे लम्बाई में दोनों एक जैसे थे, लेकिन मोटाई के मामले में भी बाबू जी रमेश के बाप थे। मैं गला कटे मुर्गे की तरह छटपटा रही थी।

बाबू जी पे तो जैसे मुझे कत्ल कर देने का भूत सवार था। मैं रो रही थी। जैसे ही बाबू जी आगे को धक्का देकर पीछे खीचते थे तो ऐसा लगता था के मेरा सारा अंदर का सामान उनके लण्ड से लिपटकर बाहर आ जायेगा।

मैं हाथ जोड़कर उन्हें छोड़ देने की विनती कर रही थी। लेकिन उनपे मेरे रोने, हाथ जोड़ने का कोई असर नही हो रहा था। अब मैं भगवान से विनती कर रही थी के कोई चमत्कार हो तो इनसे जान छूटे। मेरी की गयी अरदास रंग लायी।

करीब 5 मिनट बाद हम दोनों इकठे रस्खलित हुए ओर हांफते, गूथंगुथे हुए वही बेड पे लेट गए। ऊपर पंखा चल रहा था, नीचे हम पसीने से भीगे दो बदन एक दूजे की बाँहो में जकड़े लेटे हुए थे। हमे पता ही नही चला कब नींद आ गयी।

करीब आधे घण्टे बाद हमे जब जाग आई तो अब हम मारे शर्म के एक दूसरे से आँखे नही मिला पा रहे थे। इतने में फेर फोन की घण्टी बजी। मैंने वही नंगी ने ही फोन रिसीव किया।

इस बार मेरी ननद बनारस वाली जो के ऊपर कहानी में बताया है वो बोल रही थी, उसने बोला के वो एक घण्टे के मेरे यहां आ रही है। मैंने जल्दी से फोन काटा और बाबू जी को उनकी बेटी के आने की खबर दी।

हम दोनों जल्दी जल्दी इकठे ही बाथरूम में नहाने गए वहां भी बाबू जी का मन बेईमान हो गया और इस बार मैंने सिर्फ उनका लण्ड चुसकर उनको शांत किया। हम इकठे नहाये और फिर तैयार हो गए। करीब एक घण्टे बाद मेरी नन्द और नन्दोइया जी गाड़ी से आये।

वो हमारे घर 2-3 घण्टे रहे और फेर आगे कही रिश्तेदारी में जाने का बोलकर चले गए। उनके जाने के बाद मैंने घर का सारा काम खत्म किया और इतने में शाम हो गयी। शाम का खाना हम दोनों ने इकठे खाया और रात को एक ही कमरे में सोये और सारी रात चुदाई की।

ये 2 रात मेरे जीवन की सबसे हसीन रातें थी। अब मेरे बाबू जी बहुत खुश रहते है। अब जब भी अकेले में हमे वक्त मिलता है। हम 2 जिस्म 1 जान हो जाते है।

सो ये थी एक पाठक के साथ घटित हुई कहानी, उम्मीद करुँगा के आपको पसन्द आऐगी। इसके बारे में आपकी जो भी अच्छी बुरी राय हो, हमे इस [email protected] पते पे निसंकोच भेज दे। आपकी बड़ी मेहरबानी होगी।

आज के लिए इतना ही फिर किसी दिन नई कहानी लेकर हाज़िर होऊंगा। तब तक के लिए नमस्कार।

समाप्ति