शायद पहली बार रंजन ने किसी लड़की के वक्ष छुए थे, तो वो बावरा होकर बहुत देर तक उनको दबाने का ही मजे लेता रहा। उसने मेरे ऊपर के हाथ में फंसा आधा खुला शर्ट और ब्रा भी निकाल दिया और एक बार फिर वक्षो को दबाने का आनद लेने लगा।
मुझसे इतना इंतज़ार नहीं हुआ। मैं अपना फ्री हाथ पीछे की तरफ ले गयी और उसकी जींस का बटन खोल दिया। फिर उसकी चैन नीचे करके उसके अंतवस्त्र में हाथ डाल दिया।
मेरा हाथ उसके कड़क अंग को छू गया। मैंने उसको पकड़ा और अपने हाथ से उसको ऊपर नीचे रगड़ने लगी। उसको तो जैसे करंट लगा। उसके होठ मेरी गर्दन और कंधो को चूमने लगे।
मैंने अपना हाथ बाहर निकाल कर उसकी जीन्स को नीचे खींचने लगी, पर हाथ पीछे होने से इतना जोर नहीं लगा पाई। उसने मेरे वक्षो को छोड़ा और मेरी मदद के लिए अपने अंतवस्त्र सहित जींस नीचे खिसका दी। उसका लंड अब जींस के बंधन से मुक्त हो गया था, और मेरे तैयार होंने के संकेत भी मिल गए।
अब उसने मेरी केपरी के बटन और चैन खोल दी और नीचे खिसका कर घुटनो तक ले गया। उसके बाद मैंने ही अपने दोनों टांगो को झटकते हुए केपरी सहित अंतवस्त्र अपनी एक टांग से पूरा निकाल दिया।
उसने हाथ मेरे नंगे कूल्हों पर रख दिए और मेरे फिगर को महसूस करने लगा। वो घुटनो से लेकर मेरे चुचियों तक अपने हाथो को मेरे बदन के ऊपर नीचे रास्तो की सैर करवा रहा था। इस बीच उसका कड़क लंड मेरे पिछवाड़े को छू रहा था।
उसने अब हाथ मलना छोड़ा और अपना लंड पकड़ कर मेरी दोनों टांगो के बीच डाल कर धक्का मारने लगा। मैं अपना हाथ नीचे ले गयी और उसके लंड को पकड़ कर सही रास्ता दिखाते हुए आगे के छेद में लगा दिया। इतनी देर की मालिश से वैसे भी पानी बनाने लगा था। वो तेजी से मेरे अंदर प्रवेश कर गया।
एक बार अंदर डालने के बाद तो उसका नियंत्रण ही नहीं रहा। वो झटके पर झटके मारने लगा। हमारे पास हिलने को ज्यादा जगह नहीं थी तो वो जोर से नहीं मार पा रहा था, पर फिर भी काफी गहराई में उतर रहा था। इन सबके बीच उसका एक हाथ बराबर मेरे चुचों को दबा रहा था।
मैंने भी बदन दर्द के मारे पिछले कुछ दिनों से नहीं किया था तो मैं वैसे भी तड़प रही थी। अगले दस बारह मिनट तक वो ऐसे ही मजे लेता रहा। अब उसने अपने आप को मुझसे अलग कर लिया।
मेरे कंधो पर हाथ रख अपनी तरफ घुमाया। मैं पलट कर अब उसकी तरफ मुँह करके लेट गयी। जिससे चद्दर मेरे ऊपर से हट गयी।
अब उसने मेरे दूसरे हाथ से भी शर्ट और ब्रा पूरा निकाल दी जिससे मैं टॉपलेस हो गयी। उसने मेरे होठों पर अपने होठ रख दिए और चूसने लगा। मैंने भी उसके होठों को चूसना शुरू किया। हम दोनों को नशा चढ़ने लगा।
उसने एक बार फिर अपना लंड पकड़ा और मेरे अंदर डालना शुरू किया। मैने अपनी ऊपर वाली एक टांग उठा कर उसकी जांघो पर रख दी, जिससे मेरा छेद ओर खुल जाये और उसको अंदर डालने की ज्यादा जगह मिल सके।
एक बार फिर वो मेरे अंदर था और झटके पे झटके मार रहा था। हम दोनों के होठ चिपके हुए थे और रासपान कर रहे थे साथ ही बीच बीच में उसका हाथ मेरी चुचियों को दबा रहा था।
मैंने अपनी पीठ पर एक हाथ फिरते हुए महसूस किया। रंजन का एक हाथ नीचे दबा था और दूसरा मेरे सीने पर तो पीठ वाला हाथ पति का ही था। शायद वो बताने की कोशिश कर रहे थे कि हमारी साजिश सही जा रही हैं।
जैसे ही रंजन ने अपना हाथ मेरी कमर पर रखा मेरे पति ने अपना हाथ पीछे खींच लिया। थोड़ी देर में जैसे ही रंजन चरम की तरफ बढ़ा तो उसने मुझे पीठ से कस कर पकड़ अपने सीने से चिपका दिया और ओर भी गहरे झटके मारने लगा। बस के तेज चलने की आवाज़ों के बीच हमारी आवाज़े दब सी गयी थी।
मेरा भी पानी निकलने लगा था और उसके पानी से संगम होने लगा। चरम पे पहुचते ही उसने पता नहीं कब से संभाल कर रखा हुआ ढेरो चिपचिपा पानी मेरे अंदर पूरा खाली कर दिया।
पानी इतना था कि खाली होने में ही कुछ सेकंड लग गए। थोड़ी देर ऐसे रहने के बाद उसने लंड बाहर निकाला।
इतना पानी निकला था कि मेरे नीचे पूरा गंदा हो गया था। मैं खुश थी कि इतने पानी से मेरा काम तो हो ही गया होगा। मैंने सर के पास रखे पर्स में पहले से रखे पेपर नैपकिन निकाले और थोड़े उसको दिए।
अब हम दोनों अपने अपने अंगो को साफ़ करने लगे। फिर गंदे नैपकिन एक थैली में रखकर कोने में रख दिए।
हमने अपने कपडे वापिस पहन लिए, और फिर से पहले वाली पोजीशन में चद्दर ओढ़ कर सो गए।
आधी रात के करीब रास्ते में एक ढाबे पर बस रुकी तो रंजन वो नैपकिन की थैली बाहर फेंक आया और एक बार फिर सो गया।
सुबह छह बजे मेरी नींद खुली मैंने घडी देखी। बाहर अभी भी अँधेरा था। मुझे याद आया कि सुबह का सेक्स गर्भवती होने के लिए ज्यादा फायदेमंद हैं। मैंने सोचा मुझे एक बार फिर से करना चाहिए। परन्तु पति तो सो रहे थे उनकी इजाजत कैसे लेती।
उनको उठाने के चक्कर में रंजन को पता चल जाता तो। मैंने पलट कर देखा रंजन भी रात की मेहनत के बाद चैन से सो रहा था। ये आखरी मौका था मेरे लिए। माँ बनने का लालच मेरे दिल पर हावी हो गया और सो मैंने उसको जगाने का फैसला किया।
मैं अपना हाथ पीछे ले गयी और एक बार फिर उसकी जीन्स का बटन और चैन खोल कर उसके अंगवस्त्र में अपना हाथ डाल दिया। उसका लंड भी रात की मेहनत के बाद सोया पड़ा था।
मैं अब उसकी छोटी नरम चीज़ को हाथ से ऊपर नीचे कर मसलने लगी। रंजन की आँख खुली और उसने अपना हाथ मेरी जांघो पर रख दिया।
थोड़ी देर रगड़ने के बाद ही उसका लंड धीरे धीरे विशाल रूप धारण करने लगा। थोड़ी देर पहले मैं अपनी दो तीन उंगलितो से उसको रगड़ पा रही थी अब एक पूरी हथेली भी छोटी पड़ रही थी।
जैसे ही वो काम करने लायक कड़क हुआ तो मैं उसको छोड़ दिया और उसकी जींस नीचे खिसकाने का इशारा किया। जब तक उसने अपनी जीन्स नीचे की मैंने भी अपनी केपरी और अंतवस्त्र खोल कर नीचे कर दिए।
मेरे कपडे खोलते ही उसका लंड मेरे नग्न पिछवाड़े से टकरा गया। उसने बिना इंतज़ार करे अपना लंड पकड़ कर मेरे पीछे वाले छेद में डालने का प्रयास करने लगा। मुझे तो उसका माल आगे वाले छेद में चाहिए था न कि पीछे वाले में।
मैं अपना हाथ पीछे ले जाकर उसको रोकती तब तक तो उसने एक दो इंच अंदर डाल ही दिया और आगे पीछे मारने भी लगा। मुझे दर्द हुआ, और अपने शरीर को उससे थोड़ा दूर कर दिया जिससे उसका लंड बाहर निकल गया।
मैंने अब खुद ही बिना देर किया उसका लिंग फिर पकड़ा और एक टांग उठा कर अपने आगे के छेद में घुसा दिया। उसकी मशीन एक बार फिर चालु हो गयी और झटके मारने लगी।
सुबह के समय थोड़े सेंसेशन कम होते हैं तो उसको मजा कम आ रहा था। ज्यादा मजे के लिए उसको जोर से झटके मारने थे। पर उतनी जगह तो वह थी नहीं। मुझे एक ऊपर सुझा।
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मैंने उसका पिछवाड़ा एक हाथ से पकड़ा और अपनी तरफ खींचते हुए मैं मुँह के बल उल्टा लेट गयी और वो मेरे ऊपर सवार हो गया। चद्दर ऊपर से हट कर मेरे और पति के बीच आ गिरी। मेरी पैंट घुटनो पर अटकी थी तो मैंने जितना हो सकता था दोनों पाव थोड़े से फैला दिए।
उसने अपने दोनों हाथ मेरे हाथों पर रखे और अब वो ऊपर नीचे होते हुए जोर से मेरे पीछे झटके मारने लगा। उसको इस बात की भी परवाह नहीं रही कि मेरे पति पास में सो रहे हैं।
वो इतनी जोर से मेरे पिछवाड़े से टकरा रहा था कि जोर जोर से आवाज़ हो रही थी। जोर के झटको की वजह से थोड़ी ही देर में हम छूटने की हालत में आ गए।
तभी इन आवाज़ों से मेरे पति की नींद में व्यवधान आया और वो थोड़े से हिले। उन्हें तो पता नहीं भी था कि हम दोनों सुबह भी करने वाले थे।
रंजन घबरा कर मेरे ऊपर से हटा और लुढ़क कर अपनी जगह वापस लेट गया। मैंने भी पति की तरफ करवट करते हुए पास रखा चद्दर ओढ़ लिया। रंजन ने भी पीछे से चद्दर अपने ऊपर ओढ़ लिया।
रंजन एक बार फिर मेरे पिछवाड़े से चिपक गया। रंजन चरम के काफी नजदीक जाकर बाहर निकला था सो उस ने एक बार फिर मेरे अंदर प्रवेश किया। उसके झटके फिर से शुरू हो गए। उसने अपना एक हाथ भी मेरे शर्ट में घुसाते हुए मेरे ब्रा को दबोच लिया।
पति ने अब आँख खोली और मेरी तरफ देखा। मेरी आँखें खुली थी। रंजन को भी पता चल गया तो उसने झटके मारना बंद कर दिया पर लंड अभी भी मेरे अंदर ही था। अब वो बहुत ही होले होले अंदर बाहर कर रहा था, इतना धीरे की मैं बिलकुल ना हिलु और पति को शक न हो।
पति ने पूछा नींद कैसी आयी, मैंने कहा ठीक। रंजन के धीरे धीरे ही सही, अंदर बाहर लंड के रगड़ने से मैं अब चरम की तरफ बढ़ने लगी, रंजन की भी यही हालत थी।
पति के इन्ही सवालों जवाबो के बीच रंजन छूट गया और साथ में मैं भी। उसने तो अपनी आवाज़ दबा ली, पर मेरे मुँह से एक जोर की आह निकल ही गयी।
अगले ही क्षण मैंने अपनी आह को चालाकी से उबासी में तब्दील कर दिया और पति को शक न होने दिया कि पीछे से रंजन मेरे साथ क्या कर रहा हैं।
रंजन ने मेरे अंदर से अपना सामान बाहर निकाला और बिना ज्यादा हिले चद्दर के अंदर ही अपनी जीन्स ऊपर खिसका के पहन ली।
मैंने भी हाथ नीचे ले जाकर अपनी पैंट ऊपर खिंच कर पहन ली। रात को ही उसने अपना बहुत सारा पानी निकाल दिया था तो अभी सुबह ज्यादा पानी नहीं निकला, जिससे साफ़ सफाई की ज्यादा चिंता नहीं थी।
थोड़ी देर ऐसे ही लेटे लेटे बात करने के बाद हम सब उठ बैठे। थोड़ी ही देर में मंजिल आने वाली थी तो अपने आप को व्यवस्थित कर तैयार होंने लगे।
पता नहीं पति को मेरे और रंजन के बीच सुबह बने सम्बन्धो का पता चला कि नहीं, मैंने भी आगे बढ़कर कभी पूछा नहीं। बस से उतर कर हमने रंजन से विदा ली, उसके बाद उससे कभी मिलना नहीं हुआ वह बहुत दूर जा चूका था।
इस तरह हमारी साजिश का आखिरी पड़ाव ख़त्म हुआ। इसके बाद हमको इसकी जरुरत नहीं पड़ी। मेरे अगले पीरियड नहीं आये, और प्रेग्नेंसी टेस्ट भी पॉजिटिव आया।
मुझे आज तक नहीं पता कि उसका असली जैविक पिता कौन हैं संजीव, रौनक या रंजन। क्या फर्क पड़ता हैं, बच्चे की माँ तो मैं ही थी।
पति और मैंने शपथ ले ली थी की अब हम कभी ये साजिश नहीं रचेंगे और एक ही बच्चा काफी हैं।
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