मैंने सुषमा से जब यह सुना तब मेरी सारी चिंता गायब हो गयी। साले साहब के रूप में हमें एक बड़ा ही संजीदा अपना चुदाई का साथीदार मिल गया था जिस पर हम ना सिर्फ भरोसा कर सकते थे बल्कि जो आगे चलकर हमारे सुखदुख में भी भागीदार बन सकता था। एक बात और साबित हो गयी।
सुषमा जी के लिए संजू मतलब मेरे साले साहब एक सच्चे साथी और चुदाई के पार्टनर के अलावा ज्यादा कुछ नहीं थे। मेरा और सुषमा का जो आत्मा का मिलन हुआ था उसमें उनका कोई रोल नहीं था।
यह मेरे लिए एक अच्छी बात थी क्यूंकि हालांकि सुषमा सेठी साहब की पत्नी थी और टीना से मेरी शादी हुई थी, पर फिर भी मैं कहीं ना कहीं सुषमा को दिलसे चाहने लगा था। इसका एक कारण शायद यह भी था की सुषमा बार बार यह कहने से न चुकती थी की वह सिर्फ मुझसे बच्चा चाहती थी किसी और से नहीं।
अब मुझे साले साहब के साथ मिलकर सुषमा की चुदाई करने में कोई परहेज नहीं था। मुझे यकीन हो गया की अब सुषमा की जम कर चुदाई होगी और सुषमा भी एम.एम.एफ. का आनंद ले पाएगी। सेक्स, मैथुन या चुदाई का मजा तब तक नहीं आता जब तक उसमें महिला और पुरुष दोनों एक दूसरे को सुख देने का प्रयास ना करें।
चुदाई दीर्घ कालीन अथवा तात्कालीन शारीरिक आकर्षण भरे प्यार की स्वर्णिम मिसाल है। दीर्घ कालीन से मेरा मतलब है जो लम्बे समय का है। जैसे पति पत्नी का प्यार। तत्कालीन शारीरिक आकर्षण भरा प्यार से मेरा मतलब है जो हमेशा के लिए ना भी हो।
जो तात्कालीन मतलब कुछ ही समय की; कुछ ही दिनों या घंटों की पहचान और पसंदगी होने पर भी चुदाई आनंद दायी हो सकती है। आकर्षण में स्त्री की सुंदरता, आकार, या सेक्सीपना और पुरुष की आकर्षकता मतलब लम्बाई, बॉडी, लण्ड बातचीत करने का लहजा इत्यादि कारण हो सकते हैं। दोनों ही अवस्था में चुदाई तभी आनंददायी होती है जब कोशिश दूसरे को आनंद देने की हो।
मैं और साले साहब दोनों ही चाहते थे की चुदाई के दरम्यान सुषमा को जितना ज्यादा आनंद दे सकें उतना देने की कोशिश करें। वैसे ही सुषमा की भी मनोइच्छा यही होगी की चुदाई के दरम्यान वह हम दोनों को जितना ज्यादा आनंद दे सके उतना ज्यादा आनंद देने की कोशिश करे। जब ऐसा समीकरण हो तो चुदाई का आनंद तो बढ़िया होगा ही।
साले साहब भी हमारे सर्किल में शामिल हो चुके थे। यह मुझे भी यकीन हो चुका था की साले साहब के साथ सुषमा से चुदाई में हमें कोई झिझक या किसी तरह की अजीबोगरीब फीलिंग नहीं होगी जो की साधारणतः किसी भी रिश्तेदार के ऐसे गोपनीय कामों में शामिल होने से होती है। मुझे यहां सुषमा की समझ की दाद देनी होगी की सुषमा ने साले साहब को एम.एम.एफ़. के लिए पसंद किया हालांकि मैं शायद साले साहब को इस तरह ऐसे काम के लिए पसंद करने में झिझकता। मुझे अब उसमें कोई आपत्ति नहीं थी।
मैंने उस शाम पहली बार साले साहब से सच्चे प्यार भरे दिल से हाथ मिलाया। बिन बोले मैं साले साहब की आँखों में आँखें मिला कर बड़ा ही निजीपन का एहसास कर रहा था। साले साहब की आँखों में भी मेरे लिए वह प्यार की झलक थी जो साधारणतः औपचारिक रिश्तों में नहीं होती।
पहले जब भी मैं साले साहब को मिलता था तब वही औपचारिकता और ऊपरी प्रेम का ही प्रदर्शन करता था। पर आज मैं साले साहब की आँखों में आँखें डालकर जैसे कह रहा था, “साले साहब, आज हम अपनी जीजा साले की रिश्तेदारी छोड़ कर अंत्यंत निजी दोस्त या यूँ कहिये की अंतरंग भागीदार बन गए हैं।
कभी साले जीजा ने एक दूसरे को अपना लण्ड दिखाया होगा? पर आज वह हम दिखाएँगे। कभी साले जीजा ने मिलकर किसी औरत को चोदा होगा? पर आज हम सुषमा को चोदने वाले थे। तो आज हम हमारी प्यारी सुषमा को मिल कर चोदेंगे और हम सुषमा की ऐसी चुदाई करेंगे की वह इससे पहले हुई उसकी सारी चुदाई भूल जाए।
हम दोनों मिलकर उसे ऐसा चोदें की वह कुछ समय के लिए ही सही, पर सुषमा अपने तगड़े लण्ड वाले पति सेठी साहब की चुदाई को भी भूल जाए।”
मेरी आँखों का इशारा शायद साले साहब समझ गए थे। अपना सर हिला कर जैसे मेरे इशारे का समर्थन करते हुए साले साहब ने सुषमा को बड़े ही प्यार से पलभर में जैसे सुषमा कोई हल्काफुल्का बच्चा हो, अपनी बाँहों में उठा लिया और मुझे इशारा किया की मैं आगे आ कर सुषमा के होंठों को चूमूँ।
सुषमा ने आजकल जो फैशन चला है ऐसी स्टोन वाश जीन्स की फटी पतलून पहन रखी थी और ऊपर हल्का सा कॉटन का टॉप डाल रखा था जो सुषमा के स्तनोँ के ऊपर से उनको ढक ही रखता था। पर उसमें सुषमा स्तनोँ का क्लीवेज काफी हद तक दिख रहा था।
सुषमा ने साले साहब और मेरी और मुस्कुराते हुए देखा और बड़े ही हलके और मीठे स्वर में बोली, “मुझे पता नहीं था की मेरी दो मर्दों से चुदने की ख्वाहिश इतनी जल्दी और इतनी बढ़िया तरीके से पूरी हो जायेगी। अगर मेरे पति वहाँ आप दोनों की पत्नियों को चोद रहे हैं तो मैं भी कोई कम नहीं हूँ। मैं भी यहां उन दोनों पत्नियों के पति से आज चुदवाउंगी।“
फिर सुषमा ने साले साहब की और देख कर पूछा, “संजु मैं अगर आपसे एक बात पूछूं तो तुम कहीं बुरा तो नहीं मान जाओगे?”
साले साहब ने अपना सर हिला कर कहा, “नहीं। बिलकुल बुरा नहीं मानूंगा। पूछो।”
सुषमा ने साले साहब की और देख कर जो पूछा उसे सुन कर मैं स्तब्ध हो गया। सुषमा ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया। मुझसे एक बच्चे की तरह सुषमा लिपट गयी। उसकी आँखों में वही बच्चे वाली सरलता और भोलापन नजर आ रहा था।
मेरे हाथों को चूमते हुए सुषमा ने साले साहब से पूछा, “संजू, देखो यह तुम्हारे जिजु, मेरी जान हैं। मेरे पति के अलावा मैं इनसे सच्चे दिल से दिलोजान से प्यार करती हूँ। आज तुम्हें यह तुम्हारे जीजू ने मुझे चोदने की परमिशन दे दी है। तुम यह समझना की यह बहुत बड़ी बात है।
किसी भी मर्द के लिए उसकी माशूका को किसी और से चुदवाना सहज नहीं होता। और तुम तो उनके साले, उनकी बीबी के सगे भाई हो। तुम को तो वह मुझे चोदने की इजाजत हरगिज़ नहीं देते। इस मामले में अगर वह ज़रा भी नाराजगी जताते या उनके मन में थोड़ी सी भी रंजिश होती तो मैं तुम्हें मुझे हाथ भी लगाने नहीं देती। सबसे पहले तो तुम उनका उसके लिए शुक्रिया अदा करो। फिर तुम मुझसे आज इसी वक्त यह वादा करो की जब भी मौक़ा मिलेगा, तुम जीजू से तुम्हारी पत्नी अंजू को चुदवाओगे।”
सुषमा की यह बात सुनकर मैं सकपकाया सा सुषमा की और देखता ही रहा। यह कैसी औरत है? वह मुझसे प्यार करते हुए भी मुझे दूसरी औरत को चोदने के लिए अपनी और से इंतजाम कर रही है। सुषमा की बात सुन कर साले साहब के चेहरे पर मैंने हलकी सी मुस्कुराहट की छाया देखि। शायद इस बात को ले कर उन्होंने पहले से ही कुछ सोच रखा होगा ऐसा मुझे लगा।
उन्होंने सुषमा की और मुस्कुराते हुए देख कर कहा, “सुषमा, अब मेरे जीजू से मेरा सम्बन्ध सिर्फ साले जिजु का ही नहीं। अब वह मेरे और अंजू के हमदम हो गए हैं। इस वक्त अंजू भले ही हम से दूर है, पर मैं मेरी अंजू को भली भाँती जानता हूँ।
उसका दिल हमारे पास है। वह मुझसे अपने मन की हर बात बताती है। जब हमने तय किया की अंजू सेठी साहब से चुदवायेगी, तब हमारा वह निर्णय सिर्फ चुदवाने के लिए ही नहीं था। वह निर्णय मेरे और अंजू के आप सब से संवेदना पूर्ण सम्बन्ध बाँधने और जुड़ने के हेतु भी था।
अंजू ने मुझे बताया भी की टीना और सेठी साहब ने मेरी अंजू को पहले मिलन में ही अपना लिया है। अंजू मेरी पत्नी मात्र नहीं है। वह मेरी अंतरंग मित्र और जीवन साथी है। इसी लिए हम दोनों एक दूसरे के आनंदित होने पर स्वयं बहुत आनंद पाते हैं। अंजू ने सेठी साहब से बड़े प्यार और बड़े जोश खरोश के साथ चुदवाया यह जान कर मुझे जो आनंद का अनुभव हुआ, उसे मैं कह नहीं सकता।
वैसे ही जब मैं अंजू से कहूंगा की मैंने सुषमा को बड़े प्यार से चोदा है, तो उसकी ख़ुशी की कोई सीमा नहीं रहेगी। मैं समझता हूँ यह मेरे जीवन की उपलब्धि है और मैं बड़ा ही खुशनसीब हूँ की मुझे अंजू जैसी जीवनसाथी मिली। अब मैं, अंजू, सेठी साहब, जीजू और टीना सब तुम्हारे साथ एक अनूठे रिश्ते से जुड़ चुके हैं। इसमें दिक्कत सिर्फ टीना और मेरी है। टीना और मेरे बिच में खून का रिश्ता है।
हम रिश्ते में सगे भाई बहन हैं। मैं इस रिश्ते को साफ़ रखना चाहता हूँ। इस लिए हम एक दूसरे से सेक्स नहीं करेंगे, पर एक दूसरे के लिए सेक्स का पूरा सपोर्ट करेंगे। हम एक दूसरे की चुदाई भी देख सकते हैं। मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं है टीना कभी भी किसी से भी चुदवाये। और मुझे कोई आपत्ति नहीं है अगर अंजू भी जीजू से या सेठी साहब से जब चाहे, जितनी बार चाहे चुदवाये।”
साले साहब ने सुषमा को अपनी बाँहों में वहीँ खड़े रह कर उठाये रखा ताकि मैं सुषमा के होँठों को प्यार से चुम सकूँ। मैंने सुषमा का सिर अपने हाथों में पकड़ कर मेरे होँठ सुषमा के होँठों पर चिपका दिए और एक प्रगाढ़ चुम्बन करते हुए मैंने सुषमा के मुंहमें अपनी जीभ दे दी जिसे वह चूसे।
सुषमा ने मेरी जीभ को चूसना शुरू किया और मेरे मुंह में से निकल रही सारी लार पिने लगी। साथ साथ में सुषमा मेरी जीभ को चाटती रही। मैंने मेरी जीभ सुषमा के मुँह में से अंदर बाहर करते हुए जैसे मैं सुषमा का मुंह चोद रहा हूँ ऐसा किया जिसे सुषमा एक बच्ची की तरह खिलखिलाती हंसती हुई अपने मुंह को मेरी जीभ से चुदवाती रही।
कुछ देर बाद जब मैंने अपना मुँह सुषमा के मुंह से हटाया तो सुषमा के मुंह पर उसके होँठों पर लाल निशान पड़ गए थे। सुषमा उन्हें देख नहीं सकती थी पर साले साहब ने उसे देख कर मुझे एक मुस्कान दे कर वाहवाही दी। साले साहब ने फिर सुषमा को बैडरूम में ले जाकर हलके से पलंग पर लिटा दिया।
सुषमा के एक तरफ मैं लेट गया और दूसरी तरफ साले साहब। जैसे ही सुषमा को साले साहब ने पलंग पर लिटाया की सुषमा ने अपनी बाँहें फैला कर मुझे अपने ऊपर सवार हो कर अपनी बाँहों में लेने का इशारा किया।
मैंने सुषमा की टाँगे चौड़ी कर सुषमा के ऊपर सवार हो कर सुषमा के होंठों से अपने होँठ चिपका कर दुबारा सुषमा को प्रगाढ़ चुम्बन करने में व्यस्त हो गया। मेरे पाजामें में मेरा खड़ा लण्ड सुषमा की टांगों के बिच उसकी पतलून में छिपी उसकी चूत पर निशाना लगाए हुए था। मुझे सुषमा के होंठों का रस बड़ा ही स्वादिष्ट लग रहा था।
सुषमा ने मेरे कान में मुंह लगा कर कहा, “राज, तुम तुम्हारे साले साहब के आने से नाराज तो नहीं ना?”
मैंने कहा, “नहीं सुषमा, तुम्हारी यह इच्छा थी तुम दो मर्दों से चुदाई को एन्जॉय करो। तो आज ऊपर वाले ने यह मौक़ा भी दे दिया। भला इसके लिए साले साहब से बढ़िया कौन मिल सकता था? मैं तुम्हारी पसंद की दाद देता हूँ। मैं शुरू में थोड़ा चिंतित था क्यूंकि वह मेरे रिश्ते में हैं।”
शायद सुषमा मेरे जवाब से कुछ हद तक सतुष्ट दिखी। सुषमा ने कहा, “यह शेर तुमने शायद सूना नहीं। सुनो:
जब हवस दिमाग पे हावी हो रिश्तों का जोर नहीं होता, बस लण्ड और चूत ही होती है, बाकी कुछ और नहीं होता। लण्ड तगड़ा हो चूत हो राजी दिन रात चुदाई होती है, चूत सूज जाए चलते ना बने उस पर कोई गौर नहीं होता।
जनाब जब चुदाई का हवस दिमाग पर हावी होता है तो रिश्ते पीछे रह जाते हैं। वैसे भी साले साहब से तुम्हारा कोई खून का रिश्ता तो है नहीं। तो इतनी चिंता मत करो। मैंने भी यही सब सोच कर साले साहब को पसंद किया था।“
मैंने कहा, “सुषमा, तुम्हारे ही शेर की आखिरी लाइन तुमको याद दिलाता हूँ। चूत सूज जाए, चलते ना बने इस पर कोई गौर नहीं होता। अगर तुम्हारा वही हाल हुआ जो सेठी साहब करते हैं तो तुम शिकायत मत करना।”