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सिनेमा हॉल के अँधेरे में मेरा ब्रा और पैंटी रंजन पहले ही खोल कर बाहर निकाल चूका था और मेरा ब्लाउज भी पीछे से खुला था. मैं उसकी गोद में बैठे सोच रही थी कि अब वो क्या करने वाला हैं.
तभी उसने मुझे एक बार फिर आगे की सीट पर झुक कर खड़ी कर दिया और रंजन ने अपने कपडे खोल नीचे कर दिए. उसने मेरी साड़ी को पेटीकोट सहित एक बार फिर ऊपर उठाया और मुझे वो कपडे ऊपर ही पकडे रखने को कहा.
मैंने अपने कपड़े उठाये और पीछे से अपनी गांड खोल कर खड़ी हो गयी. हॉल में इतने लोगो के होते हुए चुदवाना वाकई किसी रोमांच से कम नहीं था. रंजन ने अपना लंड मेरी चुत में घुसा दिया और धक्के मारना शुरू कर दिया.
मैंने अपने एक हाथ को आगे की सीट पर रख सहारा लिए खड़ी थी और दूसरे हाथ से अपने कपड़े उठाये हुए थी. आगे बैठी एक लड़की की नजर हम पर पड़ी और वो समझ गयी कि पीछे क्या खिचड़ी पक रही हैं. उसने हँसते हुए अपने बॉय फ्रेंड को भी बताया और वो लोग अपना काम छोड़ हमें देखने लगे.
मुझे बहुत शर्म आयी और रंजन को भी बताया, पर उस पर इसका कोई असर नहीं हुआ. वो दोनों खिलखिलाते हुए लाइव चुदाई का मजा देख रहे थे.
वो तो अच्छा था कि हॉल में अँधेरा था और मूवी के अधिकतर सीन भी अँधेरे के थे तो वो लोग ज्यादा कुछ देख नहीं पाए. पर मैं वो चार अजनबी आँखें कभी नहीं भूल पाऊँगी.
बाहर निकलते वक़्त भी मुझे सचेत रहना था और मुँह ढक कर ही निकलना था, ताकि वो लोग मुझे भविष्य में कभी पहचान ना पाए. पर फिलहाल रंजन अपने रोमांच का मजा ले रहा था.
मेरा इस मुसीबत से बचने का एक ही तरीका था कि उसका जल्दी से हो जाए. इसलिए मैंने भी अपनी गांड को पीछे धक्के मारना शुरू कर दिया.
उस पर से मूवी ने भी मेरी मदद कर दी. उसमे एक गरमा गरम सीन आ गया. खूबसूरत हीरोइन के कपडे थोड़े खुल कर अंग दिखने लगे और सेक्स सीन शुरू हो गया.
इससे रंजन और गरम हो गया. वो जोर जोर से झटके मारने लगा और गरम सीन के ख़त्म होते होते तो वो मेरी चूत में ही झड़ गया.
मैंने भी चैन की सांस ली. कपडे नीचे कर मैंने अपनी पैंटी पहन ली और ब्लाउज को भी बंद कर दिया. ब्रा को तो मैंने अपने पर्स में डाल दिया, उसको अभी पहनना संभव नहीं लगा.
मूवी अभी भी चल रही थी पर रंजन का काम हो चूका था, तो हम वहा से निकलने लगे. मैंने अपनी साड़ी अपने सर पर ओढ़ ली ताकि हॉल में जिस किसी ने भी हमे चुदते देखा मेरी शकल ना देख पाए.
बाहर आकर रंजन ने मुझे वही लंच करवाया और थोड़ा बहुत घूम कर शाम होने के पहले हम घर आये.
घर आकर हमने कपड़े बदले, इस बार उसने मुझे नंगी रहने को बाध्य नहीं किया. मैं थोड़ा सोकर रेस्ट करना चाहती थी पर ये भी पता था कि वो मुझे सोने नहीं देगा उल्टा एक बार फिर चोद देगा. इसलिए मैं घर के इधर उधर के कामो में व्यस्त होने का प्रयास करती रही.
वो लगातार मेरे आगे पीछे घूम रहा था और ताड़ रहा था. टी वी पर उसने जानबूझकर रोमांटिक द्विअर्थी गाने चला दिए और साथ में गाते हुए मुझे छेड़ने लगा. गाने देखते देखते उसका तो जैसे फिर से मूड बन गया और मुझे चोदने की फरमाइश करने लगा.
मैं काम का बहाना बना उसको टालती रही ताकि तब तक पति घर आ जाये. थोड़ी देर तक उसने इंतज़ार किया और फिर जब मैं रात के खाने की तैयारी में रसोई में काम कर रही थी, तो उसने रसोई में आकर अपने सारे कपड़े खोल दिए और मेरे सामने आकर खड़ा हो मुझे उत्तेजित करने की कोशिश करने लगा.
उसका लंड ऊपर नीचे हो नाचते हुए मुझे बुला रहा था और मैं शर्म के मारे सिर्फ मुस्करा भर रही थी और अपना काम कर रही थी. उसने आकर एक एक कर जबरदस्ती मेरे सारे कपड़े खोल कर मुझे रसोई में ही नंगी कर दिया. मेरे और उसके सारे कपडे रसोई में जमीन पर बिखरे हुए थे.
उसने मुझे किचन के प्लेटफार्म पर बैठाया और पाँव ऊपर उठा कर चौड़े कर अपना लंड मेरी चूत में घुसा दिया और खड़े खड़े ही अंदर बाहर झटके मारने लगा. हर झटके के साथ वो आहह्ह्ह आहह्ह्ह की आवाज निकाल कर माहौल बनाने लगा.
मैं कोहनी के बल पीछे झुक कर बैठी बैठी ना चाहते हुए भी उससे चुदने का मजा लेने लगी. मुझे लग गया कि देर शाम को रंजन चला जायेगा और ये शायद मेरी उसके साथ आखरी चुदाई हैं.
उसने अब मुझे चोदना छोड़ा और हाथ पकड़ कर बाहर हॉल में ले आया और खुद सोफे पर बैठ गया और मुझे अपनी गोद में बैठ चोदने को बोला.
मैं दोनों घुटनो को सोफे पर रंजन के पावो के दोनों तरफ करते हुए बैठ गयी. उसका मुँह मेरे मम्मो के ठीक सामने था तो उसने मेरे निप्पल को चूसना शुरू कर दिया.
चूसते चूसते ही उसने अपना लंड मेरी चूत में घुसाने का प्रयास किया, तो मैंने अपना शरीर थोड़ा ऊपर उठा कर उसको जगह दी और उसने अंदर डाल दिया.
मैं अब ऊपर नीचे हो कर चुदने लगी तो उसने मेरे मम्मे चूसना छोड़ा और अपने हाथों से ही दबा कर मुझे मजा दिलाने लगा. उसने फिर दोनों हाथ मेरी गांड पर रख दिए और मेरे ऊपर नीचे होती गांड के साथ ही उसके हाथ भी ऊपर नीचे हो मेरी गांड को रगड़ रहे थे.
मैं आगे झुक कर सोफे को दोनों हाथो से पकड़ सहारा ले कर उछल रही थी. मेरे झुकने से मेरे मम्मे उसके मुँह को रगड़ रहे थे और वो अपनी जबान बाहर निकाले मेरे मम्मो को गीला कर रहा था.
हम दोनों का एक बार फिर पानी बनने लगा और मेरे उछलने के साथ ही फच्च फच्च आवाज के साथ हम नशे में उतरने लगे. चुदते चुदते समय का ध्यान ही नहीं रहा और अशोक भी जल्दी घर आ गया मेरी चिंता में. रंजन कुछ ज्यादा ही जोर से आहें भर रहा था तो मुझे भी दरवाजे के खुलने की आवाज नहीं आयी.
रंजन ने अशोक को देख लिया और उसने मन ही मन एक प्लान बना लिया. उसने मुझे दबी आवाज में कहा कि जोर से करो. मुझे लगा उसका होने वाला हैं तो मेरा भी पीछा छूटेगा तो मैं जोर जोर से उछलते हुए चोदने लगी. जिससे मेरे मुँह से सिसकिया निकलने लगी.
अचानक रंजन ने मेरे कंधे को हल्का धक्का देते हुए कहना शुरू कर दिया छोड़ो छोड़ो. मुझे लगा उसे मजा आ रहा है और झड़ने वाला हैं और सोफे पर ही पानी निकल जायेगा इसलिए छोड़ने को बोल रहा है. मगर मैं उसका काम जल्दी ख़त्म करने के चक्कर में और जोर से कर चोदने लगी.
अशोक अंदर आया और उसने जोर की आहट की, हम दोनों का ध्यान उसकी ओर गया. मैंने डर के मारे आहें भरना और उछलना बंद कर दिया पर रंजन को कोई फर्क नहीं पड़ा.
अशोक: “तुम्हारे चौबीस घंटे अभी पुरे नहीं हुए क्या?”
रंजन : “मैं क्या करू? ये प्रतिमा ही मेरे ऊपर चढ़ कर चोद रही हैं. बोल रही थी कि अशोक का लंड तुम्हारे जैसा नहीं हैं तो चुदने का मजा नहीं आता.”
एक तो रंजन सुबह से मेरे साथ जबरदस्ती कर रहा था ऊपर से मेरे ऊपर ही इल्जाम डाल कर मेरे पति के सामने मेरी बेज्जती कर रहा था. मैं तुरंत उस पर से उतरने लगी पर उसने मेरी कमर कस कर पकड़ते हुए मुझे ऊपर नीचे धक्के देता रहा.
मैं उस पर चिल्लाई कि वो मुझे छोड़ दे. अशोक ने भी जो देखा और सुना उसे भी शायद यही लगा कि रंजन सही हैं. अशोक ने आकर हम दोनों को अलग किया.
फिर मैं उसके ऊपर से उतर गयी. मेरी चुत में आधा चुदने की वजह से एक अजब सी हूल मच रही थी. पर उस पर से उतरना भी जरुरी था अपनी बची खुची इज्जत को बचाने को.
अशोक रसोई की तरफ गए अपना लंच बॉक्स रखने के लिए, वहा मेरे और रंजन के कपड़े नीचे बिखरे पड़े थे तो पता नहीं उसने मेरे बारे में क्या सोचा होगा. मैं उस वक्त अपनी सफाई रखती तो शायद अशोक को मैं ही गलत नजर आती.
फिर अशोक सीधा बैडरूम में चला गया और मैं रसोई में अपने कपड़े उठाने गयी. पीछे पीछे रंजन भी आ गया और मुझे वही रसोई में जमीन पर गिरा दिया और मुझ पर चढ़ कर चोदने लगा.
एक बार तो मुझे भी मजा आया कि मेरी आधी अधूरी चूत की प्यास मिटा रहा था. पर जैसे ही अशोक का ख्याल आया तो मैंने अपने आप को छुड़ाने का प्रयास किया.
उसने लुढ़का कर मुझे अपने ऊपर कर दिया और कहा कि अशोक को कपड़े बदलने में समय लगेगा तो कर लेते हैं, पर मैंने मना कर दिया और उसको छोड़ने को कहा.
पर उसने कहा एक शर्त पर छोड़ेगा कि मैं उसे दस झटके मारते हुए चोदु और हर झटके के बाद उसको बोलू कि रंजन आज तुझे चोदे बिना नहीं छोडूंगी.
मुझे लग गया कि वो मुझे फंसाना चाहता है, तो मैंने मना कर दिया पर उसने मुझे झकड़ कर पकडे रहा और नीचे से झटके मारता रहा. उसने मुझे कमर से इतना कस कर पकडे रखा था कि मेरी कमर दर्द होने लगी थी.
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तभी दरवाजा बंद होने की आवाज आयी.
मैं: “चलो छोडो, अशोक आ गया हैं”
रंजन: “अरे वो बाथरूम के दरवाजे के बंद होने की आवाज हैं, मैंने कहा वैसा तुम दस बार करो, अशोक नहीं आ पाएगा तब तक.”
मैंने कुछ सेकंड अपने आप को छुड़ाने की कोशिश की पर उसकी पकड़ से नहीं निकल पायी और आस पास देखा अशोक नहीं था तो मुझे उसकी बात माननी पड़ी.
रंजन: “इतनी देर से मानी, अब दस की जगह बीस बार करना हैं. शुरू करो!”
वो मेरी कमर पकड़े रहा और मैंने बीस झटके मार चोदना शुरू किया और उसके कहे अनुसार उसको बोलती रही “रंजन आज तुझे चोदूंगी. आहह्ह, रंजन आज तुझे चोदूंगी. आह्हह्ह्ह रंजन आज तुझे चोदूंगी. आह्हह्ह रंजन आज तुझे चोदूंगी.” झटको के बीच मुझे मजे भी आ रहे थे तो मेरी आहें भी निकल रही थी और रंजन की भी सिसकियाँ निकलने लगी.
बीस झटके शायद हो चुके थे और मैं झड़ने के एकदम करीब थी तो जोश जोश में मैंने आठ दस झटके ज्यादा ही मार दिए और हलकी चीख के साथ मैं झड़ते हुए बोली “उह्हह्ह्ह रंजन, आज तो तुझे चोदूंगी.”
रंजन ने मेरी कमर छोड़ दी, शायद उसका भी पुरा हो गया था इस बीच.
फिर रंजन एक बार फिर अचानक चिल्लाया “अरे अब तो छोड़ दो, सुबह से आठ बार मुझे जबरदस्ती चोद चुकी हो.”
मैं उसके ऊपर से हटी अपने कपडे उठाने के लिए और पीछे अशोक खड़ा था.
पता नहीं वो कब से खड़ा था, अगर वो मेरे बीस-पच्चीस झटको के दौरान आया तो उसके हिसाब से मैं ही आगे बढ़ कर रंजन को चोद रही थी.
मैं तो हक्की बक्की होकर मूर्ति की तरह खड़ी हो गयी. मैं उसके जाल में फिर फंस चुकी थी और अपने पति की नजरो में गिर गयी.
रंजन: “अशोक, ये प्रतिमा तुम्हारे साथ भी छुट्टी के दिन यही करती हैं क्या? सुबह से आठवीं बार चोदा हैं मुझको. मैं तो मना कर कर के थक गया हूँ.”
मैंने उसको खा जाने वाली नजरो से देखा. अशोक रसोई से चला गया और मैंने अपने कपड़े उठा कर पहनना शुरू कर दिया. रंजन भी कपड़े पहनने लगा.
मैं सीधा बाथरूम में गयी और अपनी साफ़ सफाई की. वापिस आयी तब रंजन अशोक से कुछ बात कर रहा था और मेरे आते ही चुप हो गया.
पता नहीं मेरे बारे में अशोक को और कितना भड़काया होगा उसने.
मैं उस पर बरस पड़ी और खूब खरी खोटी सुनाई और वो सब सब सुनता रहा. जब मैं रुकी तब उसने बोलना शुरू किया.
रंजन: “हो गया तुम्हारा बचाव पक्ष, अगर मुझसे चुदने में मजा आता हैं तो स्वीकार कर लो, अशोक के सामने शर्माने से क्या होगा.”
मैंने सौफे पर पड़ा एक कुशन उठा कर उस पर फेंक मारा. और दूसरी कोई चीज ढूढ़ने लगी उस पर फेंकने के लिए.
अशोक ने मुझको रोका और रंजन को खाना खाकर तैयार होने को बोला ताकि वो अपनी ट्रैन के लिए लेट ना हो. अशोक का चेहरा बहुत गंभीर था. मैंने उसको समझाने की कोशिश की कि पूरा माजरा क्या हैं और रंजन की चाल हैं पर अशोक ने मुझे सफाई नहीं देने दी.
मैं परेशान हो गयी, रंजन ने मुझे एक अलग मुसीबत में डाल दिया था. जब ऐसे काण्ड किये थे तब भी नहीं पकड़ी गयी और अभी मेरी गलती नहीं थी फिर भी इल्जाम मुझ पर था. इसी तनाव में मैंने उसके लिए खाना बनाया और रंजन ने खा लिया.
वो दोनों तैयार हो गए और रंजन का सारा सामान हॉल में इकठ्ठा करने लगे. अशोक जब बेडरूम में बचा हुआ सामान लेने गया, तब रंजन ने मुझे दबोच लिया और मेरे होंठो पर अपने होंठ लगा जबरदस्ती किस करने लगा.
उसने मुझे कमर से इतना कस कर पकड़ा था कि मैं ना तो बोल पा रही थी ना छुड़ा पा रही थी. किस करते हुए ही वो दीवार के पास ले गया और खुद को पीठ के सहारे खड़ा कर दिया और चूमता रहा.
मैं तो अपने आप को छुड़ा नहीं पायी पर उसने खुद ही मुझे धक्का देते हुए अलग किया और बोला “अब तो जाते जाते छोड़ दो, अब किस भी मेरे से ही लोगी, कुछ तो अशोक से भी करवा लो.”
कोई आश्चर्य नहीं था कि पीछे अशोक के आते ही उसने मुझे धक्का देते हुए अलग किया था, ताकि अशोक को लगे कि मैं ही रंजन को जबरदस्ती चुम रही थी. मैंने रंजन को मारने के लिए आगे बढ़ते हुए अपने हाथ उठाये पर अशोक ने जाने का फरमान सुना दिया.
रंजन ने भविष्य में कभी हमें ब्लैकमेल कर परेशान नहीं करने का वादा किया और हमें उसकी सगाई और शादी में जरूर आने का निवेदन किया.
अशोक उसे स्टेशन तक छोड़ आये और मैंने चैन की सांस ली कि चुदाई का एक तूफ़ान थम गया, पर उसने जाते जाते अशोक के मन में मेरे प्रति शक के बीज बो दिए थे.
अशोक के आने तक मैं इसी तनाव में बैठी रही. सोचा अशोक के आते ही उसको सब कुछ सच सच बता दूंगी की मैं खुद शिकार हूँ.
पर अशोक ने आते ही मुझे शांत कराया और बोला कि उसको सब पता हैं ये सब रंजन की चाल हैं. रंजन मेरे सिर्फ मजे ले रहा हैं तो मैं ज्यादा चिंता ना करू. रंजन ने रास्ते में अशोक को सब सच बता दिया था. ये सुन कर मुझे इतनी राहत मिली कि मेरे आंसू छलक गए.
थोड़े दिन बाद जैसा मुझ शक था मैं दूसरी बार गर्भवती हो चुकी थी. घर पर सब खुश थे. भाभी को अशोक की सारी सच्चाई पता थी तो वो मुझे शक की निगाहो से देख रही थी कि मैंने कहा मुँह काला कराया और पता नहीं किसके बच्चे की माँ बनी हूँ.
एक बार फिर मुझे नहीं पता था कि मेरे होने वाले बच्चे का असली पिता कौन था. डीपू जिसने मुझे महीने के पहले ही हफ्ते दो दिन के अंदर छह बार चोदा था, या फिर महीने के बीच के उन सबसे खतरनाक दिंनो में संजीव के फटे हुए कंडोम की एक चुदाई या फिर रंजन के द्वारा आखिरी हफ्ते में मेरी पांच बार चुदाई.
मैं रंजन की सगाई-शादी में नहीं गयी, पता नहीं और क्या जिद कर बैठे. अशोक अकेले ही गए. डर भी था कि कही एक दिन वो फिर से हमारी ज़िन्दगी में ना आ जाये, इस बार तो उसकी बीवी भी प्रभावित होगी.
पिछले एक महीने में मैंने स्वार्थवश जो भी एक के बाद एक किया था उससे मैं अंदर कही ना कही हिल चुकी थी. अपने आप पर गिन्न आ रही थी. कुछ ठीक नहीं लग रहा था. मैं तनाव में रहने लगी, जब कि मैं खुद शायद दूसरा बच्चा चाह रही थी. पर जिस तरह से ये बच्चा मेरी कोख में आया था मुझे ठीक नहीं लगा.
इसी तनाव के कारण तीन महीनो के अंदर ही मेरा गर्भपात हो गया और मैं डिप्रेशन (अवसाद) में चली गयी. शायद पाप का घड़ा भर गया था और फूटने की ही बारी थी.
अशोक ने मेरी हालत देख मुझे मशवरा दिया कि हम लोग फिर से किसी की मदद लेकर बच्चा पैदा कर सकते हैं. रंजन तो विदेश जा चूका था पर डीपू, संजू या मेरी पसंद के किसी भी मर्द से मैं मदद लेकर माँ बन सकती हूँ इसकी छूट अशोक ने दी दी थी. पर अब मैं इन सब चीजों में नहीं पड़ना चाहती थी.
समाप्त!
क्या मेरी ज़िन्दगी कोई बदलाव आएगा या कोई मर्द फिर मेरा फायदा उठाएगा? जानियेगा जल्द ही अगली देसी सेक्सी स्टोरी में..