पिछला भाग पढ़े:- खड़े लंड पर धोखा-1
मेरी हिंदी सेक्स कहानी का अगला पार्ट शुरू कर रहा हूं।
रेखा से बात होने के बाद बिमला ने कहा, “साहब जी, मैं कुछ साफ़-साफ़ बोलूं?”
जब मैंने “हां” कहा तो बिमला बोली, “साहेब, आप को अगर रात को बिस्तर में अच्छे से दीदी का प्यार पाना है, तो दीदी का दिल जीतने के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा।”
मैंने कहा, “बिमला तुमने सुना रेखा ने तो दीपा से किसी का सेक्स करने के बारे में कहा?”
बिमला, “साहेब, अब हम कौन से दूध के धुले हुए हैं? आपको मंजू शर्मा तो याद ही होगी? मुझे लगता है आपको परेशानी नहीं होनी चाहिए।” बिमला की बात सुन कर मैं स्तब्ध हो गया। पर बिमला की बात तो सच थी।
मैंने बिमला को कहा, “बिमला, ठीक है, मैं तैयार हूं। पर दीपा से पुरानी बातें उगलवाना टेढ़ी खीर है।”
बिमला ने कहा, “साहेब वह आप मेरे पर छोड़ दीजिये।” यह कह कर बिमला घर जाने को निकल गयी।
मैं आपको बताता हूं कि मेरा अंजू शर्मा से क्या वाक्या था? हुआ कुछ ऐसा कि हमारे पड़ोस में एक काफी समृद्ध बिजनेसमैन शर्मा जी रहने आये। शर्मा जी काफी व्यस्त रहते थे, और घरसे जल्दी निकल जाते थे, और रात को बड़ी देर से लौटते थे। उनको अपने काम से ही फुर्सत नहीं थी कि वह अपनी पत्नी मंजू शर्मा को समय दे पाए। हमारे पड़ोस में आते ही मंजू शर्मा की मेरी पत्नी दीपा के साथ अच्छी दोस्ती हो गयी थी। मंजू करीब 28 साल की होंगी जब की शर्मा जी 55 साल के थे। वह शर्मा जी की दूसरी शादी थी।
मंजू पतली लम्बी और भरे हुए अंगों वाली थी। उसके होंठ रसीले और कूल्हे और चूचियां गजब की भारी थी। मेरी मंजू से दूसरी मुलाक़ात में ही कुछ आंख मिचौली हो गयी, जब वह चीनी लेने आयी थी, और उस समय दीपा घर में नहीं थी।
मंजू करीब एक घंटे तक बैठी और उसी दरम्यान उसने अपने जीवन की दर्द भरी दास्तां सुनाई। पहले हम आमने-सामने बैठे थे। फिर मंजू मेरे पास आ गयी। मैंने काफी सहानुभूति जताते हुए सुना। धीरे से मैंने मंजू के कंधे पर और जांघों पर हाथ रख कर उसके दर्द को कम करने की भरपूर कोशिश की। उसके बाद मंजू का दीपा को मिलने के बहाने आना बढ़ गया। उन मुलाकातों के दरम्यान मौक़ा मिलते ही मेरी और मंजू की आंखों में आंख मटक्का होता रहता था। इसके अलावा सेल फ़ोन पर भी कभी बात तो कभी मैसेज आते-जाते रहते थे।
हमारी पहचान के दो महीनों में तो मंजू काफी उतावली दिख रही थी। उसके मुझ पर काफी मैसेज आते थे, जिन्हें मैं देख कर, जवाब दे कर, डिलीट कर देता था। फिर कुछ वीडियोस आने लगे। मुझे यह साफ़ हो गया कि मंजू मुझसे चुदवाना चाहती थी। जब ऐसी खूबसूरत कलि आपकी बाहों में आने को तैयार हो, तो भला कौन मर्द पीछे हटेगा?
उस दरम्यान हमारे घर में भी हम पति-पत्नी की बोल-चाल का तापमान भी कुछ बढ़ ही रहा था। हमारी चतुर कामवाली बाई बिमला से यह सब अछूता नहीं था। बिमला में एक गजब की खूबी थी। वह कभी एक की बात दूसरे को नहीं करती थी।
मेरी पत्नी दीपा की मां की तबियत ठीक नहीं थी, इसलिए उन्हें देखने दीपा अपने मायके दो दिन के लिए गयी हुई थी। बिमला हमारे घर की लड़ाई और मेरी और पड़ोसन मंजू की कहानी की साक्षी थी। बिमला मेरे और पड़ोसन मंजू के बीच में एक संदेशों का आदान-प्रदान करने का साधन भी बनी हुई थी, जिसकी भनक भी दीपा को नहीं होती थी।
जिस दिन मेरी बीवी दीपा मायके गयी, ठीक उसी दिन कामवाली बिमला के कहने पर मैसेज भेज कर मंजू शर्मा को मैंने रात को डिनर खाने बुलाया। दीपा की ग़ैरहाजरी में बिमला ने सारा खाना बनाया, और हमें परोसा भी। उस रात पड़ोसन मंजू भी अपने घर में अकेली थी। बिमला ने ही मंजू को रात में मेरे घर रुकने को समझाया हुआ था, और उसे भरोसा दिलाया था कि किसी को उसके बारे में खबर नहीं होगी।
कामवाली बिमला ने मेरे करीब आ कर मेरे कान में कहा, “साहब मंजू मेम साहब बहुत परेशान है। मंजू जी की रात में अच्छे से चुदाई कीजियेगा। वह खुश हो जायेगी, और आपको भी खुश कर देगी। बेचारी बहुत जरूरतमंद है।” फिर अपनी आंखें नचाती हुई बोली, “उनके पति कुछ कर नहीं पाते।”
उस पूरी रात मैंने पड़ोसन मंजू को ऐसा चोदा जैसे उसके पति ने कभी नहीं चोदा होगा। वह मेरी और शायद मंजू की भी जिंदगी की सबसे बढ़िया चुदाई थी। उस रात कामवाली बिमला हमारे ड्राइंग रूम में चौकीदारी करने के लिए सोफे पर सोई।
बिमला ने मंजू वहीं पर रात भर चौकीदारी की और हमें खाना, ड्रिंक्स या नाश्ता, चाय बगैरह बिस्तर में ही देती रही।
उसमें कोई शक नहीं था कि बिमला सारी रात मंजू की सिसकारियां और कराहटें और मेरे सांसों के फूलने की और हमारी जांघों के टकराने की “थप-थप” की आवाज जरूर सुन रही होगी। रात को बिमला चाय, खाना वगैरह देने आया-जाया करती थी। इसलिए बैडरूम का किवाड़ बंद करने का खोलने का काम वही करती थी।
जाहिर था कि हमारी चुदाई भी देखती रहती थी। दूसरे दिन पड़ोसन मंजू ने बिमला को चुप रहने की रिश्वत के एवज में एक हजार रुपये और एक महंगी साड़ी भेंट की थी। मैंने तो उसे पहले से ही अच्छी खासी रकम दे रखी थी।
मंजू बहुत ही सुन्दर, पतली और खूबसूरत नाक-नक्श वाली लड़की थी। उसके स्तन सख्त और पूरे भरे हुए, और स्तनों के केंद्र में एरोला के बीचो-बीच शिखर जैसी सुन्दर गोरी निप्पलें देखते ही चूसने का मन करने लगता था। मंजू की चूत उसकी जांघों के बीच बिल्कुल साफ़ लेकिन नशीली, रस भरी और गोरी थी। मुझे मंजू के प्रेम रस को चाटने और चूसने का खूब मजा आया। मंजू ने भी मेरा लंड और अंडकोष करीब आधे घंटे तक बड़ी शिद्दत से चाटा, और चूसा।
मंजू की चुदास इतनी ज्यादा थी कि उसने मुझसे हर पोजीशन में, जैसे मेरे नीचे लेट कर, घोड़ी बन कर, खड़े एक टांग ऊपर कर, और बिस्तर में टेढ़ी लेटे हुए बहुत ही जूनून के साथ चुदवाया। मंजू की चूत एक-दम नरम, रसीली और सख्त थी। मेरा लंड घुसेड़ते हुए बड़ी दिक्कत हुई थी उसे। पर वह दर्द को पूरी तरह से अच्छे से एन्जॉय कर रही थी, और खुद उछल-उछल कर जोर से चुदवा रही थी।
उतना ही नहीं मुझसे सामने चल कर गांड भी मरवाई। जब मैं मंजू की गांड में लंड घुसेड़ रहा था, तो एक बार तो मंजू इतना जोर से चीखी की बिमला भी भागती हुई कमरे में आ गयी। फिर मेरा लंड मंजू की गांड में घुसा हुआ देख कर मंजू से बोली, “दीदी सब ठीक हो जाएगा। थोड़ा दर्द तो होता है। धीरे-धीरे दर्द कम हो जाएगा, आप चिंता मत करो।”
मंजू का रवैया देख कर मैं दंग रह गया। चुदाई की वह रात मेरे लिए यादगार रहेगी और उस चुदाई में कामवाली बिमला ने मुझे पूरा सपोर्ट किया। हालांकि मैंने सामने चल कर बिमला को अच्छे खासे पैसे दे कर खुश कर दिया था।
एक तरह से उस रात मेरे और बिमला के बीच एक बिना बोले समझौता हुआ था कि हम दोनों एक-दूसरे के गहरे से गहरे राज़ नहीं खोलेंगे। बिमला भी उस दिन से जब भी हम दोनों होते थे, तब मुझसे बिलकुल खुल कर बिंदास बात करती थी, और चुदाई, लंड, चूत, गांड जैसे शब्द बोलने से परहेज नहीं करती थी।
जब वह दीपा से बात करती थी। तब तो पूरी खुल कर सहेली की तरह चुदाई की भी बात करती थी। देखने वाली बात यह थी कि हालांकि बिमला देखने में सुन्दर और सेक्सी थी। पर उसने या मैंने कभी भी एक दूसरे से किसी भी तरह की सेक्सुअल हरकत करने के बारे में सोचा तक नहीं।
एक तरीके से मैं यह कहूं कि बिमला मेरे लिए एक छोटी बहन की तरह थी, और मैं उसके लिए बड़े भाई की तरह था, तो यह गलत नहीं होगा। बिमला के चुप रहने का एक कारण और भी था। बिमला का पति ट्रांसपोर्ट कंपनी में काम करता था, और अक्सर बाहर ही रहता था। घर बिमला के पैसों से ही चलता था।
मैं और दीपा जानते थे कि बिमला का एक किराने के दुकानदार से चुदवाती थी। हमारे घर के पीछे घर में एक सर्वेंट क़्वार्टर था, जिसमें हम कुछ फर्नीचर एक एक्स्ट्रा पलंग इत्यादि रखते थे। दीपा ने उसकी चाभी बिमला को दे रखी थी। बिमला दो तीन दिन में एक बार उस कमरे की सफाई करती रहती थी।
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