दोस्तों मेरी कहानी पढ़ कर मुझे आप सभी के काफी मेल आते है। कुछ लड़कों के, कुछ लड़कियों के, तो कुछ कपल्स के भी, आप सभी का प्यार पाकर मैं बहुत खुश होती हूँ।
इन्ही मेल में से एक मेल मुझे सोनाली का आया था। उसने मेरी कहानी की बहुत ही अच्छी फीडबैक दी थी। उसकी मेल पढ़ कर मुझे काफी खुशी भी हुई थी। फिर गूगल चैट पर हमारी कुछ बातें भी हुई।
इन्ही बातों-बातों में उसने मुझसे पूछा कि क्या मैं उसके जीवन की पहली चुदाई को कहानी का रूप दें सकती हूँ। क्योंकि उसे तो कहानी लिखने का कोई आईडिया नहीं है। उसने मुझसे बहुत आग्रह किया, तो मैं मान गई उसके लिए कहानी लिखने को।
तो दोस्तों मेरी आज की ये कहानी मेरी उसी दोस्त की है, जिसने मेरी कहानी पढ़ के मुझे मेल की थी, और हम अब दोस्त बन चुके थे। तो आइये दोस्तों मैं आप सभी को उसकी पहली चुदाई की कहानी सुनाती हूँ, उसकी के ज़ुबानी।
दोस्तों मेरा नाम सोनाली हैं। मैं कानपुर की रहने वाली हूँ। मैं सांवली लेकिन भरे-फ़ूले शरीर की मालकिन हूँ। मैं एक अच्छे खाते-पीते परिवार की लड़की हूँ। मेरे पापा एक सरकारी अफसर हैं। मेरी मां एक पढ़ी-लिखी और फ़ेशनेब्ल स्त्री हैं। वहीं मेरे पापा बहुत ही शरीफ़ और सीधे-सादे ईमानदार आदमी है। मेरा एक भाई भी है।
मेरे भाई का एक दोस्त था, जिसका एक छोटा भाई था, जिसका नाम शुभम था। शुभम अपने भाई के साथ कई बार हमारे घर आया करता था। मुझे शुभम शुरु से ही बहुत पसन्द था। धीरे-धीरे वो भी मुझे पसन्द करने लगा था।
अब वो अपने भाई के बिना भी हमारे घर आने लगा था। हम दोनों अक्सर मोबाईल पे बातें किया करते थे। अब हमारी बातें प्रेमियों की तरह होने लगी थी। वो हमारे घर किसी ना किसी बहाने से आ ही जाता था। घर वाले उसके इस तरह घर आने पे शक भी नहीं करते थे।
इस तरह एक साल बीत गया, और अब तक मुझे भी दोस्ती और प्यार में फ़र्क पता चल गया था। मेरे मन में भी शुभम को लेकर कई तरह के खयाल आने शुरु हो गये थे।
अब हम मोबाइल पर एक दूसरे का चुम्बन आदि करने लगे थे। इसी तरह शुभम ने मिलने पर भी चुम्बन मांगना शुरु कर दिया, लेकिन मैं उसे मना कर देती थी। लेकिन मैं उसको इस तरह ज्यादा दिन मना नहीं कर पाई।
फिर एक दिन वो मुझे पढ़ाने के बहाने मेरे घर आया। मेरी माँ अपने कमरे में टी.वी. देख रही थी। उस वक्त उसने मुझे अचानक कन्धों से पकड़ लिया और मुझे चुम्मा देने के लिये कहने लगा।
इस बार मैं उसको मना नहीं कर पाई और उसने माँ के आ जाने के डर से मुझे धीरे से एक बार चूम कर छोड़ दिया। कुछ ही देर बाद वो वापिस अपने घर चला गया।
उस रात मैं बेसब्री से उसके फोन का इन्तजार कर रही थी। फिर ग्यारह बजे के करीब उसका फोन आया। मैं बहुत खुश थी।
उसने मुझे पूछा: तुम्हें चुम्बन में मजा आया?
तो मैंने अपने दिल का हाल उसे बता दिया। उस दिन उसने मेरे साथ फोन सेक्स भी किया। मेरी हालत बहुत खराब हो चुकी थी। मेरा दिल चाह रहा था कि शुभम अभी आ जाये, और मुझे अपनी बाहों में भर के वो सब कुछ कर डाले जो फोन पर कह रहा था।
अब हम मिलते तो चुम्बन तो आम हो गया था। अब शुभम बेझिझक मेरे शरीर पर जहाँ चाहता हाथ फ़ेरता था। हमने घर से बाहर रेस्टोरेन्ट में भी मिलना शुरू कर दिया था। वहाँ शुभम बेझिझक मेज़ के नीचे मेरी स्कर्ट के अन्दर मेरी जांघों पर हाथ फ़ेरता था। कभी मौका पा कर शर्ट के उपर से ही वो मेरे बूब्स को सहला देता था।
ये सब मुझे बहुत अच्छा लगता था। घर पे मैं अपने भैया का कम्प्यूटर ही प्रयोग करती थी, जिसमें मैं कई बार ब्लू-फ़िल्म देखा करती थी। अब मुझे इस सबकी अच्छी तरह समझ आ चुकी थी।
मैं मन ही मन ना-जाने कितनी बार शुभम के साथ सम्भोग कर चुकी थी। इस बीच मेरे पापा का तबादला कहीं और हो गया। लेकिन मेरी पढ़ाई की वजह से मुझे और मेरी माँ को कानपुर में ही रुकना पड़ा।
इसी बीच एक दिन हमारे घर का फ्यूज़ चला गया। तो माँ ने इलेक्ट्रिशियन को फ़ोन किया। उसने बोला कि वो आज नहीं आ सकता था। तब मैं और माँ थोड़ा परेशान हो गई कि अब क्या करें।
हमारे पड़ोस में एक फैमिली रहती थी। उनके परिवार से हमारे बहुत अच्छे पारिवारिक सम्बन्ध थे। अक्सर वो हमारे घर आते-जाते रहते थे। उनका एक बेटा था जिसका नाम अनिकेत था। मैं उनको अनिकेत भईया कहती थी। वो करीब 27-28 साल के होंगे।
तब माँ ने उसे बताया: हमारे घर का फ्यूज़ चला गया है, और इलेक्ट्रिशियन ने भी आने से मना कर दिया है। तो क्या तुम फ्यूज़ ठीक कर सकते हो?
तब अनिकेत भईया ने फ्यूज़ को ठीक कर दिया। माँ ने उन्हें कोल्ड ड्रिंक वगैरह पिलाई, और कुछ देर बातें करने के बाद वो चले गये।
लेकिन इसके बाद उनका हमारे घर आना जाना बढ़ गया। अकसर माँ उनसे फोन पे बातें करती रहती थी, जो मुझे अच्छा नहीं लगता था। हम शनिवार और रविवार को पापा के पास चले जाया करते थे, या पापा यहाँ आ जाया करते थे, और घर की चाबियाँ अनिकेत भईया के पास ही रहती थी। दूसरी चाबी हमारे पास होती थी।
एक बार माँ किट्टी-पार्टी पे जा रही थी। जब माँ जा रही थी तो अनिकेत भईया भी बाहर खड़े थे। माँ ने उन्हें मेरा ध्यान रखने को बोला और चली गई।
माँ के घर से बाहर जाते ही मैंने शुभम को फोन कर दिया तो शुभम ने घर पे मिलने की जिद करनी शुरु कर दी। मन तो मेरा भी बहुत कर रहा था शुभम को अकेले में मिलने का। फिर मैंने माँ को फोन करके अपनी सहेली के घर जाने का पूछा।
माँ ने कह दिया: मैं 3-4 घंटे में वापिस आ जाउँगी। उससे पहले वापिस आ जाना।
मैंने शुभम को फोन किया, और घर बुला लिया। मैं भी बहुत खुश थी, कि आज शुभम के साथ जो अपने सपनों में होते देखा था आज हकीक़त में उसका मजा लूँगी।
इसी बीच शुभम आ गया। शुभम को अन्दर बुला कर मैंने जल्दी से बाहर वाले दरवाज़े को लॉक कर लिया। मैंने उस समय आसमानी रंग की स्कर्ट और सफ़ेद रंग का टोप पहना हुआ था। शुभम ने मुझे वहीं से अपनी बाहों में उठा लिया और बेडरूम में ले गया। वो कुछ ज्यादा ही जल्दी में लग रहा था।
मैंने उसे कहा: माँ ने 3-4 घंटे बाद वापिस आना है। पहले कुछ खा-पी तो लो!
लेकिन वो कहने लगा: एक शिफ़्ट हो जाये, उसके बाद देखेंगे खाना पीना!
कुछ ही पलों में मैं सिर्फ़ ब्रा और पेंटी में थी। मैं भी आपा खो चुकी थी। मैंने जल्दी से शुभम की टी-शर्ट उतार दी और उसकी पैंट की जिप खोलने लगी। उसने मेरी ब्रा का हुक खोल दिया, और मेरे बूब्स को बाहर निकाल के चूसने शुरु कर दिये। मैंने भी शुभम का लण्ड बाहर निकाल के उसको हाथों से सहलाना शुरु कर दिया।
अब शुभम के हाथ भी चल रहे थे। वो मुँह से मेरे बूब्स को चूस रहा था, और हाथों से मेरी पेंटी उतार रहा था। मैं शुभम के सामने बिल्कुल नंगी थी। शुभम मेरे बूब्स चूसता हुआ अपनी एक उंगली को धीरे-धीरे मेरी चूत में घुसाने की कोशिश कर रहा था। उसकी इस कोशिश की वजह से मैं आपे से बाहर हो गई, और शुभम को अपना लण्ड मेरी चूत में डालने को कहने लगी।
शुभम ने भी मौके की नजाकत को समझा, और मुझे बेड पे पीठ के बल लेट जाने को बोला। मैंने वैसा ही किया। अब शुभम मेरी दोनों टांगों के बीच में था।
उसने कहा: अपनी दोनों टांगों को फ़ैलाओ!
मैंने वैसा ही किया। फिर शुभम ने मेरी टांगों को उठा के अपने कन्धों पर रख लिया, और धीरे से अपना लण्ड मेरी चूत पे रख दिया। यह मेरी और शुभम दोनों की ही पहली चुदाई थी।
शुभम ने अपना लण्ड मेरी चूत पे रख के दबाव बढ़ाना शुरु किया। लण्ड थोड़ा सा अन्दर गया, और फ़िसल कर बाहर आ गया। इस तरह एक दो बार हुआ तो शुभम खुद पे कन्ट्रोल नहीं कर पाया और इतने में ही स्खलित हो गया।
इतने में दरवाजे पर आहट हुई और कोई अन्दर आया। हम दोनों के होश उड़ गये। वो और कोई नहीं अनिकेत भईया थे। शुभम उठ कर भागने लगा तो भईया ने उसको पकड़ लिया। हमने भईया से बहुत मिन्नतें की, लेकिन भईया ने शुभम को उसी बेडरूम में बन्द कर दिया, और मुझे खींच कर दूसरे कमरे में ले गये।
मैंने सोचा कैसी मुसीबत में फस गये? किया भी कुछ नहीं और पकड़े भी गये! लेकिन भईया का मूड कुछ और ही था। या फ़िर मेरा नंगा जिस्म देख के उनके होश उड़ गये थे।
उन्होंने मुझे सीधा ही बोल दिया: अगर तुम बदनामी और अपनी माँ से बचना चाहती हो, तो तुम्हें मुझसे चुदना होगा।
मेरे पास और कोई चारा भी नहीं था, और वैसे भी मैं अभी चुदी कहाँ थी। लण्ड का स्वाद चखने से पहले ही मैं पकड़ी गई थी। तो मैं अनिकेत भईया की बात मान गई। लेकिन मैंने अनिकेत भईया को पहले शुभम को छोड़ने के लिये बोला। पर भईया मान नहीं रहे थे, तो मैं उनसे मिन्नते करने लगी, कि प्लीज़ वो शुभम को जाने दे।
मैंने उन से कहा, कि अगर वो शुभम को जाने देंगे, तभी मैं उन से चुदवाऊंगी। तब भईया मान गए। फिर उन्होंने बेडरूम का दरवाजा खोला। मैं जल्दी से अंदर गई और अपने कपड़े पहन लिए। शुभम भी अपने कपड़े पहन के ही बैठा था।
मैं शुभम से बोली कि जितनी जल्दी हो सके वो यहाँ से चला जाये। वो भी देरी ना करते हुए जल्दी से चला गया। शुभम के जाने के बाद मैं झट से किचन में गई, और अनिकेत भईया के लिये फ़्रिज से कोल्ड-ड्रिन्क ले आई।
भईया ने एक दो घून्ट ही कोल्ड-ड्रिन्क पी, और मुझे बेडरूम में आने का इशारा करके मेरे आगे-आगे चल पड़े। बेडरूम में पहुँचते ही उन्होंने मुझे अपनी बाहों में उठा कर बेड पे लिटा दिया।
भईया ने जल्दी से बिना वक्त गंवाए मेरे कपड़े उतारने शुरु कर दिये। देखते ही देखते एक मिनट से भी पहले मैं भईया के सामने नग्न लेटी हुई थी।
अब भईया मेरे सामने खुद के भी कपड़े निकालने लगे। अब भईया सिर्फ़ अन्डरवियर में मेरे सामने खड़े थे। अन्डरवियर में से उनका लण्ड थोड़ा उभरा हुआ सा नजर आ रहा था।
लेकिन भईया ने अपना अन्डरवियर भी निकाल दिया, और हम दोनों अब निर्वस्त्र थे। भईया का लण्ड देख के मेरे तो होश ही उड़ गये। अनिकेत भईया का लण्ड मेरे अनुमान से बहुत ज्यादा बड़ा था।
भईया ने कहा: तुम सिर्फ़ मेरी वजह से चुदना चाहती हो, या मजा लेना चाहती हो?
मैंने बेझिझक बोल दिया: मैं मजा लेना चाहती हूँ।
तो भईया की आँखों में अजीब सी खुशी नजर आई मुझे। मैं बेड पर बैठी थी, और अनिकेत भईया मेरे सामने खड़े थे।
उन्होंने कहा: मेरा लण्ड अपने मुँह में ले लो, और इसको लॉलीपॉप की तरह चूसो!
मैं वैसा ही करने लगी। तीन-चार मिनट तक यूँ ही मैं उनका लण्ड चूसती रही। अनिकेत भईया का लगभग आठ इंच का लण्ड अपने पूरे आकार में तन गया था। जिससे मुझे लण्ड को पूरा मुँह में लेने में परेशानी हो रही थी। तभी भईया ने अपना लण्ड मेरे मुँह में से बाहर निकाल लिया।
अब भईया ने मेरे बूब्स को अपने हाथों में संभाल लिया। वे उन्हें बड़े प्यार से सहलाने लगे। वह कभी मेरे स्तनों को तो कभी गहरे गुलाबी रंग के चूचों को चुटकियों से मसल रहे थे। मुझे इस सब में बहुत मजा आ रहा था।
भईया ने बूब्स चूसते-चूसते अपनी एक उंगली को धीरे-धीरे मेरी चूत में घुसा दिया।
मैं अब आपा खो चुकी थी। अनिकेत भईया अब अपनी जीभ से मेरी चूत चाटने लगे थे। मेरे शरीर में बिजलियाँ दौड़ने लगी थी।
फिर मैं कामुक स्वर में बोली: अनिकेत! अब देर मत करो प्लीज़।
इतना सुनते ही भईया ने मेरी चूत में ढेर सारा थूक लगाया, और अपने मोटे लण्ड के मुँह को मेरी चूत के मुँह पर रख कर धक्का मारा। मुझे बहुत दर्द महसूस हुआ, लेकिन कुंवारी चूत होने के कारण अनिकेत का लण्ड भी शुभम की तरह फिसल जाने के कारण ज्यादा दर्द नहीं सहना पड़ा।
पर अनिकेत भईया तो पक्के शिकारी थे। उन्होंने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए, और अपने हाथों से मेरी जाँघों को थोड़ा और फ़ैला दिया, और लिंग-मुंड को फिर से फंसा कर दोबारा कोशिश करने लगे। भईया ने इस बार हल्का सा धक्का दिया, और लिंग-मुंड मेरी चूत को लगभग फाड़ते हुए अन्दर घुस गया। दर्द के मारे मेरी चीख निकल गई।
मैं: आ ई ई ई ऊई मां मर गई मैं तो, प्लीज, निकालो इसे।
मैं इतना ही कह पाई थी, कि अनिकेत ने थोड़ा पीछे हट कर एक धक्का और मारा!
मैं बुरी तरह चीखी: उफ… आई… मां प्लीज…भईया प्लीज ओह…
और दर्द के मारे मैं आगे कुछ नहीं कह पाई, और अपने सिर को बेड से सटा लिया। मेरी आँखों में पानी आ गया था।
भैया ने कहा: बस एक दो इंच बचा है, अगर कहो तो डाल दूँ?
मैंने कहा: अब इतना दर्द नहीं है, अगर एक दो इंच ही रह गया है तो डाल दो, मैं झेल लूंगी।
लेकिन भईया झूठ बोल रहे थे। लण्ड अभी आधा बाहर ही था। भईया ने लण्ड को दो तीन इंच पीछे खींच कर एक जोर का धक्का मारा। मेरा मुँह बेड पर घिसटता हुआ सा आगे सरक गया।
मुझे लगा जैसे किसी ने कोई तेज़ तलवार मेरी चूत में घुसा दी हो। मेरी हलकी सी चीख निकली, और मेरा हाथ मेरी चूत पर पहुँच गया। मेरा हाथ चिपचिपे से द्रव्य से सन गया।
मैंने हाथ को आँखों के सामने लाकर देखा तो और डर गई। अंगुलियाँ खून से लाल थी।
मैं: उफ… मेरी चूत तो जख्मी हो गई। अब क्या होगा? उफ निकालिए इसे।
मैं रोती हुई कह रही थी: भईया मैं मर जाऊँगी।
भईया ने मेरे बूब्स मसलते हुए कहा: यह तो थोड़ी सी ब्लीडिंग योनि फटने से होती है। अब तुम्हें सिर्फ़ मजा ही मजा आएगा।
उनकी बात सच ही थी। धीरे-धीरे मेरा दर्द आनन्द में बदलने लगा था। भईया अब थोड़ा जल्दी-जल्दी अपने लंबे लण्ड को अन्दर-बाहर करने लगे। मैं बुरी तरह कांपने लगी थी। मेरे मुँह से कामुक आवाजें फ़ूट रही थी। अब मुझे बहुत मजा आने लगा था।
मैंने कहा: भईया! ज़रा जोर-जोर से कीजिये! उफ…उफ… ! (मैं टूटे शब्दों में बोली)
भईया ने रफ़्तार बढ़ा दी। मेरी सिसकारियाँ और भी कामुक हो गई। वो जैसे निर्दयी हो गए थे। फ़च-फ़च की आवाज़ सारे कमरे में गूँज रही थी, उत्तेजना में मैंने भईया की पीठ को नोचना शुरु कर दिया था। उसने मेरे स्तनों को और मेरे लबों को चूसना शुरु कर दिया।
मैं हुच.. हुच.. की आवाजों के साथ बिस्तर पर रगड़ खा रही थी। अनिकेत भईया अपने पूरे जोश में थे। वह मेरे बूब्स को सहलाते तो कभी मेरे चूचक को मसलते हुए आगे पीछे हो रहे थे।
अब उनकी गति में और तेजी आ गई।
मैं दांतों तले होंठों को दबाये उनके लिंग द्वारा प्राप्त आनन्द के सागर में हिलोरें ले रही थी। अब भईया चित्त लेट गए और मुझे अपने लण्ड पर बिठा लिया। मैं स्वयं ऊपर-नीचे होने लगी।
अचानक भईया का तेवर बदला और उन्होंने बैठ कर मुझे फिर पीठ के बल लिटा दिया और मेरी चूत में अपना लण्ड डाल कर जोर-जोर से धक्के मारने लगे।
मैं अपने चरम पर आ चुकी थी। अचानक उन्होंने अपना लिंग मेरी योनि से निकाल लिया, और मेरे मुँह में डाल कर जोर-जोर से धक्के मारे और फिर मेरे सर को थाम कर ढेर से होते चले गए। वह मेरे मुख में ही झड़ गए।
मैंने उनके लिंग को छोड़ा नहीं बल्कि उसे चूस-चूस कर दोबारा उत्तेजित करने लगी। अनिकेत भईया ने मेरे बूब्स से खेलना शुरू कर दिया और बोले-
अनिकेत भईया: क्यों? कैसा रहा?
मैं: बहुत मजा आया भईया! लेकिन मेरी चूत तो जैसे सुन्न हो गई है (मैंने उनकी पीठ को सहलाते हुए कहा)।
अनिकेत भईया: यह सुन्नपन तो ख़त्म हो जायेगा थोड़ी देर में। पहली बार में तो थोड़ा कष्ट उठाना ही पड़ता है। अब तुम अगली बार देखना इतनी परेशानी नहीं होगी, बल्कि सिर्फ मजा आएगा (भईया ने मेरे स्तन को चूसते हुए कहा)।
मैं: उफ भईया, इन्हें आप चूसते हैं तो कैसी घंटियाँ सी बजती है मेरे शरीर में। प्लीज भईया चूसिये इन्हें ( मैं कामुक तरंग में खेलती हुई बोली)।
अनिकेत भईया: अच्छा लो!
ये कह कर अनिकेत भईया मेरे गहरे गुलाबी रंग के निप्पलों को बारी-बारी चूसने लगे। मैं आनन्दित होने लगी।
मैंने भईया से पूछा: आपने पहले किसी को चोदा है?
अनिकेत भईया: हाँ चोदा है, लेकिन इससे पहले मैंने 21 साल से कम उम्र की किसी लड़की को कभी नहीं चोदा।
उस दिन माँ के आने से पहले भैया ने मुझे एक बार और चोदा। अब यह सिलसिला लगातार चलने लगा।
तो दोस्तों ये थी मेरी आज की कहानी, जिसे लिखी तो मैं हूँ, पर एक-एक शब्द मेरी दोस्त का है। आप सभी को कैसी लगी कहानी मेल करके बताइयेगा जरूर।
ई-मेल आईडी- ro888ma@gmail.com