This story is part of the Padosan bani dulhan series
मेरी बात सुन कर टीना की साँसें फूलने लगीं। उसे महसूस हो रहा था की मैं जो कुछ कह रहा था वह सब सच था। टीना खुद जानती थी की दरअसल बात तो यह थी की उस समय का जो माहौल था उसमें सेठी साहब से कहीं ज्यादा टीना खुद उस समय की उत्तेजना और उन्माद का शिकार थी।
सेठी साहब को ज्यादा कुछ करने कीजरूरत नहीं थी। एक खूबसूरत औरत आधी नंगी उनके लण्ड से सट कर औंधी लेटी हुई थी। सेठी साहब को तो सिर्फ उसका घाघरा ही उठाना था और पैंटी को निचे करके अपना लण्ड उसकी चूत में घुसेड़ देना था।
अगर सेठी साहब ने एक क़दम और आगे बढ़ा कर टीना के सारे कपडे निकाल दिए होते और मसाज करते हुए टीना को नंगी कर अपनी बाँहों में ले लेते तो टीना उन्हें चोदने से रोक ना पाती। बल्कि एक अभिसारिका की तरह टीना सामने चलकर अपने आप को सेठी साहब को सौंप देती। सेठी साहब को टीना का नंगा बदन पाने के लिए ज्यादा कुछ संघर्ष नहीं करना पड़ता।
टीना ने कहा, “राज, अब आगे बहुत सम्हालना पडेगा। यह एक जबरदस्त अनुभव है। कभी आगे से मैं ऐसा नहीं करुँगी। आज तो वाकई में मैं खुद ही पागल हो रही थी। सेठी साहब की गरम गरम साँसें, उनके तगड़े लण्ड का मेरी गाँड़ और चूत से टकराना और कभी कभार उनका मसाज करते हुए मेरी चूँचियों को छू जाना मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। अगर आज सेठी साहब ने अपने आप पर संयम ना रखा होता और उन्माद में आ कर अगर मेरे सारे कपडे उतार दिए होते तो तुम्हारी बीबी उनको रोक ना पाती और सेठी साहब से चुद जाती।”
मैंने कहा, “बेबी, तुम इतनी चिंता क्यों करती हो? चुद जाती तो चुद जाती। तुम अगर सेठी साहब से चुद जाती तो क्या हो जाता?”
तगड़ी चुदाई के बाद थकी हुई मेरी बीबी आधी नींद में थी। टीना ने अपनी आँखें मूँदे हुए आधा सोते और आधा जागते हुए कहा, “नहीं राज, तुम जितना इजी ले रहे हो यह बात उतनी आसान नहीं है। तुम मर्द लोग सेक्स को एक खेल की तरह समझते हो। एक औरत के लिए वह मानसिक रूप से एक बड़ा मकाम है।
औरत के लिए वह एक स्वाभिमान की बात है और जिंदगी भर उसे याद दिलाया जाता है की एक बार वह फलांफलाँ से चुदवा चुकी है। खैर आज तो मैं उस दाग लगने से बच गयी पर अब आगे मुझे सम्हालना है। मुझे सेठी साहब का धन्यवाद देना पडेगा की यह जानते हुए भी की मैं बड़ी ही कमजोर स्थिति में थी, उन्होंने मेरा गलत फायदा उठाने की कोशिश नहीं की।”
मैंने कहा, “बेबी तुम्हारी बात गलत नहीं है। पर तुम इसे नकारात्मक दृष्टि से देख रही हो। अगर सेठी साहब ने तुम्हें वाकई में ही चोद दिया होता तो क्या तुम्हें ऐसा लगता है की भविष्य में वह तुम्हें इस बात को ले कर कभी बदनाम करते? या क्या मैं कभी तुम्हारा दोष निकालता की तुमने सेठी साहब से चुदवाया था?”
टीना की आँखों में तब तक गहरी नींद सवार हो रही थी। टीना ने ऊपर उठ कर मुझे होंठों पर चूमते हुए लचङती आवाज में कहा, “खैर यह तो मैं जानती हूँ की तुम दोनों में से कोई भी मेरी बदनामी नहीं करोगे।”
मैंने टीना के होँठों को चूसते हुए कहा, “तो फिर तुम सेठी साहब से चुदवाने से क्यों डरती हो? जाओ मौक़ा मिलते ही जी भर के चुदवा लो सेठी साहब के तगड़े लण्ड से। मैं तुम्हारा पति तुम्हें कहता हूँ।”
मुझे पता नहीं मेरी बात मेरी बीबी ने सुनी की नहीं क्यूंकि उसी समय टीना लुढ़क पड़ी और खर्राटे मारने लगी। शायद वह मुझे यह जताना नहीं चाहती थी की उसने वह सूना और अच्छी तरह समझ भी लिया।
उस वाकये के फ़ौरन बाद करीब एक हफ्ते तक मैं बाहर रहा। बिच में मेरी सेठी साहब से और टीना से फ़ोन पर बात होती रहती थी।उस दरम्यान मैंने महसूस किया की दोनों उस हादसे के बारे में काफी सोचने लगे थे। अब शायद मामला कुछ गंभीरता पकड़ने लगा था। मैं जब वापस आया तब मैंने महसूस किया की अब जब भी टीना और सेठी साहब मिलते तो दोनों एक दूसरे से कुछ ज्यादा ही धीर गंभीरता से बरतने लगे। वह बचपना और शरारत कुछ हद तक कम हो गयी थी। टीना जब भी सेठी साहब के सामने होती तो अपनी नजरे शर्म से निची करने लगी।
टीना का भाई अब हॉस्पिटल से घर आ चुका था। टीना का मन कर रहा था की वह उसके मायके एक बार और जाए और कुछ दिन वहाँ रहे। पर टीना बच्चे के साथ कैसे जायेगी बगैरह हम तय नहीं कर पा रहे थे। मैं छुट्टी ले नहीं सकता था। एक शाम को हम टीना के जाने के बारे में बात कर ही रहे थे की सेठी साहब हमारे घर आ पहुंचे।
जब उन्होंने सूना की टीना मायके जाना चाहती है तो उन्होंने ताली बजाते हुए कहा, “अरे भाई वाह, क्या बात है! मेरा कल जयपुर जाने का प्रोग्राम बन रहा है। मुझे कुछ ऑफिस का काम है। वहाँ मैं तीन दिन रहूंगा। टीना का घर जयपुर के नजदीक ही है। अगर टीना आना चाहती है तो मैं टीना को उसके घर छोड़ कर जयपुर चला जाऊंगा और अगर टीना तीन दिन में वापस आना चाहती है तो उसे वापस भी ले आउगा। हम यहां से जल्दी सुबह निकालेंगे और दुपहर तक टीना को उसके घर पहुंचा कर मैं जयपुर चला जाऊंगा।”
सेठी साहब की बात सुनकर टीना ख़ुशी से उछल पड़ी। फ़ौरन हमने सेठी साहब का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और दूसरे दिन सुबह पांच बजे टीना और सेठी साहब के निकलने का प्रोग्राम फाइनल हो गया। रात को जब हम सोने गए तो टीना बहुत खुश थी। बिस्तर में पहुँचते ही वह मुझसे लिपट गयी और बोली, “मेरे जाने की बड़ी ही अच्छी व्यवस्था तो हो गयी पर तुम्हें घर में अकेला छोड़ कर जाना मुझे अच्छा नहीं लग रहा है। खैर, सुषमाजी तो यहीं है, तो तुम्हारे खाने पिने बगैरह का इंतजाम तो हो ही जाएगा।”
मैंने मेरी बीबी को चिढ़ाते हुए पूछा, “यह खाने पिने के साथ बगैरह लगाने से तुम्हारा क्या मतलब है? तुम कहीं कुछ उलटपुलट तो नहीं सोच रही हो ना?”
टीना ने आँखें मटकते हुए कहा, “यह ‘बगैरह’ तो तुम पर निर्भर करता है। तुम भी अकेले, सुषमाजी भी अकेली, आगे क्या करना है वह तो तुम ही जानो। वैसे और कुछ नहीं कर पाए तो तुम इस दरम्यान सुषमाजी को कार चलाना सिखाने के लिए तो जा ही सकते हो। कार के साथ साथ अगर और कुछ भी सिखा पाए तो और भी अच्छा है।”
मेरी बीबी के तीखे ताने सुन कर मेरे पुरे जहन में आग लग गयी। मैंने पूछा, “क्या तुम मुझे चुनौती दे रही हो?”
टीना ने मेरी नजर से नजर मिलाकर कहा, “नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है। मैं जानती हूँ की आप मुझे मिस करोगे। पर देखो मैं कुछ दिन नहीं हूँ तो आपको सिर्फ यही कहना चाह रही थी की आपको कोई रोक टोक करने वाला नहीं है। बाकी आपकी जैसी मर्जी।”
बातों बातों में मेरी बीबी ने मुझे इशारा किया की मैं चाहूँ तो सुषमाजी को फाँसने की की कोशिश कर सकता हूँ। उसका रास्ता भी उसने बता दिया की मैं इस समय दरम्यान सुषमा को ड्राइविंग सिखाने के बहाने अपना मकसद साध सकता था। मुझे मेरी बीबी पर गर्व हुआ। जो उस दिन तक मुझे किसी और औरत को ताड़ने के लिए टोकती रहती थी, वह मुझे गैर औरत को फाँसने का रास्ता दिखा रही थी। टीना की बात सुन कर मुझे भी जोश आया।
मैंने कहा, “मेरी बात छोडो, सुनो मैं एक बड़ी ही जरुरी बात कह रहा हूँ। सेठी साहब तुम्हारे घर आ रहे हैं। यह देखना की उनका सही तरीके से स्वागत हो और जयपुर से तुम्हारे गाँव का रास्ता बड़ी मुश्किल से आधे से पौने घंटे का है तो उनको जयपुर में जा कर होटल में रुकने के बजाये अगर अपने घर में रखोगे तो वह सुबह निकल कर जयपुर जा कर शाम को काम निपटा कर आपके गाँव वापस आराम से आ सकते हैं। तुम्हारा घर काफी बड़ा है और कई कमरे वैसे ही खाली पड़े हैं..
एक बात और, सेठी साहब की आवभगत का जिम्मा तुम खुद उठाना ताकि सेठी साहब को कोई दिक्कत ना हो। और हाँ अगर सेठी साहब रुक जाते हैं तो उनको ऊपर वाली मंजिल के जो दो अलग कमरे हैं उनमें से एक कमरा देना जिसमें मैं ठहरा था। तुम और मुन्नू उसके साथवाले दूसरे कमरे में रुकना जिससे तुम रातमें भी अगर सेठी साहब को किसी चीज़ की जरुरत पड़े तो बिना किसी की नजर में आये सेठी साहब के कमरे में जा सकती हो। ड्राइवर को घर के आँगन में जो सर्वेंट का कमरा है उसमें रखना।”
मेरी बीबी ने मेरी और टेढ़ी नजर से देखा। वह शायद समझ गयी थी की मैं चाहता था की इस ट्रिप में वह सेठी साहब से चुदे। मुझे डर लगा की कहीं टीना मेरी बात सुन कर भड़क ना जाए। पर टीना चुप रही। शायद मेरा सुझाव टीना को अच्छा लगा। टीना ने अपने भाई का फ़ोन मिलाया और सेठी साहब के साथ आने के बारे में बताया और जो भी बात मैंने कही थी सब भाई को कही। टीना ने भाई को ऊपर के दोनों कमरे भी तैयार करवाने को कहा..
भाई यह सुन कर बड़े खुश हुए। सेठी साहब ने मुश्किल वक्त में जो बड़ी मदद की थी उसके बारे में टीना ने भाई को सब कुछ बता दिया था। भाई ने टीना और मुझे भरोसा दिलाया की वह सेठी साहब की आवभगत में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे और उनको रोकने की पूरी कोशिश करेंगे और ऊपर वाले कमरे को अच्छी तरह सजा कर रखेंगे।
उस रात को टीना ने मुझे मुझसे ऐसी चुदाई करवाई की मैं क्या कहूं? वह बार बार मेरे ऊपर चढ़ कर मुझे चोद रही थी। सबसे पहले तो टीना ने मेरा लण्ड इतनी शिद्द्त से चूसा की मैं अगर सही समय पर टीना के मुंह से मेरा लण्ड निकाल नहीं लेता तो मैं उसके मुंह में ही झड़ जाता।
फिर वह बार बार झुक कर मेरा लण्ड चूमती और बार बार यह कहना नहीं चुकती की वह मुझसे बहुत ज्यादा प्यार करती है और वह मुझे पूरी जिंदगी साथ देगी। जब मं उसको चोद रहा था तो वह बार बार अपने करारे स्तनोँ को मुझसे मसल ने के लिए कहती और उस रात करीब पूरी चुदाई के दरम्यान वह मेरे होंठों को चूमती ही रही।
मैं उसका आवेग और उसकी उत्तेजना समझ सकता था। मैंने उसे सेठी साहब का स्वागत करने का जो रास्ता दिखाया था उसके द्वारा मैंने उसे अपरोक्ष रूप से रात को बिना किसी की नजर में आये सेठी साहब के कमरे में जाने के लिए कह दिया था, क्यूंकि उनके घर के ऊपर के दोनों कमरे आपस में बाथरूम के द्वारा जुड़े हुए थे।
दोनों कमरों के बिच में एक बाथरूम था। मैंने अपनी तरफ से बीबी को इशारा कर दिया की अगर सेठी साहब उनके वहाँ रुक गए तो रात को बिना किसी को पता लगे वह दोनों एक दूसरे के कमरे में बाथरूम के रास्ते जा सकते थे।
दूसरे दिन जल्दी सुबह ही टीना सेठी साहब के साथ कार में निकलने के लिए तैयार हो गयी थी पर सेठी साहब ने आकर माफ़ी मांगते हुए कहा की उन्हें कुछ अर्जेंट काम से ऑफिस जाना पडेगा और उसके बाद दोपहर को ही वह निकल पाएंगे।
करीब दो बजे सेठी साहब ऑफिस से आये और ढाई बजे कार में टीना के मायके जाने के लिए निकल सके। मुन्ना ने जिद पकड़ी की वह आगे की सीट पर ही बैठेगा। इसके कारण आगे की सीट पर मुन्ना और ड्राइवर और पीछे टीना और सेठी साहब बैठे। दिल्ली से टीना के मायके का रास्ता करीब ६ घंटे का था।
पढ़ते रखिये.. कहानी आगे जारी रहेगी!