मैं ऑफिस से घर वापस आयी तब तक अजित कोई फ़ोन नहीं आया था। मेरा मन किया की मैं फ़ोन करूँ, पर फिर सोचा जब मैं घर वापस आ ही गयी थी तो फिर निचे उतरने में आलस आ गया।
यदि मैंने फ़ोन किया तो चूँकि बात ज्यादा लम्बी ही होगी तो फिर वह कहीं मेरे घर ही ना पहुँच जाए। मैंने सोचा छोडो अब कल बात करेंगे। शायद तनाव या गबराहट के कारण मैं समझ नहीं पा रही थी मैं क्या करूँ।
मैंने आनन फानन में खाना कुछ ज्यादा ही बनाया और डाइनिंग टेबल पर सजा कर रखा। फिर मैं नहाने चली गयी। दूसरे दिन छुट्टी होने के कारण मैं एकदम रिलैक्स्ड थी।
मैं अजित के फ़ोन का इंतजार करने लगी। इंतजार करते करते दस बज गए। मैं समझ गयी की कोई न कोई कारण वश अजित फ़ोन नहीं कर पाया। इतनी रात हो गयी, चलो अब तो अजित अपने घर चला गया होगा। और आज की मुलाक़ात कैंसिल। यह सोच कर मैंने खाना खाया।
अब तो मुझे कहीं जाना नहीं था और मैं पूरी तरह आजाद थी। सो मैं सारे कपडे निकाल कर नहाने चली गयी। बाथरूम में मैं थोड़ी देर आयने के सामने खड़ी रही और अपने नंगे बदन का मुआइना करने लगी।
मैंने देखा की शादी के इतने साल बाद भी मैं कोई भी जवान या बुड्ढे का लण्ड खड़ा कर सकती थी। मेरे दोनों चुस्त कसे हुए स्तन काफी बड़े, सख्ती से फूली हुई निप्पलोँ के निचे कोई भी मर्द को चुनौती देने के काबिल थे।
मेरी पतली कमर देखते ही बनती थी। कोकाकोला की काँच वाली बोतल के समान मेरी पतली कमर, उसके बीचो बीच नाभि और उसके निचे मेरी फैली हुई जाँघें, कूल्हे देख कर एकबार तो नामर्द का लण्ड भी मुझे चोदने के लिए तैयार हो जाए। और सबसे ज्यादा तो झाँट के बालों की बड़ी सतर्कता से छंटाई से सजी हुई, रस चुती हुई, मेरी तिकोनी खूबसूरत चूत कोई अच्छे खासे लण्ड को अपने अंदर लेने के लिए बेताब थी।
आनन फानन में मैं बाथरूम में तौलिया ले जाना भूल गयी थी। सो मैं नहा कर थोड़ी देर नंगी ही बाथरूम में खड़ी रही। मैंने बदन से पानी को गिरने दिया। फिर थोड़ा कम गीला होने के बाद बाहर आ कर अपना गीला बदन तौलिये से पोंछने के बजाय बिस्तर गीला ना हो इस लिए मैं थोड़ी देर नंगी ही पंखे के निचे खड़ी हुई।
मुझे अपने घर में अकेले में हल्का फुल्का गीला रहकर नंगी घूमना अच्छा लगता था। मैंने सीधे आधे गीले नंगे बदन पर ही अपनी नाइटी पहन ली और सोने के लिए बिस्तर के पास पहुँच ही रही थी की दरवाजे की घंटी बजी।
दरवाजे की घंटी क्या बजी, मेरे बदन में बिजली का जैसे करंट दौड़ गयी। मैं रोमांच और गुप्त भय से काँप उठी। इतनी रात गए कौन हो सकता है? कहीं अजित तो नहीं? मैंने भाग कर दरवाजा खोला और अजित को देख कर स्तब्ध हो गयी।
यह महाराज तो बिन बुलाये मेहमान की तरह आ ही गए। अब मैं क्या करती? मैंने अजित का हाथ पकड़ कर उसे जल्दी से खिंच कर अंदर बुला लिया ताकि कोई पडोसी उसे देख ना पाए की इतनी रात गए अजित मेरे दरवाजे पर क्यों खड़ा था।
मैंने उसे “हाय” कह कर सीधा ही पूछा, “आप कैसे घर में आ गए? मुझे कोई फ़ोन तक किया नहीं?”
अजित ने चारों और देख कर कहा, ” प्रिया, आज मैं में ऑफिस में ही काम में ज्यादा व्यस्त था। इस लिए फ़ोन भी नहीं कर पाया और लेट भी हो गया। आई एम् वैरी सॉरी।” उसकी आवाज में दर्द सा था।
मुझे ऐसा लगा की कुछ तो गड़बड़ थी। मुझे ऐसा लगा जैसे वह गाँव जाकर ख़ुश होने की बजाय मायूस सा लग रहा था।
मैंने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, “चलो ठीक है। कुछ खाना खाये हो?”
अजित ने कहा उसने खाना नहीं खाया था। मैंने फ़टाफ़ट खाना प्लेट में रख दिया और मैं एक कुर्सी खिंच कर उस पर अपने कूल्हे और दोनों पॉंव मोड़ कर उस पर टिका कर आधे पैर बैठ गयी और बड़े ध्यान से अजित को खाना खाते उसकी और देखने लगी।
अजित ने मुझे ऐसी बैठे हुए देखा तो ऊपर से निचे तक मेरे आधे गीले बदन को ताकता ही रह गया। शायद मेरा पूरा बदन उस पतले गाउन में साफ़ दिख रहा होगा।
मैंने अपनी नजर नीची कर के अपने बदन की और देखा तो पाया की बिना ब्लाउज और ब्रा के मेरे गोल गुम्बज समान अल्लड़ और उद्दंड स्तन साफ़ दिखाई पड़ रहे थे। मेरी फूली हुई निप्पलेँ मेरे मन के हाल की चुगली खा रही होंगीं।
शायद मेरे दोनों पॉंव के बिच बालों में घिरी हुई मेरी चूत की धुंधली झलक उसे नजर आ रही होगी। उसे मेरे चूतड़ भी दिख रहे होंगे। उसकी कामुकता भरी नजर देख कर मेरे पुरे बदन में जैसे एक बिजली का करंट दौड़ गया।
मैं आनन फानन कपड़े नहीं बदलने और कोई चुन्नी बदन के ऊपर नहीं डालने के लिए अपने आप को कोस रही थी। जब मैंने गला साफ़ करने के बहाने उसे सावधान किया तो उसने अपनी नजरें फेर लीं।
मैंने अजित से पूछा, “तुम तो बीबी से मिलकर मौज मना कर आये होंगे। उसके साथ मस्ती की यादों में खोये हुए होंगे, इसी लिए तुमने इतने दिन मुझे फ़ोन तक नहीं किया। पर तुम इतनी जल्दी वापस कैसे आ गये? तुमने तो कहा था तुम बारह दिन के लिए जाओगे। अभी तो चार दिन ही दिन हुए हैं। और तुम्हारा मैसेज क्या था? मैं कुछ समझ नहीं पायी।” मैंने एक साथ सवालों की झड़ी लगा दी।
उसके साथ ही साथ मुझे अपनी मानसिकता पर भी आश्चर्य हुआ। एक तरफ मैं नहीं चाहती थी की मैं अजित को कोई हमारे शारीरिक सम्बन्ध के बारे में गलत फहमी में रखूं और वह मेरी और सेक्स की नजर से देखे। दूसरी तरफ मैं बार बार उसे ऐसे सवाल पूछ रही थी की बरबस ही उसके मन में यही ख़याल आएगा की मैं जरूर उसको उकसा रही थी।
अजित ने मेरे सवालों का कोई सीधा जवाब नहीं दिया। अजित ने खाना खाया और मैंने उसे एक कटोरे में ही निम्बू डाल कर हाथ साफ़ करवा दिए।
मैंने अजित का हाथ पकड़ा और पूछा, “अजित क्या बात है? तुम कुछ मायूस लग रहे हो।” अजित चुप था। वह मेरी और सुनी नज़रों से देखने लगा।
मुझे लगा की हो ना हो कुछ गंभीर बात है। मैंने उसकी आँखों में अपनी आँखें मिलाकर पूछा की क्या बात थी? तो उसने कहा, “कुछ नहीं बस वैसे ही।” पर यह कहते कहते उसकी आँखें झलझला उठीं।
मुझे उसकी आवाज में भारीपन लगा। ऐसा लगा की जैसे उसका गला रुंध गया था। जब मैंने बार बार पूछा की, “अजित क्या बात है, तुम कुछ बोलते क्यों नहीं हो?” तब अजित अपने आँसू रोक नहीं पाया। उसकी आँखों में से जैसे गंगा जमुना बहने लगी। मैं स्तब्ध हो गयी। इतना बड़ा हट्टाकट्टा पुरुष एक औरत के सामने क्यों रो रहा था?
मैंने एकदम शान्ति से और बड़ी संवेदना के साथ उसे पूछा, “अजित सच बताओ, बात क्या है? तुम्हारे माँ बाप ठीक तो हैं? पत्नी तो ठीक है?” पहले तो उसने कहा, “सब ठीक हैं। कोई ख़ास बात नहीं है।” पर मैं समझ गयी की कुछ ना कुछ बात तो जरूर है।
काफी समझाने के बाद और आग्रह करने के बाद उसने कहा, “प्रिया, मैं बहुत गुस्से में हूँ और दुखी भी हूँ। मैं हर औरत की इज्जत करता हूँ। पर यह साली राँड़ ने मुझे क्या सिला दिया? बात मेरी पत्नी की है। उसने मेरा भरोसा तोड़ दिया।”
जब मैंने इतना सूना तो मुझे लगा जैसे मेरे ऊपर कोई पहाड़ टूट पड़ा था। मैं एकदम स्तब्ध हो गयी। एक साथ दो हादसे? अरे इस इंसान पर भी वही कहर टूट पड़ा जो मुझ पर टुटा था?
अजित की समझ में नहीं आ रहा था की वह क्या कहे और क्या ना कहे। मैं समझ गयी की जो वह अब कहने जा रहा था वह इतना दिल देहलाना वाला होगा की उसे ना तो मैं ना तो वह आसानी से बर्दाश्त कर पाएंगे।
मैंने अजित का हाथ मेरे हाथों में लिया और बोली, “अजित तुम मुझे खुल कर अपनी सारी बातें कहो, ताकि तुम्हारा बोझ हल्का हो जाए। फिर मैं भी तुमसे मेरी कहानी कहने वाली हूँ जो शायद तुम्हारी कहानी से काफी मिलती जुलती है।” मेरी बात सुनकर अजित अचंभित सा मुझे देखता ही रह गया।
फिर अजित ने धीरे से कहा, “प्रिया, मैं जो कहने जा रहा हूँ वह बड़ी दर्दनाक कहानी है। मैं अगर उत्तेजना में कुछ अपशब्द बोल जाऊं तो प्लीज माफ़ कर देना।”
मैंने बिना कुछ कहे मेरा सर हिलाकर इशारा किया की मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी।
अजित ने कहा, “मेरी बीबी का नाम पूजा है। मैं पूजा को सरप्राइज देना चाहता था। इस लिए मैंने उसे बताया नहीं की मैं आ रहा था। घर पहुँचने वाली ट्रैन काफी लेट थी। दो दिन का सफर पूरा करने के बाद मैं घर देर से रात को करीब बारह बजे पहुंचा…
मेरे पास घर की चाभीयाँ थी, तो मैं ने बाहर का दरवाजा खोला। मेरे माँ बाप सो गए थे। जैसे ही मैं अपने बैडरूम के दरवाजे के पास पहुंचा की उसको अंदर से पूजा की हँसने की आवाज सुनाई दी। उसके फ़ौरन बाद किसी मर्द की आवाज सुनाई दी। मुझे लगा की जैसे पूजा किसी मर्द के साथ हँस हँस के बात कर रही थी…
आधी रात को बैडरूम का दरवाजा बंद करके पूजा किसी और मर्द से क्या बात कर रही होगी? यह सोच कर मेरा माथा ठनक गया। मैं जैसे धरती में गड गया हो ऐसा मुझे महसूस हुआ. फिर मैंने सोचा की शायद मुझे कोई गलफहमी हो सकती है। तो मैंने धीरे से बैडरूम के दरवाजे में अपनी चाभी लगाई और उसे इतने धीरे से खोला की अंदर उसकी आवाज ना सुनाई दे।
हमारा बैडरूम काफी बड़ा है और दरवाजे के बाद एक छोटा सा पैसेज है। बैडरूम के अंदर से कोई देख नहीं सकता की दरवाजा खुला है या बंद। पैसेज में एक पर्दा लगा हुआ था। परदे के पीछे छिप कर अंदर का नजारा देख कर मेरी की आँखें चौंधियाँ गयीं और पाँव तले से जैसे जमीन खिसक गयी…
मेरा छोटा भाई और मेरी बीबी दोनों बिस्तर में एकदम नंगे लेटे हुए थे और मेरा भाई अपनी भाभी के मम्मों को चूस रहा था। पूजा मेरे भाई के लण्ड को सेहला रही थी और दोनों आपस में कुछ बातें कर रहे थे।“
अजित की आँखें यह कहते हुई भर आयीं। उसने मेरे कंधे पर सर रखा और थोड़ी देर तक चुप रहा। उस ने कहा, “मेरा मन किया की मैं उस मेरी बीबी राँड़ को वहीँ गोली दाग कर मार डालूं। या कम से कम जोर से चिल्लाऊं और उन दोनों को डाँटू…
मैं अपने भाई से क्या कहूं? मेरा भाई बड़ा सीधा सदा है। वह ऐसा कुछ कर नहीं सकता सिवाय के उसे उकसाया ना जाये। इसमें जरूर वह राँड़ की ही करतूत है। मेरी बीबी इतनी खूबसूरत है और कहीं ना कहीं मेरे भाई को उसने जरूर अपने जाल में लपेटा होगा…
पर मैं यह सब देख कर अंदर से मर गया था। मुझे अब दुनिया में कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। मैं किसको क्या कहूं? एक मेरा सगा भाई था और दूसरी मेरी बीबी। मुझे तब समझ में आया की शायद इनका चक्कर मेरी शादी से पहले से ही चल रहा होगा। क्यूंकि शादी से पहले ही मेरी बीबी घर में मेरे माँ बाप के साथ रहने के लिए राजी हो गयी थी।“
अजित जैसे वह सारा दृश्य अपनी आँखों के सामने देख रहा था। उसने कहा, “अँधेरे में उन दोनों ने मुझे नहीं देखा था। मैं वापस घुमा और दरवाजा वैसे ही धीरे से बंद करके उलटे पॉंव स्टेशन पर जा पहुंचा। वहाँ से सीधा वापस आ गया। मैं हैरान था उस औरत पर जिसने मुझे इतना बड़ा धोका दिया था। उस वेश्या को, उस कुलटा को मेरे भाई के साथ ही यदि रंगरेलियां ही करनी थी तो साली कुतिया ने मुझे शादी से पहले क्यों नहीं बताया? मैं उससे शादी नहीं करता…
मेरा बहुत मन किया की मैं अपनी बीबी को इतनी सारी गालियां दूँ की वह आगे से कभी ऐसा करने का सोचे नहीं। पर मैं अपना मन मसोस कर वापस आने के दो दिनों तक अपने कमरे में ही पड़ा रहा। मैंने छुट्टियां ले रखीं थीं। तो मुझे ऑफिस जाने की जल्दी नहीं थी…
फिर मैंने तय किया की मैं अपनी जिंदगी वैसे ही जारी रखूंगा जैसे पहले थी और फिर आराम से सोचूंगा की मुझे क्या करना है। आज मैं ऑफिस गया और पहले की तरह काम में जुट गया। और इसी कारण देर हुई और फ़ोन भी नहीं कर पाया। पर मेरे मन में जो आग लगी है उसका क्या करूँ? “