एक दिन मैं जैसे ही मेट्रो स्टेशन पहुंची और टिकट चेकिंग मशीन की कतार में खड़ी हुई और मैंने कार्ड निकालने के लिए अपना पर्स खोला तो मुझे ध्यान आया की मैं अपना मेट्रो कार्ड घर पर छोड़ आयी थी।
नया कार्ड बनवाना मतलब पैसे दुबारा भरना। कॅश की कतार लम्बी थी। मैं उलझन में इधर उधर देख रही थी की पीछे कतार में खड़े एक लम्बे पुरुष ने मेरी और देखा। वह थोड़ा मुस्कुराया और उसने पूछा, “क्या आप अपना कार्ड घर भूल आयी हैं?”
मैंने अपना सर हिला कर हामी भरी और कहा की सुबह नाश्ता करते हुए जल्दी में मैं कार्ड घर में टेबल पर ही छोड़ कर आ गयी थी। फ़ौरन उन्होंने अपना कार्ड निकाला और मेरे हाथों में थमा दिया और कहा, “इसे ले लो और चलो।”
मैंने जब कुछ देर झिझक कर उसकी और देखा तो बोला, ” मेरी चिंता मत करो। मेरे पास दुसरा कार्ड है। मैं हमेशा दो कार्ड रखता हूँ। जब कभी एक में पैसे कम पड़ जाएँ तो मैं दुसरा कार्ड इस्तेमाल करता हूँ।”
पीछे लम्बी कतार थी और लोग “आगे बढ़ो, जल्दी करो, जल्दी करो।” कह रहे थे। ज्यादा सोच ने का समय नहीं था।
मैंने “थैंक यू, पर मैं इसके पैसे जरूर चुकाऊँगी।” यह कह कर उसके कार्ड का इस्तेमाल किया और फिर हम दोनों साथ साथ में ही मेट्रो में सवार हुए।
उस दिन से सुबह मैं जब भी घर से निकलती थी, वह सामने सड़क इंतजार करते हुए खड़े होते थे और हम दोनों साथ साथ में मेट्रो में सवार होते थे।
धीरे धीरे मुझे पता चला की वह मुझसे करीब छे साल बड़े थे। वह मेरे मेट्रो स्टेशन से तीन स्टेशन आगे कोई कंपनी में काम करते थे। उन का नाम अजित था।
अजित सुशिक्षित होते हुए भी हमारी नार्मल सोसाइटी से कुछ अलग से ही थे। वह गाँव में ही बड़े हुए थे और अपनी महेनत से और लगन से पढ़े और जिंदगी की चुनौतियोँ को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते गए।
परन्तु उनमें से जो गाँव की मिटटी के संस्कार थे वह बरकरार रहे। उनकी भाषा में गाँव की सरलता, सच्चाई और कुछ खुरदरापन था। मुझे वह आकर्षक लगा।
एक दिन जब हम साथ में मेट्रो में बैठे तो मैंने अजित से मजाक में पूछा की क्या उनकी कोई गर्ल फ्रेंड भी है?
तब अजित ने मेरी और टेढ़ी नजरों से देखा। मुझे ऐसा लगा की शायद मुझे वह सवाल अजित से नहीं पूछना चाहिए था; क्यूंकि कहीं ना कहीं मैंने उसके दिमाग में यह बात डाल दी की मैं उनकी गर्ल फ्रेंड बनना चाहती थी। मेरी वह पहली भूल थी।
अजित ने मुझे बताया की वह शादी शुदा है। उसकी बीबी गाँव में उसके माता पिता के साथ रहती थी। कई महीनों तक अपनी बीबी से मिल नहीं पाता था। उसकी उम्र करीब 38 साल की रही होगी। मेरी उम्र उस समय 31 साल की थी।
बात बात में अजित ने मुझे यह भी इशारा कर दिया की वह सेक्स की कमी महसूस कर रहा वह एकदम शालीन और विनम्र स्वभाव का लगता था।
अक्सर मेरा शाम को वापस लौटने का कोई समय नहीं था। कभी तो मैं ऑफिस समय पर ही वापस आ जाती थी, तो कभी मुझे बड़ी देर हो जाती थी।
इस लिए शाम को मिलना तो कोई कोई बार ही होता था, पर सुबह हम जरूर साथ में मेट्रो में सफर करते थे। अजित की परिपक्वता और कुछ ग्रामीण सा कडा व्यक्तित्व मुझे आकर्षित लगा। मैंने अनुभव किया की वह भी मेरी और काफी आकर्षित था। मुझे प्रभावित करके ललचाने की फिराक में रहता था।
अगर मेट्रो में भीड़ होती तो वह हमेशा मुझे बैठने के लिए कहता और खुद खड़े रहता। अगर मौक़ा मिलता तो हम दोनों साथ साथ बैठते और इधर उधर की बातें करते रहते।
पर साथ में बैठ कर बात करते समय जब भी कोई बहाना मिलता तो वह उसकी कोहनियों से मेरे स्तन दबाना चुकता ना था। कई बार जैसे अनजाने में ही मेरे बदन को इधर उधर छू लेता था।
चूँकि वह अच्छे दोस्ती वाले स्वभाव का था इसलिए मैंने उसकी उन हरकतों को नजरअंदाज करना ही बेहतर समझा। सच बात तो यह है की उसकी इन हरकतों से अंदर ही अंदर मैं भी बड़ी उत्तेजित हो जाती थी।
मैंने उसे कई बार बड़ी ही चोरी छुपी से मेरे बदन को घूरता पाया। मर्दों की नजर से ही औरत को पता चल जाता है मर्द के मन में क्या भाव है।
जब भी मेरा ध्यान कहीं और होता था या फिर मैं दिखावा करती की मेरा ध्यान कहीं और है तो वह मेरे स्तनोँ को और मेरी कमर के घुमाव को ताकता ही रहता था।
कोई कोई बार मुझे साडी पहन कर अंग प्रदर्शन करने में बड़ा मजा आता था। जब मैं साडी पहनती तो मेरा ब्लाउज़ ऐसा होता था की मेरे उरोज कई बार निचे की और बाहर निकलते हुए दीखते और मेरी पूरी कमर नंगी दिखती।
मेरी ढूंटी, मेरे पेट के निचे नितम्बों वाला उभार और छोटी सी पहाड़ी की तरह मेरी चूत के ऊपर का टीला तक साफ़ दिखता। मैं अपनी साडी वही उभार पर बाँध रखती थी।
जब मैंने अजित को मेरे अंगों पर घूरते देखा तो एक बार मैंने ऐसे ही साडी पहनी। शायद मेरे मन में उसकी लोलुप नजर की कामना भी रही होगी।
मैंने उसकी आँखों में लोलुपता और औरत के बदन की भूख का भाव पाया जो इंगित करता था की उस के शादी शुदा होने के बावजूद अपनी पत्नी या किसी और औरत का सहवास कई महीनों से नहीं मिला था जिससे वह काफी विचलित रहता था। मेरा भी तो हाल वही था। मेरी अजित के प्रति सहानुभूति थी।
मैंने सोचा, बेचारा मेरा बदन देखकर यदि थोड़ा सकून पाता है तो ठीक है। मेरा क्या जाता है? उसकी प्यासी नजरें देखकर मुझे भी थोड़ा अच्छा लगता है की मैं शादी के सालों बाद भी मर्दों को आकर्षित कर सकती हूँ।
फिर तो मैं उसको उकसाने के लिए कई बार ऐसे ही साडी पहनकर आती और छुपकर उसकी लोलुप नज़रों का नज़ारा देखती। वह बेचारा मेरा सेक्सी बदन देखकर खुश तो होता पर तड़पता रहता और अपना मन मार कर बैठा रहता।
मैं अजित को उस समय यही आनंद दे सकती थी और वही उसे देने की कोशिश कर रही थी। अगर मेरी शादी नहीं हुई होती तो शायद मैं जरूर उसकी शारीरिक इच्छाओं को कुछ हद तक पूरा करने के बारे में सोचती।
मेरे पति के दूर रहने से मैं भी शारीरिक भूख से ऐसे ही तड़प रही थी जैसे की अजित को मैंने तड़पते हुए देखा। मेरे मन में अजित के लिए बड़ी ही टीस थी। क्या यह कुदरत का अन्याय नहीं? फिर मैंने सोचा, कुदरत मेरे साथ भी तो अन्याय कर रही है। मेरे पति भी तो मुझसे दूर हैं। तो मैं क्या करूँ?
मेरी दूसरी गलती यह हुई की मैंने एक दिन अनजाने में ही अजित से पूछा की क्या उसका मन नहीं करता की वह उसकी बीबी के साथ रहे और दाम्पत्य सुख भोगे?
मेरा कहना साफ़ था की क्या उसका उसकी बीबी को चोदने का मन नहीं करता? पर फिर मैं जब सोचने लगी तो मेरी समझ में आया की मेरा यह प्रश्न उसके दिमाग में यह बात डाल सकता है की अगर उसको अपनी पत्नी को चोदने का मौक़ा नहीं मिल रहा है तो मैं उसकी आपूर्ति कर सकती हूँ।
मेरा सवाल सुनते ही अजित के चेहरे पर मायूसी छा गयी। वह थोड़ी देर चुप रहा और बोला, “मैडम, मन तो बहुत करता है। पर क्या करूँ? मेरे माता पिता की काफी उम्र हो गयी है। वह अपने आपकी देखभाल नहीं कर सकते। मैं उनको यहाँ ला नहीं सकता। मेरी होने वाली बीबी हमारे गाँव की ही थी और हम सब उसके रिश्तेदारों को जानते थे…
मेरी बीबी से शादी तय होने के पहले ही जब बात हुई थी तब जब मैंने मेरी होने वाली बीबी से पूछा की क्या वह मेरे माता और पिता की सेवा करने के लिए उनके साथ रहने के लिए तैयार है? तो मैंने उसकी आँखों में एक चमक देखि…
वह बड़ी खुश हो कर बोली की उसको सांस ससुर के साथ रहने में कोई आपत्ति नहीं थी। वह ख़ुशी से मुझसे दूर रह कर मेरे माँ बाप की सेवा करने के लिए राजी थी। उसने यहां तक कहा की वह मेरे माँ बाप की सेवा करके अपने आपको धन्य समझेगी…
मुझे थोड़ा आश्चर्य तो हुआ पर मैं मेरी होने वाली पत्नी से खुश भी हुआ। क्यूंकि आजकल की लडकियां तो पति के साथ रहना चाहती हैं। मेरी बीबी मेरे माँ बाप की सेवा करके बड़ी खुश है। तो मुझे मैनेज करना पड़ता है। अगर आप के पास कोई उपाय है तो आप ही बताओ, मैं क्या करूँ?”
अजित के सवाल से मैं सकते में आ गयी। उसने जाने अनजाने में बिना पूछे अप्रत्यक्ष रूप से मुझे पूछ लिया की आप ही बताओ, क्या आप मेरी मदद कर सकती हो?
वैसे तो सवाल का जवाब आसान था। उसके लण्ड को एक स्त्री की चूत की चाह थी और मेरी चूत को एक पुरुष के कड़क लण्ड की। हम अगर एक दूसरे की मदद करें तो हो सकती थी। पर हमारी दूरियां हमारी मज़बूरीयाँ थी।
मैंने उसे सहमे आवाज में कहा, “अजित तुम्हारा दर्द मैं समझ सकती हूँ। हमारा दर्द एक सा है। तुम्हारी पत्नी होते हुए भी तुम्हें उससे दूर रहना पड़ता है। मेरे भी पति होते हुए भी मुझे उनका साथ नहीं मिलता।” अजित को यह एहसास दिलाना की मैं भी उसीकी तरह पीड़ित हूँ वह मेरी तीसरी गलती थी।
उन्ही दिनों एक दीन मेट्रो लाइन में कुछ गड़बड़ी के कारण मेट्रो देरी से चल रही थीं और दो ट्रैन के आने बिच का अंतर काफी ज्यादा था।
जब मैं स्टेशन पर पहुंची तो पाया की इतनी ज्यादा भीड़ जमा हो गयी थी की ऐसा लगता था की मेट्रो में दाखिल होना नामुमकिन सा लग रहा था। मैं अजित के साथ ही मेट्रो स्टेशन पर आयी थी।
भीड़ देख कर मैंने अजित से कहा, “इस भीड़ में तो दाखिल होना मुश्किल है। मेरा ऑफिस जाना बहुत जरुरी है। अगर मैं बस या टैक्सी करके जाउंगी तो बहुत समय लग जाएगा।”
तब अजित ने मुझे कहा, “तुम चिंता मत करो। मैं तुम्हें मेट्रो में ले जाऊंगा और तुम्हें सही समय पर दफ्तर पहुंचा दूंगा। यह मेरी जिम्मेवारी है।” मैंने उसकी बात सुनी और मुझे अजित पर पूरा विश्वास था।
यह कहानी अभी आगे जारी रहेगी!