आपने मेरी पिछली सहेली की चुदाई की कहानी में पढ़ा, की हम पति पत्नी दो दिन के लिए हिल स्टेशन घूमने गए. जहा उनके दोस्त डीपू अपनी बीवी पायल के साथ आये थे.
इन दो दिनों में मैंने डीपू के साथ कई बार असुरक्षित चुदाई करवाई और मेरे सर पर गर्भवती होने का भय मंडरा रहा था.
उस बात को अब एक सप्ताह हो चूका था और अभी भी मेरे संभावित पीरियड आने में दो सप्ताह बाकी थे, जो कि मेरा भविष्य तय करने वाले थे.
मैं इस बीच प्रार्थना के अलावा कुछ नहीं कर सकती थी. सासुजी अभी भी हमारे साथ ही थे और दो दिन बाद अपने घर लौटने वाले थे.
रविवार की सुबह थी, छुट्टी का वो दिन जब देर तक सोने को मिलता हैं. 9 बज चुके थे और मैंने उठने का फैसला किया. बच्चा और पति अभी भी सो रहे थे. मैंने उठ कर नित्य कर्म करके रोजमर्रा सफाई में जुट गयी.
अब बच्चा उठ चुका था, तो मैंने सबके लिए नाश्ता तैयार कर दिया. दस बज चुके थे और बाजार के कुछ काम निपटाने थे, तो मैं नहाने चली गयी. पति अभी भी सो रहे थे, देर रात तीन बजे तक मैच देख रहे थे तो उनको उठाना ठीक नहीं समझा.
वैसे भी जब से हिल स्टेशन से हम लौटे थे, वो मुझे अवॉयड कर रहे थे. शायद मेरी आँखों के सामने जिस तरह उन्होंने पायल के साथ जो कुछ किया था, उस वजह से नज़रे नहीं मिला पा रहे थे.
डीपू को तो मैं पायल के पास लाने में कामयाब हो गयी थी, पर मेरा खुद का पति मुझसे जैसे दूर हो गया था.
मैं अकेले ही बाहर जाने को तैयार हो गई. जाते हुए टीवी देख रहे सासुजी को बोल दिया कि पति उठ जाए तो बता देना नाश्ता रखा हैं खा ले, मैं दो घंटे में वापिस आ जाउंगी.
मैंने अपनी स्कूटी निकाली और बाजार की तरफ चल पड़ी. महिलाए स्वतंत्र हो तो अच्छा हैं किसी पर छोटे मोटे कामो के लिए निर्भर नहीं रहना पड़ता.
छुट्टी के दिन शायद सब लोग ज्यादा ही आलसी हो जाते हैं, सड़के लगभग खाली थी और बाजार में भी भीड़ नहीं थी.
घंटे भर में ही मैं सारे काम निपटा चुकी थी. वापिस घर निकलने के लिए फिर से स्कूटी के पास आयी, तभी ख्याल आया मैं जिस इलाके में हूँ वही पास में मेरी कॉलेज की सहेली मैना का फ्लैट हैं. महीने भर से ज्यादा हो गया था उससे मिले और बात किये.
अपना फ़ोन निकाला उसको फ़ोन करके पूछने के लिए और फिर यह सोच कर रख दिया की सीधा घर पहुंच कर ही उसको सरप्राइज देती हूँ, वो बहुत खुश हो जाएगी. मैं स्कूटी लेकर उसके घर की तरफ निकल पड़ी.
साल भर पहले की ही बात थी जब वो इस नए फ्लैट में शिफ्ट हुई थी. आये दिन उसकी ससुराल वालों से झड़प हो जाती थी, इसलिए वो अपने पति के साथ इस फ्लैट में अलग रहने आयी थी.
अब उसके फ्लैट की बिल्डिंग सामने ही नज़र आ रही थी, कि तभी अचानक से तेज बारिश शुरू हो गयी. बादल तो सुबह से ही छा रहे थे, पर अचानक तेज बारिश की उम्मीद नहीं थी.
मैं कुछ बचाव कर पाती उससे पहले ही अगले कुछ सेकंड में मैं पूरी भीग चुकी थी.
उसकी बिल्डिंग के अहाते में पहुंच कर वहां स्कूटी पार्क करते ही बारिश धीमी पढ़ गयी, जैसे सिर्फ मुझे भिगोने ही आयी थी.
मेरा सफ़ेद कुर्ता भीग कर मेरे शरीर से चिपक चूका था और अंदर से मेरा ब्रा साफ़ दिखाई दे रहा था. ऊपर से मैंने आज दुपट्टा भी नहीं डाला था, जिसका की आजकल फैशन ही नहीं हैं पर आज बड़ी जरुरत थी.
एक बार सोचा इस हालत में उसके घर कैसे जाऊ, वापिस अपने घर चली जाती हूँ. फिर सोचा इस हालत में आधा घंटा गाडी चलाना भी ठीक नहीं. मैना से उसके कपडे लेकर एक बार बदल लुंगी.
बिल्डिंग का वॉचमन अपने रजिस्टर में मेरी एंट्री करने लगा, बीच-बीच में वो मुझे घूर रहा था. क्योकि मेरे कपडे भीग कर मेरे बदन से चिपके हुए थे. मुझे उस पर बड़ा गुस्सा आया, ऐसे लोग औरतो की इज्जत नहीं करते और गलत नजरो से देखते हैं.
उसे थप्पड़ मारने की इच्छा हुई, पर अपने आप को नियंत्रित किया. मैं अब लिफ्ट की तरफ बढ़ी और दूसरे माले पर पहुंची जहा मैना का फ्लैट था. डोरबेल बजायी, घंटी पूरी बजी भी नहीं थी की दरवाज़ा खुल गया और उसकी छोटी बच्ची बाहर निकली.
मैं उससे कुछ कहती उससे पहले ही वह भाग कर सीढ़ियों से ऊपर के माले पे चली गयी, उसके हाथ में खिलोने भी थे. शायद छुट्टी के दिन अपने पड़ोस की सहेली के यहाँ जा रही थी. अब दरवाज़ा खुला था तो मैं अंदर चली गयी, दरवाज़ा बंद कर दिया.
अंदर कोई दिखाई नहीं दे रहा था. सामने रसोईघर भी खाली था. मैंने उसको आवाज़ लगाई. दूसरी आवाज़ देने ही वाली थी कि उसके पति संजीव बैडरूम से बाहर आये और मुस्करा कर अभिवादन किया. मैंने भी मुस्करा कर जवाब दिया.
मुझे इस भीगी हालत में देख कर चिंतित हुए और कहाँ “शायद बारिश बहुत जोर की हुई हैं”.
मैंने हां में सर हिला दिया. मुझे अब थोड़ी ठंड लगने लगी थी. मैंने हल्का ठिठुरते हुए पूछा “मैना कहा हैं”
उन्होंने जवाब दिया वो “घर पर नहीं हैं.” और मैं अवाक रह गयी.
काश सरप्राइज को छोड़ कर फ़ोन ही कर दिया होता आने से पहले. पर अब क्या हो सकता था, मैं फंस चुकी थी. मैंने अगला सवाल दागा, “वो कहा गई और कितने देर में आ जाएगी?”
उन्होंने कहाँ “सब इत्मीनान से बताता हूँ, पहले आप कपडे बदल लीजिये.”
मैंने ना मैं सर हिला दिया, उनसे कैसे कहु की मुझे कपडे बदलने हैं. मैं उनसे इजाजत लेकर वापिस जाने लगी तो उन्होंने मुझे रोका. “इस तरह आप बाहर ना जाये, सर्दी लग सकती हैं”.
बैडरूम की ओर इशारा करते हुए कहा कि वहाँ उस अलमारी में मैना के कपडे पड़े हैं, उनमे से कुछ पहन लू. वो मेरे कपडे ड्रायर में डाल कर सूखा लेंगे और वापिस पहनने को दे देंगे.
मैं भी यही चाहती थी पर थोड़ा हिचकिचाई. उन्होंने मुझे आश्वश्त किया की यही ठीक हैं और ज्यादा समय नहीं लगेगा. मैंने अपने सैंडल उतारे और स्टैंड पर रख दिए.
लिविंग रूम में कारपेट बिछा था. अब मैं बैडरूम की तरफ जाने लगी जहा कारपेट नहीं था. जैसे ही चिकने फर्श पर गीले पैर पड़े मैं फिसल कर बैठ गयी. मुझे बहुत शर्म आयी और तुरंत उठ कर खड़ी हो हुई.
उन्होने मुझे ध्यान से चलने के लिए कहाँ. मैं बिना पीछे मुड़े बैडरूम में प्रवेश कर गयी और तेजी से सामने रखी अलमारी की तरफ बढ़ गयी.
अलमारी खोली तो कुछ साड़ियां और सूट करीने से रखे थे, मैंने उन्हें बिगाड़ना ठीक नहीं समझा, आखिर कुछ देर के लिए ही तो पहनना था.
मैंने कोने में पड़े एक गाउन को उठा लिया. अब मैंने अपना लेगिंग और कुर्ता उतारा और एक तरफ रख दिया.
अंदर के कपडे भी भीग चुके थे तो उन्हें भी उतार दिया. एक तौलिया लेकर अपने बदन को पोंछने लगी. फिर तौलिया पास में रखी कुर्सी पे रखा, तभी मैंने थोड़ी रौशनी आते हुए महसूस की.
याद आया फिसलने के बाद शर्म के मारे जल्दबाजी में मैंने दरवाज़ा ही बंद नहीं किया था. मैंने दरवाज़े के उस ओर देखना मुनासिब नहीं समझा और आँखों के एक कोने से देखने की कोशिश की तो एक साया हिलता हुआ दिखा.
मैंने अनजान बने रहने का नाटक करने में ही भला समझा. बिना समय गवाए मैंने वो गुलाबी गाउन पहन लिया. वह बहुत नरम और मुलायम था, शायद अंदर कुछ नहीं पहने होने के कारण मुझे और भी नरम लगा.
मैं अपने गीले अंतवस्त्रों को कुर्ता लेगिंग के अंदर छुपाते हुए बाहर आयी. हॉल में वो नहीं थे, शायद मुझे आते हुआ देख कही अंदर चले गए, यह जताने के लिए की वो साया वह नहीं थे.
वह रसोई से बाहर निकले और बोले चाय चढ़ा दी हैं मुझे चाय पीकर थोड़ी राहत मिलेगी. मैं उनसे नज़रे नहीं मिला पा रही थी.
फिसलने की वजह से ज्यादा मेरे उस अनचाहे अंगप्रदशन की वजह से. मुझे वह अब बाथरूम की ओर ले गए जहां ड्रायर लगा था. और ड्रायर का ढक्कन खोल कर मुझे कपडे अंदर डालने को कहाँ.
मैंने बड़ी सावधानी बरती कि कपडे डालते वक़्त छुपाये हुए अंतवस्त्र बाहर न निकल जाये, किस्मत फूटी थी, मेरी उंगली में ब्रा का स्ट्रैप फंसा और मेरे हाथ के साथ बाहर आ गया और फर्श पर गिर गया.
मेरे हाथ कांप रहे थे. मैं झेप गयी और तुरन्त उठा कर उसे भी अंदर डाल दिया और ड्रायर का दरवाज़ा बंद कर दिया. अब उन्होंने कुछ बटन घुमा कर मशीन को सेट कर दिया.
अब हम लोग बाहर हॉल में आ गए, मैं वही सोफे पर बैठ गयी और वो रसोई में चाय लेने चले गए. मै जहां बैठी थी वहाँ से वो जगह साफ़ दिख रही थी जहां मैंने कपडे बदले थे, मैं अब और हिल गयी थी.
मैं उनकी पत्नी की सहेली हूँ, इन्हे इस तरह नहीं घूरना चाहिए था चोरी से. मन में कही न कही यह भी सोच रही थी कि शायद वो साया मेरा भ्रम हो तो अच्छा है. वो अंदर से चाय के दो कप में लेकर आ गए.
एक के बाद एक होती इन गलतियों की वजह से मैं अब भी नजरे नहीं मिला पा रही थी. मैंने चाय की चुस्किया ली और मुझे बहुत आराम मिला. मैंने नीची नजरो से ही उनसे पूछा “आप मैना के बारे में बता रहे थे”.
उन्होंने अब अपनी कहानी बतानी शुरू की जिसे सुन कर मुझे सदमा लगा. मैना महीने भर पहले ही उनको छोड़ कर अलग रहने लगी थी.
उन्होंने बताया कि पहले मैना के मेरी माँ से झगडे होते थे तो हम अलग हो गए. मैं अपनी माँ की मदद के लिए थोड़ी आर्थिक सहायता देता था जो मैना को पसंद नहीं था. मेरी माँ की कोई आय नहीं, बड़े भाई मदद नहीं करते इसलिए मैं ही उनको रूपये देता था.
इसी वजह से मैना से आये दिन झगडे होते थे. एक दिन यह इतना बढ़ गया कि वो बच्चों को लेकर चली गयी. जाने के बाद आज पहली बार वो छोटी बच्ची को मुझसे कुछ समय के लिए मिलाने के लिए सुबह घर पर छोड़ गयी थी.
बच्ची भी शायद पापा की बजाय अपने पुराने मित्रो के साथ खेलने आयी थी. इनके प्रति मेरे मन में अभी तक जितनी भी नफरत थी वो अब सम्मान में बदल चुकी थी. मुझे उन पर तरस आने लगा था और मैना पर गुस्सा.
वो ऐसे कैसे घर छोड़ कर जा सकती हैं, इतनी छोटी बात पर. मैंने उनको सांत्वना देते हुए कहा कि मैं मैना से बात करुँगी और मनाने का प्रयास करूंगी.
उन्होंने बताया कि पिछले एक महीने में हमारे सारे रिश्तेदारों और मित्रो ने बहुत समझाने का प्रयास किया, पर वो समझने को तैयार ही नहीं हैं.
कुछ मिनट इसी तरह वह अपनी दुःख भरी दास्ताँ बताते रहे और मैं और भी द्रवित हुए जा रही थी. मैना के लौटने की शर्त यह थी कि संजीव और उनकी माँ उससे माफ़ी मांगे, जिसके लिए संजीव तैयार नहीं थे, और वो ठीक भी थे.
जब मैं इस शहर में कुछ समय पहले आयी थी, तब इन दोनों ने मेरी बहुत सहायता की थी. मैं भी उनकी कोई सहायता करना चाहती थी, पर जानती थी की मैना बहुत ज़िद्दी हैं और किसी की नहीं सुनेगी.
फिर मैं क्या मदद कर सकती थी. पत्नी विरह क्या होता हैं वो अब मैं जान चुकी थी. यह व्यक्ति इतने समय से विरह में था फिर भी मुझे उस अवस्था में देख कर मेरा फायदा उठाने का प्रयास नहीं किया.
यह बताते हुए उनका गला रूंध गया, कि मैना अब तलाक के बारे में सोच रही हैं और उनकी आँखें भर आयी. मैंने मन ही मन निश्चय किया मुझे उनके लिए कुछ करना चाहिए. क्या मुझे उन्हें कुछ समय के लिए ही सही पत्नी सुख देना चाहिए.
तुरंत मैंने अपने आप को डांट दिया. यह मैं क्या सोच रही हूँ? इनकी शादीशुदा ज़िन्दगी अच्छी नहीं चल रही, पर मेरी तो बिलकुल सही हैं. मैं क्यों अपनी अच्छी चलती ज़िन्दगी को खराब करना चाह रही हूँ.
वो अब उठे और मेरे पास पड़े टेबल से मेरा खाली कप उठाने के लिए बढे. मेरे अंदर अब दया और करुणा की देवी प्रवेश कर चुकी थी. जिसने मुझे मजबूर कर दिया और मैं भी उठ खड़ी हुई.
मुझ पर से मेरा नियंत्रण हट चूका था. मैंने तुरंत अपने दोनों हाथों से उनकी कलाइयां पकड़ ली, ओर कुछ नहीं सुझा और उनके दोनों हाथों को अपने दोनों वक्षो के ऊपर रख दिया.
मेरे अंदर एक बिजली सी दौड़ पड़ी. काफी समय के बाद उन्होंने किसी स्त्री के नाजुक अंगो को छुआ था, तो वो भी पूरा हिल चुके थे.
मैंने अंदर कुछ नहीं पहना था और वो गाउन बहुत मुलायम और पतला था. वो मेरे अंगो को बिना वस्त्रो के जितना ही महसूस कर सकते थे.
जानिए आरती की कहानी की कैसे उसने अपनी सहेली की चुदाई देखी और खुद भी चुदाई करवाना सिख गयी.
अगले कुछ पलों में उनकी उंगलिया मेरे वक्षो पर अठखेलिया कर रही थी. तुरंत दया की देवी मुझ से बाहर आ गयी. मैं अपने होश में आ चुकी थी, और सोच रही थी की यह मैंने क्या अनर्थ कर दिया.
अपने आप को पर पुरुष के हवाले कर दिया. अब मैं क्या करूँ.
अब उन्होंने मेरे वक्षो को दबाना और मलना शुरू कर दिया था. एक औरत होने के नाते मुझे कुछ आनंद तो आ रहा था साथ ही डर भी लग रहा था.
मैं अब इस मुसीबत से कैसे बच सकती हूँ. मुझे कुछ उपाय सूझता उससे पहले ही उन्होंने मुझे पलट कर सोफे पर धकेल दिया. अब मैं घुटनो और हाथों के बल सोफे पर थी. उन्होंने मेरे गाउन को नीचे से उठाते हुए कमर के ऊपर तक उठा दिया.
अब मेरे नीचे का भाग पूरा नग्न था और उनकी तरफ खुला था. मुझे अहसास हो गया था कि आज मेरी इज्जत मेरे पति के अलावा किसी और के हाथों में भी जाने वाली थी.
मुझे कुछ और नहीं सूझ रहा था. मैं स्तब्ध हो उसी हालत में बैठी रही और सोच रही थी कि अब क्या करू.
तब तक उन्होंने अपने कपडे उतार लिए थे और अपने लिंग को मेरे नितंबो के बीच रगड़ने लगे.
क्या मैं चिल्लाऊं? मगर मैंने ही तो उनके हाथों को पकड़ कर यह सब करने की शुरुआत की थी. गलती तो सारी मेरी ही थी. वो तो विश्वामित्र बन के बैठा था. मैंने ही मेनका बनके उसकी तपस्या भंग की थी.
मेनका की तरह अब मुझे भी एक श्राप तो भुगतना ही था. ऐसा श्राप जो एक शादीशुदा औरत नहीं झेलना चाहेगी. मैं अपनी मूर्खता और किस्मत को कोसने के अलावा अब कुछ और नहीं कर सकती थी.
मैं अब तक सुन्न हो चुकी थी. अभी भी शायद कुछ नहीं बिगड़ा था. मैं कुछ हरकत करती उससे पहले ही वो मेरे पीछे आ चुके थे और अपना लंड मेरी चूत में घुसा दिया. उनके मुँह से एक जोर की आह निकली.
भीग कर ठंड लगने की वजह से अब तक जो शरीर में कपकपी हो रही थी. अचानक अपनी चूत में उस गरमा गरम लंड के जाते ही मेरे शरीर में दौड़ता लहू गरम हो गया.
मेरी तो साँसे ही थम गयी उन कुछ सेकण्ड्स के लिए और मेरे मुँह से सिर्फ एक गहरी आहह्ह्ह निकली.
शायद काफी समय से यह सुख नहीं मिलने पर पुरुषो का यही हाल होता होगा. अब मुझे मेरे प्रतिरोध करने का कोई फायदा नजर नहीं आया. मैं अब सब कुछ लुटा चुकी थी. अब वह आगे पीछे होकर गति करने लगे धीरे धीरे यह गति बढ़ती जा रही थी.
वो प्रेमानंद में डूबते जा रहे थे और सिसकिया निकाले जा रहे थे. मैं इस बीच अपने पति के बारे में सोच रही थी. मेरी एक छोटी सी गलती की वजह से अब मैं उनको मुँह नहीं दिखा पाऊँगी.
अब पछताये हो तो क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत. मैंने अब बाकी सब बातों के बारे में सोचना बंद कर दिया और सकारात्मक सोचने लगी.
मेरे इस कदम से मैंने एक पुरुष को जैसे नया जीवन दिया, एक तड़पते पुरुष को वो ख़ुशी दी जो वो ज़िन्दगी भर याद रखेगा.
आखिर औरत होती भी त्याग की मूर्ति हैं. मैंने अपनी आबरू का त्याग कर किसी की खुशिया खरीदी थी. वह लगातार मुझे पीछे से धक्का मारते हुए चोदने का आनंद लिए जा रहे थे, उनकी आहें और सिसकिया सुनकर मुझे अच्छा लग रहा था. जैसे कोई पुण्य कर दिया हो.
अब आखिर मैं भी कब तक अपने शरीर को रोकती. कुछ ही समय में मेरा सब्र भी टूट गया और मेरी भी आहें निकलनी लगी. उससे उनका जोश भी बढ़ गया तथा ओर भी लगन से अपना कार्य करने लगे.
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और वो रुक गए.
बाहर से उनकी बच्ची की आवाज आ रही थी. उन्होंने अपना लंड मेरी चूत से बाहर निकाल दिया और खड़े हो अपना पाजामा फिर ऊपर कर लिया. मैंने भी खड़े हो अपना गाउन नीचे कर दिया.
मुझे खुश होना चाहिए था पर थोड़ा बुरा लगा कि ऐसे में मुझे अधूरा नहीं छोड़ना था. मुझे अपनीं मम्मी के गाउन में देख बच्ची क्या सोचेगी इसलिए मैं बाथरूम की तरफ चली गयी.
तो मेरी सहेली के पति पर उसकी पत्नी की सहेली की चुदाई का क्या असर होगा. आगे क्या होगा वो आपको अब से कुछ ही देर में पता चल जायेगा!