अर्जुन भी दीदी का हाथ पकड़ कर सिम्मी को घर ले आया और दीदी पर गुस्सा करने लगा। अर्जुन ने दीदी को डाँटते हुए कहा, “दीदी तुम्हें कालिया से उलझने की क्या जरुरत थी? क्या तुम जानती नहीं की कालिया एक छटा हुआ बदमाश है? कालिया तुम्हें भी चाकू मार सकता था। मैंने तुम्हें कहा नहीं, की कालिया आजकल पागल हो रहा है? देखा ना तुमने..?
पता नहीं तुम्हारे दिमाग में क्या चल रहा है? कालिया को प्यार से समझाने बुझाने के बजाय तुमने तो उसे सीधा एक करारा थप्पड़ ही मार दिया? अब पता नहीं गुस्से में वह क्या कर बैठे? उसे जेल जाने का कोई डर नहीं। वह पहले भी कई बार जेल जा चुका है…
मैं तुम्हें यह समझाने की कोशिश कर रहा था की कालिया को बुलाकर प्यार से बात करो। वह तुमसे प्यार करता है, तुम्हारी इज्जत करता है। तुम अगर उसे समझा कर प्यार से कहोगी तो वह मान जाएगा और सीधी लाइन पर आ जाएगा। आज देखा नहीं उसने तुहारे थप्पड़ मारने पर भी तुम्हें कुछ नहीं किया?’
सिम्मी ने गुस्से में अर्जुन से कहा, “तुम बेतुकी बात कर रहे हो। मेरे कहने से वह साला गुंडा मवाली मान जाएगा? तुम क्या कह रहे हो?”
अर्जुन ने कहा, “हाँ दीदी, मान जाएगा अगर तुम उसे वाकई में गुस्से से नहीं प्यार से समझाओगी तो।” सिम्मी ने इसका कोई जवाब नहीं दिया।
ऐसे ही कुछ दिन बीत गए। एक दिन अर्जुन सिम्मी के कमरे में आया जब सिम्मी कुछ पढ़ रही थी। अर्जुन ने कहा, “दीदी तुमसे कुछ बात करनी है।” सिम्मी बिना बोले पढ़ती रही तब अर्जुन बोला, “कालिया के बारे में है।”
कालिया का नाम सुनकर सिम्मी ने अर्जुन की और देखा। अर्जुन ने कहा, “कालिया ने फिर किसी को बुरी तरह से पिट दिया। बड़ी मुश्किल से चाचाजी ने उसे छुड़ाया है।”
सिम्मी ने अर्जुन की और देख कर कुछ आश्चर्य से पूछा, “पर कालिया ने क्यों पीटा उसे?”
अर्जुन ने गंभीर आवाज में कहा, “दीदी, तुम जानती नहीं क्या? आज तक कालिया की शहर में एक दादा कहो या भाई कहलो, के जैसी शाख थी। सब उससे डरते थे। बल्कि पुलिस भी उससे ज्यादा उलझती नहीं थी…
तुमने उसे जो तमाचा मारा वह बात पुरे शहर में बिजली की तरह फ़ैल गयी है। कालिया कह रहा था की वह किसीको मुंह दिखाने के लायक भी नहीं रहा। एक छोटी सी लड़की ने उसे थप्पड़ मारा और वह चुपचाप खड़ा उसका मुंह देखता रहा? यह बात सब कर रहे हैं…
वह शर्मिंदगी से मारा जा रहा है। ऊपर से तुम उसे मिलना नहीं चाहती। अब वह पुरे शहर को दिखाना चाहता है की वह किसी से डरता नहीं और जहां किसीसे कुछ कहा सुनी हो गयी तो उसे वह बुरी तरह पिट देता है। मैंने तुम्हें कहा था की तुम बात करलो, पर तुम कहाँ मेरी बात मानती? अब देखो।”
सिम्मी ने कुछ सोच कर कहा, “पर मैंने उससे मिलने से मना कहाँ किया है?”
सिम्मी की बात सुनकर अर्जुन बड़ा खुश हुआ और बोला, “क्या तुम उससे मिलोगी?”
फिर सिम्मी ने कहा, “क्यों नहीं? तुम कहते हो तो मिल लेती हूँ।”
अर्जुन ने कहा, “दीदी अगर तुमने उसे मिलने के लिए बुलाया तो वह बहुत खुश होगा। वह तुमसे माफ़ी मांगना चाहता है। अगर तुम उसे प्यार से समझाओगी तो वह जरूर मान जाएगा और शायद सुधर भी जाए। दीदी वह और कुछ नहीं बस तुम्हारा प्यार चाहता है। तुम उसे थोड़ा सा प्यार कर दोगी, थोड़ी सी उसकी बात मान जाओगी तो उसका हंगामा भी मिट जाएगा और समझो इस गाँव में बड़ी शांति हो जायेगी और उसके लिए पूरा गाँव तुम्हारा ऋणी रहेगा।”
अर्जुन को लगा की शायद वह थोड़ा ज्यादा ही बोल गया था। पर उसने सिम्मी के चेहरे के भाव देखे तो वह बड़ा खुश हुआ। सिम्मी का चेहरा गर्व से खिल उठा था।
सिम्मी ने जैसे अपनी हार स्वीकार कर ली हो ऐसे लहजे में जैसे अपनी मज़बूरी दिखाते हुए कहा, “चलो तुम इतना कहते हो तो मुझे सोचने दो। साला कालिया एकदम लम्पट है मुझे जब मिलेगा तो पता नहीं क्या कर बैठे?”
अर्जुन ने कहा, “दीदी, वैसे भी अब कालिया से तुम्हारा क्या छिपा है? वह सब कुछ तो कर चुका है। और क्या करेगा? और मैं जानता हूँ, तुम कालिया से नहीं डरने वाली। मैं तो कहता हूँ एक बार बस एक बार कालिया की बात मान लो। वैसे भी तुम्हें छे महीने में जब कॉलेज खतम हो जाएगा तो यहां से दूर जाना ही है। फिर तुम्हारी शादी भी हो जायेगी। फिर तुम कहाँ और कालिया कहाँ…
कालिया भी आज नहीं तो कल इस शहर छोड़ कर चला ही जाएगा और तुम्हारे कहने से शायद किसी अच्छी लड़की से शादी कर के अपना घर भी बसा ही लेगा। फिर तू कौन और मैं कौन? तो फिर इन चंद दिनों में अगर प्यार मोहब्बत से सब हो जाता है तो ठीक है ना?”
अर्जुन अपना पहला तीर छोड़ चुका था। उसे पता था की शायद उसकी भोलीभाली दीदी उसके झाँसे में आ जाय। पर उसे यह भी डर था की कहीं दीदी जोश में आ कर मना ही ना करदे।
अर्जुन की बात सुनकर सिम्मी गहरे सोच में पड़ गयी। उसके मन में जबरदस्त द्वन्द चल रहा था। एक तरफ उसके मन में कालिया के प्रति नफरत थी तो दुसरी तरफ कालिया से चुदवाने की सम्भावना की उत्तेजना। बिच में मरने मारने की बात भी आ गयी तो सिम्मी का दिमाग चकराने लगा।
सिम्मी को समझ में नहीं आ रहा था की वह करे तो क्या करे? सिम्मी को यह पता था की जैसे ही वह कॉलेज पढ़ाई कर घर पहुंची की उसकी शादी होनी तय है।
फिर उसे ऐसा मौक़ा नहीं मिलेगा। सिम्मी की सारी सहेलियां यही कह रहीं थीं की शादी हो गयी मतलब बस एक ही मर्द है, जैसे चाहे चोदे तुम्हें झेलना ही पडेगा। उसका लण्ड बड़ा हो या छोटा, लेना ही पडेगा।
सिम्मी को दुविधा में देख कर अर्जुन ने अपना आखिरी बाण छोड़ा।
अर्जुन ने सिम्मी से लिपटते हुए बड़े प्यार से कहा, “दीदी, जैसे ही तुम कॉलेज पास करके यहाँ से चली जाओगी तो तुम्हारी शादी पता नहीं किस से हो जायेगी। फिर यह मौक़ा नहीं मिलेगा। कालिया बेचारा तुम्हारे प्यार के लिए तड़प रहा है। जाते जाते अगर उस बन्दे का भला होता है तो तुम्हारा क्या जाता है? तुम क्यों इतना सोचती हो? मैंने जितना कहना था उतना कह दिया। अब तुम जानो और कालिया जाने। फिर मुझसे यह मत कहना की कालिया ऐसा वैसा क्यों कर रहा है।”
अर्जुन की बात सुनकर सिम्मी काँप उठी। अर्जुन ने सिम्मी की कमजोर नस पर उंगली रख दी थी। सिम्मी एक स्वतंत्र स्वभाव की अल्लड़ लड़की थी। सोच में वह आधुनिक जमाने की थी। साथ साथ पुराने संस्कारों की भी वह इज्जत करती थी। अर्जुन की बात में दम था।
यही मौक़ा था की एक ही तीर से दो शिकार हो सकते थे। वह कालिया जैसे गुंडे को सुधार भी सकती थी और साथ साथ अगर कालिया उसके साथ कुछ करता है तो फिर वह बेचारी क्या कर सकती है? यह बहाना भी वह इस्तेमाल कर सकती है।
सिम्मी ने कुछ झुंझलाहट दिखाते हुए कहा, “मैंने कालिया से मिलने के लिए ना तो नहीं कहा ना? अब इतना क्यों कह रहे हो? मुझे सोचने तो दो।”
अर्जुन ने कुछ मुस्कुरा कर कहा, “दीदी जरूर सोचो। अगर तुम चाहोगी तो कालिया की जिंदगी सुधर जायेगी और यह हम सब के लिए भी अच्छा रहेगा।”
अर्जुन मन ही मन मुस्कुराने लगा। दीदी की बात से वह वह समझ गया था की दीदी कालिया से मिलने के लिए मना नहीं करेगी। कालिया से मिलने का मतलब दीदी अब मानसिक रूप से कालिया से चुदवाने के लिए तैयार हो रही थी या यूँ कहो की शायद दीदी भी कहीं ना कहीं वह चाहती थी की कालिया उसे चोदे। वह कालिया की चुदाई के लिए शायद अधीर हो रही थी। तभी तो कालिया के बारे में वह बार बार पूछती रहती थी।
इधर, जब चाचाजी और चाचीजी ने सूना की सिम्मी ने पुरे मोहल्ले के सामने कालिया जैस गुंडे को करारा थप्पड़ रसीद कर दिया और कालिया ने चुपचाप वह थप्पड़ खा लिया, तो उनके पाँव के तले से जमीन खिसक गयी। पहले तो वह इस बात को मानने के लिए ही तैयार नहीं हुए।
ख़ास तौर से चाचीजी समझ गयी की इस बात का सिम्मी का कालिया के द्वारा किया गया बलात्कार से कोई ना कोई सम्बन्ध जरूर है। उसी दिन शामको चाचाजी जब दूकान थे तो चाचीजी ने सिम्मी को अपने कमरे में बुलाया।
कुछ देर बात करने के बाद चाचीजी ने सिम्मी का हाथ थाम कर बड़े प्यार से उस घटना के बारे में पूछा। चाचीजी ने सिम्मी को पूछा, “बेटी, सच सच बताओ की यह कालिया और तेरे बिच क्या चल रहा है? देखो मुझसे छुपाओ नहीं। मैं यह क्या सुन रही हूँ की तुमने बिच मोहल्ले में कालिया को थप्पड़ मार दिया जब की कालिया हाथ में रामपुरी चाक़ू लेकर किसी को मारने जा रहा था?”
सिम्मी चाचीजी की बात सुनकर अपने आपको रोक ना सकी और चाचीजी की बाँहों में अपना सर रख कर फफक फफक कर रोने लगी। सिम्मी के मुंह से कुछ भी शब्द निकल नहीं रहे थे। चाचीजी ने सिम्मी को कुछ देर रोने दिया।
कुछ देर बाद जब सिम्मी शांत हुई तब चाचीजी ने बड़े प्यार से सिम्मी को पूछा, “बेटा सच सच बताओ, कालिया तुम्हें फिर से परेशान कर रहा है? अगर तुम कहो तो मैं चाचाजी से बात कर के उसे जेल भिजवा दूंगी। बोलो क्या वह तुम्हें परेशान कर रहा है?”
सिम्मी ने अपनी नजरें नीची रख कर अपना सर हिला कर मना किया और बोली, “चाचीजी वह बात नहीं है। कालिया ने कुछ नहीं किया। पर जबसे मैं कालिया से दूर रहने लगी हूँ और उसे सामने आने से बचने लगी हूँ तबसे वह बड़ा हिंसक सा हो गया है। वह लोगों को मारने लग गया है। कालिया बार बार भैया से सन्देश भिजवाता है की वह मुझसे मिलना चाहता है। जब मैं मना करती हूँ, हड़का देती हूँ तो वह मुझे तो नहीं परेशान करता पर किसी ना किसी से लड़ पड़ता है। मेरी समझ में नहीं आता की मैं क्या करूँ। उस दिन भी ऐसा ही हुआ था।”
चाचीजी ने पूछा, “देखो तुम मुझे चाची मत समझो। मैं तुम्हारी बहिन जैसी हूँ। बहिन क्या हम सहेलियाँ जैसीं हैं। मैं तुमसे तीन चार साल ही बड़ी हूँ। तुम मुझसे साफ़ साफ़ सब बात कर सकती हो। क्या तुम कालिया से मिलना चाहती हो?”
चाचीजी की बात सुन सिम्मी फर्श में नजरें गाड़े हुए चुप हो गयी, उसने कोई जवाब नहीं दिया। जब चाचीजी ने दुबारा वही सवाल पूछा और सिम्मी की ठुड्डी अपने हाथ में पकड़ कर ऊपर उठाई और सिम्मी की आँखों में आँखें डाल कर देखा तो सिम्मी ने अपनी नजरें फिर निचीं कर चाचीजी से नजरें ना मिलाते हुए कहा, “चाचीजी पता नहीं।”
फिर कुछ देर तक चुप रहने के बाद सिम्मी बोली, “मैं मिल तो लुंगी, पर पता नहीं चाचीजी उसके बाद क्या हो?” चाचीजी समझ गयीं की आग दोनों और लगी है। सिम्मी भी कालिया से मिलन चाहती है। पर झिझक रही है।
चाचीजी ने एक दाँव खेला। चाचीजी ने बड़े प्यार से सिम्मी से पूछा, “सिम्मी, मुझे लगता है कालिया उतना बुरा है नहीं जितना दिखता है। वह बाहर से जितना सख्त दिखता है अंदर से शायद उतना ही नरम है। तुम क्या कहती हो?”
सिम्मी आँखें बंद कर चाचीजी का सवाल सुन रही थी। सिम्मी ने अपनी नजरें निचीं की और कुछ ना बोली। पर धीरे से अपना सर हिला कर चाचीजी को “हाँ” का इशारा कर दिया।
चाचीजी समझ गयी की कहीं ना कहीं सिम्मी के मन में ही कालिया के लिए कुछ नरम भाव है। चाचीजी मॉडर्न जमाने की थीं। कॉलेज पास कर के दो साल पहले ही शादी हुई थी। उन में भी जवानी की गर्मी थी। चाचीजी भी तो उसी दौर से गुजर रही थी। पर उन्हें अनुभव था। दुनियादारी की सूझबूझ थी। उन्होंने कालिया को भी देखा था।
कालिया जैसा हट्टाकट्टा मर्द अच्छीअच्छी औरतों के मन को पिघला ने की क्षमता रखता होगा यह वह जानती थीं। वह समझ गयीं की कालिया की चुदाई सिम्मी को राज आ गयी थी। उसमें बेचारी सिम्मी का क्या दोष? यह चाचीजी से बेहतर कौन भला जान सकता था? चाचीजी भी तो उसी हाल में थीं?
खैर चाचीजी ने सिम्मी के कान पकड़ते हुए कहा, “देखो मैं तुम्हारी उलझन समझ सकती हूँ। तुम मेरी भतीजी नहीं सहेली जैसी हो। तुम बिना डरे कालिया से मिलो। जब इतने खूंखार कालिये ने तुम्हारा चांटा सह लिया तो इसका मतलब है वह तुम्हें पसंद करता है, तुम्हारी इज्जत करता है, तुम्हें ख़ुशी देना चाहता है। वह तुम्हारा कोई नुक्सान नहीं करेगा। तुम्हारे साथ जो वह कर सकता था वह तो उसने पहले ही कर लिया है। अब और क्या कर लेगा? मानलो अगर बात आगे बढ़ भी गयी तो डरने की बात क्या है? ऐसा जवाँ मर्द और औरत के बिच तो होता रहता है। ज्यादा मत सोचो और जिंदगी को एन्जॉय करो।”
चाचीजी की बात सुन कर सिम्मी चौंक गयी और बोली, “चाचीजी आप क्या कह रही हो?”
चाचीजी ने फिर सिम्मी का हाथ थामा और उन्हें सेहलाते हुए कहा, “प्यार का जवाब हमेशा प्यार से मिलता है। मैं तुम्हारी आँखों में देख रही हूँ की तुम भी उसे पसंद करती हो उसे मिलना चाहती हो। देखो सिम्मी तुम जवाँ और वयस्क हो, समझदार हो। मेरी बात के मायने समझो…
सिम्मी, हम औरतों को अपने आप को सम्हालना है पर इसका मतलब यह बिलकुल नहीं है की हमें घुटघुट कर मरना है। हमारी भी जिन्दगी है। छह महीने में तुम यहां से चली जाओगी। फिर तुम शादी के बंधन में बँध जाओगी, जैसे मैं अभी बँधी हूँ। कभी मौक़ा मिला तो कुछ कर लिया पर और ज्यादा कुछ नहीं कर पाओगी…
फिर कौन चाचीजी और कौन कालिया। फिर तो तुम, तुम्हारा पति, बच्चे, सास, ससुर बगैरह। तुम्हारी जिंदगी ही बदल जायेगी। तुम्हारे पास छे महीने हैं। यही वक्त है आजादी की जिंदगी जिनेका। इस बार मैं तुम्हें रोकूंगी नहीं। तुम बड़ी समझदार और हिम्मतवान लड़की हो। कालिया को बुलाओ और उसे मिल बैठ कर अकेले में प्यार से समझाओ। यह ज्यादा मत सोचो की क्या होगा…
जो होगा वह तुम अब झेल सकती हो और एन्जॉय भी कर सकती हो। हम स्त्रियां चाहे तो तगड़े से तगड़े और सख्त से सख्त पुरुष को अपने स्त्रीत्व भरे प्यार से वश में कर सकतीं हैं। तुम्हें जो ठीक लगे वह बेझिझक करो। पर देखो अपने आप को सम्हालना…
और एक बात। देखो हमारा और कालिया का समाज अलग है। कालिया को प्यार से जरूर समझाओ, पर उसके प्यार में मत पड़ना। इन दोनों में बहुत फर्क है। समझी?”
फिर चाचीजी ने सिम्मी के हाथ में एक छोटा सा लिफाफा पकड़ा दिया। लिफाफा पकड़ाते हुए वह बोली, “देखो सिम्मी, मैं तुम्हारी सहेली होने के नाते तुम्हें कहती हूँ की हो सकता है इसकी जरुरत पड़े। अगर जरुरत पड़े तो इसे दूसरे दिन सुबह इस्तेमाल करने से झिझकना नहीं। देखो हम लोग सोमवार को एक रात के लिए बाहर जा रहे हैं। तब तुम चाहो तो कालिया को बुला कर उसे समझाओ और उसे सही रास्ते पर लाने की कोशिश करो तो उसमें कोई बुरी बात नहीं है। पर खबरदार, यह बात हम दोनों के बिच ही रहनी चाहिए। समझी?“
चाचीजी की बातें सुन कर सिम्मी हैरान रह गयी। चाचीजी भी वही कह रही थी जो अर्जुन कह रहा था। बात तो दोनों की सही थी। सिम्मी के गले में चाचीजी की बात सीधी उतर गयी।
सिम्मी ने हल्का सा मुस्कुरा कर अपना सर हिला कर कहा, “जी चाचीजी मैं समझ गयी। आप निश्चिन्त रहिये, चाचाजी को हमारी बात की भनक तक नहीं पड़ेगी।” यह कह कर सिम्मी ने चाचीजी को गले लगाया और अपने कमरे में वापस लौट आयी।
सिम्मी समझ गयी की चाचीजी ने बिना कुछ कहे सिम्मी को कालिया से चुदवाने की अनुमति देदी थी। चाचीजी की बात सुनकर सिम्मी के सर से एक बहुत बड़ा बोझ हल्का हो चुका था। सिम्मी के मन में चाचीजी के लिए बहुत सारा सम्मान और प्यार उमड़ रहा था।
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