जब हवस दिमाग पे हावी हो तो तरिका तौर नहीं होता,
बस लण्ड और चूत ही होती है, बाकी कुछ और नहीं होता।
लण्ड तगड़ा हो चूत हो राजी दिन रात चुदाई होती है,
फिर चूत सूजे या पाँव डुले उस पर कोई गौर नहीं होता।
बस रमेशजी के और दो या तीन धक्कों में ही आरती “ओह….. है……. उफ्फ…….. आह…… ” बोलते हुए ढह पड़ी और निढाल हो कर गहरी साँसे लेती हुई शिथिल हो गयी। रमेश ने देखा की आरती झड़ रही थी।
रमेश आरती के ऊपर ही लेटा रहा और आरती को अपनी बाँहों में समेट कर, अपना लण्ड आरतीकी चूत में ही रखते हुए रमेश आरती के होँठों पर अपने होँठ मिलाकर बड़ी ही उत्कटता से आरती के होठों को चूमने और चूसने लगा। अपने आपको सम्हालती हुई आरती भी रमेशजी की बाँहों में लिपट कर, रमेशजी का पूरा लण्ड अपनी चूत में महसूस करते हुए अपनी जीभ को रमेशजी के मुंह में देकर रमेशजी की लार का बड़े प्यार से आस्वादन करने लगी। जब रमेशजी आरती की जोभ या होंठों को जोर से चूसते तो आरती की चूत में अजीब सी झनझनाहट होती थी।
उस रात तक कभी आरती ने अपने पति अर्जुन से चुदाई में इस तरह से इतना प्यार, उत्कटता और अपनापन महसूस नहीं किया था। रमेशजी का लण्ड आरती की चूत में ऐसे घुसा हुआ था जैसे एक बड़ा अजगर कोई छोटी गुफा में अपनी विशाल काया को जबरदस्ती से सिमट कर छिपा हुआ हो।
शायद आरती के चूत की पूरी सुरंग उस समय अपनी सर्वोच्च क्षमता के अनुसार फैली हुई थी। चुम्बन के दरम्यान रमेशजी या आरती दोनों में से किसी का भी थोड़ासा भी हिलना आरती की चूत में अजीब सी उत्तेजना और आनंद की नयी बौछार पैदा करता था। जो आनंद आरती को रमेशजी के पुरे लण्ड को अपनी चूत में समाकर उस समय हो रहा था वह आरती के लिए अवर्णनीय था। इस अद्भुत आनंद और रोमांच के लिए आरती कोई भी दर्द सहने के लिए तैयार थी।
आरती को अब चुदाई के दर्द से कोई डर या शिकायत नहीं थी। आरती खुद रमेशजी की चुदाई का लोहा मान गयी। आरती उस समय मन ही मन सोचने लगी की पता नहीं कैसे उसके पति अर्जुन ने सैंकड़ों तगड़े लण्ड वाले मर्दों में से सिर्फ रमेशजी को आरती को चोदने के लिए चुना। कैसे अर्जुन को पता लगा की यही वह मर्द है जो उसकी पत्नी को ऐसा सुख दे पायेगा जो शायद उसे कभी नहीं मिला।
रमेशजी ना सिर्फ तगड़े लण्ड के धनी थे, बल्कि उनके जहन में आरती के लिए जो उन्माद भरा प्यार था वह रमेशजी की चुदाई में साफ़ दिख रहा था। आरती का अपना अनुभव यह था की जब अर्जुन उसे चोदता था तो अर्जुन का ध्यान बस अपने लण्ड के सुख पर रहता था।
आरती ने इतने सालों में कभी यह महसूस नहीं किया की अर्जुन आरती को चोदते हुए आरती की हर संवेदनाओं को उतनी बारीकी से समझने की कोशिश करता था कितना रमेशजी ने पहली चुदाई में ही किया।
आरती ने रमेशजी से चुदवाते हुए हर वक्त यह महसूस किया की रमेशजी इसी चिंता में लगे रहते थे की कैसे आरती के हर अंग का सही तरह से इस्तेमाल करते हुए आरती को ज्यादा से ज्यादा चुदाई का सुख मिले।
आरती को चोदते हुए रमेशजी आरती के स्तनोँ को चूमना चाटना और मसलना कभी नहीं चूकते थे। कभी आरती की गाँड़ के गालों को अपने हाथ से दबा कर वह आरती की उत्तेजना सहज ही बढ़ा देते थे।
कभी आरती की चूत में अपना लण्ड पेलते हुए भी आरती के बदन को चाटना, बालों में अपनी उंगलियां डालकर बालों की लटों को सहलाना या फिर दोनों हांथों से गाँड़ को दबा कर आरती की चूत में अपने लण्ड और गहराई में डालना; इन सब करतूतों से आरती की चुदाई की उत्तेजना की आग और भी भड़क उठती थी।
आरती के झड़ने में कोई ज्यादा वक्त नहीं हुआ होगा की फिर से आरती रमेशजी के तगड़े लण्ड की सख्त चुदाई से इतनी ज्यादा उत्तेजित हो गयी की आरती की चूत में फिर से उन्माद भरे उफान उठने लगे। आरती का दिमाग फिर से चकराने लगा।
वह अपने बदन और अपने दिमाग में चढ़ रही सुनामी में ऊँची ऊँची मौजों को अनुभव कर रही थी। आरती को समझ नहीं आ रहा था की उसे क्या हो रहा था।
रमेशजी का लण्ड ऐसे तेजी से आरती की चूत को पेल रहा था की उसके घर्षण मात्र से आरती पगला सी रही थी। उसको ऐसा लग रहा था जैसे वह कोई नशे में हो और वह उत्तेजना, उन्माद और रोमांच से सारे बदन के दर्द को भूल कर जैसे खुले आसमान में उड़ रही हो।
आरती बदन में एक तेज सा धमाका हुआ और एक बार फिर आरती जबरदस्त आंधी और तूफ़ान के बाद जो एकदम स्मशान सी शान्ति होती है ऐसे निढाल हो कर रमेशजी के सख्त कूल्हों को पकड़ कर अपनी चूत में लण्ड और घुसाने का आह्वान करती हुई ढह गयी।
आरती के झड़ जाने से पहले ही रमेशजी को आरती की प्रतिक्रियाओं से समझ में आ गया था की आरती झड़ने वाली है। रमेशजी ने आरती के झड़ते ही झुक कर आरती के होंठों को चूमा और फिर अपना लण्ड आरती की चूत से धीरे से निकाला। उस समय आरती की आँखें बंद थीं।
जैसे ही रमेशजी ने अपना लण्ड निकाला तो आरती जग गयी। उसने आँखें खोलीं और अपने प्रियतम को देख कर हलकी सी मुस्कुराई। फिर अपनी आँखें बंद कर चुदाई के बाद की मादक तंद्रा का आनंद महसूस करने लगी।
आरती के पुरे बदन में एक अजीब सा मीठा सा एहसास हो रहा था। रमेशजी के बदन की बू आरती के दिमाग को एक अपनापन का एहसास दिला रही थी।
धीरे से नंगी लेटी हुई आरती की और देख कर मुस्काता हुए रमेश बाथरूम में जा कर शोवर चालु कर अच्छी तरह से नहाया। नहाकर तौलिये से बदन पोंछकर रमेश नंगा ही रसोईघर में जाकर चाय बनाने लगा।
करीब एक घंटे तक आरती की तगड़ी चुदाई के बावजूद भी रमेश का लण्ड जसकेतस खड़ा ही था। ना तो वह झड़ा और ना तो ढीला पड़ा था। चाय को दो कप में डालकर रमेश बैडरूम में पहुंचा और आरती के नंगे बदन को चाव से देखने लगा। ताज़ी ताज़ी चुदी हुई खूबसूरत औरत चुदाई के बाद कितनी खूबसूरत दिखती है वह रमेश स्तंभित सा देख रहा था।
तगड़ी और जबरदस्त चुदाई के बाद आरती के चेहरे पर जो मादकता और संतोष के भाव दिखाई पड़ते थे वह नग्न आरती की सुंदरता में जैसे चार चाँद लगा देते थे। बंद पलकें इतनी सुन्दर लग रहीं थीं, की बरबस रमेश से झुक कर होंठों पर हलकी सी चुम्मी किये बगैर रहा नहीं गया।
रमेश के होंठों का स्पर्श होते ही आरती जाग गयी और अपने प्रियतम को देख कर मुस्करायी। आरती की नजर जब रमेश के तगड़े खड़े हुए लण्ड पर पड़ी तो आश्चर्य से मुंह खोल कर आरती ने कहा, “बापरे तुम्हारे यह लण्ड का जवाब नहीं! बापरे एक घंटे तक मेरी चूत की ठुकाई करने के बाद भी जैसे कुछ भी हुआ ना हो ऐसे मुझे नंगी देख कर चोदने के लिए तैयार हो ऐसे खड़ा है! आखिर यह चाहता क्या है?”
रमेश ने कहा, “वह तो तुम्हें सारी रातभर चोदना चाहता है। पर मैं समझ सकता हूँ की तुम शायद थक गयी हो। आरती मुझे लगता है तुम्हें शायद आराम की जरुरत है। तुम चाहो तो हम लोग रुक जाते हैं। बादमें तुम्हें जब ठीक लगे तब आगे चुदाई करेंगे।”
आरती को रमेशजी की आवाज में कुछ निराशा की बू नजर आयी। वैसे भी आरती जानती थी की रमेशजी तो बस दो दिन के मेहमान हैं। उसके बाद वह अपने शहर लौट जाएंगे। जब तक वह दुबारा वापस ना आएं तब तक उसकी तगड़ी चुदाई नहीं होने वाली। और फिर आरती भी रमेशजी से लोहा लेना चाहती थी।
आरती भले ही कद में छुटकी थी पर उसका हौसला रमेशजी के कद और लण्ड से कम न था। एक औरत अगर अपनी चूत से एक बच्चे को जनम दे सकती है तो फिर वह एक तगड़े इंसान की चुदाई जरूर झेल सकती है।
बल्कि एक आम औरत दो आम मर्दों की चुदाई झेल सकती है यह तो मैं भी मानता हूँ। इतनी तगड़ी चुदाई के बाद आरती को जबरदस्त नशा चढ़ा हुआ था। आरती रमेशजी का सारा रस एक बार निकाल देना चाहती थी।
आरती ने अपनी शूरवीरता दिखाते हुए कहा, “रमेशजी मैं छुटकी जरूर हूँ, पर आप मुझे कमजोर मत समझिये। अगर आप तगड़ा चोद सकते हो तो मैं भी तगड़ी चुदाई झेल सकती हूँ। अब मैं आपको नहीं छोड़ने वाली। मैं आपके साथ रात भर लगी रहूंगी। आप मुझे चोदोगे और मैं भीआपको चोदुंगी। मैं आपकी हूँ। आप जैसे चाहो जिस पोजीशन में चाहो मुझे चोदो। मेरी चिंता मत करो। मैं डरने वाली नहीं। कहते हैं ना की जो डर गया, समझो मर गया। अगर आप तगड़े हो तो मुझमें भी आपको झेलने की क्षमता होनी चाहिए, आखिर मैं अब आपकी बीबी हूँ। अब मुझे आपसे सालों साल चुदवाना जो है।”
आरती की जिंदादिली देख कर रमेश बड़ा खुश हुआ। रमेश ने झुक कर आरती को अपनी बाँहों में लिया और अपने होँठों से आरती के होँठ मिलाकर खूब जोश से उसे चूमा।
काफी देर तक दोनों एक दूसरे से लिपटे हुए चूमते रहे और एक दूसरे की जीभ और होंठ चाटते और चूसते रहे। रमेश आरती को चूमते हुए सारे समय कभी आरती के स्तनोँ को दबाता तो कभी उसकी पीठ को सहलाता। कभी वह आरती की गाँड़ के गालों को दबाकर आरती की चूत को अपने लण्ड से चिपकाता।
आरती के हाथ रमेश की गर्दन के आसपास लिपटे हुए थे। आरती रमेशजी का चुम्बन और उनके हाथोँ को अपने सारे बदन पर फिरते हुए अनुभव का रोमांच अपने सारे बदन में महसूस कर रही थी।
चुम्बन से फारिग होने के बाद रमेश ने आरती को घुमा कर घोड़ी पोजीशन में लाने की कोशिश की। आरती समझ गयी की रमेशजी उसे डॉगी पोजीशन में पीछे से चोदना चाहते थे। आरती ने दो हाथ और दो घुटनों पर घोड़ी पोजीशन लेली।
फिर पीछे मूड कर बोली, “रमेशजी आप चूत को ही चोदेंगे। मैं गाँड़ नहीं मरवाने वाली। मुझे गाँड़ मरवाने से सख्त नफरत है।”
रमेश के मन में अगर आरती की गाँड़ मारने का कोई छिपा हुआ इरादा था तो आरती की साफ़ साफ़ बात सुन कर हवा हो गया। शायद रमेश के मन में आरती की गाँड़ मारने की इच्छा तो थी।
रमेश ने अपने आपको सम्हालते हुए नरमी से कहा, “नहीं आरतीजी, मैं तुम्हारी चूत ही चोदुँगा। मेरा तुम्हारी गाँड़ मारने का कोई इरादा नहीं है।” यह कह कर रमेश ने अपना लण्ड आरती की चूत की सतह पर कुछ देर के लिए हलके से रगड़ा।
आरती की खुली चुनौती सुनते ही रमेशजी का लण्ड फुफकारने लगा। सामने एक खूबसूरत औरत की चूत और गाँड़ का छिद्र तगड़ी चुदाई के इंतजार में दिख रहा था।
रमेशजी का लण्ड एकदम फौलाद के छड़ की तरह अकड़ गया। रमेश ने सोचा अब आरती की तगड़ी चुदाई करनी चाहिए, जो चाहे हो जाए। उसको यह भी भरोसा था की आरती वह झेल सकती थी।
आरती ने रमेशजी का लण्ड अपने हाथ में लिया और अपनी लार से एक बार फिर उसे पूरा लपेटा। वैसे भी इतनी चुदाई के बाद आरती का स्त्री रस और रमेशजी पूर्व रस स्राव प्रचुर मात्रा में आरती के चूत की सुरंग में फैला हुआ था।
आरती ने अपनी चूत की पंखुड़ियों को अलग कर उनके बिच रमेशजी का मोटा लण्ड अपने हाथ से थोड़ा सा घुसाया। यह इशारा था रमेशजी को की वह आरती की चुदाई फिर से शुरू करें।