नए घर में मेरी पहली होली थी. मुझे अब वैसे भी होली खेलना इतना पसंद नहीं था जितना बचपन में था. हमारे मौहल्ले में ही होली का दहन हुआ और हमने उसमे हिस्सा लिया. ये होली सेक्स स्टोरी उसी दिन के बाद शुरू हुई!
अगले दिन रंगो की होली थी. मुझमे तो इतना उत्साह नहीं था पर पति हर बार की तरह उत्साही थे. उन्होंने हमारे बच्चे को भी इस उत्साह में शामिल कर लिया था.
उनका प्लान था कि यहाँ होली खेलने के बाद वो लोग अपने पुश्तैनी घर भी जायेंगे जहा मेरी सास रहती हैं. वहाँ भी पुराने पडोसी और रिश्तेदार हैं जिनके साथ हर साल होली खेलते आये हैं..
मैंने उनको पहले ही मना कर दिया कि मेरा दो दो जगह होली खेलने का कोई प्लान नहीं हैं. इस मोहल्ले में हम वैसे भी नए थे तो ज्यादा कोई रंगो से भरेगा नहीं पर पुराने घर गए तो जान पहचान की वजह से कुछ ज्यादा ही रंग भर देंगे.
होली का दिन भी आया और सुबह एक घंटे के अंदर ही हमने मोहल्ले की छोटी सी होली खेल ली. पति का पेट तो इस छोटी सी होली खेलने से जैसे भरा ही नहीं. उनका प्लान वो वैसे ही पुराने घर जा होली खेलने का था.
मैं वापिस घर पर आ कर नहा ली. पति बच्चे को लेकर पुराने घर होली खेलने निकल गए.
मैंने अपनी वो नयी साड़ी पहन ली जो होली पर पति ने उपहार में दी थी. वैसे भी अब कोई रंग तो लगाने वाला ही नहीं था और कोई दिक्कत नहीं थी.
मैंने मोतीया रंग की काम वाली साडी और उस पर सफ़ेद रंग का ब्लाउज पहन लिया और अच्छे से मेकअप कर देखने लगी, आने वाले सामाजिक कार्यक्रम में ये साड़ी कैसी लगेगी. थोड़ी देर के लिए ही पहननी थी तो मैंने ब्रा भी नहीं पहना.
अभी पूरा तैयार भी नहीं हुई थी कि डोर बेल बज उठी. कौन आया होगा ये विचार करने लगी, कही अशोक कुछ भूल तो नहीं गए जो वापिस आ गए. पीप-होल से झाँका तो देखा हमारे पुराने घर का पडोसी नितिन जो अशोक का ख़ास दोस्त भी हैं, वो खड़ा हैं.
हर साल वो और अशोक साथ में होली की मस्ती करते हैं. इस साल हम नए घर पर हैं तो शायद नितिन यहाँ अशोक के साथ होली खेलने की चाहत में आया था. पर अशोक तो खुद उसके घर के उधर ही गया हुआ हैं.
मैं सोचने लगी, दरवाजा खोलू या नहीं, कही वो मुझे रंग से ना भर दे, मेरी नयी साड़ी ख़राब हो जाएगी. ना खोलू तो उसको बुरा लगेगा की वो घर आया और दरवाजा भी नहीं खोला. कोई और रास्ता नहीं था तो मैंने अब दरवाजा खोला.
नितिन: “हैप्पी होली”
मैं: “हैप्पी होली.”
नितिन: “अरे ये क्या तुमने तो होली खेली ही नहीं, हर साल तो खेलती हो.”
मैं: “मैंने तो होली खेल भी ली और फिर मैं नहा भी ली.”
नितिन: “अशोक को बाहर बुलाओ, उसको मैं लेने आया हूँ, उसके बिना होली खेलने का मजा ही नहीं आता हैं.”
मैं: “अशोक तो तुम्हारे वही गया हैं. अभी थोड़ी देर पहले ही निकला हैं.”
नितिन: “अच्छा ठीक हैं, मैं उसे वही मिलता हूँ. अब आया हूँ तो होली मना कर ही जाऊंगा. रंग तो लगवाना पड़ेगा.”
मैं: “होली का मतलब सिर्फ रंग लगान ही तो नहीं, मुँह मीठा करके भी होली मना सकते हैं. आज मुँह मीठा कर होली मना लो, अगले साल रंग लगा देना. अंदर आ जाओ, कुछ नाश्ता कर लो होली का.”
नितिन अब दरवाजे से अंदर आ गया और मैंने टेबल पर पड़े नाश्ते से कुछ खाने को कहा.
नितिन: “क्या प्रतिमा, थोड़ी बहुत होली तो मेरे साथ भी खेलनी ही पड़ेगी. वरना होली का कैसा नाश्ता!”
मैं: “अरे मैं नहा चुकी हूँ, वरना मैं मना नहीं करती होली खेलने से. तुम नाश्ता लो.”
नितिन: “अच्छा एक काम करो एक रंग से तिलक ही लगवा लो माथे पर, वो तो चलेगा?”
मैं: “अच्छा ठीक हैं, पर संभल कर, थोड़ा सा ही रंग लेना, साड़ी पर ना गिर जाये.”
नितिन: “अरे तुम चिंता मत करो.”
नितिन ने अपने साथ लाये गुलाल की थैली को अपने एक हाथ में पकड़े दूसरे हाथ को उसमे डाला. मैंने आँखों में गुलाल ना जाये इसलिये आँखें बंद कर दी और चेहरा आगे कर दिया ताकि रंग साड़ी पर ना गिरे.
वो मेरे ललाट पर एक तिलक लगाने लगा और तेजी से मेरे पुरे चेहरे पर रंग लगा दिया. मैं एक दम से दूर हटी.
मैं: “अरे ये क्या किया? सिर्फ तिलक लगाने को बोला था.”
नितिन: “अरे सूखा रंग हैं, कुछ नहीं होगा साड़ी को, धो लेना. होली बार बार थोड़े ही आएगी.”
मैं अपनी साड़ी पर गिरा थोड़ा गुलाल झटकते हुए बोली “अच्छा अब तो नाश्ता कर लो.”
नितिन: “हर साल मैं तुम्हे पक्का कलर लगाता हूँ, इसके बिना होली पूरी कैसी होगी.”
ये कहते हुए उसने जेब से एक पक्के कलर की छोटी डिबिया निकाल ली.
मैं: “नितिन, इसको अंदर रखो. पक्का रंग नहीं चलेगा.”
नितिन: “बस थोड़ा सा मुँह पर लगवा लो, जल्दी रंग उतर जाए तो कैसी होली.”
मुझे अपनी साडी खतरे में दिखाई दी. मैं तुरंत बचने के लिए वहा से खिसकने लगी, पर नितिन ने पीछे से मेरी साड़ी पकड़ ही ली और साड़ी खींचने से मुझे रुकना पड़ा. उसने मेरी साड़ी छोड़ एक हाथ से मुझे कमर से कस कर पकड़ लिया. उसके दूसरे हाथ में कलर की डिबिया थी.
मैं: “नहीं नितिन, पक्का कलर नहीं. मेरी साड़ी हलके कलर की हैं, इस पर ये काला दाग लग जायेगा तो नहीं निकलेगा. मेरी नयी साड़ी हैं.”
नितिन: “अरे कलर तो लगाना ही पड़ेगा, होली हैं. साड़ी की चिंता हैं तो भले ही निकाल दो पर कलर तो लगाऊंगा.”
ये कहते हुए उसने दूसरे हाथ से कलर की डिबिया टेबल पर रखी और उस हाथ से मेरी साड़ी का पल्लू मेरे कंधे से निकाला और नीचे गिरा दिया.
उसने अपना हाथ जो कमर पर था उसको हटाया जिससे साड़ी का पल्लू पूरा नीचे जमीन पर गिर गया. पहला हाथ कमर से हटते ही उसने अपने दूसरे हाथ से मेरी कमर को पकड़ लिया.
अब तक उसका हाथ साड़ी के ऊपर से मेरे कमर को पकडे था, अब बिना साड़ी के मेरी नंगी पतली कमर को दबोचे हुए था. साड़ी हटने से मेरी पतली कमर के ऊपर सफ़ेद ब्लाउज के अंदर मम्मो का उभार अच्छे से दिखने लगा था. अंदर ब्रा भी नहीं था और सफ़ेद रंग के पतले ब्लाउज से मेरे गहरे गुलाबी निप्पल की झलक हलकी सी दिखने लगी थी.
उसने मुझे इतना कस के पकड़ा था कि उसके लंड का हिस्सा मेरे नितंबो से चिपका हुआ था. शायद भांग का नशा करके आया हो ऐसा लग रहा था. मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा था. उसको पूरा होश भी नहीं था कि होली की आड़ में वो क्या कर रहा हैं.
उसने अब वो पक्के कलर की डिबिया दूसरे खाली हाथ से उठाई और पहले हाथ के पास ले आया जिससे कमर को पकडे हुए था. कमर वाले हाथ की उंगलियों से उसने डिबिया का ढक्कन खोला और अब उसी हाथ में डिबिया को पकड़ लिया.
उसने थोड़ा रंग अपने एक हाथ पर लगा दिया और उंगलिया रगड़ कर कलर अपनी हथेली पर फैला दिया और मेरे दोनों गालो और ललाट पर लगा दिया. मैं ज्यादा नहीं हिली, वरना कमर वाले हाथ में पकड़ी खुली डिबिया से रंग मेरी साड़ी पर गिर सकता था.
मेरे चेहरे पर कलर लगाने के बाद मुझे लगा अब वो मुझे छोड़ देगा, पर उसने थोड़ा और कलर अपने हाथ में लिया.
मैं: “अब तो छोडो, लग तो गया मुँह पर पक्का कलर.”
नितिन: “रुको तो सही, और भी जगह लगाना हैं कलर.”
उसने अब कलर मेरी नंगी बाहों पर लगा दिया. और फिर थोड़ा कलर और ले मेरे पेट और कमर पर मलता हुआ मेरे बदन को छूने के मजे लेने लगा.
होली के दिन कैसे एक खुबसूरत इंदौर की देसी लड़की की चुदाई हुई? इस होली सेक्स स्टोरी में जानिए और मजे करिए.
फिर उसने थोड़ा कलर और निकाला और मेरे ब्लाउज के ऊपर की तरफ पीठ और गर्दन पर कलर लगाया. मैं हिल नहीं रही थी इस डर से कि कलर कही साड़ी पर ना गिर जाये और इसका फायदा उठा उसने अपनी उंगलिया पीठ पर मेरे ब्लाउज में डाल कलर लगाने लगा.
अंदर ऊँगली जाते ही मैं विरोध में थोड़ा आगे की तरफ झुकी तो झटके से खिंच कर मेरे ब्लाउज का आगे से ऊपर का एक हुक भी टूट गया और मेरा क्लीवेज दिखने लगा. मैं फिर से शांत हो गयी.
नितिन: “ऊप्स, सॉरी, हुक टूट गया, ज्यादा हिलो मत, चुपचाप कलर लगवा लो. जो जो जगह दिख रही हैं बस वहा कलर लगाऊंगा.”
ये कहते हुए वो आगे से मेरे गले और फिर मेरे सीने पर कलर लगाने लगा. कलर लगाते हुए उसने थोड़ी उंगलिया ब्लाउज के अंदर भी डाल दी थी. एक हुक खुलने से उसको ज्यादा जगह मिल गयी थी. मेरे मम्मो के उभार को थोड़ा दबाते हुए उसने कलर लगा दिया.
वो किसी भी क्षण मेरे मम्मो को दबोच सकता था. मै खुद को छुड़ाने के लिए फिर थोड़ा जोर से हिली और उसकी उंगलिया अभी भी ब्लाउज के अंदर थी जिससे मेरा एक और हूक टूट कर निकल गया.
मेरे मम्मो के बीच की घाटी और भी दिखने लगी. मैं अब कही ना कही हार मानने लगी थी. अब उसने मुझे कमर से पकडे रखा था तो छोड़ दिया और कलर की डिबिया को रख दिया.
हुक टूट निकल चुके थे तो मैं अपने ब्लाउज के दोनों हिस्सों को अपने हाथ से पकड़ खड़ी हो गयी. कुछ अनहोनी होने से पहले छूट जाने से मैं खुश थी. मैंने अपने नीचे लटके पड़े साडी के पल्लू को ऊपर उठाया.
मैं: “ये कपड़ा फाड़ होली खेलने आये थे तुम?”
नितिन: “तुम चुपचाप कलर लगवा देती तो हुक नहीं टूटता ना.”
मैं: “चलो अब नाश्ता कर लो, होली खेल ली.”
नितिन: “बिना पानी के कौनसी होली होती हैं! अभी तुमको पानी में डालना बाकी हैं. पिछले साल तो तुम कमरे में बंद हो गयी थी बचने के लिए.”
ये सुनते ही मैं चीखते हुए रसोई की तरफ भागने को हुई और उसने मुझे फिर पीछे से पकड़ लिया.
मैं: “नहीं नितिन, प्लीज. मेरी साड़ी ड्राई क्लीन की हैं, उसको पानी में नहीं भिगो सकते ख़राब जो जाएगी. अब छोड़ दो, वैसे भी बहुत होली खेल ली हैं तुमने. अब प्लीज परेशान मत करो.”
नितिन: “बुरा न मानो होली हैं. साड़ी नयी आ जाएगी.”
मैं: “नहीं, बहुत महँगी हैं, पहली बार पहनी हैं.”
नितिन: “मुझे वैसे भी तुम्हे पानी में भिगोना हैं, साड़ी को नहीं. पहले साड़ी निकालते हैं फिर तुम्हे पानी में डालूंगा.”
मैं: “नहीं, तुम ऐसा नहीं कर सकते.”
नितिन: “अरे मैं करके बताता हूँ.”
मेरी साड़ी का पल्लू गिर कर वैसे ही मेरे मुड़े हुए बाहों में आ गया था, उसने उसको वहा से हटाया. मैंने साड़ी पकड़ कर रखी थी पर मैं जहा से पकड़ती वो दूसरी जगह से साड़ी निकाल देता. उसमे मेरी पूरी साड़ी को मेरे पेटीकोट से जल्दी ही अलग कर दिया और साड़ी सोफे पर फेंक दी.
मैं अब सिर्फ एक पेटीकोट और ब्लाउज में थी जिसके ऊपर के दो हुक टूट चुके थे. उसने मुझे उठाया और बाथरूम के अंदर ले आया. मुझे टब में खडी कर उसने नल चालू कर दिया और टब में पानी भरने लगा. मैं अपने ब्लाउज के टूटे हुए हुक के हिस्से पर हाथ रखे ब्लाउज को बंद रखे खड़ी थी.
मैं: “नितिन ये क्या कर रहे हो तुम बेशर्मो की तरह. मैंने कपडे नहीं पहन रखे हैं.”
नितिन: “पहन तो रखे हैं.”
मैं: “मेरा ब्लाउज आधा खुला है, और मैंने अंदर कुछ नहीं पहना हैं, कुछ तो समझो.”
नितिन: “अब झूठे बहाने मत मारो, पहले साड़ी का बहाना बनाया अब ये. बताओ कहा नहीं पहना हैं.”
मैं: “पागल हो गए हो तुम. अब मेरे कपड़ो में झांकोगे?”
नितिन: “भूल गयी, उस दिन पिकनिक में तुम, अशोक, मैं और पूजा पानी में उतरे थे. कपड़े बदलने की जगह नहीं थी तो कार में तुम लड़कियों ने कपड़े बदले थे और हम कार की खिड़की पर पीठ कर परदे बने थे.” (नितिन की पत्नी का नाम पूजा था.)
मैं: “पानी में धक्का भी तुम लोगो ने ही मारा था उस दिन. वैसे भी अशोक मेरे साथ था उस वक्त.”
नितिन: “अब होली के दिन बुरा मत मानो, गीला तो होना पड़ेगा.”
काश मैंने बिना दरवाजा खोले उसको बाहर से ही भगा दिया होता तो मेरी ये हालत नहीं होती. गनीमत थी कि कम से कम मेरी नयी साड़ी ख़राब होने से बच गई.
आधा पानी भरने के बाद उसने मुझे टब में बैठा दिया और अपनी दोनों हथेली में पानी भर मेरे ऊपर पानी डालने लगा. वह पानी डालते जाता और शरीर के उस हिस्से पर अपने हाथ से मुझे रगड़ते हुए पानी लगा रहा था. उसके हाथ मेरे पीठ, गर्दन, सीने, पेट, कमर पर आराम से फिरते हुए मुझे जैसे नहला रहे थे.
मैं उसके हाथों को अपने मम्मो से जैसे तैसे दूर रख रही थी. थोड़ी ही देर में मैं पूरी गीली हो गयी. उसका कलर ज्यादा पक्का नहीं था तो उसकी रगड़ से मेरा कलर भी काफी निकल गया था.
अब उसने मुझ पर पानी डालना और छूना बंद कर दिया और खड़ा हो गया. मैं भी अब टब में ही खड़ी हो गयी और उसकी तरफ हाथ बढ़ाते हुए पीछे रखा टॉवेल माँगा और उस पर ताना कसा.
मैं: “तुम मुझे होली खेला रहे थे या नहला रहे थे? साबुन भी लगा ही देते तो पूरी नहा लेती.”
मैं भूल ही गयी कि मेरा ब्लाउज सफ़ेद रंग का था और अंदर ब्रा भी नहीं पहना था. मेरा ब्लाउज गीला हो मेरे मम्मो से चिपक गया था और मेरे निप्पल साफ़ नजर आ रहे थे और मेरे मम्मो का उभार पूरी तरह से नजर आ रहा था. मेरा ब्लाउज पारदर्शी बन चूका था और मैं लगभग टॉपलेस खड़ी थी.
वो मेरे सीने को ही घूर रहा था तो मेरी भी नजर पड़ी और इससे पहले की मैं संभलती वो मेरी तरफ आगे बढ़ गया.
नितिन: “जैसी तुम्हारी इच्छा, मैं अब साबुन लगा देता हूँ.”
मैं: “नहींहीहीही, मैं मजाक कर रही थी.”
नितिन: “मगर मैंने तो सीरियसली ले लिया हैं, अब तो साबुन लगाना ही पड़ेगा.”
उसने साबुन उठाया और अपनी हथेली पर लगा कर हथेली मेरे शरीर पर रगड़ साबुन लगाने लगा. मेरे अंग जहा जहा से खुले थे वहा साबुन लगी हथेली रगड़ने लगा. मैं अपने दोनों हाथ अपने सीने पर लगाए हुए थी ताकि वो मेरे गीले ब्लाउज से दीखते हुए निप्पल ना देख पाए.
एक बार फिर साबुन लगाने के बहाने सीने पर कुछ ज्यादा ही नीचे जाकर मेरे ब्लाउज में हाथ डालने की भी कोशिश की उसने. मैं अपने हाथों से ब्लाउज कस कर पकड़ उसको खदेड़ते रही.
उसने मुझे सीधी करने के लिए मेरे पेटीकोट का नाड़ा पकड़ कर खिंचा जिससे वो नाड़ा खुल गया. वैसे तो पेटीकोट गीला हो मेरे शरीर से चिपक गया था फिर भी मैंने एहतियात के तौर पर एक हाथ सीने से हटा अपना पेटीकोट पकड़ लिया.
मैं: “बेशर्म, मेरे कपड़े क्यों खोल रहे हो.”
नितिन: “मैं तो तुम्हे सीधी कर रहा था गलती से खुल गया. पेटीकोट के अंदर तो कुछ पहन रखा होगा न? क्यों चिंता करती हो.”
मैं: “नितिन, ऐसी बातें करोगे मुझ से.”
नितिन: “भूल गयी, पूजा और तुम्हे दो महीने तक मेरे दोस्त के स्विमिंग पूल में स्विमिंग सिखाने ले गया था. वहा भी तो तुम लोग बिकिनी में रहते थे मेरे सामने. तब तो शर्म नहीं आयी.”
मैं: “अभी हम स्वीमिंग नहीं कर रहे हैं.”
नितिन: “तुम्हारी सोच कितनी छोटी हैं. पिछली होली पर अशोक ने पूजा को टब में पूरा लेटा दिया था. पूजा ने तो कोई शिकायत नहीं की.”
मैं: “तुम भी तो होंगे वहा.”
नितिन: “मैं तो तुम्हारे घर पर था, तुम्हे कमरे से बाहर निकालने की कोशिश कर रहा था, तुम अंदर बंद जो थी. वैसे पूजा की भी गलती थी. होली पूरी ख़त्म नहीं हुई और वो नहाने चली गयी थी तुम्हारी तरह. अशोक को पता चला तो रंग लेकर बाथरूम में ही घुस गया और रंग दिया पूजा को.”
मैं: “नहीं, अशोक तुम्हारी तरह नहीं हैं.”
नितिन: “सच बोल रहा हूँ, पूजा से कन्फर्म कर लेना. तुमने तो ब्लाउज और पेटीकोट भी पहन रखा हैं. पूजा ने तो नहाने के लिए कपड़े खोल लिए थे और सिर्फ ब्रा और पैंटी में थी. मैंने उसको बोला था इतना जल्दी मत नहा.”
मैं: “तुम फेंक रहे हो या सच बोल रहे हो?”
नितिन: “सच, मैंने आकर उसका टब में लेटे हुए फोटो भी लिया था.”
मैं: “पूजा के साथ इतना हुआ और तुमने अशोक को कुछ नहीं कहा!”
नितिन: “होली पर इतनी मस्ती तो चलती हैं. वो पूजा भी तो हंस रही थी.”
मैं: “तो तुम मुझसे पूजा का बदला ले रहे हो?”
नितिन: “कैसा बदला, वो पूजा तो सुबह से इंतजार कर रही हैं अशोक कब आएगा होली खेलने. अब मुझे साबुन लगाने दो.”
मैं सोच में पड़ गयी, मेरे पीठ पीछे अशोक क्या कर रहा हैं. मेरा एक हाथ पेटीकोट को पकड़े था और दूसरा मेरे ब्लाउज को. मेरा एक अकेला हाथ दोनों मम्मो को मुश्किल से ढक पा रहा था, उसने मेरे ब्लाउज में थोड़ी सी ऊँगलीया घुसा साबुन लगाना शुरू कर दिया, मैं उस पर हल्का गुस्सा करते हुए उसको मना करती रही.
मैं एक मम्मा ढकती तो वो दूसरे के तरफ साबुन लगाने लगता. उसके हौंसले बढ़ते रहे और जल्द ही अपना एक पूरा हाथ का पंजा मेरे ब्लाउज में घुसा मेरा एक मम्मा पकड़ लिया और साबुन मलने लगा.
उसकी इस हरकत पर, जिस हाथ से मैंने पेटीकोट पकड़ रखा था उससे मैंने उसको एक घुसा मार हल्का धक्का मारा. इस झटके से मेरा नाड़ा खुला पेटीकोट नीचे गिर गया और मैं पैंटी में आ गयी. मैं एक बार फिर शर्म से पानी पानी हो गयी.
वो मझ पर हंसने लगा कि मैं खुद अपने कपड़े खोल रही हूँ.
नितिन: “अब रहने भी दो, क्यों इतना शरमा रही हो? पूल में में भी तो बिकिनी पहन कर नहाते ही हैं.”
मैंने अपने दोनों हाथो से अपने ब्लाउज को पकडे रखने पर ध्यान दिया. उसने मेरे ब्लाउज को मेरे एक कंधे से निकाल उस कंधे पर साबुन लगाने लगा.
नितिन: “अब हाथ हटाओ, सिर्फ सीने पर साबुन लगाना बाकि हैं.”
मैं: “देखो, तुम अब अपनी लिमिट पार कर रहे हो. मुझे ये सब अच्छा नहीं लग रहा हैं.”
वो मेरे करीब आ मेरे सीने पर साबुन लगाने का प्रयास करने लगा. मैंने अपने दोनों हाथो से उसको धक्का देना चाहा पर उसने मेरे हाथ पकड़ लिए और थोड़ी छीना झपटी में मेरे ब्लाउज के आगे के बाकी हुक भी खुल गए और मेरे मम्मे पुरे दिखने लगे. नितिन ने मेरे दोनों हाथ पकड़ मुझे मेरे मम्मे ढकने नहीं दिए और चिढ़ाने लगा.
नितिन : “ओ, शेम शेम.”
मेरी एक बार तो हंसी छूट गयी पर अपनी हालत देख तुरंत सुधार किया.
मैं: “मेरे हाथ छोडो, और तुरंत बाहर जाओ.”
नितिन: “अच्छा जाता हूँ, पहले तुम्हारे साबुन तो लगा लू, नयी जगह दिख रही हैं जहा साबुन नहीं लगा हैं.”
मैं: “लग गया मेरे साबुन, और नहीं लगवाना, जाओ.”
नितिन: “ठीक हैं तो नहला देता हूँ.”
उसने अब मेरे हाथ छोड़े और मैंने अपना ब्लाउज फिर अपने मम्मो के ऊपर कर दिया और हाथ से ढक दिया.
फिर उसने मेरे ऊपर पानी डालना शुरू कर दिया और मैं अपना सीना दबाये नीचे बैठ गयी.
नितिन: “और नहाना हैं या हो गया?”
मैं: “अब तुम बाहर जाओ, मेरा हो गया.”
नितिन बाथरूम से बाहर गया और मैंने चैन की सांस ली कि कुछ अनहोनी से पहले ही मैं बच गयी.
मेरे ऊपर से नितिन का खतरा टला या नहीं? वो आप इस होली सेक्स स्टोरी के अगले एपिसोड में जान पायेगे.