This story is part of the Padosan bani dulhan series
आगे की कहानी टीना की जुबानी
रात की चाय पिने के बाद सेठी साहब ने मुझे फिर अपनी बाँहों में उठा कर पलंग पर लिटाया और खुद मेरी टांगें अपने कंधे पर रख कर फिर उसके बाद उस रात उन्होंने मुझे ऐसे चोदा ऐसे चोदा की बिना रुके और बिना रेस्ट किये रेलवे के स्टीम इंजन की तरह मैं लगभग आधे घंटे तक सख्ती से उनके निचे लेटी हुई चुदती रही, चुदती रही।
मैं मेरी चूत में कुछ अजीब सी तीखी फीलिंग महसूस कर रही थी। वह दर्द था या उत्तेजक नशा यह कहना मुश्किल था। पर पूरी चुदाई के दरम्यान इतना जबरदस्त उत्तेजक नशा मेरे दिमाग पर छाया हुआ था की मैं उस आधे घंटे में कम से कम छे सात बार झड़ गयी और बार बार मैं चुदवाते हुए सेठी साहब से और जोर से चोदने के लिए कहती रही। जो रहम और दया सेठी साहब ने पहली चुदाई में दिखाई थी वह गायब थी।
हाँ वह बार बार झुक कर मुझे कभी होँठों पर तो कभी गाल पर तो कभी मेरे स्तनों पर चूमते, चूसते और काटते रहते और मुझे “टीना तुम बहुत अच्छे से चुदाई करवाती हो। तुम्हें चोदने में जो मजा आता है किसी के साथ भी नहीं आया आज तक।” यह सब कहते रहते थे।
आधे घंटे की नॉनस्टॉप चुदाई के बाद मुझे लगा की अगर सेठी साहब को मैंने नहीं रोका तो कहीं मैं बेहोश ना हो जाऊं। मैंने बड़ी ही धीमी आवाज में सेठी साहब से वाशरूम जाने का इशारा किया। सेठी साहब रुक गए और लण्ड निकाल कर मुझे जब खडा किया तब मुझे पता चला की मेरी टांगें लड़खड़ा रहीं थीं। सेठी साहब का लण्ड मैंने देखा तो वह तो वैसे का वैसे कोई चमड़े का बड़ा पाइप हो ऐसे उनकी टांगों के बिच पहले जितनी ही सख्ती से खड़ा ही था। मैं जैसे तैसे वाशरूम गयी और वाशरूम में ही फर्श पर लुढ़क पड़ी। कुछ देर वाशरूम में फर्श पर पड़े रहने के बाद मैं खड़ी हुई।
मैंने सेठी साहब से पूरी रात वह जैसे चाहें मुझे चोदना चाहें चोदे, यह वचन दिया था इस लिए मैं अब पीछे नहीं हट सकती थी। मुझे लगता था की सेठी साहब की भी कहीं ना कहीं कोई लिमिट तो होगी ही जब वह भी थक जाएंगे। मुझे उसी का इंतजार करना पड़ेगा। तब मुझे सुषमा जी की हालत समझ में आ रही थी।
मैं वाशरूम से धीरे से उठ कर चलती हुई वापस सेठी साहब के कमरे में पहुंची। मैंने मेरी चाल में कृत्रिम फुर्ती लायी जिससे सेठी साहब को यह ना लगे की मैं थक गयी थी। मैं पलंग पर पहुंच कर सेठी साहब के गले लिपट पड़ी। मैंने सेठी साहब के होँठों से अपने होँठ चिपकाते हुए कहा, “सेठी साहब जो सुख और आनंद मुझे आज रात में आपसे मिला है, मैंने जिंदगी में सोचा भी नहीं था की सेक्स में ऐसा सुःख मिल सकता है।”
सेठी साहब ने मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा, “टीना सच सच बताना मेरी चुदाई से तुम्हें दर्द या कष्ट तो नहीं हो रहा?”
हालांकि मुझे मेरी चूत में कुछ दर्द सा महसूस हो रहा था पर उससे अधिक उस दर्द में मुझे इतनी उत्तेजना और मादकता महसूस हो रही थी की उसे दर्द कहना बेमानी होगी। मैंने सेठी साहब की आँखों में उतने ही आत्मविश्वास से आँखें डाल कर कहा, सेठी साहब मुझे दर्द नहीं आनंद और उत्तेजना का अतिरेक हो रहा है।
अब मुझे समझ में आ रहा है की क्यों आपके पीछे लडकियां हाथ धो कर पड़ी रहतीं हैं। मेरी भाभी भी आप को देख कर आप पर फ़िदा हो गयी है। शायद वह हमारे बारे में समझ गयी है। वह मुझसे आपकी बड़ी तारीफ़ कर रही थी। वह मुझे कह रही थी की मैं बड़ी लकी हूँ। उसके कहने का मतलब था आप इतने मजबूत और मरदाना हैं। मुझे उसकी बातों और नज़रों से ऐसा लगा की काश उसे अगर मौक़ा मिला तो वह आपको छोड़ेगी नहीं।”
मेरी बात सुन कर सेठी साहब हँस पड़े और बोले, “तुम्हारी भाभी तो बड़ी खूबसूरत है। तुम्हारे भैया बड़े ही लकी हैं की उन्हें तुम्हारी भाभी जैसी बीबी मिली हैं। तुम्हारे भैया भी बड़े तगड़े दीखते हैं। भाभी भैया से खुश नहीं है क्या?”
मैंने कहा, “सेठी साहब मेरी और भाभी की अच्छी जमती है। वह मुझसे बड़ी खुली हुई है। वह मुझसे सारी बातें खुल्लमखुल्ला कहती हैं। यहां तक की मेरा भाई उसे कैसे चोदता है वह भी मुझे कह देती है। पहले तो भाई इतना बिजी रहता है की उसे भाभी के लिए समय ही नहीं है।
दुसरा यह की भाभी तो यहां तक कह रही थी की आप इतने हैंडसम हो की अच्छी से अच्छी लडकियां आपके सामने नंगी हो जाएँ। मैंने उन्हें हंसी मजाक में पूछा की भाभी आप भी सेठी साहब के सामने नंगी हो जाओगी? तो वह बेशरम सी बोली की अगर तुम्हें एतराज नहीं हो तो वह हो जायेगी। मतलब सेठी साहब वह आपके और मेरे बिच की अंडरस्टैंडिंग के बारे में सब कुछ समझ गयी है।”
मेरी बात सुनकर सेठी साहब की आँखों और चेहरे पर चिंता के बादल छा गए। उन्होंने मुझे बाँहों में ले कर कहा, “यह तो गड़बड़ हो गयी। मेर्री वजह से तुम्हारी बदनामी हो यह मैं नहीं चाहता। अब क्या करें?”
मैंने कहा, “सेठी साहब आज आपको मुझे रात भर चोदना है। अभी तो आधी रात ही हुई है। सेठी साहब कहीं ऐसा तो नहीं की मेरी भाभी की बात सुनकर आप उसी के बारे में सोचने लग गए हैं और आपका मुझ में इंटरेस्ट कम हो गया है?”
सेठी साहब ने मेरी और तीखी नज़रों से देखा और बोले, “क्या बात करती हो? वह खूबसूरत है, ठीक है। वैसे तो मुझे कोई और सिचुएशन में मिली होती तो उन्हें चोदने में ख़ुशी होती। पर वह आपकी भाभी है और मैं यहां कुछ काम से आया हूँ। मेरे कारण आपकी बदनामी हो यह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकता। मैं सुबह ही यहां से चला जाऊंगा जिससे बात आगे ना बढे।”
मैंने सेठी साहब का हाथ थाम कर कहा, “सेठी साहब जल्द बाजी मत कीजिये। आप अगर यहां से जाएंगे तो उलटा असर भी हो सकता है। भाभी नाराज हो जाएंगी। वह शायद आपसे अकेले में मिलना चाहती हैं। वह कुछ मजाकिया है। आपसे हंसी मजाक कर सकती है। आप उसे मिल लीजिये। हो सकता है यह प्रॉब्लम वहीँ सुलझ जाए।”
मैंने इतना कह कर फ़ौरन अपना गाउन निकाल फेंका और सेठी साहब के सामने नंगी हो गयी। मैंने कहा, “अब मेरी भाभी को नहीं मुझे देखिये।”
सेठी साहब ने मुझे घोड़ी बनाते हुए कहा, “तुम्हारी भाभी जब आएगी तब देखेंगे। अभी तो मैं तुम्हारी गाँड़ देख रहा हूँ। तुम्हारी गाँड़ बड़ी तगड़ी और गोरी चिट्टी है। मैं तुम्हें पीछे से तुम्हारी गाँड़ देखता हुआ तुम्हें चोदुँगा। डरो मत, मैं तुम्हारी गाँड़ नहीं मारूंगा।” यह कह कर सेठी साहब ने मेरी निचे की और लटकी हुई चूँचियों को अपनी हथेली में लेकर खूब प्यार से जोरसे दबाया और उन्हें मसलने लगे।
फिर दो तीन धक्के मार कर उन्होंने अपना लण्ड मेरी चूत में पेल दिया। मेरी चूत में मुझे एक तेज सी टीस महसूस हुई। पर उसके बाद सेठी साहब के फौलादी बदन में जकड़ी हुई मैं उनके लण्ड का तगड़ा मार मेरी चूत में झेलती रही। मेरी गाँड़ पर बार बार कुछ सख्ती से सेठी साहब जब चपेट मारते तो मेरी गाँड़ लाल हो जाती होगी। उस दर्द में भी मुझे बड़ी ही उत्तेजना महसूस हो रही थी।
सेठी साहब ने मुझे उसी घोड़ी पोज़ में फिर ४५ मिनट से ज्यादा तक चोदा होगा। वह अपना लण्ड पेलते ही गए, पेलते ही गए। मुझे समझ में नहीं आता की कैसे सेठी साहब का लण्ड इतना चोदते हुए छील नहीं जाता होगा क्या? और इस बार तो इतना तगड़ा और इतना सख्ती से चोद रहे थे वह की मैं बार बारझडती ही रही और वह बिना रुके पीछे से लण्ड पेलते रहे। मुझे जिंदगी में मेरे पति ने कभी इस तरह नहीं चोदा। मेरी जिंदगी एक अद्भुत दौर से गुजर रही थी।
सेठी साहब ने करीब ४५ मिनट के बाद फिर मुझे विश्राम का मौक़ा दिया। मैंने सेठी साहब के लिए फिर चाय बनायी। उसके बाद सेठी साहब तीसरी बार मेरे ऊपर सवार हुए और उन्होंने मुझे ऊपर चढ़ कर बड़े प्यार से एक के बाद एक तगड़े धक्के मार कर पर उतनी जल्द बाजी से नहीं पर धीरे धीरे चोदा।
उनके एक धक्के में मैं पूरा हिल जाती। उस बार सेठी साहब अपना वीर्य मेरी चूत में उंडेलना चाहते थे। मेरे झड़ने की तो कोई गिनती ही नहीं रही थी। आखिर में रात के करीब तीन बजे सेठी साहब के लण्ड से जबरदस्त गरम फव्वारा निकला और मेरी चूत के सारी सुरंग को भर दिया। निचे लेटी हुई मैंने सेठी साहब का सारा वीर्य अपनी चूत में भर लिया था।
मुझे समझ में नहीं आया की इस तरह कोई आदमी कैसे चोद सकता है। फारिग होते होते रात के तीन बज गए। सेठी साहब से फारिग हो कर मैं बाथरूम में से हो कर अपने कमरे में रात के लगभग तीन बजे पहुंची।
हालांकि मैं बहुत ज्यादा थक चुकी हुई थी पर मेरी भाभी की बातों ने मेरी नींद हराम कर रक्खी थी। मेरे लिए यह जरुरी था की मैं मेरे पति राज को इसके बारे में पूरी जानकारी दूँ। मैंने सोने की काफी कोशिश की और शायद कुछ देर सोई भी सही पर सपने में भी मेरी भाभी मुझे डराती धमकाती दिखाई पड़ रही थी की वह मेरे और सेठी साहब के संबंधों के बारे में सब को बता देगी।
ऐसे में ढंग की निंद आने का तो सवाल ही नहीं था। मैंने काफी सोच कर सुबह करीब छे बजे मेरे पति को पिछले दिन भाभी से हुई बातचीत के बारे में लिख कर एक लंबा सा व्हाट्सप्प सन्देश भेजा।
मुझे अच्छा खासा आइडिया था की मेरे पति रात भर सुषमा जी की बाँहों में ही होंगे और उस समय हमारे घर में वापस आकर बिंदास सो रहे होंगे। पर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ जब राज का फ़ौरन जवाब आ गया। जिससे मुझे कुछ ढाढस जरूर मिला। पर जब फ़ौरन जवाब आया तो मुझे मन में थोड़ी शंका भी हुई की ऐसा तो नहीं हुआ की कहीं यहां मैं उनकी पत्नी रात भर सेठी साहब से तगड़ी चुद रही हूँ और उधर मेरे पति को सुषमाजी ने बिना घास डाले भगा तो नहीं दिया?
औरतों का दिमाग भगवान ने कैसा बनाया है! अगर मेरा पति किसी औरत को चोदे तो भी शिकायत और अगर कोई औरत मेरे पति को बिना चोदे रिजेक्ट करके भगा दे तो भी शिकायत! पर मेरा दिमाग उस समय यह सब सोचने या पूछने की स्थिति में नहीं था।
मुझ से सारी बात जानने के बाद राज ने मेरे मेसेज के जवाब में लिखा वह पढ़ कर और मेरे पति से आश्वासन पाकर मुझे कुछ सकुन मिला और मैं बिस्तरे पर लेट गयी। जैसे ही मैं लेटी की फ़ौरन मेरी आँख लग गयी। मैं काफी देर तक सोती रही।
रात भर के जागने और परिश्रम से मैं थकी हुई थी। मुझे उठने में काफी देर हो गयी। जब मेरी आँख खुली तो सूरज तेज रौशनी डाले आसमान में काफी ऊपर चढ़ा हुआ था। जब मैं उठी तो सुबह के करीब ८ तो बजे ही होंगें। मुन्ना भाभी और मोहल्ले के बच्चों के साथ खेलने के लिए सुबह उठ कर जा चुका था।
रात भर जो सेठी साहब ने मेरी तगड़ी चुदाई की थी तो दूसरे दिन मेरा बुरा हाल तो होने वाला ही था। सिर्फ तगड़ी चुदाई ही हुई होती तो भी चल जाता। पर मैंने जब उठ कर आईने में देखा तो मेरी हवा ही निकल गयी। सेठी साहब ने मुझे कई जगह पर इतना चूमा, चूसा और काटा था उसके जो निशान सेठी साहब के दांतों ने और होँठों ने मेरे बदन पर कई जगह छोड़ रक्खे थे वह हमारी रात की चुदाई के सुबूत बन कर दुश्मन की तरह मेरे बदन पर चुगली खाते दिख रहे थे। ऐसे हालात में मैं कैसे बाहर निकलती?
हड़बड़ा कर मैं जब सेठी साहब के कमरे में गयी तो देखा की सेठी साहब अपना कमरा एकदम साफसूफ कर सारे कपडे सामान सलीके से सजा कर निकल चुके थे। मैंने खिड़की से झांका तो सेठी साहब की कार जा चुकी थी।
मेरी भाभी से हुई रात की बात मुझे बड़ी ही खटक रही थी। जो मुझे सरल सी राह लग रही थी उसमें मुझे बदनामी के कांटें दिखाई रहे थे। मेरा मेरे पति राज से बात करना बहुत जरुरी था। राज ने कहा था की वह जरूर कोई न कोई हल ढूंढ निकालेगा। मुझे मेरे पति पर पुर भरोसा था की वह जरूर इसे सुलझा देंगे। मेरे पति ने कहा था की वह फ़ोन करेंगे।