This story is part of the Padosan bani dulhan series
आगे की कहानी टीना की जुबानी
मुन्ना ने मुझसे पहले से ही यह शर्त रखी थी की वह आगे की ड्राइवर के बाजू वाली सीट पर बैठेगा और ड्राइवर अंकल से कार चलाने के बारे में बात करेगा और समझेगा की कार कैसे चलाते हैं। तो पुरे रास्ते मुन्ना ड्राइवर से कार चलाने से लेकर कार पानी में क्यों तैर नहीं सकती और क्या कार हवा में उड़ सकती है? ऐसे कई अजीबोगरीब सवाल करता रहा और ड्राइवर भैया उसे बड़े ही धैर्य से सारे प्रश्नों के उत्तर देने में लगे रहे।
मुझ में एक कमी है की जब जब भी मैं कार मैं थोड़ा सा भी लंबा सफर करती हूँ तो मुझे अक्सर नींद आ जाती है। इस बार मैंने तय किया की मैं कोशिश करुँगी की कार के सफर दरम्यान ना सोऊँ। मैं सेठी साहब के अनुभव और उनके विचारों की परिपक्वता की बड़ी ही प्रशंशक थी।
मेरी इच्छा थी की सेठी साहब के जीवन के अनुभवों से मैं कुछ सिख लूँ। सो सफर में समय भी पास हो और नींद भी ना आये इस लिए मैंने सेठी साहब से पूछा, “सेठी साहब आप अपने जीवन का कोई ऐसा अनुभव या वाक्या बताइये जो आपके लिए बड़ा ही यादगार एवं रोमांचक रहा हो।”
मेरी बात सुनकर कुछ देर सोचते रहे फिर मेरी और देख कर बड़े ही शांत और गंभीर स्वर में बोले, “तुम तो जानती ही हो की मैं माँ दुर्गा को बहुत मानता हूँ। माँ ने मेरे जीवन में अद्भुत चमत्कार किये हैं। मैं उनमें से एक चमत्कार के बारे में बताता हूँ जिसे मैं कभी भूल नहीं सकता।”
यह कह कर उन्होंने मुझे अपने जीवन के एक अद्भुत रोमांचक अनुभव के बारे में बताया जिसे सुनकर मेरे भी रोंगटे खड़े हो गए। सेठी साहब उन दिनों पहाड़ों में एक हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट की कंपनी में काम कर रहे थे। उनको एक पहाड़ी पर ही सर्किट हाउस में एक कमरा मिला था जिसमें वह रहते थे।
वह हर रोज सुबह काम पर जाने के पहले स्नान के बाद माँ की पूजा, ध्यान और आरती करना नहीं भूलते थे। एक दिन जब वह सुबह उठ कर पूजा ध्यान कर रहे थे तब अचानक उनके कानों में उन्हें एक लड़की की हलकी मधुर सी आवाज सुनाई पड़ी, “सावधान रहना।”
सेठी साहब ने चारों तरफ देखा की किसने बोला, पर कोई भी आसपास नहीं था। अपने दिमाग का भ्रम होगा यह सोच कर सेठी साहब पूजा आरती बगैरह कर काम पर निकल गए। पर यह आवाज उनके कानों में गूंजती रही। उनदिनों सेठी साहब के पास एक जीप थी। उस जीप में वह रोज लंच के समय वापस सर्किट हाउस पर आकर दोपहर का खाना खाकर फिर काम पर निकल जाते थे। सर्किट हाउस एक पहाड़ी पर था और जीप से काफी चढ़ाई और घुमाव वाला रास्ता पार कर उस सर्किट हाउस पर पहुंचा जा सकता था।
रोज की तरह उस दिन भी सेठी साहब दोपहर का लंच करने सर्किट हाउस अपने कुछ साथीऒं के साथ जीप को पहाड़ी पर चढ़ाई और घुमाव वाले रास्ते से चलाते हुए पहुंचे। अपने साथिओं को सर्किट हाउस के आंगन में उतार कर जब वह जीप को पार्क करने के लिए पहाड़ी के किनारे जाने के लिए जीप को रिवर्स कर रहे थे तब अचानक उनके कानों में फिर वही आवाज सुनाई दी “सावधान रहना”।
आवाज सुनते ही सेठी साहब ने जब ब्रेक लगाई तो जीप निचे खाई की और लुढ़क कर गिर रही थी। जीप के पीछे जो सीमेंट की दीवार को एक छोटा सा खम्भा रोके रखा था वह टूट कर गिर गया था। उसी समय सेठी साहब ने माँ को याद किया और एक धमाके के साथ जीप निचे गिरने से रुक गयी। सेठी साहब ने निचे उतर कर देखा तो जीप एक टूटे पेड़ के मूल के सहारे रुकी ना होती तो सेठी साहब के साथ निचे कम से कम एक हजार फ़ीट से भी गहरी खाई में गिर जाती और जीप के साथ सेठी साहब का पता भी नहीं चलता।
सेठी साहब ने कहा, “मैं समझ गया की माँ ही मुझे वह आवाज देकर सावधान कर रही थी। और उस दिन माँ ने ही मुझे बचा लिया।” यह बात कहते कहते सेठी साहब की आंखौं में पानी भर आया। मैं भी कहानी सुनकर काफी भावुक हो गयी थी। मैंने पहले तो माँ की एक फोटो जो कार के डैशबोर्ड पर रखी थी उस को हाथ जोड़े और फिर सेठी साहब की और देख सेठी साहब का हाथ थामा।
अनायास ही उस संवेदनशील घडी में मैंने उनका हाथ मेरे हाथ में लिया और मेरी जाँघ पर साड़ी के ऊपर रखा। मेरी आँखों में भी आंसूं आ गए। मेरी भावुक स्थिति और मेरी आँखों में आंसूं देख सेठी साहब अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पाए। थोड़ा सा सीट से खिसक कर, ताकि ड्राइवर हमें उसके सामने लगे आयने में देख ना सके, उन्होंने मेरा सर बाँहों में ले कर मुझे गले लगा लिया। मैं अपना सर उनकी चौड़ी छाती पर रख कर अपने आपको बड़ा महफूज़ महसूस कर रही थी। सेठी साहब भी उस भावुक अवस्था में बिना बोले मेरे बालों को सहलाते रहे।
उस बात के बाद हम में से कोई कुछ भी बोल नहीं पाए। कार के चलते चलते मैं कब गहरी नींद सो गयी पता ही नहीं चला। जब करीब तीन चार घंटे बाद आधे रास्ते में नाश्ते और चाय के लिए ड्राइवर ने कार रोकी तब मैंने पाया की मेरा सर सेठी साहब की जाँघों पर टिका कर मैं पीछे की सीट पर लम्बी हो कर सो रही थी।
सेठी साहब बेचारे मुझे आराम से सोने देने के लिए खिड़की की और खिसक कर थोड़ी सी जगह में मेरा सर अपनी जाँघों पर लिए हुए बैठे थे। सेठी साहब कभी मेरा सर तो कभी मेरी बाँहों को सेहला कर बड़े दुलार से चुपचाप बैठे हुए मुझे देख रहे थे। नींद में सोते हुए मुझे पता नहीं मेरा पल्लू कब खिसक गया होगा और मेरे ब्लाउज और ब्रा के भी बाहर फैले हुए मेरे बड़े बड़े मम्मे सेठी साहब को इतने करीब से नजर आ रहे होंगे।
सेठी साहब के मेरी बाँहें हिला हिला कर मुझे जगाने पर मैं हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई और अपने पल्लू को ठीक करते हुए चाय नाश्ते के लिए निचे उतरी। चाय नाश्ता ख़त्म होने के बाद मुन्ना और ड्राइवर बातें करते वापस कार की और जा रहे थे तब मेरी चाय ख़तम नहीं हुई थी। सेठी साहब हमारे बिल का भुगतान कर मेरी चाय ख़तम होने का इंतजार का रहे थे!
तब मौक़ा देख कर मैंने सेठी साहब से कहा, “सेठी साहब, जब तक हम मेरे मायके पहुंचेंगे तब तक तो रात हो जायेगी। भाई ने आपके और ड्राइवर के खाने और रहने का पूरा इंतजाम कर दिया है। हमारा घर काफी बड़ा है। ड्राइवर के लिए आँगन में एक बाथ रूम अटैच्ड कमरा है और हमारे लिए ऊपर की मंजिल पर दो कमरे खाली हैं और हर तरह से रहने के लिए तैयार हैं।आप प्लीज अपने होटल को फ़ोन कर दीजिये की आप नहीं आएंगे और वह आपकी बुकिंग कैंसिल कर दे। अगर आप हमारे साथ रुकेंगे तो हमें बड़ी ही ख़ुशी होगी।”
मेरे काफी आग्रह के बाद सेठी साहब ने मेरी बात मान कर फ़ोन कर के अपनी होटल के रूम की बुकिंग सिर्फ उस दिन के लिए कैंसिल की। जब सेठी साहब ने अपनी बुकिंग कैंसिल की तब मैंने सेठी साहब का हाथ अपने हाथ में लेकर दबाया और अपनी आँखों से और आभार युक्त मुस्कान से उनको “शुक्रिया” कहा।
दुबारा जब हमारा सफर शुरू हुआ तो जागने की मेरी लाख कोशिश करने पर भी मुझे नींद की झपकियां आतीं रहीं। मैं हमेशा यह देखती रही की मेरी वजह से सेठी साहब को कष्ट ना हो। पर पता नहीं कब मैं फिर से गहरी नींद सो गयी और लुढ़क कर सेठी साहब के ऊपर जा गिरी।
सेठी साहब ने कार के बिलकुल एक कोने में खिसक कर मुझे पीछे की सीट पर लम्बी हो कर लेटने दिया और पहले की तरह ही मेरा सर फिर अपनी जाँघों के ऊपर ले लिया। इस बार एक बार मैं जग गयी तो मैंने पाया की मेरा सर सेठी साहब की जाँघों के ऊपर था। सेठी साहब का एक हाथ मेरी एक बाँह को सेहला रहा था। मैंने थोड़ा ऊपर की और खिसक कर सेठी साहब की गोद में अपना सिर रख दिया।
शाम का समय हो चूका था, कुछ कुछ अन्धेरा सा छा रहा था। उस वक्त मेरा मन बड़ा ही चंचल हो रहा था। एक और इतने हैंडसम और तगड़े सेठी साहब जो मेरे लिए इतना सब कुछ कर रहे थे, और एक मैं थी जो उनके लिए कुछ भी नहीं कर रही थी।
लास्ट टाइम जब वह मेरी मालिश कर रहे थे तब अगर मैं उन्हें थोड़ा सा भी सपोर्ट करती तो वह मेरे स्तनों को मसल कर खुश होते। मेरा क्या जाता? मेरे पति तो यह सुन कर बड़े खुश होते। मेरे पति ने तो बल्कि मुझे लगभग स्पष्ट शब्दों में ही इशारा कर दिया था की मैं सेठी साहब से चुदवा लूँ तो वह बहुत खुश होंगे। पर उस टाइम मैंने कुछ किया नहीं और उतना बढ़िया माहौल बेकार चला गया।
मेरा बड़ा मन हुआ की अभी कार में जाते जाते मैं सेठी साहब को ऐसे इशारे दूँ की वह समझ जाएँ की अगर वह मेरे साथ आगे बढ़ेंगे तो मुझे कोई आपत्ति नहीं और उन्हें चाहिए की वह हिचकिचाएं नहीं। अगर वह समझ गए तो शायद सेठी साहब पुरे तीन दिन हमारे घर में ही रुकने के लिए राजी हो जाएँगे और जयपुर होटल में रुकने की जिद नहीं करेंगे। पर मुझे सावधानी रखनी होगी की ड्राइवर जो आगे बैठा गाडी चला रहा था उसको कोई शक नहीं होना चाहिए।
मैंने सेठी साहब को कोई ना देखे ऐसे धीरे से उनकी जांघ के ऊपर हलकी सी चूँटी भर के उन्हें इशारा किया की मैं शरारत के मूड़ में थी। मेरे चूँटी भरने से सेठी साहब अपनी सीट पर कुछ इधरउधर तो खिसके पर शुक्र था की वह कुछ बोले नहीं। सेठी साहब समझ गए की मैं जाग रही थी।
वैसे ही कार चलती रही और मैं पहले ही की तरह सेठी साहब की गोद में मेरा सर रख कर पीछे की सीट पर लम्बी हो कर सो रही थी। पर इस टाइम मैंने चुन्नी से अपने सर और छाती अच्छी तरह से ढक लिए। मैंने चुन्नी के निचे अपना एक हाथ अपने सर पर और दूसरे हाथ को सेठी साहब की जाँघ के निचे जाँघ और सीट के बिच में रखा हुआ था।
जब सेठी साहब ने भी कार के चलते अपना एक हाथ आदतन मेरी बाँह पर चुन्नी के ऊपर रखा तो मैंने धीरे से चुन्नी को हटा कर सेठी साहब का हाथ चुन्नी के निचे मेरे हाथ में लिया। चुन्नी से ढके हुए ही मैंने अपना हाथ मेरी छाती पर मेरी कमर तक सीधा कर लिया। उस समय मेरी बाँह मेरी छाती पर थी।
सेठी साहब ने भी चुन्नी से ढके हुए अपने हाथ को मेरी बाँह पर रखा और वह मेरी बाँह को अपने हाथ से हलके से प्यार से सहलाने लगे। अँधेरे में और चुन्नी के निचे ढके हुए होने के कारण सेठी साहब का हाथ कहाँ है कोई देख नहीं सकता था। सेठी साहब समझ गए थे की मैं उस वक्त जाग रही थी।
मैंने धीरे से जानबूझ कर मेरी बाँह हटा दी और सेठी साहब का हाथ सरक कर मेरी छाती पर फिसल ने दिया। फिर मैंने हलके से अपने हाथ से सेठी साहब के हाथ को थामे रखा जिससे सेठी साहब अपना हाथ मेरी छाती को छूने के डर के मारे वापस ना खिंच लें।
मैंने मेरी छाती पर टिके हुए हमारे हाथ मेरे पल्लू से अच्छी तरह ढक दिए ताकि अगर ड्राइवर या मुन्नू पीछे देखें तो उन्हें हमारे हाथ नजर ना आये। सेठी साहब का हाथ मेरे स्तनोँ पर ब्रा को को छूने से जैसे मेरे रगों में खून तेजी से बहने लगा।
कुछ देर बाद जब मुझे तसल्ली हो गयी की सेठी साहब उनका हाथ मेरी छाती से नहीं हटाएंगे तब धीरे से मैंने अपना हाथ वहाँ से खिसका लिया। मैंने सेठी साहब का हाथ मेरी छाती के ऊपर ही रहने दिया। मैंने महसूस किया की मेरी इस हरकत से सेठी साहब में भी कुछ हिम्मत आयी और वह धीरे से अपनी उँगलियों को मेरे ब्लाउज के ऊपर से मेरे स्तनोँ के ऊपर फिराने लगे।
मैं चाहती थी की उस अँधेरे का फायदा उठा कर सेठी साहब मेरे ब्लाउज और ब्रा को खोल कर मेरे नंगे स्तनोँ को खूब मसलें और सहलाएं और जो उनकी अधूरी इच्छा थी वह उसे पूरी करें।
कुछ देर मेरे स्तनोँ को ब्लाउज के ऊपर से सहलाने के बाद भी जब सेठी साहब ने कुछ किया नहीं तो मुझे वाकई में गुस्सा आ गया। यह कैसा आदमी है? इतनी लिफ्ट देने के बाद भी कुछ करता नहीं। गुस्से में मैंने सेठी साहब की जॉंघ पर एक तगड़ी चूँटी भरी। इस बार सेठी साहब काफी तगड़ा दर्द हुआ होगा, क्यूंकि उनके मुंह से हलकी सी सिसकारी निकल गयी।
सेठी साहब शायद मेरा इशारा समझ गए होंगे, क्यूंकि सेठी साहब ने मेरी चूँटी के जवाब में मेरे एक स्तन पर निप्पल पिचका कर इतनी जोर से चूँटी भरी की मेरे मुंह से भी सिसकारी निकल गयी। इतनी सख्त चूँटी भर कर सेठी साहब क्या सन्देश देना चाहते थे? शायद सेठी साहब इशारा कर रहे थे की जो भी करना है वह बाद में करेंगे, उस वक्त नहीं क्यूंकि कार में मुन्ना और ड्राइवर हैं। पर साथ साथ में यह सन्देश भी दे ही दिया की वह भी अब मेरे साथ सेक्स का खेल खेलने के लिए तैयार थे।
उस वक्त मुझे सेठी साहब पर इतना प्यार उमड़ रहा था की मैं इंतजार के मुड़ में नहीं थी। मैं चाहती थी की सेठी साहब के साथ मेरी सेक्स की दास्तान उसी समय कार में ही शुरू हो, ताकि जब रात को हम आजुबाजु के कमरे में रुकें तो सेठी साहब के दिमाग में मेरी नियत के बारे में कोई असमंजस ना हो।
मैं सेठी साहब का हाथ मेरे हाथ में ले कर मेरे गालों पर धीरे से रगड़ने लगी। फिर उनके हाथ की हथेली को मेरे होँठों पर रख मैं उन्हें प्यार से चूमती रही। मेरी चूमने का जोश मेरी मानसिक स्थिति का अंदेशा देता होगा।
जब मैंने महसूस किया की शायद ड्राइवर ना देखे इस डर के मारे सेठी साहब फिर भी आगे बढ़ने से कतरा रहे थे तब मैंने अपने हाथ सेठी साहब की गर्दन के आसपास लपेट कर अपने आपको हलके से थोड़ा ऊपर उठाया और सेठी साहब का मुंह निचे कर मेरे होँठ पर सेठी साहब के होँठ चेप दिए।
तब कहीं जाकर सेठी साहब का धैर्य का बाँध टूटा। फिर तो सेठी साहब मेरे होँठों को ऐसे जकड कर मुझे इतने प्यार से चुम्बन करने लगे की मेरा दिनाग घूमने लगा। कार के अंदर अन्धेरा छाया हुआ था, इसलिए ड्राइवर हमारी करतूतें देख नहीं सकता था।
सेठी साहब बार बार अपनी जीभ मेरे मुंह में देकर उसे चूसने के लिए दे रहे थे और मैं भी पुरे जोश से सेठी साहब की जीभ चूस कर उनकी लार को निगल रही थी।
सेठी साहब हलके से मेरे कान में अपने होँठ लगाकर बोले, “टीना, मैं तुम्हें बेतहाशा चाहता हूँ। मैं तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूँ। क्या तुम मुझे……?” सेठी साहब ने वाक्य वैसे ही आधा लटकता हुआ छोड़ दिया। मैं समझ नहीं पायी की सेठी साहब आगे क्या कहना चाहते थे।
क्या वह कहना चाहते थे की “तुम भी मुझे अपनाओगी?” वैसे मैं जानती थी की सेठी साहब की आदत थी की जो कुछ भी कहना चाहते थे उसे वह घुमा फिरा कर नहीं सीधा कह देते थे। तो फिर क्या वह एकदम सीधी चुदाई की ही बात करना चाहते थे और पूछना चाहते थे की “क्या तुम मुझे चोदने दोगी?”
मैं उस वक्त चिल्ला चिल्ला कर कहना चाहती थी की “सेठी साहब मैं तुम्हारी हूँ, मेरा यह बदन तुम्हारा है और मैं तुमसे खूब सख्त तरीके से चुदने के लिए सिर्फ तैयार ही नहीं, बल्कि बेसब्र हूँ।” उस समय मेरी चूत पूरी तरीके से गीली हो चुकी थी। मेरा बस चलता तो उसी वक्त मैं नंगी हो कर सेठी साहब को कार में ही मुझे चोदने के लिए मजबूर कर देती।
सेठी साहब का मुंह मरे छोटे होँठों को पुरे तरीके से अपने कब्जे में रखे हुए था। वह कभी मेरे होँठ चाटते तो कभी अपने होँठों के अंदर मेरे होँठों को चूस कर जैसे मेरे होँठों को खा ही जाएंगे इतनी शिद्दत और जोश से चूस, चुम और काट रहे थे। वह कुछ ही पलों का चुम्बन मेरे जीवन का सबसे यादगार चुम्बन था। हमारी कार उस समय मेरे मायके के गाँव से करीब एक घंटे की दुरी पर थी।
सेठी साहब ने जैसे वह मेरा दिमाग पढ़ रहे हों, एक हाथ मेरी पीठ पीछे रख कर अपनी उँगलियों से एक के बाद एक मेरे ब्लाउज के बटन खोल दिए। मैंने भी मेरी पीठ ऊपर कर उनको मेरे ब्लाउज के पट और मेरे ब्रा के हुक खोलने दिया। मेरे अल्लड़ स्तन अब ब्रा और ब्लाउज के बंधन से मुक्त हो चुके थे।
थोड़ा भी समय ना गंवाते हुए सेठी साहब मेरी और थोड़ा घूम कर, दोनों हाथों से मेरे गोरे भरे हुए मांसल स्तनोँ को सहलाने और मसलने लगे। मेरा पूरा बदन और ख़ास कर मेरा मन, मेरा दिमाग उस समय उत्तेजना की अद्भुत सुनामी में झूम रहा था। मेरे स्तनोँ की निप्पलेँ सख्त हो गयीं थीं और सेठी साहब की उंगलियों से पिचकवाने के लिए बेताब थीं।
अनायास ही मेरा एक हाथ मैंने सेठी साहब की जाँघों के बिच रख दिया और पतलून के ऊपर से ही मैंने सेठी साहब के लण्ड को सहलाने की कोशिश की। उस समय मुझे एहसास हुआ की सेठी साहब का लण्ड उनके पतलून में लोहे के छड़ की तरह सख्त हो चुका था।
मेरे लिए उस समय इतनी संकड़ी जगह में सेठी साहब के लण्ड को देख पाना या ठीक से महसूस करना भी नामुमकिन था। पर जो कुछ भी मुझे महसूस हुआ उससे मुझे लगा, बापरे! वाकई में जो मैंने अपने पति से सूना था शायद वह सच ही लग रहा था।
पढ़ते रखिये.. कहानी आगे जारी रहेगी!