किसी गैर से चुदवाने का जोश दिमाग में छाया है,
मुझे चोदने प्रेमी मेरा आज मेरे घर आया है।
एक बालम था अब तक मेरा जिसका लण्ड लिया मैंने,
अब इस प्रेमी का लुंगी मैं जो मेरे मन भाया है।
ब्याह रचाएगा मुझसे दुल्हन उसकी बन जाउंगी,
कहता है मेरा प्रेमी की तभी मैं उसको पाउंगी।
ब्याह रचाकर पहले तो वह मुझ को खुद से जोड़ेगा,
चोद चोद कर फिर मुझको बेहाल बना कर छोड़ेगा।
आरती ने रमेशजी के जीभ अपने मुंह में लेकर उसे चूसते हुए कहा, “रमेशजी मैं भी आपसे मिलकर बहुत ही खुश हूँ। मैं मेरे पति का और ख़ास कर मेरे मुंहबोले पापा का शुक्रिया करती हूँ की मेरे बार बार मना करने पर भी उन्होंने मुझे अपना पूरा जोर लगा कर समझाया और मनाया और मुझे आपसे मिलाया। रमेशजी मैं सच कह रही हूँ की आपका प्यार देख कर मैं भी आपसे प्यार करने लगी हूँ। अभी कुछ देर पहले बाथरूम के बाहर मैं आपसे ऊँचे आवाज से बात की इसके लिए मैं शर्मिन्दा हूँ। मुझे माफ़ कर दीजिये।”
आरती की बात सुनकर रमेशजी भी भावुक हो गए और बोले, “आरतीजी, आप ऐसा क्यों कह रहीं हैं? आपने मुझे डाँटा, तो मुझे बहुत अच्छा लगा। डाँटते वही हैं जो प्यार करते हैं।” यह कह कर रमेशजी ने आरती के मुंह को पकड़ कर अपनी और घुमाया।
रमेश ने आरती के स्तनों को अपने हाथों में मसलते हुए और निप्पलोँ से खेलते हुए कहा, “आरती, मैं अब तुम्हें कभी नहीं छोडूंगा। मैं जिंदगी से थका हारा हुआ हूँ। अब मुझे तुम अपनी बाँहों में ले लो और मुझे अपने दिल में जगह दो प्लीज।”
आरती और रमेश एक गहरे चुम्बन में जुट गए जब की रमेशजी के हाथ हरदम आरती के स्तनोँ को मसल रहे थे और आरती प्यार से रमेशजी के बाल अपनी उँगलियों में सेहला रही थी।
आरति ने रमेशजी को अपने स्तनोँ को सहलाने दिया। आखिर वह स्तन कुछ समय के बाद तो रमेशजी के भोग के लिए ही प्रस्तुत होने थे। पर आरती ने यह भी साफ़ कर दिया की वह रमेशजी को उससे आगे नहीं बढ़ने देगी।
आरती ने रमेशजी के बालों में उंगलियां फेरते हुए कहा, “रमेशजी, आप मुझसे शादी करके ही सम्बन्ध जोड़ना चाहते थे ना? तो आज हमारे सम्बन्ध को सही तरीके से स्थापित करने के लिए मेरे मेरे ख़ास प्रियजन वीडियो कांफ्रेंस द्वारा कुछ विधि विधान करेंगे। वह खुद ही इन रस्मों को वीडियो चाट द्वारा हमें समझायेंगे और कराएंगे। उन्हें हमें आज शाम को निभाना है। हो सकता है आपको वह कुछ अजीब से लगें, पार आपको वह जैसे कहें आपको करना है। तभी हमारा सम्बन्ध पक्का होगा। आपको कोई आपत्ति तो नहीं ना?”
रमेशजी ने आरती के स्तनों को ब्लाउज के ऊपर से ही झुक कर चूमते हुए कहा, “जब तुम मेरे साथ हो और मेरी होने वाली हो तो मुझे कोई भी विधि और किसी रीतिरिवाज से कोई विरोध या आपत्ति नहीं है।”
ऐसे ही प्यार करते हुए पता नहीं कब रमेशजी की आँखें बंद हो गयीं और हाथ रुक गए। आरती ने रमेशजी को धीरे से ठीक से सुला दिया और ब्लाउज में से उनका हाथ निकाल कर खुद रसोई में पहुँच कर दोपहर का भोजन बनाने में जुट गयी। रमेशजी करीब पुरे दिन ही सोते रहे।
मैंने गन्धर्व विवाह का विधिविधान काफी विस्तार पूर्वक तैयार किया था और बड़ी ही सावधानी से उसे लिख रक्खा था। जिसमें मुझे कई दिन लग गए थे। उसे मैंने करीब बिस पन्नों में लिखा था। उसमें सारी चीजों, सामान, जो कुछ बोलना था और जो कुछ करना था उन्हें मूवी की कोई स्क्रिप्ट लिखी गयी हो ऐसे मैंने तैयार किया था जिससे उन्हें पढ़ कर अर्जुन, आरती और रमेश को मैं समझा सकूँ और उनका सहज रूप से ही अमल हो सके।
मैंने अर्जुन को बता दिया था की शाम के आठ बजे रमेश के गन्धर्व विवाह की विधि शुरू होगी। मैं ठीक सात बज कर पचपन मिनट पर ऑनलाइन हो जाऊंगा और अर्जुन सबके सामने मेरी वीडियो चाट दिखायेगा और जैसे मैं कहूंगा ऐसे शादी की विधि सब करेंगे।
रात को ऑनलाइन होते ही मैंने सब को एक साथ बुलाया और कहा की जो विधि मैं करवाने जा रहा हूँ वह एक छोटे से दक्षिण पेसिफिक स्थित एक टापू में की जाती है। जब कोई शादीशुदा स्त्री का किसी पराये पुरुष पर मन आता है, और वह उससे सम्भोग करना चाहती है मतलब चुदवाना चाहती है तो उस पुरुष के साथ वह गन्धर्व विवाह कर सकती है।
ऐसा विवाह करने से जब तक स्त्री चाहे दोनों पतियों से सम्भोग कर सकती है, दोनों पतियों स चुदवा सकती है। इस विवाह की बड़ी ही सटीक अर्थ पूर्ण विधि है, जिसमें स्त्री की पूरी महत्ता का ख्याल रखा जाता है। मैंने हमारी भारतीय विधि को उनकी विधि से मिलाकर यह विधि बनायी है जिसमें दोनों पति उस स्त्री को कुछ वचन देते हैं।
इस विधि की खूबी यह है की उसमें स्त्री को सर्वोपरि माना गया है। सारे रीतिरिवाज स्त्री की सुरक्षा, गरिमा और सुख समृद्धि के लिए बनाये गए हैं। हर श्लोक में पुरुष को स्त्री की महिमा को माननी पड़ती है और उसके गुण स्वीकार करने पड़ते हैं। हो सकता है आपको यह विधि कुछ अजीब लगे पर उसकी महत्ता मैं जब आपको समझाऊंगा तब आप मानेंगे की विधि सही है। अगर आप सब को मंजूर है तो मैं आगे बढूं।
मैंने सब से पूछा। सब से पहले आरती ने कहा की वह इसी विधि से शादी करेगी। जब आरती का फैसला आ ही गया तो किसी और के मना करने का तो सवाल ही नहीं था। सब ने ओके कर दिया।
तब रमेश ने पूछा, “तो अंकल, आप हमारी जो गन्धर्व विवाह की विधि है उससे शादी क्यों नहीं कराते?”
मैंने जवाब में कहा, “आरती का तुम्हारे साथ गंधर्व विवाह साधारण गन्धर्व विवाह से अलग है। सामान्य गन्धर्व विवाह में एक मर्द और एक औरत एक दूसरे से कामुक रूप से आकर्षित हो कर सम्भोग, माने चुदाई के इरादे से छुपछुपा कर गंधर्व विवाह कर अपने आपको तसल्ली देते हैं की उन्होंने विवाह किया है और फिर औरत मर्द से बेख़ौफ़ चुदवाती है…
उसे यह सांत्वना है की मर्द ने उसके साथ विवाह किया है। पर इस विवाह में बात कुछ और है। इसमें दो नहीं पर तीन इंसान शामिल हैं। एक पति, एक पत्नी और एक दुसरा मर्द। यह विधि कुछ अलग सी जरूर है पर मुझे तो मेरे बनाये हुए विधिविधान में कन्या के हितों का ख्याल रखना पड़ेगा ना?”
मैंने अर्जुन से कहा, “आरती का शुद्धिकरण करके (आरती को आपने हाथों से नहला कर) तुम्हें आरती को रमेश को सौपना होगा ताकि रमेश खुद उसे दुल्हन के रूप में सजा सके। रमेश उसे सजायेगा। होने वाले पति के नाते रमेश को सारी तैयारियां खुद करनी होगी। सारे आभूषण और सामग्री रमेश को लानी होगी। रमेश आरती को बढ़िया तरीके से दुल्हन बनाएगा।”
रात की रसोई के समय आरती घर में सीधे सादे ब्लाउज चनिया चोली बगैरह पहने हुए थी। अर्जुन आरती को उन्ही कपड़ों में बाथरूम में ले गया। बाथरूम में ले जाने के बाद अर्जुन ने आरती को नहलाने के लिए आरती के एक के बाद एक कपडे निकाल कर उसे नंगी किया। मेरी बतायी हुई विधि के अनुसार अर्जुन को अपनी बीबी को सजाने के लिए रमेश के हवाले करना था
उस दिन नंगी आरती को देख अर्जुन मोहित हो गया। इतने सालों में अर्जुन ने अपनी बीबी को सैंकड़ों बार नंगी देखा होगा। पर उस रात की बात कुछ और थी। आरती एक मदहोश सी हालत में बिना नशा किये हुए भी नशीली लग रही थी। आरती की आँखों में एक अजीब सा उन्माद झलक रहा था जो आरती के हर एक अंगों को एक नयी अद्भुत चेतना प्रदान कर रहा था।
आरती की आँखें एक नए प्रियतम से प्यार करवाने के लिए मतलब एक नए लण्ड से चुदवाने के लिए व्याकुल थीं। यह व्याकुलता आरती की चूँचियों में भी स्पष्ट दिख रहीं थीं। उस रात तक कभी भी अर्जुन ने अपनी बीबी की चूँचियों की निप्पलेँ इतनी सख्त नहीं देखीं थीं। आरती के स्तन ऐसे सख्त और फुले हुए दिख रहे थे जैसे वह अपने प्रियतम के हाथोँ से मसलवाने के लिए बेताब थे।
दोनों स्तन ऐसे कड़क खड़े हुए दिख रहे थे जैसे नया प्रियतम कब उन्हें अपनी मुंह से चूसेगा, अपनी जीभ से चाटेगा और अपने दांत से काटेगा। आरती की चूत में से आरती की टांगों के बिच से धीरे धीरे उत्तेजना के मारे आरती का स्त्री रस रिस रहा होगा, पर चूँकि वह दोनों शॉवर में नहा रहे थे इस लिए वह दिख नहीं रहा था।
अर्जुन का उसी समय बड़ा मन किया की बाथरूम में शॉवर में नहलाते हुए वह अपना लण्ड बाहर निकाले और अपनी बीबी को वहीं के वहीँ बाथरूम में खड़े खड़े ही चोद डाले। अर्जुन ने आरती को अपनी बाँहोँ में उठाकर एक कोने में खड़ा कर अपना लण्ड आरती की चूत में डालने की जब कोशिश की तो मैंने उसे डाँटते हुए कहा, “खबरदार। तुम अभी आरती का शुद्धिकरण कर रहे हो। आरती को तुम इस वक्त चोद नहीं सकते।” अर्जुन मन में ही मन में शायद मुझे कोसता हुआ पीछे हट गया।
इसके बाद मैंने अर्जुन को इस श्लोक को बोलने के लिए कहा। मैंने कहा, “मेरे पीछे इस श्लोक को बार बार बोल कर अपनी पत्नी की महिमा को बखानो।”
फिर मैंने वह श्लोक बोला…