नमस्कार मित्रो, आपका दीप पंजाबी एक बार फेर आपकी सेवा में गरमा गर्म कहानी लेकर हाज़िर है। इतना तो जरूर पता है मुझे के अपने बारे में बताने की जरूरत नही है। सब दोस्त जानते ही हो।
सो ज्यादा समय न खराब करते हुए सीधा आज की कहानी पे आते है।
आज की कहानी मेरे हीे एक खास दोस्त की आपबीती है। तो चलिये सुनते है आगे की कहानी उसी की ही ज़ुबानी।
हलो दोस्तों मेरा नाम प्रदीप सिंह है। मैं पंजाब का ही रहने वाला हूँ और एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ता हूँ। मेरी उम्र 25 वर्ष के लगभग है। मेरी आज की कहानी मेरे और मेरी अंधी पड़ोसन के बारे में है। थोडा प्राइवेसी का ध्यान रखते हुए उसका नाम बदल रहा हूँ।
हुआ ऐसे की मेरे घर के बिलकुल सामने मेरे पड़ोसी राम सिंह का घर है। काफी साल पहले उनका तो निधन हो गया है। अब परिवार में उसकी बीवी और उसके 2 बच्चे रहते है। जिसमे बड़ी बेटी रजनी जो जन्म से ही अंधी है। उसकी उम्र यही कोई 35 वर्ष होगी और छोटा बेटा रवि जो 20 वर्ष का है और अभी पढ़ रहा है।
अब हमारी कहानी की नायिका यानि रजनी के बारे में बतादू। हुआ यूं के रजनी के अंधी होने की वजह से उसकी शादी 25 वर्ष की आयु में ही एक उससे भी बड़ी उम्र के बूढ़े से दिखने वाले एक आदमी से हुई थी। घर वालो को भी ये था के किसी न किसी तरह से बेटी का घर बस जाये। वरना अंधी को कौन अपने घर की बहु बनायेगा।
अभी कुछ ही साल हुए होंगे शादी को के उसके पति का निधन हो गया। वो अपने मायके में आकर रहने लगी। घर वालो ने फेर एक नया घर उसकी शादी के लिए तलाशा। इस बार भी उसकी किस्मत धोखा दे गयी।
उसका नया कोई पति काम काज नही करता था, वहां थोडा समय रहने के बाद वो सब छोड़छाड़ कर अपने मायके में आ गयी। अब वो उदास उदास सी रहने लगी और पड़ोसी होने के नाते सोटी के सहारे हमारे घर आ जाती थी और माँ से बातें करके अपना दुःख बाँट लेती थी। एक दिन माँ बाज़ार और पापा अपने काम पे गए हुए थे।
जबके मैं स्कूल में लोकल छूटी की वजह से घर पे अकेला था। दरवाजा अंदर से बन्द था और मैं अपने मोबाइल पे पोर्न फ़िल्म देख कर अपना लण्ड हिलाकर सोच रहा था के कोई भगवान चमत्कार करदो, आज मेरे लिए चूत का इंतज़ाम करदो। मैं इन्ही सोचो में डूबा हुआ था के जैसे ही दरवाजा खटकने की आवाज आई तो मैं सुचेत हो गया। मुझे लगा के शायद माँ बजार से आ गयी है।
तो मैं मोबाइल को बन्द करके अपने कपड़े अच्छी तरह से ठीक करके दरवाजा खोलने आ गया। जैसे ही दरवाजा खुला तो देखा बाहर रजनी यानि मेरी पड़ोसन खड़ी हुई है।
मैंने पूछा,” कैसे हो रजनी दीदी ?
वो — ठीक हूँ दीप(मेरा निकनेम)। मैं आंटी से मिलने आई थी। क्या वो घर पे है?
मैं — नही रजनी दीदी वो तो बाज़ार गई है। शाम तक आएँगी। कोई उनसे काम था या बस ऐसे ही पूछ रहे हो?
वो — नही नही, काम तो कुछ नही बस ऐसे ही जब अकेली होती हूँ, मन बहलाने की खातिर आ जाती हूँ आंटी से पास, जब भी दिल करता है।
मैं — कोई बात नही दीदी, अंदर आओ न, धुप में बाहर क्यों खड़ी हो।
वो मेरा हाथ पकड़कर मेरे साथ अंदर आ गयी और हमने गली के दरवाजे को भी अंदर से बन्द कर लिया।
वो — दीप, दरवाजा बन्द क्यों कर रहे हो।
मैं — बात दरअसल दीदी ये है के गर्मी के दिन है। सब लोग अपने अपने घरो में पंखे कूलर लगाकर सोये पड़े है। अब गली या किसी के घर में क्या हो रहा है। किसी को इससे कोई मतलब नही है। हो सकता है हम अंदर बैठे हो और बाहर से कोई अजनबी चोर या मंगता आकर कोई समान लेकर भाग जाये। हमे अंदर बैठे को कैसे पता चलेगा। इस लिए दरवाजा अंदर से बन्द किया है।
मेरे इस जवाब से वो सन्तुष्ट सी हो गई। गर्मी होने की वजह से वो पसीने से भीग सी गई थी। मेरे बैडरूम में आते ही मैंने उसे बेड पे बिठा दिया और वो छत वाले पंखे की हवा से अपना कमीज़ हिलाकर पसीना सुखाने लगी।
वो अपने सूखे होंठों को जीभ से तर करने की कोशिश कर रही थी। जो के एक इशारा था के उसको प्यास भी लगी है। मैंने उसके बिन कहे ही एक पानी का गिलास उसके हाथ में थमा दिया और कहा,” लो रज्जी दीदी पानी पी लो। उसने बिना कुछ कहे, पानी पी लिया और दुबारा मुझे गिलास दे दिया।
वो — वैसे तुम क्या कर रहे थे अकेले घर पे दीप ?
मैं — कुछ खास नही, अपने मोबाईल से गेम खेल रहा था और आप ?
वो — (थोडा उदास सी आवाज़ में)– मैंने क्या करना है अब, 2 बार सुहागन होकर विधवा हो चुकी हूँ। बस ज़िन्दगी को खींचकर, मौत के नज़दीक कर रही हूँ।
इतना कहकर वो फकफक रोने लगी। शायद मेरी पूछी गई बात उसके दिल को चीर गई।
मैंने उसे चुप कराना चाहा, लेकिन वो मेरे कन्धे लगकर जार जार रो रही थी। उस वक़्त उसका विरलाप सुनकर मेरा भी दिल पसीज गया था और दिल ही दिल में मैं भी रो रहा था। दीदी के सुडोल मम्मे मुझे अपनी छाती पे महसूस हो रहे थे।
मेरे साथ ऐसा पहली बार हो रहा था, सो जाहिर है स्त्री स्पर्श मात्र से ही मेरे शरीर में करंट सा दौड़ गया। पता ही नही चला कब मेरा हाथ उसके चेहरे से हटकर उसकी पीठ को सहलाने लगा। एक पलक झपकते ही मेरे रोने पर जैसे ब्रेक लग गयी और मेरा मन हवसी हो गया।
मुझे यहां लिखते बहुत शर्म महसूस हो रही है के मैं उसकी भावनाओ का गलत मतलब निकाल रहा था। जो शायद पहला स्त्री स्पर्श के कारण हो रहा था। मैं मुंह से तो चुप हो जा रज्जी, कहकर और हाथ से उसकी कन्धे से लेकर चूतडो तक सहलाकर मज़े ले रहा था।
अब रज्जी का रोना बन्द हो गया था। बस वो (होंके,आंहे) मतलब घुटी सी आवाज़ में ही दिल में रो रही थी।
कुछ ही पल में उसकी ये घुटी सी आवाज़ भी बन्द हो गयी और वो भी आँखे बन्द करके मेरे इस सहलाने का मज़ा ले रही थी। मैंने उसे आवाज़ लगाई, रज्जी दीदी। उसने कोई जवाब नही दिया। मैंने फेर उसको आवाज़ लगाई तो उसने थोडा सा कहा,” क्या है, आज पहली बार तुम्हारे गले लगकर रोने का मज़ा आ गया दीप, कसम से लगा ही नही कोई अजनबी है। ऐसा लगा जैसे मेरा रवि (मतलब उसका सबसे पहले वाला पति) है।
उसकी ये बात मेरे लिए शायद ग्रीन सिग्नल थी। लेकिन मैं फेर भी डर रहा था। मैंने डरते डरते उससे पूछा,” क्या मेरा स्पर्श वाकया में ही रवि जीजू जैसा लगा आपको।
वो — और नही तो क्या, जैसे तुम मेरी पीठ सहला रहे थे न, बिलकुल वैसे ही वो सहलाते थे और….. ??
मैं — और क्या ??
वो –( थोडा हंसकर ) — नही कुछ नही।
मैं — अब बोलो भी न, यहां कोनसा कोई और है, जो हमारी बाते सुन लेगा, सिर्फ आप और मैं ही तो हूँ।
वो — नही, दीप कुछ नही, ये बाते तेरे सामने करने लायक नही है। अभी तुम बच्चे हो।
मैं — लेकिन ये बाते, जो आप कहना चाह रही हो, मेरे सामने कब कहोगे फेर, क्योंके अब मैं बच्चा नही रहा, मेरी उम्र 25 साल हो चुकी है। मुझे बच्चा समझने की भूल मत करना। अब तो मेरे दाड़ी मूंछ भी आ गयी है।
वो — वो तो ठीक है लेकिन पहले ये बताओ तुम्हारी कोई सहेली (गर्ल फ्रेंड) है।
मैं — लो करदी न वो बात, मेरी अब गर्ल फ्रेंड न होगी तो जब शादी हो गयी तब होगी। बहुत सुंदर है मेरी गर्ल फ्रेंड शिखा।
असल में मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नही थी। मैंने तो बस उसके मुह से वो बात सुननी थी, मैं सिर्फ पोर्न फिल्में देखकर या किसी लड़की को मन में सोचकर मुठ मार लेता था। इस लिए ये सब झूठ कह दिया।
वो — अच्छा जी, तो ये बात है। लेकिन अब मुझे अपनी दीदी नही दोस्त मानकर बताओ के कभी उसके साथ कुछ किया या नही।
मैं– क्या करना था उसके साथ, बस जादू की झप्पी और उसके होंठो का रसपान इसके इलावा कुछ नही किया।
सही पूछो तो मन तो हमारा दोनों का ही था आगे बहुत कुछ करने का लेकिन समय और स्थान दोनों की कमी हर बार खलती है।
मैं उस वक्त एकदम से उसको दोस्त मानकर बोले जा रहा था। मुझे जरा सी भी शर्म महसूस नही हो रही थी।
शायद मेरे दिमाग में काम का खुमार चढ़ा था ये कारण भी हो सकता है। सौ बातो की एक बात कुछ भी था लेकिन उस वक़्त रज्जी मुझे सन्नी लियोनी से कम नही लग रही थी।
मेरे सपनों की रानी को रज्जी का रूप मिल चूका था। अब चाहे कुछ भी हो जाये मुझे बस उसे चोदने से मतलब था।
वो — अरे वाह मेरे शेर, मैं तो तुम्हे अभी भी वो बचपन वाला दीपू समझ रही थी। लेकिन तू तो मेरी सोच से उल्ट निकला।
इतना कहकर वो मेरे पेट, कमर, बगल में अपनी ऊँगली से टच करके गुदगुदी करके मुझे हंसाने का यत्न करने लगी। मैं अचानक हुए हमले से सहम सा गया और हंसने लगा और मैं भी उसे उसकी ही भाषा में जवाब देने लगा। मेरा असली मकसद तो उसको स्पर्श करने का था।
अब मैं भी कभी उसके पेट, कभी कमर तो कभी बगलो में अपनी ऊँगली से उसे टच कर रहा था। हम दोनों हंस हंस कर बावले हो रहे थे के इतने में दीदी का हाथ मेरे तने हुए लण्ड पे लग गया और उसने हाथ में जकड़ लिया।
अब ये उसने जानबूझ कर किया या हंसी मज़ाक में गलती से हुआ मुझे नही पता लगा। उसकी इस हरकत से हम दोनों की हंसी एक दम शांत हो गयी। उसने अगले ही पल एक दम से अपनी मुठी खोल दी और मेरा तना हुआ लण्ड उसकी कैद से आजाद हो गया।
मैंने पूछा,” क्या हुआ ? एक दम से चुप क्यों हो गयी तुम ?
वो — मुझसे गलती से तुम्हारे लण्ड को हाथ लग गया। मुझे माफ़ करदो।
मैं — कोई बात नही फेर क्या हुआ, तूने कोनसा जान बुझकर ऐसा किया। तुम्हें कोनसा दिखा होगा के हाथ में आने वाला कोनसा अंग है।
वो – अब मुझे घर जाना चाहिए। माँ भी इंतज़ार कर रही होगी। मुझे गेट तक छोड़ आओ।
लेकिन अब मेरी काम वासना की आग को उसने हवा दे दी थी और मैं उसे जाने नही देना चाहता था। मैंने उसे वही बैठने को बोलकर आप खुद जल्दी से गली वाला गेट खोलकर देखा के उसके घर पे कोई आ गया है या नही, इतना देखकर मैं फेर वापसी पे कुण्डी लगाकर उसके पास चला गया और बोला..
“रज्जी तुम्हारी माँ, अभी तक नही आई है। अकेली घर पे क्या करोगे। यही रहो थोडा आराम करलो लेटकर, इतने में धुप भी कम हो जायेगी और हम दोनों की माए भी आ जायेगी। तब तक हम दोनों एक दूसरे का मन बहलाते है।
मन बहलाने वाली बात को मैंने डबल मीनिंग भाषा में बोला था, जिसका शायद उसको भी आभास हो गया था। उसने हल्की सी स्माइल दी और कहा,” ठीक है, जैसा तुम्हे अच्छा लगे।
इतना कहते ही वो बेड पे एक साइड लेट गई और मैं भी उसकी बगल में जाकर लेट गया। अब मैं आने बहाने उसे छू रहा था। जिसका वो जरा सा भी बुरा नही मान रही थी। जिससे मेरी हिम्मत और बढ़ रही थी।
मैंने बात को आगे बढ़ाते हुए पूछा,” चलो आज हम दीदी, भैया नही दोस्त बनकर बात करते है, क्योंके दोस्त से कुछ भी छुपाया नही जा सकता और भाई बहन को कुछ भी बताया नही जा सकता। अब ये बताओ अपनी पहली शादी के बारे में, कैसे थे रवि जीजू।
रवि का नाम सुनते ही उसने एक ठण्डी सी साँस ली और बताया के बहुत ही मज़बूत कद काठी वाले थे रवि जी, मेरी हर जरूरत का ख्याल रखते थे। जब तक वो जीवित रहे।कभी भी मैं किसी चीज़ से वंचित नही रही।
अब तुम दोस्त बनकर पूछ रहे हो तो मेरी ग्रहस्थ जीवन (सेक्स लाइफ) बहुत मज़े से चल रही थी। अंधी होने के कारण मुझसे अपनी निचे की सफाई नही हो पाती थी। तो वो बड़े प्यार से उसे साफ़ करते थे। जितने साल मैं वहां रही उसने एक बाल वो उगने नही दिया।
हर 2 हफ्ते बाद वो रेजर से मेरी सफाई करता था और मेरी बैंड भी खूब बजाता था। जबके नए वाला पति हरिया तो उसके आगे कुछ भी नही था। मैंने उसे कई बार सफाई का बोला। लेकिन वो कहता के मुझे घिन्न आती है। इसलिए मैं नही कर सकता। उसने मुझे कोई बाल झाड़ने की साबुन लाकर दी। उससे काम तो हो जाता।
लेकिन बाद में जलन बहुत होती। इसलिए मैंने उसे कहना ही छोड़ दिया और ऐसे ही बाल रहने लगे। रोज़ाना नहाते वक्त साबुन से अच्छी तरह से साफ़ कर लेती हूँ। लेकिन न दिखने की वजह से खुद ब्लेड से डरती हूँ के कही ज्यादा लग गया तो बड़ी परेशानी की वजह बन जायेगी और किसी डॉक्टर को दिखा भी नही पाऊँगी।
फेर एक दिन सोचा के माँ को बोल दू के माँ मेरा ये काम करदे, लेकिन हिम्मत न जुटा पायी, इतना कहने की। फेर मन मार लिया के जब ऐसे ही ज़िन्दगी जीनी है तो क्या करना बाल साफ़ करके, सो उस दिन से आज तक मैंने बालों की तरफ देखा भी नही। तुम बताओ अपने बाल काटते हो या नही।
मैं – हाँ क्यों नही, मैं तो रोज़ाना नहाते वक्त अपने औज़ार को साबुन लगाकर अच्छी तरह से धोकर तेल से मालिश करता हूँ। यदि थोडा बहुत बाल दिखे तो रेज़र से निकाल देता हूँ।
वो — (बुझे से मन से)– फेर तुम्हारे तो मज़े है। एक मैं ही किस्मत मारी हूँ।
मेरी इस बात से शायद उसको जलन महसूस हुई या कहलो उसका दिल टूट गया। उसके हावभाव से मुझे ऐसा लगा।
मैं — मैं एक बात कहना चाहता हूँ, अगर तुम वादा करो के बुरा नही मानोंगी।
वो — बोलो, बुरा क्यों मानना। जब इतनी बाते हो गयी। तब बुरा नही मानी। अब क्यों बुरा मानना।
मैं — मैंने उसके कान के पास मुंह करके धीरे से कहा,” यदि तुम्हारी निचे की सफाई मैं करदू तो……..??????
मेरी इतनी सी बात ने जैसे उसकी सूनी ज़िन्दगी में बहार ला दी हो। पहले तो वो बनावटी गुस्सा दिखाने लगी और बोली,” शर्म करो यार, मैं तुम्हारी दीदी हूँ। आम बातो तक ठीक है हमने आपस में करली लेकिन ये नही। यदि किसी ने हमे इस हाल में देख लिया तो भयानक नतीजा निकलेगा। मुझे डर लग रहा है।
लेकिन मेरे द्वारा कुछ नही होगा, तुम हां तो करो एक बार, बाकी सब मेरी जिमेवारी है, कहने मात्र से ही वो मान गयी।
वो – लेकिन जल्दी करो, वरना आंटी आ जायेगी।
उसकी ये बात भी मुझे भा गयी। मैंने अपने मोबाईल से अपनी माँ के मोबाईल पे काल की और पूछा के कब आ रहे हो। तो उन्होंने बताया के अभी 2-3 घण्टे और लग सकते है। क्योंके बाज़ार में कोई रिश्तेदार मिल गया और वो उन्हें अपने घर ले गया है।
सूरज की आंच कम होते ही वहां से चल पडूँगी। इतना कहते ही फोन काट दिया। मेरी तो ख़ुशी का ठिकाना ही नही रहा। अब हमारे पास 2 घण्टे का समय था।
मैंने उन्हें हाथ पकड़ कर अपने बाथरूम में ले गया और वहां उसे सलवार उतारने को बोला। वो मेरी हर बात को मानती गयी। अब मैं निचे बैठकर उसकी बालो से ढकी चूत का जायज़ा लेने लगा। उसने बड़ी नाक को सड़ाने वाली बदबू आ रही थी। मैं नाक सिकुड़कर रह गया।
बदबू भी इतनी तेज़ के दिमाग खराब हो गया और उबकाई आने लगी। मैं उसे सफाई का कह तो बैठा, लेकिन अब मुझे अपनी कही बात से खुद पे गुस्सा आने लगा के क्यों मैंने ऐसा बोला था। मैं कभी उसकी चूत को देखता तो कभी उसके मुंह की और देखता।
फेर मैंने मन को मज़बूत करके एक साबुन का टुकड़ा उठाया और जरा से पानी से पानी से उसे गीला करके उसको रज्जी की चूत पे घिसाने लगा। मेरी हाथ का स्पर्श मात्र से ही जैसे उसको मज़ा आने लगा। वो आँखे बन्द करके सिसकारिया लेने लगी।
जब 5 मिनट तक ऐसा किया तो बाद में सेफ्टी से उसके बाल काटने लगा। साबुन की झाग से बाल नर्म हो गए थे और आसानी से कट रहे थे। कुछ ही पल में मैंने बच्चे की गाल जैसी उसकी चूत को शेप दे दी।
उसने हाथ लगाकर अपनी चूत का ज़ायज़ा लिया और बोला,” वाह रे तूने तो इस काम में अपने जीजू को भी पीछे छोड़ दिया। अब जाकर साँस आई निचे से मुझे तो।”
फेर मैंने पानी से उसे धो दिया। उसने मुझे धन्यवाद बोला और मुझसे अपनी सलवार मांगने लगी। अब उसका काम तो हो चूका था। मेरा मन था के वही उसको पेल दू।
मैंने बोला,” रज्जी, तेरा काम तो हो गया अब मेरा क्या होगा ? मेरी फीस कौन देगा ?
वो – कैसी फीस ?
अब मैं बेशर्मी पे उत्तर आया था। तुम्हारे काम से मेरा काम खराब हो गया है, अब मेरा लन्ड खड़ा हो गया है देखो मैंने उसका हाथ पकड़कर अपनी इलास्टिक वाली निक्कर निचे करके अपने तने हुए लण्ड पकड़ा दिया। अब शायद उसको भी काम नशा था। इस लिए ही उसने बुरा नही माना।
मेरा लण्ड हाथ में भिंचकर बोली,” वाह जी, उस्ताद जी बड़े गुस्से में होकर तन गए है। अब क्या किया जाये इनका
मैं — करना क्या है, कैसे भी इन्हें निचे बिठाओ, वरना तुम्हे भी नही जाने दूंगा।
मेरी इस बात से वो हस दी और बोली। चलो ठीक है, ऐसा करो मेरा हाथ पकड़कर बेडरूम में ही ले चलो। वहां जाकर इसका कुछ करती हूँ।
अब वो भी बिन सलवार और मैं भी बिन निक्कर, हम दोनों अपने अपने कपड़े लेकर बेडरुम में आ गए। वहां आकर उसने बेड पे बैठकर अपनी कमीज़ भी उतार दी।
अब वो बिलकुल नंगी हो गयी और मुझे भी कमीज़ उतार देने का बोला। मैंने भी उसकी बात मानी और अपने शरीर पे एक कपड़ा भी नही छोड़ा। अब हम दोनों नंगे थे। उसने मुझे लेट जाने का इशारा किया और हाथ से छूकर मेरे लण्ड को पकड़ा मुठी में लेकर ऊपर निचे करने लगी।
मैंने मज़े को दुगना करने के लिए मोबाइल से सेक्सी फ़िल्म चला ली। उसमे पति पत्नी मॉर्निंग सेक्स कर रहे होते है। मैंने उसे बोला के रज्जी तुम्हे तो मोबाईल दिखेगा नही लेकिन मोबाईल में भी सेक्स करते जोड़े की फिल्म चल रही है। जैसे जैसे वो करेंगे हम भी वैसे ही करेंगे।
उसको मेरी बात अच्छी लगी। उसने भी वैसा करने की हामी भरदी।
सबसे पहले मैंने उसको सारी कहानी समझाई के मानलो हम दोनों पति पत्नी है और हमने रात वाला सेक्स करना है। मुझे नही पता तूने इस तरीके का सम्भोग कभी पहले किया है या नही, लेकिन मेरा मानना है के इसमें तुम्हे बहुत मज़ा आने वाला है।
फिल्म में भी पति बेड पे लेटा हुआ था और पत्नी उसका लण्ड चूस रही थी।
तो मैं भी लेट गया और उसके हाथ में अपना लण्ड देकर कहा,” इसे प्यार से चूसो। जैसे ही उसने हाथ से मेरे लण्ड की चमड़ी निचे करके उसके गुलाबी भाग को होंठो को खोलकर जुबान से छुआ तो मानो मैं आसमान की सैर पे निकल गया।
उसने कहा,” मैंने ऐसा कभी भी नही किया है, मुझे अच्छा नही लग रहा है। मुझे उबकाई आ रही है। मुझे उसकी बात जरा भी अच्छी नही लगी और उसपे गुस्सा भी आया। लेकिन कही वो चूत देने से मना न करदे इसलिए मन मारकर उसे रहने दो कहना पड़ा।
अब मुझे उस वीडियो में लेटेे हुए अंग्रेज आदमी से जलन महसूस हो रही थी, मानो वो मुझे चिढ़ा रहा हो के तुम्हारी बीवी तुम्हारा कहना नही मान रही, इधर देखो कैसे मज़े से हलक तक अंदर लंड ले रही है।
फेर मैंने थोड़ी सी फ़िल्म आगे करदी। अगले सीन में वही आदमी अपनी बीवी को लिटाकर और खुद पैरो की तरफ बैठकर उसकी चूत चाट रहा है।
अब मैंने उसे दूसरा सीन समझाया, इसमें भी वो झट से मान गयी और टाँगे सीधी करके लेट गयी। मैंने वीडियो वाले पोज़ में ही उसकी चूत चाटनी शुरू की।
शुरू में तो मुझे भी बहूत घिन्न आई लेकिन मैंने कोनसा ये रोज़ाना करना है, सिर्फ आज की ही तो बात है, ये सोचकर जल्दी जल्दी अपनी जीभ चलाने लगा। उसकी चूत का स्वाद बेहद कुसैला, पेशाब की गन्ध आ रही थी। मेरे ऐसा करने से जैसे उसकी पुरानी यादें ताज़ा हो गई हो।
वो अपने हाथों से मेरे बालो को सहला रही थी और मज़े में आकर कभी कबार मेरा सिर अपनी चूत पे दबा रही थी। मुझे ऐसा करते कुछ ही पल हुआ था के उसकी कमर चलने की स्पीड तेज़ हो गयी और एक लम्बी आह्ह्ह से वो एक दम शांत हो गयी। उसकी चूत से गर्म पानी का फवारा फूटा जिस से मेरा सारा चेहरा भीग गया।
मुझे उसपे गुस्सा भी बहुत आया के बता तो देती, मैं मुंह पीछे कर लेता। मैंने पीछे हटकर अपना मुंह कपड़े से साफ किया और उसे पूछा,” क्यों मेरी जान, मज़ा आया या नही ?
वो — हां, मेरे राजा, मज़ा तो आज जितना कभी भी नही आया। अब और भी कुछ करोगे या बस इतने में ही सब्र करना पड़ेगा।
मैं — करने का मूड तो बहुत है, लेकिन..??
वो — लेकिन क्या ??
मैं — मेरी गर्ल फ्रेंड की तरह पहले मेरा लण्ड चूसना पड़ेगा। मंजूर है तो देखलो, वरना तुम्हारी मर्ज़ी। वैसे माँ भी आने ही वाली होगी।
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देने का इरादा तो उसका भी बहुत था। हाथ आया शिकार वो कैसे जाने देती। उसने झट से कहा,” ठीक है, लेकिन जब तेरा माल निकलने लगे, बता देना, कही मेरे मुंह में ही न निकाल देना।
मैं — ठीक है, जल्दी करो, क्या पता कब दरवाजा खटक जाये। उससे पहले जो होता है करलो।
मैंने उसे लेटी हुयी को उठाया और उसकी जगह पे खुद लेट गया। अब उसे अपना तना हुआ लण्ड पकड़ाया और चूसने को कहा। वो समय की नज़ाकत को देखते हुए बिना समय गंवाएँ शुरू हो गई। इधर मैं भी उसके बाल पकड़ कर कमर उठा उठाकर उसके गले तक लण्ड पेल रहा था।
फेर मेरे मन में आया इसने मुंह में तो निकालने नही देना। क्यों न इसकी चूत में ही निकाल दू। मैंने उसे छोड़ दिया और उसे अपने ऊपर आने को कहा। वो तो जैसे इस मौके का इंतजार ही कर रही थी। वो झट से मेरे ऊपर आ गयी और हाथ से लण्ड पकड़ कर ऊपर बैठ गयी। उसके थूक और उसकी चूत के पानी के कारण लंड को घुसने में ज्यादा जोर नही लगाना पड़ा।
वो मेरे ऊपर झुककर अपनी कमर हिला रही थी। इधर मैं भी उसके मम्मे पकड़कर चूस रहा था। वो भी मज़े में आकर उछल उछल कर मेरा लण्ड ले रही थी।
अभी करीब 5 मिनट ही होये होंगे के मुझे लगा मेरे लण्ड में से कुछ हो रहा है। अगले ही पल वो और मैं एक साथ रस्खलित हो गए और एक दूसरे को बाँहो में लेकर लेटे रहे। ऊपर पंखे की ठण्डी हवा, निचे पसीने के भीगे दो नंगे बदन, क्या एहसास था।
थोडा देर आराम के बाद मैं उसका हाथ पकड़कर बाथरूम में ले आया वहां भी हमने एक दूसरे की चुसाई की और नहाकर बाहर आ गए।
बाहर आते ही वो बोली,” बहुत बहुत धन्यवाद दीप तुम्हारा, तुने आज मेरी कई सालो की दिल में दबी ख्वाहिश को पूरा कर दिया। मैं तेरा ये एहसान कभी नही भूलूँगी। हाँ, आगे से जब भी तेरा दिल करे, मुझे बुला लेना, मैं तुम्हे निराश नही करूंगी। अब मैं जाना चाहती हूँ। क्योंके मेरी माँ आ गयी होगी खेत से चारा लेने गयी थी।
जाते वक़्त भी वो मेरे गले लगकर मिली और मेरे कान में कहा,” आज से हम लोगो की नज़र में भाई बहन है। लेकिन अकेले में पति पत्नी की तरह रहेंगे।”
मैंने उसे जाते वक़्त लिप किस किया और उसके घर के बाहर तक छोड़ आया। अंदर आकर मैंने मस्त सी नीद ली। करीब आधे घन्टे बाद मेरी माँ भी वापिस लौट आई।
इस तरह से वो छुट्टी वाला दिन मेरा यादगारी दिन बन गया। आपको ये कहानी कैसी लगी। अपने कीमती विचार हमारी ईमेल पे निसंकोच भेज दे। जो आने वाली कहानियो को लिखने में मददगार साबित होंगे।
किसी दिन फेर एक नई कहानी के साथ हाज़िर होउंगा। तब तक के लिए अपने दीप पंजाबी को दो इज़ाज़त… नमस्कार !
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