इस सेक्स की स्टोरी में अपने अब तक पढ़ा.. पायल ने बहुत कोशिश की के वो डीपू को इतना मजबूर कर दे कि वो चादर उठा कर शक जाहिर कर दे पर डीपू अड़ा रहा. अब परीक्षा थी मेरे पति के शक की थी. अब आगे..
मैं: “डीपू को तो शायद सामान तैयार करने की भी जरुरत नहीं. पहले से तैयार हैं.”
डीपू शरमा गया. पायल ने हाथ आगे बढ़ा कर मेरे बाथरोब की लैस खोल दी और फिर डीपू ने खुद ही पीछे से बाथरोब उठा मेरी गांड को बेनकाब कर दिया.
उसे पहले ही पता था क्या करना हैं. उसने जोर जोर से मेरी गांड पर चोट मारना शुरू कर दिया और थपा थाप कर आवाज शुरू हो गयी. सब कुछ पायल की बनाई स्क्रिप्ट के हिसाब से हो रहा था.
डीपू ने मेरी ऊपर वाली टांग उठा दी, जल्दी में अपना लंड मेरी चूत से अड़ा के वापिस टांग नीचे कर दबा दिया. अब वो झटके मारने लगा जैसे सच में मुझे चोद रहा हो. उसके लंड की टोपी रह रह कर मेरी चूत को बाहर से रगड़ रही थी.
पायल: “प्रतिमा कुछ आवाज तो निकाल, अशोक को अहसास तो करा.”
मैं अब बीच बीच में हँसते हुए आह्ह्हह आह्ह्हह करने लगी.
पायल: ”एक्टिंग नहीं आती क्या? हंसना बंद कर और सिरियस चेहरा बना कर सिसकियाँ निकाल.”
डीपू के लंड की रगड़ से वैसे भी मेरा थोड़ा बहुत मूड बनने लगा था, तो मैंने भी अब चेहरा सिरियस बनाते हुए सिसकियाँ निकालना शुरू कर दिया.
पायल: “हां ये हुई ना बात. अशोक जाओ देखो, अपनी बीवी को चेक करो.”
अशोक ने हंस के टाल दिया. पायल ने उठ कर वो चादर मेरे और डीपू के गले से लेकर पांवो तक पूरी ही ओढ़ा दी और फिर अशोक के आगे लेट गयी.
डीपू को तो शायद इसी मौके का इंतज़ार था. उसने अपना हाथ मेरे बाथरोब में डाल मेरे मम्मो को दबोच लिया.
इतनी देर रगड़ के बाद थोड़ा पानी निकलने से चूत के बाहर चिकना हो चूका था. उसने अपने लंड के झटको की डायरेक्शन बदली और ऊपर की तरफ जोर से झटका मार मेरी चूत में अपना लंड उतार दिया.
मुझे ये उम्मीद नहीं थी कि वो सच में अंदर डाल देगा. ये तो अच्छा हुआ कि मैं पहले से सिसकियाँ निकाल रही थी तो मेरी चीख से ज्यादा फर्क नहीं पड़ा.
चादर के अंदर डीपू जोर जोर से झटके मारते हुए मुझे चोदे जा रहा था, और मुझे डर लगा कि कही अशोक को सच में शक ना हो जाये और चादर निकाल दे. पायल ने अब चादर को बीच में से एक जगह पकड़ लिया.
पायल: “अशोक, खींचू क्या चादर?”
मेरी तो सांस रुक गयी. मेरा हाथ मेरी जांघो पर था तो उसको पीछे ले जाकर मैंने डीपू को रोकने की कोशिश की, पर वो तो मुझे पूरा चोदे बिना छोड़ने वाला नहीं था.
क्या ये पायल की चाल थी मुझे और डीपू को रंगे हाथों पकड़ने की? क्यों कि सुबह भी उसे हम पर शक हो गया था.
पायल ने थोड़ी थोड़ी चादर को खींचना शुरू कर दिया. वो एक झटका मारती तो चादर हट जाती और हमारी पोल खुल जाती.
मेरी डीपू को रोकने की सारी कोशिशे नाकाम रही. मैंने अब अपना हाथ अपनी चूत के आगे रख कर उसको ढक दिया ताकि अगर चादर हट भी जाये तो छुपा सकू.
चादर अब धीरे धीरे खिसकते हुए मेरी गांड तक आ गयी थी और आधी गांड चादर के बाहर आ चुकी थी. मैंने चादर को पाँव में फंसा दिया ताकि मेरी कमर से नीचे ना गिर जाये.
डर के मारे मैं मजा लेना ही भूल गयी थी, रह रह के उसके लंबे लंड के झटको की वजह से होने वाले दर्द से मेरी सिसकिया जरूर निकल रखी थी.
मैं: “पायल तुम चादर नहीं खिंच सकती, सिर्फ अशोक खिंच सकता हैं.”
पायल: “अशोक तुम्हारी जगह मैं खींच दूँ चादर? सोच लो तुम्हारी बीवी को रंगे हाथों पकड़ सकते हो.”
अशोक: “तुम बहुत कोशिश कर रही हो कि मैं शक कर के हार जाऊ, पर ये होने वाला नहीं.”
इस बीच डीपू ने एक बार फिर अपना पानी मेरे अंदर छोड़ दिया था. पर उसने फिर भी झटके मारना नहीं छोड़ा.
मैं: “चलो बहुत टेस्ट हो गया, डीपू अब बंद करो.”
डीपू का काम तो वैसे भी हो गया था, तो उसने अपना लंड बाहर निकाल दिया. उसने मेरे मम्मो को दबाना भी बंद किया और चादर को फिर अपने ऊपर खिंच दिया.
मैंने अपना बाथरोब नीचे किया और अपने अंग ढक लिए. फिर मैंने चादर हटाया और लैस बांधते हुए राहत की सांस ली. मुझे लग गया डीपू भरोसे के काबिल नहीं हैं.
दोनों मर्द खुश थे कि वो शक ना करने का टास्क जीत गए, पर शायद उनकी बीवियां टास्क जीती थी जो अपने पतियों के सामने ही गैर मर्द से चुदवाने में कामयाब रही.
हालांकि मैं निश्चित तौर पर ये तो कह नहीं सकती कि उस चादर में अशोक ने सचमुच पायल को चोदा था.
पायल और डीपू अपने रूम में चले गए. हम चारो अपने बेग पैक करके तैयार हो गए और नीचे रिसेप्शन पर मिले.
हम चारो ने आज जीन्स पहनी थी और और ऊपर टीशर्ट. अपने बैग होटल के लॉकर में रखवा कर हम लोग घूमने निकले. हमने लोकल बाजार में शॉपिंग की और फिर वहां से निकलने के लिए कार में बैठे.
वहा माता का एक मंदिर था, उसको देख कर अशोक को कुछ याद आया.
अशोक: “अरे तुम्हारी सजा का क्या हुआ? मैंने अपनी माँ की कसम खायी थी कि मैं प्रतिमा से सजा पूरी करवाऊंगा.”
डीपू: “कसम तो मैंने भी खायी थी, अच्छा हुआ याद दिला दिया.”
मैं: “सजा को भूल जाओ, हम लोग घूमने का मजा लेते हाँ ना.”
अशोक: “ऐसे कैसे भूल जाओ, मैंने माँ की कसम खायी हैं.”
पायल: “हम दोनों आपस में कैंसल करने को तैयार हैं तो क्या जरुरत हैं.”
डीपू: “तो हमको माँ की कसम क्यों दिलवाई. अब तो करनी ही पड़ेगी. लाओ बेग में से चिट्ठी निकाल कर दो.”
पायल ने अपने बेग में से वो चिट्ठी निकाल कर डरते हुए डीपू को दी. डीपू ने अब हम चारो को सुनाते हुए चिट्ठी पढ़ी.
डीपू: “सजा ये हैं कि, अपने पति की आँखों के सामने अपने मुँह, कंट (चूत), और बट (गाँड) को पराये मर्द से चुदवाना हैं, तीनो छेद में दो-दो मिनट के लिए किसी पब्लिक प्लेस में.”
डीपू: “ये क्या मजाक हैं पायल, ऐसी सजा कौन लिखता हैं. तुम्हारा दिमाग ख़राब हैं क्या?”
पायल: “वो मैंने जानबूझकर ऐसी बड़ी सजा लिखी ताकि प्रतिमा दूसरे लेवल के लिए मना ना बोल पाए. मुझे नहीं पता था कि घूम फिरकर ये सजा हम पर आ जाएगी.”
अशोक: “तुमने तो पढ़ा था ना प्रतिमा, फिर भी तुमने रूल तोड़ने की सजा के तौर पर यही वाली सजा चुनी.”
मैं: “मैंने सोचा पायल इस डर से रूल नहीं तोड़ेगी. पर फिर भी गलती से रूल टूट ही गया.”
डीपू: “तो फिर तुम दोनों ने हमें माँ की कसम क्यों दिलवाई?”
पायल: “उस वक्त हमारा मुकाबला चल रहा था और हम एक दूसरे को मुसीबत में डालना चाहते थे.”
अशोक: “तुम दोनों ने तो हम पतियों को फंसा दिया. माँ की कसम बहुत बड़ी होती हैं. अब माँ को बचाये या तुम्हे?”
मैं: “ये कसम वसम कुछ नहीं होती हैं. तुम भूल जाओ.”
डीपू: “नहीं भूल सकते, अगर माँ को सच में कुछ हो गया तो हम अपने आप को ही दोषी मानेंगे.”
अशोक: “पराये मर्द से मतलब, वो दोस्त भी हो सकता हैं. डीपू हमें एक दूसरे की मदद करनी होगी.”
डीपू: “ओर कोई चारा भी तो नहीं हैं. तुम दोनों को कोई आपत्ति?”
हम दोनों पत्नियों ने ना में सर हिला दिया. इससे अच्छा कोई उपाय भी नहीं था. कार में बैठ कर हम हाईवे की तरफ आ गए.
सोच सोच कर ही डर लग रहा था कि अपने पति के सामने कैसे करवाएगा. वैसे तो सिर्फ छह मिनट की बात थी पर करने वाला उनका दोस्त ही होगा.
पुरे रास्ते हम चुप चाप बैठे रहे फिर अशोक ने गाड़ी हाईवे पर एक तरफ लगा दी.
कार के दोनों दरवाजे खोल दिए, जो दीवार का काम करेंगे. जो भी होना था वो कार के इन दो दरवाज़ों के बीच होगा. एक तरफ पहाड़ी थी, दूसरी तरफ रोड. कार एक एसयुवी थी जो काफी ऊँची थी जिससे उसके दरवाज़े भी ऊँचे थे. रोड पर जाने वाले ज्यादा कुछ देख नहीं सकते थे.
मैं खुले दरवाज़े की तरफ बैठी तो पहला नंबर मेरा लगा. मैं उठ कर दोनों दरवाजो के बीच आ गयी. डीपू वही खड़ा था, एक बार फिर वो मेरी लेने वाला था. इस बार मेरे पति से छुपते छुपाते नहीं बल्कि उनकी जानकारी में उनकी आँखों के सामने चोदने वाला था और मेरे पति की सहमति या कहिये मज़बूरी से.
पायल मोबाइल में टाइम गिनने वाली थी. पहला नंबर मुँह का था. मैं डीपू के सामने झुक कर बैठ गयी. उसने अपना जीन्स और अंडरवियर खोल कर नीचे कर दिया. उसका लंड नरम पड़ा था फिर भी चार इंच का रहा होगा.
मैंने उसको अपने हाथ से उठाया और पायल के बोलते ही अपने मुँह में रख दिया. मैं अब उसको अपने मुँह में आगे पीछे कर रगड़ने लगी.
लगभग एक मिनट तक ये करने के बाद उसका लंड कड़क और लंबा हो गया और वो अब अब मेरे मुँह में धक्के मारने लगा, जिससे उसका लंबा लंड मेरे गले में उतरने लगा और मैं चॉक होने लगी. उसका दो चार बूँद पानी भी निकल कर मेरे गले में उतर गया.
मेरे हिसाब से दो मिनट हो चुके थे पर पायल ने अभी तक रोका नहीं, शायद वो जानबूझ कर मुझे परेशान करने के लिए समय बढ़ा रही थी. लगभग तीन मिनट चूसने के बाद पायल ने कहा कि दो मिनट हो गए.
मैंने जल्दी से डीपू का राक्षस अपने अपने मुँह से बाहर निकाला और मुंह में आयी गन्दगी बाहर थूक दी. मेरी लार से डीपू का लंड भी गीला हो गया था. मैं अपने पति से नजरे भी नहीं मिला पा रही थी. अगली बारी मेरी चूत की थी.
मैंने अपने जीन्स का बटन खोल उसे पैंटी सहित घुटनो तक नीचे कर दिया. डीपू ने अब मुझको मेरे पति (जो कार में बैठे थे) कि तरफ घुमाया और कमर से झुका दिया.
मेरा चेहरा मेरे पति के चेहरे के सामने था. डीपू ने मेरा टीशर्ट थोड़ा ऊपर कर दिया. उसका लंड मेरे पिछवाड़े को छू रहा था.
अशोक: “डीपू तुम कंडोम पहन लो, ये सेफ नहीं हैं.”
पायल: “साथ लाये थे वो ख़त्म हो गए.”
डीपू: “कोई बात नहीं, वैसे भी दो मिनट ही करना हैं, इतनी सी देर में कुछ नहीं होगा.”
इसके बाद डीपू ने अपना लंबा लंड पकड़ कर पीछे से मेरी चूत में घुसा दिया. थोड़ी देर पहले उसका चूसने से उसका लंड कुछ ज्यादा हैं सक्रीय हो गया था.
पिछली कुछ चुदाई के मुकाबले इस बार उसका लंड कुछ ज्यादा ही फुल गया था. मेरी चूत में घुसते ही मुझको अहसास हो गया कि लंबाई के साथ अभी इसकी मोटाई से मेरी हालत ख़राब होने वाली हैं.
डीपू ने बिलकुल भी लिहाज नहीं किया कि वो उसके दोस्त की बीवी को उसके दोस्त के सामने ही ऐसे चोद रहा था, जैसे किसी किराये की चूत को चोद रहा हो. गहरे गहरे झटके मारते हुए वो इस स्तिथि में ही मजे ले रहा था.
जब से उसका लंड मेरी चूत में घुसा था तब से ही मैं लगातार सिसकिया भरते हुए कराह रही थी. सामने पति थे तो नजरे झुकाये आहें भरने लगी.
उसके झटके मारने की गति बहुत ज्यादा थी, ऊपर से उसकी लम्बाई और मोटाई मुझसे मेरे अंदर होने वाली हलचल सहन नहीं हो रहा थी.
जल्दी ही मेरा तो पानी निकलने लगा और फचक फचक की आवाज आने लगी. मैं बेहद शर्मिंदा हुई. पायल समय रुकने का इशारा तक नहीं कर रही थी. एक बार फिर वो बदला निकाल रही थी. वहा का माहौल बड़ा ही गरम हो चूका था.
पायल ने लगभग एक मिनट ज्यादा लगाया होगा समय समाप्ति की घोषणा के पहले, तब तक मेरी चूत बुरी तरह से रगड़ चुकी थी और मेरे अंदर पानी पानी हो गया था. उसका लंड निकलते ही मुझे बड़ी राहत मिली.
अशोक: “कुछ हुआ तो नहीं होगा?”
मैं: “डीपू ने पानी अंदर नहीं छोड़ा.”
डीपू: “चिंता मत करो अशोक, वैसी कोई गड़बड़ नहीं होने दूंगा. प्रतिमा तुम ठीक हो तो आगे बढे?”
मैं: “अब थोड़ा धीरे करना, पीछे तो ज्यादा ही दर्द होगा.”
डीपू: “ठीक हैं, मैं ध्यान रखूँगा. चलो अब पलट कर झुक जाओ फिर से.”
डीपू ने सुझाया कि पानी जीन्स पर गिरेगा तो मैं उसको पूरा निकाल दूँ. मुझे उसी जीन्स में वापसी का सफर करना था तो मैंने वो जीन्स पूरी निकाल दी.
मैं एक बार उसकी तरफ पीठ कर आगे झूक कर खड़ी हो गयी. उसने एक बार फिर मेरा टीशर्ट ऊपर खिसका दिया. और अपना मोटा लंबा लंड मेरी गांड में डाल दिया. अंदर जाते ही मैं इतना जोर से चीखी कि मेरी आवाज कार में गूंज गयी.
मैं बता नहीं सकती मोटाई के साथ इतनी लंबाई वाला लंड अपनी गांड में लेना सचमुच की एक सजा हैं. ऊपर से वो बेरहमी से झटके मार रहा था.
मैं लगातार दर्द के मारे चीख रही थी. “आह्ह्ह्ह धीरे डीपू, मेरी गांड फट जाएगी, प्लीज, उह्ह्ह्हह्ह अह्ह्ह्हह आई ओ मम्मी, ओ माय गॉड छोड़ दो डीपू, आअह्ह्हह्ह्ह्ह आआआआआआ.”
डीपू एक हाथ मेरी पीठ पर रख जोर के धक्के मारता रहा. आगे पीछे होने से मेरी ब्रा का हूक भी खुल गया और मेरे मम्मे नीचे लटक गए. उसके हर झटके साथ मेरे मम्मे लटके हुए आगे पीछे तेजी से हिल रहे थे.
अर्शदीप कौर द्वारा लिखित एक सच्ची चुदाई की कहानी, की एक बार उसे कैसे उसकी मामी समझ कर तीन मर्द एक साथ चोद गये. यह मजेदार सेक्स की कहानी पढ़िए और हिलाते रहिये.
मेरे दर्द का असर ना डीपू पर हुआ ना पायल पर, मुझे एक बार फिर लगा उसने जानबूझ कर समय बढ़ा दिया.
मेरे चीखने के साथ ही डीपू भी सिसकिया भरने लगा “आह्ह्ह्हह्ह अह्ह्ह्हह्ह ओह्ह्ह्हह अह्ह्हह्ह्ह्ह उम्म्म्.”
वो मेरी गांड के अंदर ही झड़ गया और पायल तो जैसे इसी का इंतज़ार कर रही थी. उसके झड़ते ही उसने टाइम ऑफ कर दिया. डीपू ने अपना लंड बाहर खिंच लिया. मैं अब भी झुकी हुई खड़ी थी.
मेरी गांड से रह रह कर पानी झड रहा था. अच्छा हुआ जीन्स निकाल दी वरना गीली हो जाती.
अशोक और पायल ने हम दोनों को नैपकिन दिए पानी साफ़ करने के लिए. पानी साफ़ कर मैंने अपनी जीन्स फिर पहन ली. तब तक डीपू ने मेरी मदद करने को मेरे ब्रा को फिर बाँध दिया.
अशोक: “तुम ठीक तो हो ना?”
मैं: “थोड़ा दर्द हो रहा हैं नीचे.”
मेरे दोनों छेदो में रह रह कर एक टीस उठ रही थी. मैं अब चल कर पीछे वाली सीट तक आयी तब तक पायल मेरी जगह, कार के दोनों दरवाजो के बीच आ गयी. अशोक और डीपू ने भी अपनी जगह आपस में बदल ली.
अब घडी मेरे पास थी. मैं अपना बदला पायल से ले सकती थी.
अशोक ने अपनी जीन्स और अंदर के कपड़े नीचे किये. उसका लंड पहले से ही कड़क हो तैयार था, पहले का गरमा गरम कार्यक्रम देखने का बाद ये हुआ था.
पायल को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी और मेरे “गो” बोलते ही वो अशोक का लंड अपने मुँह में ले चूसने लगी.
वो एक माहिर खिलाडी की तरह लंड को अपने मुँह में गोल गोल घुमाते हुए चूस रही थी, और अशोक अपना मुंह भींचे सिसकियाँ मार रहा था. मुझसे ज्यादा बर्दाश्त नहीं हुआ और दो मिनट होते ही मैंने उनको रोक दिया.
जब अशोक ने अपना लंड पायल के मुँह से निकाला तो दोनों जगहों से लारे छूट रही थी. अशोक भरा भराया था तो थोड़ा बहुत पानी पायल के मुँह में ही छोड़ दिया था पर पायल ने मुँह में भरा पानी नहीं थुका और गटक गयी.
अब पायल ने अपनी जीन्स को पैंटी सहित पूरी निकाल दी मेरी हालत देखने के बाद. शायद वो अपने पाँव पूरी तरह चौड़े कर चूदवाना चाहती थी.
उसने वैसा ही किया, पाँव पुरे चौड़े कर डीपू की तरफ मुँह कर झुक गयी. उसका टीशर्ट ढीला होने से अपने आप ही ऊपर खिसक गया और ब्रा दिखने लगी.
अशोक ने उसके ब्रा की पट्टी अपने हाथ में दबोची और अपना लंड पायल की खुली चूत में डाल दिया. मैंने स्टॉप वाच शुरू कर दिया. अशोक अब जोर जोर से पायल को चोदते हुए जैसे मेरा बदला डीपू से ले रहा था.
पायल की सिसकिया शुरू हो गयी “उई माँ, अह्ह्ह्हह्ह हम्म्म्म आहह्ह्ह ओहह हम्म आह्ह्ह्हह अह्ह्ह्हह.”
साथ में अशोक की सिसकिया भी चालू थी. ज्यादा जोर लगाने से पायल का ब्रा भी खुल गया, या शायद अशोक ने जानबूझ कर किया बदले के लिए. अशोक का बैलेंस थोड़ा बिगड़ा पर वो फिर भी चोदता रहा.
मैं उसमे इतना खो गयी कि घडी से ध्यान ही हट गया. चालीस सेकंड ज्यादा हो गए थे. मैंने तुरंत उनको रुकने को कहा.
अशोक ने तुरंत अपना लंड पायल की चूत से निकाला और अगले ही सेकंड उसकी गांड में डाल कर निर्बाध अपना काम जारी रखा.
पायल को भी कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा. अभी डेढ़ मिनट ही हुआ था कि अशोक जोर से सिसकियां निकालते हुए पायल की गांड में ही झड़ गया.
समय पूरा नहीं हुआ था तो वो अब भी हलके हलके झटके मार रहा था. जिससे पायल की गांड से निकल कर पानी रिसता हुए उसकी जांघो तक आ गया. जैसे तैसे समय पूरा होने तक वो करता रहा.
उन दोनों ने काम ख़त्म कर अपनी साफ़ सफाई कर कपडे पहन फिर कार में बैठ गए.
सजा तो पूरी हो चुकी थी, पर अब हम एक दूसरे का सामना कैसे करेंगे ये चिंता का विषय था. या फिर इस ट्रेलर के बाद सब लोग पूरी पिक्चर के लिए तैयार थे?
अब यह तो इस सेक्स की स्टोरी के अगले एपिसोड में ही जानेगे!