Drishyam, ek chudai ki kahani-47

This story is part of the Drishyam, ek chudai ki kahani series

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    उस तगड़े मोटे लण्ड से अब आज मुझे चुदवाना है
    हाय मेरी माँ बचने को चलना नहीं कोई बहाना है।
    एक बार चुदवा लुंगी तो नशा मुझे हो जाएगा।
    फिर छोटे मोटे लण्ड से मुझे चुदने का लुत्फ़ न आएगा।

    रमेशजी को इस तरह अपने स्तनों से खेलते हुए महसूस कर आरती अपने आपको सम्हाल नहीं पा रही थी। उसके पुरे बदन में काम की ज्वाला भड़क रही थी। जितनी कामाग्नि रमेशजी के बदन में भड़क रही थी, शायद उससे कहीं ज्यादा आग आरती के बदन में भड़क रही थी। उस रात तक उसने वह आग को काफी कुछ नियत्रण में रखा हुआ था।

    लोक लाज और संबंधों की मर्यादा से दबी हुई आरती की वह कामाग्नि एक छोटे से कैनिस्टर में जबरदस्त ताकत से दबा कर बंद किये हुए बारूद सी विस्फोट होए के कगार पर थी। पर अब रमेशजी जैसे तगड़े मर्द से चुदाई करवाने की घडी आ चुकी थी और तब आरती आखरी घडी में अपने आप पर नियंत्रण रखने की जबर्दस्त कोशिश कर रही थी। रमेश को कुछ देर तक अपने स्तनों से खेल देने के बाद आरती अलग हुई।

    आरती के चेहरे से ऐसा लग रहा था की अब वह भी चुदवाने के लिए बेताब थी। आरती का एक हाथ अनायास ही रमेशजी की टाँगों के बिच में धोती के अंदर परेशान हाल में बेताब लण्ड पर चला गया। जाहिर है रमेश का लण्ड इस सारी प्रक्रिया से इतना उत्तेजित हो रहा था की उस के लण्ड में से रमेश का वीर्य रस रिस रहा था।

    आरती रमेशजी की बेताबी समझ रही थी। औरत होने के उपरान्त ऐसे तगड़े जबरदस्त मर्द से चुदाई के भय से आतंकित होने के बावजूद जब आरती रमेशजी से चुदाई के लिए इतनी बेसब्र थी तो जाहिर है की रमेशजी का लण्ड इस हाल में अपने आप पर कैसे काबू रख सकता था? लगभग नंगी आरती चुदवाने के लिए जब सामने खड़ी हो और चूत और उसके बिच में जब सिर्फ घागरा और एक छोटी सी लंगोटी सी पैंटी ही हो तो भला रमेशजी का लण्ड फूल कर अपने विराट स्वरुप में तो आना ही था?

    मुझे पक्का भरोसा था की उधर अर्जुन भी उत्तेजना के मारे अपना लण्ड अपने पाजामें में हिला रहा होगा। –

    रमेशजी के तगड़े लोहे के छड़ जैसे सख्त और अजगर सी लम्बाई और मोटाई वाले लण्ड को अपने हाथोँ में महसूस कर आरती के चेहरे पर तोते उड़ने लगे। कहावत है ना, की चोर की माँ कब तक खैर मनाएगी? अब क़त्ल की रात आ चुकी थी। धोती में ही समाये हुए रमेशजी के लण्ड की और देख कर ही आरती आतंकित लग रही थी।

    खैर जो होना था वह तो होना ही था। इस में कोई शक नहीं था की अब आरती को उस लण्ड से चुदना ही था। अब कोई भी बहाना चलने वाला नहीं था। वह लण्ड आरती की रसीली छोटी सी चूत में घुसना ही था। वह अब उस हकीकत से मुंह नहीं मोड़ सकती थी।

    बस आरती को एक ही बात समझ में आ रही थी। वह यह की यदि एक बार वह रमेशजी के लण्ड से चुद गयी और उसके बाद रमेशजी के लण्ड से चुदने की आदत हो गयी तो फिर उसे दूसरे लण्ड से, चाहे वह अपने पति अर्जुन का ही क्यों ना हो, उतना मजा नहीं आएगा।

    फिर शायद आरती का मन बार बार रमेशजी के लण्ड से ही चुदवाने का मन करेगा। और इसी लिए यह शादी का चक्कर भी ठीक ही था, क्यूंकि फिर आरती को अपने पति अर्जुन के जानते हुए रमेशजी से चुदवाने के लिए कोई शर्म महसूस नहीं करनी पड़ेगी क्यूंकि आखिर में वह किसी गैर मर्द से थोड़े ही चुदवायेगी? चुदवाएगी तो अपने पति से ही ना? रमेशजी को पति का दर्जा तो सामने चलकर अर्जुन ने ही तो दिलवाया था?

    रमेश की बरसों की इच्छा पूरी होने वाली थी। रमेश को चुदाई के लिए अद्भुत स्वप्न सुंदरी समान अप्सरा सी खूबसूरत आरती जिंदगी भर के लिए मिल गयी थी। आरती ने यह समझ कर की अब तो रमेशजी से चुदाई करने की घडी आ चुकी है, मुस्कुरा कर रमेशजी की और देखा और धोती के ऊपर से ही रमेशजी का लण्ड सहलाते हुए लण्ड को थोड़ा जोर से दबा कर इशारा किया की अब आगे बढे।

    नेकी और पूछ पूछ? रमेश ने आगे बढ़ कर आरती को खड़ा किया और आरती के घाघरे का नाडा खोल दिया। पलक झपकते ही आरती का घाघरा निचे गिर पड़ा। आरती अब सिर्फ पैंटी और मंगल सूत्र छोड़ पूरी तरह नंगीं खड़ी थी। आरती भी आगे बढ़ी और रमेशजी की धोती की गाँठ को कुछ देर यत्न करने के बाद खोल पायी।

    रमेशजी की धोती भी देखते ही देखते जमीन पर गिर पड़ी। रमेश अपनी निक्कर में अपने लम्बे छिपे हुए अजगर के समान लण्ड से बने हुए तम्बू को दिखाता हुआ खड़ा हो गया। रमेश के लण्ड में से निकली हुई चिकनाहट से रमेश की पूरी निक्कर गीली हो गयी थी। इसके कारण रमेश का लण्ड लगभग दिख ही रहा था।

    रमेश ने निचे झुक कर आरती से कहा, “आरती, मैं अंकल ने बताये हुए आदेशों के गूढ़ रहस्य को समझते हुए आपको वचन देता हूँ की मैं जिंदगी भर मेरे दिल में और मेरे समाज में आपको ऊँचे स्थान पर रखूंगा और आपकी हमेशा सच्चे दिल से पूजा करता रहूंगा। आप पर दुःख की छाया भी नहीं पड़ने दूंगा। मेरे लिए आप कोई खेल का साधन नहीं हो। मैं आपको सिर्फ मेरे भोग के लिए ही नहीं मांग रहा। मैं आपको अपनाना चाहता हूँ। मैं आपको सच्चे दिल से प्यार करता हूँ। आप हंमेशा मेरे जीवन का एक अहम् हिस्सा बन कर रहोगी।”

    आरती ने मुस्करा कर कहा, “अच्छाजी? आप बड़े सयाने पति बन गए हैं मेरे! चलिए अब जब आप पति बन ही गए हैं तो काहे की शर्म और काहे का डर? जब सर ओखल में रख ही दिया है तो मुसल से क्या डरना?”

    यह कह कर आरती ने रमेशजी की निक्कर को निचे धकेली तो रमेशजी का घण्टा बंधन से बाहर कूद पड़ा। रेलवे के सिग्नल की तरह सीधा खड़ा हुआ, बल्कि आकाश की और ऊंचा देखता हुआ रमेशजी का काला तगड़ा लण्ड उसके पूर्व रस से लथपथ चमक रहा था। रमेश ने भी आरती की पैंटी को धक्का दे कर निचे उतार दी जिसे आरती ने अपने पाँव टेढ़ेमेढ़े कर निकाल फेंकी।

    आरती पूरी तरह नंगी रमेशजी के सामने खड़ी हुई। नंगी खड़ी आरती ऐसी खूबसूरत लग रही थी जैसे वह कोई माहिर शिल्पकार की तराशी हुई संगमरमर की बेतहाशा खूबसूरत नग्न औरत की मूर्ति हो।

    रमेशजी का काला नाग सा बिजली के प्रकाश में चमकता हुआ लण्ड अपने निक्कर के बंधन से मुक्त हो कर बाहर निकल कर लोहे के छड़ सा खड़ा लहराने लगा। कुछ पल के लिए तो आरती उसे देख कर भय के मारे आतंकित नज़रों से उसे देखती ही रही। पर साथ में उसे उस लण्ड पर बहुत प्यार भी आ रहा था।

    आरती रमेशजी के लण्ड की एहसानमंद थी। उसी लण्ड की वजह से आरती को रमेशजी जैसा प्यार करने वाला पति मिला था। इधर आरती की चूत पर रमेशजी बहुत ज्यादा फ़िदा थे।

    आरती की सुकोमल चूत ऐसी कँवारी सी लग रही थी जैसे उस रात तक उसमें कोई लण्ड ही गया ना हो। छोटी सी पंखुड़ियां और उसमें छिपी हुई गोरी सी छोटी सी आरती की प्यारी चूत जिसे चोदने के सपने महीनों से रमेशजी की नींद हराम किये हुए थे।

    रमेश ने पहले से ही शहद, दूध, मलाई, दही और चीनी के पाउडर को अलग अलग बर्तनों में रक्खा हुआ था। रमेश ने आरती से मजाक करते हुए पूछा, “बोलो, अभी अगर तुम्हारे पापा होते तो क्या श्लोक बोलते चुदाई के लिए?”

    आरती ने बाजू में रखा हुआ फ़ोन हाथों में लिया और बोली, “अंकल बोलिये आप के पास चुदाई के लिए कोई श्लोक हैं क्या?”

    अब जब आरती ने मेरा भांडा फोड़ ही दिया तो फिर मैं क्यों चुप रहता? मैंने कहा, “मैं तो हमेशा तैयार रहता हूँ।”

    मैंने रमेश को आरती की चूत की पूजा करने के लिए लिखे हुए श्लोक बोले। मैंने रमेश से कहा, मेरे बाद में यह श्लोक बोलो,

    “हे जग जननी हे चूत देवी लण्ड मेरा स्वीकार करो तुम्हें चोदने को तड़पे उससे चुदवा कर गुलज़ार करो।”

    रमेश ने जब मेरे बोले हुए श्लोक सुने तब उसने हैरानगी से मेरी और देखा। शायद मेरी पंक्तियाँ उसके मन का (या लण्ड का?) हाल बयाँ कर रहीं थीं।

    मेरे बोले गए श्लोक को दोहराते हुए रमेश ने सबसे पहले आरती के पाँव के निचे वही कठौत जिसको खाली कर दिया गया था, रखा। रमेश ने आरती की नाभि और पीछे गाँड़ पर कुछ देर तक शहद डाला फिर उस पर मलाई, दही और दूध डाला।

    सारा सामान काफी मात्रा में रमेश ने पहले से ही रखवाया था। नंगी खड़ी आरती हैरानी से अपना अभिषेक महसूस कर रही थी। उस रात आरती का जो सम्मान हुआ उसे देख कर आरती खुद दंग रह गयी। उसने कभी सोचा भी नहीं था की उसको चोदने जा रहा एक मर्द उसका ऐसा सम्मान कर सकता है।

    आरती का पेट, नाभि, गाँड़, चूत और जाँघ पर दूध, दही, मलाई और शहद की धार बह रही थी। सारा पंचामृत कठौत में इकट्ठा हो रहा था। रमेश फर्श पर बैठ गया। फिर कठौत को वहाँ से हटा कर रमेश ने आरती की टाँगें चौड़ी कीं।

    फिर खिसक कर खुद आरती की टाँगों के बिच में घुस कर मेरे पढ़ाये हुए श्लोकों को दोहराते हुए रमेश आरती की चूत को चाटने लगा। आरती की नाभि, पेट, गाँड़ और चूत पर लगा हुआ शहद, मलाई, चीनी, दूध बगैरह चाटता हुआ रमेश मेरे श्लोक को बार बार दोहराता जा रहा था।

    “हे जग जननी, हे चूत देवी लण्ड मेरा स्वीकार करो तुम्हें चोदने को तड़पे उससे चुदवा कर गुलज़ार करो।“

    सारा पंचामृत चाटता हुआ वह आरती की जाँघों को चाट कर सारा पंचामृत साफ़ कर गया। लाज और शर्म की मारी आरती कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थी।

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