Drishyam, ek chudai ki kahani-41

This story is part of the Drishyam, ek chudai ki kahani series

    बाँहों में नंगी कर के वह जब चोदेगा मुझ पर चढ़ कर,
    चूत में घुस कर फाड़ेगा जब तब मुझको है मरने का डर।
    चूत मेरी सुई की आंख सम लण्ड उसका है जैसे अजगर,
    अगर मुझे मारना ही है तो फिर जो दिल में आये सो कर।

    ऐसा तगड़ा मर्द जब छोटी सी नंगी आरती के ऊपर चढ़ कर अपना तगड़ा लण्ड आरती की चूत के छोटे से छिद्र में घुसेड़ ने की कोशिश करेगा तो कैसे ऐसा घुस पायेगा? और अगर जैसे तैसे घुस भी पाया तो जब रमेशजी उसको बाहर निकाल कर बारबार उसको अंदर बाहर कर के उसे चोदेंगे तो बेचारी छुटकी आरती का क्या हाल होगा?

    रमेशजी का इतना लंबा लण्ड आरती की बच्चे दानी को भी ऐसी ठोकर मारेगा की उसकी चूत तो फट ही जायेगी। क्या उसकी बच्चेदानी इस आदमी के लण्ड का मार झेल पाएगी? यह सोच कर आरती को चक्कर आने लगे।

    पर अब सच का सामना तो करना ही था। अब तो रमेशजी आ चुके थे। अब पीछे हटने की कोई गुंजाइश नहीं थी। जिस तरह से रमेशजी आरती को प्यार भरी नज़रों से देख रहे थे उसे देख कर आरती को कुछ ढाढस सा लगा।

    आरती ने सोचा की शायद रात को चुदवाते वक्त अगर आरती रमेशजी के सामने हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाकर उन्हें धीरे से चोदने के लिए कहेगी तो हो सकता है रमेशजी चोदते समय उतना ज्यादा जोर नहीं लगाएंगे और कुछ रहम करेंगे। आरती ने तय किया की वह अपना पूरा स्त्री चरित्र इस्तेमाल कर रमेशजी को रहम करने के लिए प्रार्थना करेगी।

    रमेशजी को देख कर आरती के मन में भी आत्मीयता और अपनापन का भाव उमड़ रहा था, अब रमेशजी उसके पति जो होने वाले थे! आरती को अब रमेशजी का ख्याल रखना था की उसके घर में रमेशजी को परायापन ना लगे।

    रमेश अर्जुन के वहाँ चार दिन की छुट्टी ले कर करीब बारह घंटे का सफर तय करके आया था। जाहिर है वह थका हुआ तो था ही। सुबह चाय और हल्का फुल्का नाश्ता कर अर्जुन ने रमेश से थोड़ी देर इधर उधर की बातें की। अर्जुन ने भी देखा की रमेश सफर से थका हुआ लग रहा था।

    अर्जुन ने रमेश को कहा की शाम की सारी तैयारियां हो चुकी हैं। रमेश ने खुद भी देखा था की घर में ऐसा लग रहा था जैसे कोई शादी हो रही हो। मिठाई के डिब्बे पड़े हुए थे। कुछ कपड़ों के बक्से सजा कर रखे हुए थे। बस एक ही कमी थी जो यह थी की शादी वाले घर में बहुत ज्यादा चहल पहल होती है। जबकी अर्जुन के घर में उन तीनों के अलावा और कोई न था। रमेश ने भी अर्जुन को कहा की वह सारा सामान ले कर आया हुआ था।

    रमेश अपने साथ एक बड़ा सूटकेस ले कर आया था। रमेश ने कहा की उसमें सारे कपडे, गहने, उसकी पहली पत्नी का फोटो बगैरह था। रमेश चाहता था की उसकी पहेली पत्नी की फोटो के सामने ही रमेश की आरती से शादी हो ताकि एक तरीके से उसकी पहली बीबी भी उस शादी को अपना आशीर्वाद दे।

    अर्जुन ने रमेश से कुछ देर विश्राम करने को कहा। अर्जुन को काम पर जाना था। अर्जुन तैयार हो कर आरती को “शामको जल्दी आ जाऊंगा, रमेशजी का ख्याल रखना” यह कह कर रमेश को आरती के साथ अकेला छोड़ कर रमेश से हाथ मिला करअपने काम पर साइट के लिए रवाना हो गया।

    रमेश के साथ अपने आप को अकेला पाकर आरती अपने दिल में एक अजीब सी हलचल महसूस कर रही थी। आरती चोरी से अपने “रमेशजी” को तिरछी नजर से देख भी रही थी। आरती ने “रमेशजी” को जैसा सोचा था उससे कही ज्यादा उत्तेजक, मजबूत और प्यार भरा पाया।

    हालांकि रमेश की बोली कुछ थोड़ी यूपी की देहाती सी थी, “रमेशजी” आरती से बड़ी ही शालीनता से बात कर रहे थे। “रमेशजी” की बातें ज्यादातर औपचारिक ही थीं। “तुम कैसी हो? तुम तो साक्षात देखने में कहीं ज्यादा खूबसूरत हो। तुम्हारी माँ कैसी है, घर में सब ठीकठाक तो है ना?” इत्यादि इत्यादि।

    कई बार रमेश का मन किया की वह खिंच कर आरती को अपनी बाँहों में लेले और चुम्बन कर उठा कर नंगी कर घर में चोद डाले। पर उसे सब्र रखना था। रमेश जानता था की आरती तीखे दिमाग वाली थी। कहीं उसका दिमाग छटक गया तो बेकार लेने के देने पड़ जाएंगे और सारा प्लान फ़ैल हो जाएगा। हालांकि रमेश के दिमाग में आरती को देख कर सुनामी सी हलचल मची हुई थी पर रमेश ने शांत रहने में ही अपना भला समझा।

    आरती ने रमेशजी से पूछा की क्या वह विश्राम करेंगे? तब रमेश ने कहा की ट्रैन में उन्हें सोने का मौक़ा नहीं मिला था। थकान दूर करने के लिए वह नहा कर कुछ फ्रेश हो कर फिर सो जाएंगे। आरती ने फ़ौरन रमेशजी को बाथरूम दिखाया। रमेश ने अपनी सूटकेस में से अपने घरमें पहनने के कपडे निकाल कर सूटकेस पर रक्खे और सिर्फ तौलिया कंधे पर रख ब्रश, पेस्ट बगैरह ले कर बाथरूम की और चल पड़े।

    कुछ ही देर में आरती को बाथरूम में रमेशजी के नहाने की आवाज सुनाई दी। आरती ने देखा की अफरातफरी में रमेशजी अपने पहनने के कपड़े बाथरूम में अपने साथ ले जाना भूल गए थे। क्या रमेशजी वास्तव में ही अपने कपडे ले जाना भूल गए थे की जानबूझ कर कपडे छोड़ कर गए थे, ताकि आरती उन्हें यह कपडे बाहर से दे?

    आरती ने रमेशजी के कपडे उठा कर बाथरूम के दरवाजे पर दस्तक दे कर कहा, “रमेशजी, आप शायद अपने कपडे ले जाना भूल गए हैं। यह ले लीजिये।”

    रमेश ने बाथरूम का दरवाजा थोड़ा सा खोला और अपना हाथ बाहर निकाला। आरती ने रमेशजी का पजामा और निक्कर देना चाहा पर कपड़ों को पकड़ने के बजाय रमेशजी ने आरती का हाथ ही पकड़ लिया और आरती को बाथरूम में खींचने की कोशिश करने लगे।

    आरती रमेशजी के हाथ पकड़ ने से घबड़ा गयी और बोली, “रमेशजी यह क्या कर रहे हैं? मेरा हाथ छोडो प्लीज!”

    रमेशजी ने कहा, “आरती तुम भी आ जाओ ना अंदर प्लीज?”

    आरती ने अपना हाथ छुड़ाते हुए गुस्से में कहा, “रमेशजी, यह क्या है? आप यह ठीक नहीं कर रहे। देखिये मैं आपकी बड़ी इज्जत करती हूँ, पर आपका यह रवैया मुझे ठीक नहीं लग रहा। आप ऐसा करेंगे तो मैं आपसे बिलकुल बात नहीं करुँगी। मैंने आप को एक शरीफ इंसान समझ कर यह रिश्ता जोड़ने के लिए हामी भरी थी। अगर आपने ऐसा किया तो मैं आपसे सम्बन्ध तोड़ दूंगी।” गुस्से में आरती के मुंह से कड़वे वचन निकल पड़े।

    आरती ने अपना हाथ बाहर खिंच लिया। रमेशजी के कपडे हाथ में ही रखे हुए आरती बाथरूम के दरवाजे पर ही खड़ी रह गयी। उसकी समझ में नहीं आ रहाथा की वह क्या करे? मारे गुस्से के आरती का चेहरा लाल हो गया था।

    वह अजीब सी कश्मकश में उलझी हुई थी की अंदर से रमेशजी ने कहा, “आरतीजी, आप ठीक कह रहीं हैं। आई ऍम सो सॉरी। मुझे माफ़ कर दीजिये। मैं अपने आपे से बाहर हो गया था। देखिये, आप गुस्सा मत होइए। जब से मैंने आपको देखा है तब से मुझे ना जाने क्या होगया है। अब मैं कोई ऐसी वैसी हरकत कर आपको शिकायत का मौक़ा नहीं दूंगा आरतीजी। पर अगर आपने मुझे ठुकरा दिया तो मैं कहीं का नहीं रहूंगा। मुझे प्लीज माफ़ कर दीजिये।” यह कह कर रमेश जी चुप हो गए।

    रमेशजी की माफ़ी सुन आरती कुछ देर बाथरूम के दरवाजे पर खड़ी हुई सोच रही थी की उसने रमेशजी को शायद कुछ ज्यादा ही तीखी भाषा इस्तेमाल की जो उसे नहीं करनी चाहिए थी। आखिर रमेशजी भी एक मर्द हैं। जब आरती का अपना मन उसके काबू में बड़ी मुश्किल से रह रहा था तो बेचारे रमेशजी का क्या दोष? मर्द का तो ऐसा हाल होगा ही।

    अब आरती अपने आपको कोस रही थी। मानलो अगर वह रमेशजी की बात मान कर बाथरूम में चली ही जाती तो क्या होजाता? यह तो तय था की रमेशजी उस रात आरती को चोदने वाले थे ही। बात चंद घंटों की ही तो थी।

    क्या उसे रमेशजी की बात मान लेनी चाहिए थी? क्या उसे रमेशजी का हाथ जोर से झटक कर उनका दिल तोड़ना चाहिए था? अगर वह बाथरूम में चली जाती तो शायद रमेशजी उसे पकड़ कर उसके साथ थोड़ी गुथम्गुत्थि करते और क्या करते? ब्रेअस्ट्स दबाते, गाँड़ सहलाते, आरती को चूमते और शायद नहलाते। पर उस छोटे से बाथरूम में कपडे निकाल कर चोदने का कोई सवाल ही नहीं था।

    आरती को रमेश जी को इतने ज्यादा कड़वे वचन सुनाने के लिए अफ़सोस होने लगा। इसका कारण यह था की आरती की खुद की हालत भी तो ऐसी ही थी।

    सच तो यह था की आरती जब बाथरूम के बाहर रमेशजी को कपडे देने के लिए पहुंची तो आरती के अपने मन में कहीं ना कहीं यह उम्मीद थी की रमेश जी उसे बाथरूम में खिंच ले कर उसको अपने साथ नहलाएं और वह रमेशजी के नंगे बदन पर साबुन मले और रमेशजी के पुरे बदन पर अपनी उंगलियां फेरे और रमेशजी के पुरे सख्त बदन को महसूस करे और अपने बदन पर रमेशजी की उँगलियों को महसूस करे। ख़ास तौर पर आरती रमेशजी के लण्ड को लेकर बड़ी ही उत्सुक थी। कैसा होगा उनका लण्ड? क्या वाकई में जो फोटो और वीडियो में देखा था ऐसा बड़ा और मोटा होगा वह?

    पर जब रमेश जी ने आरती को अंदर खींचने की कोशिश की तो उलटा आरती ने ही रमेशजी को ऐसी फटकार लगाई की रमेशजी की बोलती बंद हो गयी।

    रमेशजी जब नहा कर सिर्फ पायजामा पहने उपर से खुला हुआ चौड़ा सीना, तौलिये से अपने बालों और अपने सीने को पोंछते हुए निकले तो आरती गुमसुम सी अपने किये पर पछताती हुई बूत की तरह बाथरूम के दरवाजे के करीब ही खड़ी हुई थी।

    रमेशजी नहा कर तौलिया पहने हुए जब बाहर निकले तो बाथरूम के दरवाजे पर ही आरती को कपडे लिए हुए बूत सा खड़ा पाया। आरती को वहाँ खड़ी देख कर वह हैरान रह गए। जब रमेशजी ने आरती का हाथ थाम कर उसे एक तरफ हटने के लिए कहा तो आरती को होश आया।

    बिलकुल बाजू में सामने तौलिया पहने खड़े हुए रमेशजी को आरती देखती ही रह गयी। रमेशजी का चौड़ा, सख्त, फुला हुआ, दो हिस्सों में बँटा हुआ सीना, रमेश की शशक्त बाजुओं के स्नायु की माँसपेशियाँ, रमेश की तीखी धारदार मूछें, पतली सख्त कमर, सटीक कूल्हे आरती देखती ही रही।

    आरती की नजर जब रमेशजी की टाँगों के बिच पड़ी तो उसे छुपे ना छुपाये ऐसा लटकता हुआ घंटे के समान तगड़े लण्ड से बना हुआ वह तम्बू देखा जो आरती के होशोहवाश उड़ाने के लिये काफी था। तौलिये में से रमेशजी अपने लण्ड से बने हुए तम्बू को कैसे छिपा पाते?

    आरती के मन में अजीबो गरीब तूफ़ान उमड़ने लगे। उस का मन हुआ की वह एकदम आगे बढ़ कर रमेशजी से लिपट कर उनकी बाँहों में समा जाए। पर स्त्री मर्यादा और स्त्रीसहज लज्जा उसको ऐसा कुछ भी करने से रोक रही थी। रमेश का भी आरती को देख कर बुरा हाल था।

    वह खुद आरती की छोटी सी नक्शकारी की हुई खूबसूरत प्रतिमा समान साक्षात देख कर बड़ी ही मुश्किल से अपने आपको आरती को पकड़ कर खिंच कर जबरन अपनी बाँहों में जकड ने से रोक पा रहा था। आरती की तीखी डाँट भी रमेश को बड़ी मीठी लग रही थी।

    आरती के भरे हुए मादक स्तन देख कर रमेश उन्हें मसलने के लिए व्याकुल हो रहा था। आरती के घने घुंघराले बाल और उस बाल की लट जो बार बार आरती के गालों और कानों को इतनी मादकता से छू रहीं थीं की रमेश अपने आप को सम्हाल नहीं पा रहा था।

    आरती की मादक आँखें बार बार जब उसे तिरछी नजर से देख रहीं थीं तब रमेश का रक्तचाप अचानक ही एकदम बढ़ जाता था। कुछ ही समय में आरती का पूरा बदन उसका होने वाला था। पर इंतजार की घड़ियाँ रमेश के लिए बड़ी ही चुनौती भरी साबित हो रहीं थीं।

    पढ़ते रहिये, यह कहानी आगे जारी रहेगी..

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