पड़ोसन बनी दुल्हन-11

This story is part of the Padosan bani dulhan series

    कहानी टीना की जुबानी

    मैंने जिंदगी में एक बात सीखी है। अगर आपको फूल चाहिए तो आप को कांटो को भी स्वीकारना पड़ेगा। आप सिर्फ फूल की अपेक्षा नहीं रख सकते। ऐसी अपेक्षा रखने से जिंदगी में निराशा ही प्राप्त होगी, क्यूंकि फूल तो हरेक को चाहिए।

    जो कांटें ले कर उसकी कीमत चुकाएगा उसे फूल मिलेंगे। जिंदगी में मुफ्त में कुछ नहीं मिलता। जिंदगी में अगर कुछ चाहिए तो कुछ भोग देना ही पड़ेगा। अगर शादी करनी है तो पत्नी का ध्यान रखना पड़ेगा, उसकी बात माननी पड़ेगी, बच्चे चाहियें तो उनका बोझ उठाना ही पड़ेगा, अगर शादी के बाहर चुदाई करनी है तो चुदवाने वाली के नखरे भी सहन करने पड़ेंगे, बदनामी हो तो उसे भी झेलनी पड़ेगी बगैरह बगैरह।

    मुझे सेठी साहब का लण्ड चाहिए था। मेरे पति ने मुझमें वह आग लगा दी थी। पर मुझे अगर सेठी साहब का लण्ड चाहिए तो मुझे मेरे पति को सुषमाजी की चूत दिलवानी पड़ेगी, और उन्हें क्या चाहिए उसका ध्यान भी रखना पड़ेगा।

    मैं समझ गयी थी की सेठी साहब क्या कहना चाहते थे। पर उस समय मेरी चूत में ऐसी आग लगी थी की मुझे और कुछ सोचने की ताकत या इच्छा ही नहीं थी। पता नहीं क्यों, पर मुझे सेठी साहब से कुछ भी कहने में बड़ी शर्म आ रही थी।

    वैसे तो मेरे और सेठी साहब के बिच बात करने में कोई बंदिश थी नहीं। पर उस समय, क्यूंकि मैं सेठी साहब से चुदवाने के लिए तड़प रह थी, तो मैं बात करने में शर्माती रहती थी। पता नहीं क्यों मेरा मुंह खुल ही नहीं रहा था।

    मैंने सेठी साहब का हाथ पकड़ा और अपने स्तनोँ को उनके हाथों पर रगड़ते हुए सेठी साहब से लिपट गयी। मुझे सेठी साहब से आलिंगन कर पता नहीं कैसा अद्भुत सकून मिलता था। मुझे ऐसा लगता था जैसे मेरी बरसों की प्यास यही मर्द बुझा सकेगा।

    पर चूँकि मैं यह भी जानती थी की अक्सर चुदासी औरत के साफ़ साफ़ नहीं बोलने से कई बार उसके मन की बात मर्द समझ नहीं पाते हैं, मैंने सेठी साहब से कहा, “सेठी साहब, आपके मुंह से साफ़ साफ़ शब्द सुन कर मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। इसका मतलब है अब आप मुझे अपनी मानने लगे हो।

    वाकई में मैं यह चाहती थी हम दोनों को अकेले में बिना कोई रोकटोक कुछ रातें मिलें जिन्हें हम एन्जॉय कर सकें। यह वक्त मेरे लिए बड़ा ही कीमती है। हमारे पास सिर्फ तीन रातें हैं और उसमें हमें नींद भी लेनी है। इन्हें हम औपचारिक बातों में गँवा कर बर्बाद ना करें। मेरे पुरे बदन में इस वक्त जबरदस्त आग लगी हुई है।

    मैंने कहा ना की आप मुझसे जो कुछ भी करना और करवाना मतलब जैसे भी मुझे एन्जॉय करना चाहें वह मैं बिना कोई सवाल करे, बिना झिझक के करुँगी। कुछ भी मतलब कुछ भी। इसमें कोई भी किन्तु परन्तु नहीं होगा। यह मैं मज़बूरी में नहीं कह रही। यही मेरी इच्छा है। इन तीन रातों में हम सिर्फ एक दूसरे की बदन की भूख मिटायेंगे और अगर बातें भी करेंगे तो प्यार की ही बातें करेंगे, और कोई बात नहीं करेंगे। मुझे इन तीन रातों में आप से वह सब कुछ पाना है जो मैंने आज तक नहीं पाया।”

    मेरे मुंह से ऐसी सीधी साफ़ साफ़ बात इतने सलीके सुन कर सेठी साहब मेरी और कुछ देर आश्चर्य से ताकते ही रहे। शायद किसी औरत ने उन्हें पहली बार इतने साफ़ शब्दों में कहा होगा की वह उनसे चुदवाने के लिए कितनी बेताब है। कहते तो मैंने कह दिया पर सेठी साहब की पैनी नजर देख कर मेरे गाल शर्म से लाल हो उठे।

    सुषमाजी ने मुझे बताया था की सेठी साहब का प्यार काफी रफ़ माने आक्रमक सेक्स होता है और वह रफ़ सेक्स बहुत पसंद करते हैं। रफ़ सेक्स में स्तनोँ को खूब चूसना, निप्पल्स को चूसना और काटना, नंगे कूल्हे पर चपेट मारना, लण्ड और चूत खूब चूसना और अगर मौक़ा मिले तो गाँड़ में लण्ड डालकर चोदना मतलब गाँड़ मारना बगैरह होता है।

    इसके मुकाबले मेरी मेरे पति से चुदाई काफी साधारण सी होती थी। अक्सर तो वह मेरे ऊपर चढ़कर मुझे चोदते थे, काई बार मुझे घोड़ी बनाकर भी चोदते थे। उन्होंने कई बार मेरी गाँड़ मारने का प्रस्ताव रखा था, पर मैंने उसे सिरे से खारिज कर दिया था। उसके बाद मेरे पति ने भी ज्यादा जोर नहीं दिया इस बात पर।

    अब सेठी साहब मेरी कैसी चुदाई करेंगे, यह सोच कर मैं परेशान हो रही थी। कहीं वह मेरी गाँड़ मारने पर आमादा हो गए तो मैं उन्हें मना नहीं कर पाउंगी। मैंने उन्हें वचन जो दिया है की मैं वह जो कहेंगे, जैसे कहेंगे, करुँगी।

    मुझे लण्ड चूसना भी ज्यादा पसंद नहीं है। मेरे पति का लण्ड जब भी मैंने चूसा है तो वह कोई बड़ा अच्छा अनुभव नहीं रहा। सुषमाजी ने तो साफ़ साफ़ कहा था की सेठी साहब को लण्ड चुसवाना बहुत पसंद है। अगर सेठी साहब मुझसे लण्ड चूसवाएंगे तो मुझे कहीं उलटी ना आ जाए। ऐसा अगर हुआ तो कहीं सेठी साहब बुरा ना मान जाए। यह सब विचार मेरे दिमाग में घूम रहे थे।

    मैं पलंग पर लम्बी हो कर लेट गयी तो सेठी साहब मेरे ऊपर चढ़ने के बजाय खड़े हो कर पलंग पर सीधी लेटी हुई मुझे बड़ी ही बारीकी से निहारने लगे। मैंने उनकी लोलुप निगाहें जो मेरे पुरे बदन का मुआइना कर रहीं थीं, देख कर कुछ शर्माते हुए पूछा, “क्या देख रहे हैं आप? मुझे पहले कभी देखा नहीं क्या आपने?”

    सेठी साहब ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं कितना भाग्यशाली हूँ की तुम्हारे जैसी बेतहाशा आसमान से उतरी हुई हूर सी खूबसूरत औरत इस वक्त मेरे सामने लम्बी हो कर एक संगेमरमर की तराशी हुई अद्भुत खूबसूरत मूरत की तरह लेटी हुई मेरे जैसे एक साधारण आदमी को अपना सर्वस्व समर्पण करने के लिए इंतजार कर रही है?”

    सेठी साहब के बात सुनकर मेरे गाल शर्म से लाल हो गए।

    मैंने सेठी साहब से कहा, “सेठी साहब मेरी झूठी तारीफ़ मत करो। मुझे चने के पेड़ पर मत चढ़ाओ। मैं कोई सुन्दर नहीं हूँ। सुंदरता आपकी नज़रों में है। जिसे प्यार करते हैं, वह जैसी भी हो, सुन्दर लगती है। बल्कि मैं कहती हूँ की मैं बड़ी भाग्यशाली हूँ की आपकी नज़रों ने मुझे सुंदर माना और आपके भोग के लिए योग्य माना। अब मुझे ज्यादा इंतजार मत कराइये और आप मुझे जैसे चाहें एन्जॉय कीजिये और मेरे बदन का और मेरे प्यार का भरपूर आनंद लीजिये। आपके आनंद लेने से मेरे पुरे बदन में आनंद की लहरें दौड़तीं रहेंगी। वैसे मुझ में ऐसा क्या सुन्दर लगा आपको?”

    हर औरत अपनी सुंदरता के बखान सुनना चाहती है। मैं कोई अपवाद नहीं। ना ना करते हुए भी आखिर में मैं सेठी साहब के मुंह से अपनी सुंदरता की तारीफ़ सुनंने की लालसा रोक नहीं पायी।

    सेठी साहब ने मेरे अंग अंग को अपनी नज़रों से तराशते हुए कहा, “मैं किस किस की तारीफ़ करूं? तुम्हारी इतनी मधुर वाणी, तुम्हारा गुलाबी बदन, तुम्हारा चाँद सा चेहरा, तुम्हारी कमल की डंडी सी लम्बी भुजाये, तुम्हारे केले के वृक्ष के तने जैसी जाँघें, लम्बी खूबसूरत गर्दन, धनुष्य से तेज तर्रार होँठ, तुम्हारे पके हुए फल की तरह भरे हुए पर अति सुकोमल स्तन मंडल, पतली कमर और उसके निचे गिटार के आकार सामान तुम्हारी जाँघों का मिलन स्थान।”

    मैंने मंद मंद मुस्काते हुए पूछा, “मेरी जाँघों का मिलन स्थान? अभी आपने देखा कहाँ है?”

    सेठी साहब ने शरारत भरी मुस्कान देते हुए कहा, “तुम्हें क्या पता? मैंने तुम्हें इन आँखों से एक दो बार नहीं कई बार नंगी देखा है। कितनी बार तुम्हें मैंने सपनों में नंगी किया है। जब से मैंने तुम्हें पहली बार देखा तबसे मैं जब भी तुम्हें देखता हूँ तो तुम्हें अपनी नज़रों से तुम्हारे कपडे उतार पूरी नंगी कर देता हूँ। तुम्हारा हरेक अंग को मैंने जागते हुए और सपनों में देखा है।”

    सेठी साहब की बात सुन मेरे रोंगटे खड़े हो गए। सेठी साहब की नज़रों का अंदाज देख कर पहले दिन से ही मैं समझ गयी थी की सेठी साहब मुझे अपनी नज़रों से नंगी कर जरूर देखते होंगे। औरतों में भगवान ने जन्मजात ही यह क्षमता दी है।

    मैंने शरारत भरी मुस्कान देते हुए कहा, “अब आपको सपना देखने की या अपनी नज़रों से मुझे नंगी करने की जरुरत नहीं है। मै आपके सामने हाजिर हूँ। आप मुझे खुद अपने हाथों से नंगी कर मेरी जाँघों का मिलन स्थान देख सकते हो।”

    सेठी साहब ने बिना कुछ बोले झुक कर मेरी गर्दन की आसपास अपनी बाँहें डालकर मेरा सर मुझे बिस्तर से थोड़ा ऊपर उठाया और अपने होँठों से फिर से मुझे चूमने लग गए। उनके साथ चुम्बन में मैं ऐसी खो गयी की मुझे पता ही नहीं चला की कब वह मरे ऊपर आ गए और मेरी पीठ के पीछे से मेरे ब्लाउज के बटन और मेरी ब्रा का हुक खोल दिया।

    मैं बता नहीं सकती की सेठी साहब के छूते ही पता नहीं क्यों मेरी जाँघों के बिच में से मेरा स्त्री रस बहना शुरू हो जाता था। मैं पागल सी बेचैन हो जाती थी। मेरे पति के साथ चुदाई करवाते हुए मुश्किल से मैं एकाद बार झड़ती होउंगी। पर सेठी साहब के छूते ही मुझे लगता था जैसे मैं झड़ जाउंगी।

    मेरे बूब्स तो सेठी साहब ने देखे और चूसे हुए ही थे। देखते ही देखते सेठी साहब ने मेरे ब्लाउज और ब्रा निकाल फेंके। मैंने सेठी साहब से लाइट बुझाने को कहा तो सेठी साहब बोले, “यहां तो कोई आने वाला नहीं है। अब तो लाज शर्म छोडो। मुझे तुम्हारे रूप के अच्छी तरह दर्शन तो करने दो टीना?”

    मैं उनके सवाल के सामने लाजावाब थी। सेठी साहब मुझे ऊपर से नंगी कर पीछे हट कर मुझे अच्छी तरह निहारने लगे। मेरे अल्लड़ स्तनोँ की निप्पलेँ उनकी लोलुप नज़रों से एकटक देखने कारण एकदम सख्त हो कर भरे हुए स्तन मंडल पर मगरूर सी खड़ी हो गयीं।

    शर्म के मारे मैं आधी नंगी उनकी नज़रों से नजरें मिला नहीं पा रहीं थीं। कुछ देर मेरे स्तनोँ को निहारने के बाद उन्होंने मेरे दोनों स्तनोँ को अपनी हथेलियों में भर लिया और उन्हें प्यार से सहलाने और मसलने लगे।

    मैं देख रही थी की उनकी जाँघों के बिच उनका लण्ड उनके पाजामे में सख्त हो कर तन कर खड़ा हो चुका था। वह उस सिमित मर्यादा में रुक नहीं पा रहा था। मेरे स्तनोँ को मसलते हुए धीरे धीरे वह काफी जोरों से उन्हें दबाने लगे।

    कुछ देर में उनकी माँसल बाँहों ने मेरे स्तनोँ को इतनी ताकत से मसलना शुरू किया की मुझे दर्द होने लगा। वह दर्द दुखद नहीं सुखद था पर दर्द तो था ही! मेरे मुंह से सिसकारी निकल गयी।

    मैंने कहा, “सेठी साहब, थोड़ा धीरे से! मैं कहीं नहीं जाने वाली।”

    सेठी साहब ने कहा, “सॉरी टीना। मेरा यह लण्ड जब खड़ा हो जाता है तो मेरा अपने आप पर नियंत्रण नहीं रहता। मैं एकदम उसके सामने बेबस हो जाता हूँ। इसी वजह से कई बार मेरी सुषमा से भिड़ंत हो जाती है। वह गुस्सा कर बैठती है। कई बार तो मेरी हरकतों से तंग आकर मुझे जंगली कह देती है वह। पिछले कुछ दिनों से तो सुषमा मेरे साथ में सोती भी नहीं है।”

    बापरे! एक तो वैसे ही सेठी साहब की चुदाई तगड़ी होती है, और ऊपर से कुछ दिनों से अगर उन्हें सुषमाजी को चोदने का मौक़ा नहीं मिला तो मेरी तो उस रात शामत ही आने वाली थी। यह सोच कर मेरी हालत खराब हो रही थी। पर चाहे जो कुछ भी हो, मुझे किसी भी हाल में सेठी साहब पर कोई नियंत्रण करना नहीं था। यह मैंने पक्का तय किया था।

     

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