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पड़ोसन बनी दुल्हन-2

शुरू में तो सुषमाजी ने उनका काफी साथ दिया और खूब चुदवाया, पर वह थक जाती थी। उनके लिए सेठी साहब की ताकत और जोश के साथ कदम से कदम मिलाना कठिन था। धीरे धीरे वह तंग होने लगी। सुषमाजी चुदाई एन्जॉय तो करती थी पर इतनी रफ़ नहीं। वह चाहती थी की चुदाई प्यार से धीरे से होनी चाहिए। पर सेठी साहब को रफ़ चुदाई के बगैर चैन नहीं पड़ता था।

सेठी साहब जब चिपक पड़ते थे तो चाटना, काटना, गाँड़ पर चपेट मारते रहना इत्यादि किये बगैर उन्हें संतुष्टी नहीं होती थी। सुषमाजी बेचारी जब फारिग होती थी तब गाल, स्तन, पेट, हाथ, जांघें आदि लाल लाल हो जाते थे और उन पर सेठी साहब के दांतों के निशान होते थे। कई बार तो बेचारी सुषमाजी चलने की हालात में भी नहीं होती थीं।

सेठी साहब ने कहा, “अब यह हाल है की सुषमा मुझे रातको पलंग में अवॉयड करने की कोशिश करती है। आजकल हमारे बिच कुछ ऐसा पेंच फँसा हुआ है की पता नहीं कैसे निकलेगा।” यह कह कर कुछ देर सेठी साहब चुप हो गए। फिर मेरी और देख कर बोले, “हो सकता है तुम मेरी कुछ मदद कर सको।” सेठी साहब ने बिना बताये की क्या पेच फंसा है बात को वहीँ ख़त्म कर दिया।

मैंने पूछा, “सेठी साहब, ऐसा क्या पेंच फँसा हुआ है और मैं आपकी कैसे मदद कर सकता हूँ? बताइये ना, प्लीज?”

सेठी साहब ने कहा, “तुम्हारा कहा सुषमा मानती है। मैंने देखा है की तुम्हारी संगीत, कला बगैराह बातों से उसका मूड काफी अच्छा हो जाता है। कई बार वह मुझे तुम्हारी मिसाल देती है। तुम्हारे प्रति वह काफी सम्मान की नज़रों से देखती है। तुम जब कुछ कहते हो तो वह तुम्हारी बात ध्यान से सुनती है। पर हमारे साथ कुछ उलटा ही है। मैं कुछ कहता हूँ तो सुषमा उसका उलटा ही अर्थ निकलती है और हमारे बिच में वाद विवाद शुरू हो जाता है। मैं भी सुषमा की बेतुकी बात से गुस्सा हो जाता हूँ और कुछ ना कुछ उटपटांग बोल देता हूँ और फिर बात का बतंगड़ बनने में देर नहीं लगती। कई दिनों तक आपस में हम बोलते नहीं।”

मेरी समझ में यह नहीं आया की सेठी साहब मुझसे क्या चाहते थे। मैंने पूछा, “सेठी साहब बताइये ना मैं क्या कर सकता हूँ?”

सेठी साहब ने कहा, “कुछ ख़ास नहीं, बस तुम रोज थोड़ी देर सुषमा से बातचीत कर कोशिश करो की उसका मूड ठीक रहे। उसे ड्राइविंग सीखना है। मैंने पहले भी उसे सिखाने की कोशीश की थी। पर वह ऐसी बेवकूफी भरी गलतियां करती है की मैं गुस्सा हो जाता हूँ और उसे डाँट देता हूँ। इसके कारण हमारे बिच लड़ाई हो जाती है..

आप मेरी कार ले जाओ और थोड़ा समय निकाल कर सुषमा को ड्राइविंग सिखाओ। इसके बारे में अगर आपको लगता है की टीना कुछ कहेगी तो मैं टीनाजी से बात करूंगा की मैंने आप को कहा है। आजकल मेरे दफ्तर में कुछ टेंशन चल रहा है। थोड़ा तनाव में रहने के कारण ज़रा ज़रा सी बात में मैं सुषमा से उलझ पड़ता हूँ और बात बिगड़ जाती है।”

सेठी साहब की बात मुझे बड़ी मीठी लगी। मैं तो सुषमाजी के करीब जाने की लिए बहाने ढूंढता था। फ़ौरन सेठी साहब का हाथ थाम कर कहा, “सेठी साहब ऐसा हर कपल के बिच होता है। हमारा भी यही हाल है। टीना और मैं भी अक्सर भीड़ जाते हैं। आप को रिक्वेस्ट करने की कोई जरुरत नहीं। आखिर दोस्त होते किस लिए हैं? मैं जरूर सुषमाजी के साथ कुछ समय बिताऊंगा और उन्हें ड्राइविंग भी सिखाऊंगा। पर बदले में आप टीना को सम्हालियेगा। टीना भी आपकी बड़ी इज्जत करती है। वह भी मुझे आपकी मिसाल देती है।”

इस तरह पता नहीं अनायास ही मुझे और सेठी साहब हम दोनों को एक दूसरे की बीबी के करीब जाने की बिना मांगे ही इजाजत मिल गयी।

उन दिनों मेरा टूर पर जाना अक्सर हुआ करता था। मैं मार्केटिंग डिवीज़न में था और काफी बड़ा एरिया मेरे अंडर में था तो महीने में कम से कम पंद्रह दिन तो मैं बाहर ही रहता था। मेरी गैर हाजिरी में सेठी साहब दिन में एक बार जरूर घर आकर टीना को पूछते की कोई दिक्कत तो नहीं। वैसे अक्सर सुषमा जी और टीना दोनों एक दूसरे के घर करीब रोज आते जाते ही रहते थे।

जैसे जैसे आपसी परिचय बढ़ता गया, वैसे वैसे सेठी साहब टीना को कभी कबार टीना के करीब जाकर टीना के कानोंमें या कई बार तो हमारे सामने ही, “हाय, ब्यूटीफुल! हेलो जानेमन”, बगैरह बोल देते थे। मेरी पत्नी शुरु शुरू में ऐसी खुली तारीफ़ तारीफ़ सुनकर कुछ अजीब महसूस करती थी।

एक बार ऐसे ही इतवार दोपहर को लंच के समय जब हम इकठ्ठा हुए तब अचानक ही सेठी साहब ने टीना की नंगी कमर में हाथ डाल कर अपने करीब खिंच लिया और उसे एकदम करीब खिंच कर हम सब के सामने ही टीना के गालों को चुम कर बोले, “हाय माय ब्यूटीफुल गर्ल फ्रेंड! आई लव यू।”

सेठी साहब का इस तरह अचानक ही ऐसा व्यवहार देख मेरी बीबी के चेहरे पर तोते उड़ने लगे। शादी के बाद किसी गैर मर्द ने पहली बार सबके सामने उसे इस तरह उसे गर्ल फ्रेंड कह कर बुलाया था और खुला खुला प्यार का इजहार किया था।

टीना के चेहरे का बिगड़ा हुआ हाल देख कर सुषमा आगे आयी और टीना से बोली, “सेठी साहब हैं ही ऐसे। कोई खूबसूरत औरत देखि की शरू हो गए लाइन मारने।”

फिर वह अपने पति की और घूम कर बोली, “अरे बेचारी को थोड़ा वक्त तो दीजिये आपको पहचानने का! इस तरह उस पर टूट पड़ोगे तो टीना आपके बारे में क्या सोचेगी?”

फिर मेरी और घूम कर सुषमा बोली, “वैसे राजजी, आप अपनी खूबसूरत बीबी को मेरे पति से जरूर बचा कर रखिये। सेठी साहब बड़े माहिर हैं, खूबसूरत औरतों का दिल जितने में। पता नहीं कब आपकी बीबी को उड़ा कर ले जाए! फिर यह मत कहना की भाभी आपने सावधान नहीं किया।”

मैंने भी हँसते हुए कहा, “भाभीजी मुझे टीना की कोई चिंता नहीं। अगर सेठी साहब ने इधर उधर कुछ किया तो आप तो हैं ही मेरा इन्शुरन्स। मैं फिर आपको उड़ा कर ले जाऊँगा।”

सुषमा ने वही शरारती अंदाज में कहा, “राजजी ऐसी कोई ग़लतफहमी में मत रहियो। मैं कोई आसानी से फंसने वाली चिड़िया नहीं हूँ।”

तब मैंने कहा, “मुझे आजतक कहाँ जिंदगी में कुछ आसानी से मिला है?

मैंने बौखलाई हुई टीना का हाथ थाम कर कहा, “अरे जानेमन क्या हुआ? ऐसे घबरा नहीं जाते। यह तो एक मिलने का अंदाज है। वैसे आज कल इन चीजों का कोई बुरा नहीं मानता। तुम भी उनको उसी लहजे में जवाब दो ना? बोलो थैंक यू। शुक्रिया!”

टीना ने मेरी और मुस्कुरा कर देखा और सेठी साहब की और घूम कर कुछ शर्माते हुए बोली, “शुक्रिया सेठी साहब। सुषमाजी कह रही हैं, आप मुझे उड़ा कर ले जाओगे? मेरे पति ने मुझे आज तक कोई हवाई जहाज में बिठाया नहीं। आप मुझे उड़ा कर ले जाओगे तो इसी बहाने मुझे उड़ने का मौक़ा तो मिलेगा।”

सेठी साहब थोड़ा सा सहम गए और कुछ क्षोभित से बोले, “टीना मुझे माफ़ करना। क्या करूँ? रूमानी दिल है। खूबसूरत लड़की को देख कर आपे से बाहर हो जाता हूँ।”

सेठी साहब की सख्सियत से मेरी पत्नी टीना तब तक काफी वाकिफ हो चुकी थी। उनका जो स्वाभाविक ही अपनेपन का अहसास दिलाने का स्वभाव टीना बहुत पसंद करती थी। इसी कारण सेठी साहब और शर्मिंदा ना हो इस उद्देश्य से टीना ने कहा, “चलिए सेठी साहब इस बहाने आप जैसे हैंडसम मर्द ने मेरे जैसी एक बच्चे की माँ को गर्ल फ्रेंड बनाया और मुझे खूबसूरत तो समझा। चाहे वह मुझे दिलासा देने के लिए की गयी मिथ्या प्रशंषा ही क्यों ना हो।”

मेरी पत्नी ने कहने के लिए तो यह कह दिया पर उसे इस घटना की चिंता होने लगी, क्यूंकि कोई भी पत्नी अपने सामने ही अपने पति से किसी परायी स्त्री की ऐसी भुरीभूरी प्रशंशा आसानी से बर्दाश्त नहीं कर पायेगी। सुषमा जी क्या सोचती होंगी? यह चिंता टीना को खाये जा रही थी। उस के मन में सेठी साहब और सुषमाजी के बिच में जो मनमुटाव जैसा दिख रहा था उसकी गहराई में जाने की स्त्री सहज जिज्ञासा भी थी जिसे वह रोक नहीं पा रही थी।

उस दिन सुबह मेरा सेठी साहब से जो सामना हुआ था उसके बारे में मैंने टीना को नहीं बताया था। और दूसरे उसे चिंता थी की जिस तरह सेठी साहब उसे सुषमा के सामने ही ताड़ रहे थे, लाइन मार रहे थे और कुछ ज्यादा ही रोमांटिक रुख अपनाये हुए थे उससे कैसे निपटे। कहीं इसके कारण टीना और सुषमाजी के बिच कोई मनमुटाव पैदा ना हो।

उस चिंता से निजात पाने के लिए टीना ने तय किया की वह सुषमाजी से सीधी बात करेगी और अपनी समस्या बताएगी। दूसरे दिन दोपहर सारा काम निपटा कर टीना सेठी साहब के घर पहुंची।

शुरुआत की औपचारिक बातों के बात टीना ने सुषमाजी को अपनी उलझन बतायी। टीना ने कहा की वह सेठी साहब की बड़ी इज्जत करती है, पर जब सेठी साहब उसके साथ कुछ ज्यादा ही छूट ले लेते हैं तो टीना को समझ नहीं आता वह क्या करे? उनकी रंगीली हरकतों और छेड़खानी से टीना कैसे निपटे? कहीं ऐसा ना हो की सुषमाजी इन से आहत हों। कहीं टीना तो उनके मनमुटाव का कारण नहीं थी?

टीना की बात सुनकर सुषमाजी हँस पड़ीं। उन्होंने टीना को बड़े प्यार से अपने पास बैठाया। सुषमा और टीना के बिच काफी लम्बी और सौहार्दपूर्ण बात हुई।

सुषमाजी ने टीना से कहा, “देखो टीना, यह तुम्हें सोचना है की तुम सेठी साहब का छेड़ना पसंद करती हो या नहीं। अगर तुम्हें यह पसंद नहीं की सेठी साहब तुमसे कोई छूट लें, तो तुम सेठी साहब को साफ़ साफ़ बतादो की तुम्हें उनका छेड़छाड़ करना पसंद नहीं। मैं तुम्हें गारण्टी देती हूँ की वह आगे से तुमसे कोई छेड़छाड़ नहीं करेंगे। अगर तुम्हें सेठी साहब की छेड़छाड़ से ज्यादा कोई परेशानी नहीं तो फिर तुम मेरे पास क्यों आयी हो? मुझे सेठी साहब तुम्हारे साथ क्या छूट लेते हैं नहीं लेते हैं उससे कोई मतलब नहीं।”

टीना का दुसरा सवाल जो सुषमाजी और सेठी साहब के बिच में कुछ मनमुटाव के बारे में था उसका जवाब देते हुए सुषमाजी ने फिर अपने दाम्पत्य जीवन की बात करते हुए टीना को बताया की शादी के बाद सुषमाजी का दाम्पत्य जीवन एक पत्नी की चाह होती है ऐसा ही सुखपूर्ण था। सेठी साहब सुषमा से चिपके ही रहते थे। छुट्टी के दिन सेठी साहब सुषमा से कम से कम दिन में तीन बार और रात में दो बार सेक्स करते थे।

शादी के कुछ दिनों में तो सुषमाजी सेठी साहब की दिनरात चुदाई से जैसे ऊब सी गयी थीं। सेठी साहब का स्टैमिना इतना तगड़ा था की बिना झड़े सुषमाजी को वह परेशान कर देते थे। हालांकि सेठी साहब सुषमा को अपनी तगड़ी चुदाई से थका देते थे पर इसके बावजूद, सुषमाजी के लिए वह उनके जीवन का स्वर्णिम समय था। सुषमाजी से “चुदाई” शब्द सुनकर टीना चौंक पड़ी।

टीना के चेहरे का भाव देख कर सुषमाजी ने टीना को अपने पास खींचा और धीमे से बोली, “देखो यार, अब जब हमारी बात शारीरिक संबंधों, मतलब सेक्स के बारे में ही हो रही है तो बेहतर है हम यह औपचारिकता का मुखौटा फेंक कर साफ़ साफ़ बिना लागलपेट के खुल्लमखुल्ला बात करें। अब हम इतने करीब आ चुके हैं और हमें एक दूसरे पर इतना विश्वास हो गया है की समय आ गया है की हम एक दूसरे से अपना असली चेहरा ना छिपाएं।”

पढ़ते रखिये.. कहानी आगे जारी रहेगी!

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