This story is part of the चाचा के साथ अनोखी रात series
अगली सुबह:-
किचन में चाचा सिर्फ पजामे में खाना बना रखे थे
मैं: आज लेट हो गए शायद आप चाचू, आपकी मीटिंग थी ना?
चाचा जैसे ही पीछे मुड़े मैं डर गया, वो दादा जी थे।
दादाजी: अरे रोहित मैं हूं, तेरा चाचा तो जल्दी ही चल गया था।
(मैं बहुत डरा हुआ था अभी भी उनसे, उनको देख मैं रूम में जाने लगा)
दादा जी: कहां जा रहे हो? अच्छा नहा लो, फिर आ जाना
नहा कर मैंने शॉर्ट और बनियान पहन ली थी। दादा जी अभी भी पजामे में ही थे।
1 घंटे बाद वो मेरे ही रूम में आ गये।
दादा जी: क्या हुआ, आये नहीं तुम बाहर? नाश्ता नहीं करना क्या?
मैं: मुझे भूख नहीं है।
दादा जी मेरे पास बिस्तर पर आ कर बैठ गए, और मेरे कंधे पर हाथ रख कर बोलने लगे-
दादा जी: लगता है तुम अभी भी मुझसे डर रहे हो। परसो गोपाल की वजह से इतना गुस्सा आ गया, और फिर तुम भी बेशरम की तरह नंगे ही लेटे हुए थे। अब तुम ही बताओ मैं क्या करता? वो हरामी तुम्हारी गांड मार कर चला गया, तो मुझे गुस्सा आएगा ही ना।
मैं रोते हुए बोलने लगा: धन्यवाद दादा जी आपने चाचा और पापा को नहीं बताया ये सब। वरना वो मुझे बहुत मारते।
दादा जी मुझे अपनी बाहों में लेकर कस कर पकड़ कर बोले: कोई नहीं होता है। तुम टेंशन मत लो, अब खाना खा लो।
बड़े प्यार से उन्होंने मुझे खाना खिलाया। उसके बाद हमने बहुत सारी बातें की। दोपहर तक हम बहुत कंफर्टेबल हो गए (जो दादा जी भी चाहते थे)।
दादा जी: एक बात पूछूं?
मैं: जी बोलो।
दादा जी: अभी भी दर्द है क्या वहां?
मुझे अब ज्यादा दर्द नहीं होता। लेकिन ये बात मैं दादा जी को नहीं बोल सकता था। इसलिए झूठ बोल दिया-
मैं: हां कल ज्यादा था लेकिन अब ठीक है।
दादा जी (मेरी गांड को दबाते हुए ): मुझे क्यों नहीं बोला तुमने पहले? रुको मैं दवाई लगा देता हूं।
मैं डर गया था, क्योंकि मेरा छेद चाचा की गांड फाड़ चुदाई से खुला हुआ था।
मैं: नहीं, अब ठीक है।
दादा जी ने मेरी एक ना सुनी, और अचानक मुझे नंगा कर दिया।
मेरी गांड को दबाते हुए बोले-
दादा जी: तुम्हारी गांड तो एक दम तरबूज जैसी मोटी और चिकनी है। लौंडिया भी शरमा जाए, क्या गजब गांड है तेरी। तभी वो गोपाल बिना गांड मारे नहीं रह पाया होगा साला।
मैं बहुत डरा हुआ चुप-चाप खड़ा सब होने दे रहा था। दादा जी अब मेरी गांड को दबा-दबा कर लाल कर रहे थे मेरी गांड को फैला कर।
दादा जी: थोडा दर्द होगा, एक उंगली डाल कर देखता हूँ।
ये बोलते ही उन्होंने क्रीम लेकर अपनी उंगलियों को डालना शुरू कर दिया। मैं भी दर्द होने का नाटक करने लगा।
दादा जी: सच-सच बोलना रोहित, गोपाल से गांड मरवा कर अच्छा लगा क्या? झूठ मत बोलियो, वरना सबको बता दूंगा।
मैं: हां दादा जी, बहुत अच्छा लगा था (हवस के नशे में)।
दादा जी: तो परसो से क्यों नहीं बोला? मैं कब से तेरी गांड ही लेना चाह रहा था।
ये बोलते ही उन्होंने खड़ा होकर अपना लोड़ा पजामे से बाहर निकाला, जिसे देख कर मैं डर गया। दादाजी का लोड़ा चाचा से भी लंबा या मोटा था। 8+ इंच लंबा और 5 इंच मोटा। लोड़े के पास बालों का जंगल बना हुआ था।
बाप बेटा लोड़ों का कॉम्पिटिशन कर रहे थे लगता है।
दादा जी: चल मुंह खोल। ले इसे जैसे गोपाल का लेता था। घर में इतने मर्द है, फिर भी बाहर मुंह मारता है। हरामखोर गोपाल का लोड़ा भूल जाएगा ये लेगा तो।
बहुत मुश्किल से लोड़ा चूस पर रहा था। दादा जानवरों से कम नहीं था। कुतिया समझ कर मुंह चोद रहे थे। सांस लेना भी बहुत मुश्किल हो रहा था, और आंखों से भी आंसू आने लगे।
दादा जी: चूस रांड चूस, गोपाल से मजे लेती है साली, चूस इसे। रोती है कुतिया, चूस इसे।
15 मिनट चुसवाने के बाद रूम में ले जाकर मुझे बिस्तर पर लेटा दिया। फिर से मुंह को चोदना शुरु कर दिया।
मैं (रोते हुए): बहुत दर्द हो रहा है, मुंह में जाने दो प्लीज।
दादा जी ने एक थप्पड़ मेरे गाल पर मारा।
दादा जी: सोच ले, सबको पता चल गया तो क्या होगा। वैसे भी अब तेरी गांड का नंबर है साली।
दादा जी बहुत हार्ड सेक्स कर रहे थे। मेरा रोना रुक ही नहीं रहा था।
मेरी गांड पर क्रीम लगा कर एक साथ ही पूरा लंड मेरी गांड में दे दिया। मेरी तो झटके से चीख ही निकल गई।
मैं: निकालो इसे, बहुत दर्द हो रहा है। बाहर निकालो इसे।
दादा जी: अभी कहां इतना जल्दी। मुझे तो तेरा छेद देख कर ही पता चल गया था, तुझे गोपाल बहुत बार चोद चुका है। मुझसे झूठ बोलना बहुत महंगा पड़ता है समझी? ज्यादा नाटक मत कर।
नॉन स्टॉप चुदाई चल रही थी। मैं अभी भी डोगी बना हुआ था। वो पीछे से लगातार झटके दे रहे थे। और मेरी दर्द से जान निकल जा रही थी। पूरे घर मे मेरे रोने और चिल्लाने की आवाज गूंज रही थी।
मैं: आह आह जाने दो मुझे, अब नहीं करूंगा।
चाचा कभी भी मुझे ज़ोर से चोदते नहीं। इसलिए ये चुदाई जान लेवा हो रही थी। 15-20 मिनट गांड फाड़ चुदाई के बाद मेरा दर्द अब नॉर्मल हो गया था। अब मैं खुद धक्के देने लगा
दादा जी: मेरी औलाद भी चूतिया है साला। इतनी मस्त गांड के साथ एक महीने से सो रहा है। लेकिन अभी तक चोद नहीं पाया। ऐसा माल भी कोई छोड़ता है क्या?
अब हम दोनों मस्ती में आ गए थे। दादा जी अब मेरी गांड में लोड़ा डालते फिर निकालते, फिर निकालते। 10-12 बार ऐसा करने के बाद अब मुझे बिस्तर से नीचे शीर्षासन की पोजीशन में लेकर मेरी गांड में लोड़ा डाल के चुदाई का सिलसिला जारी रखा।
10 मिनट वो ऐसे ही चोदते रहे। फिर मेरे मुंह पर लोड़ा रख कर सारा गर्म-गर्म माल मेरे चेहरे पर निकाल दिया।
दादा जी: कसम से क्या मस्त माल है यार तू। गाली देने के लिए सॉरी, गोपाल का गुस्सा था। अब नहीं होगा।
मेरी गांड से खून निकल रहा था।
दादा जी: कोई नहीं, प्यार की निशानी है, देखा उस कुत्ते (गोपाल) से ज्यादा मजे है ना मेरे लोड़े में।
ये बोल कर मुझे लिप पर किस करने लगे। अपना सारा माल अपने लिप से मेरे मुंह में डाल कर मुझे आपने साथ ही लिटा लिया।
मैं: आप किसी को मत बताना, और गाली भी नहीं देना।
दादा जी: बिल्कुल जान, सिर्फ तेरे और मेरे बीच में।
थोडी देर में उनका लोड़ा फिर से खड़ा होने लगा।
दादा जी: लगता है आज थोड़ा और प्यार चाहता है ये।
मैं नाटक करते हुए: तो माना कौन कर रहा है?
मैं सोचने लगा, दोनों बाप बेटे का एक राउंड से मन नहीं भरता कभी भी।
अगला राउंड हमने घर के हर कोने में चोद-चोद कर पूरा करा।
चुदाई करते-करते हम दोनों एक-दूसरे में इतना पागल हो गए, कि कब शाम हो गई हमें पता ही नहीं चला। शाम तक मेरी गांड बहुत ज्यादा सूज गई थी। दादा जी ने दवाई दी, और चाचा आने पर हम दोनों फिरसे सामान्य व्यवहार करने लगे।
उस दिन रात में मैं चाचा के साथ कुछ नहीं कर पाया। गांड का दर्द हो इतना बेकार रहा था। अगले 7 दिन दादा जी के साथ दोपहर में 2 राउंड या उससे ज्यादा, और रात में चाचा के साथ 2 राउंड पक्का होते। इसके बाद मैं जयपुर अपने घर आ गया। दोनों को 7 दिन तक कभी पता ही नहीं चला एक दूसरे के बारे में। अब मैं दोनों की लुगाई बन चुका था।
आज भी मुझे उनके लोड़ों की याद आती है, तो उनको अपने या खुद उनके घर चले जाता हूं। धन्यवाद दोस्तों पूरी कहानी पढ़ने के लिए।